ये क्या हो गया है इन नेताओं को ? समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन आखिर कहना क्या चाह रहे हैं ? आखिर इस बेतुकी बात कहने की जरूरत ही क्या थी ? राणा सांगा को बीजेपी से कैसे जोड़ा जा सकता है ? उन्होंने कहां पढ़ लिया कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था। इन नेताओं को वोटबैंक के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। ये नेता यदि आज़ादी की लड़ाई में होते तो उसे भी जाति धर्म में बांट देते। क्रांतिकारियों को भी सियासत में उलझा देते। और देश को आज़ाद ही नहीं होने देते।
एक तो लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि चाहे बाबरनामा हो या फिर पृथ्वीराज रासो। इन्हें इतिहास नहीं कह सकते हैं। दोनों ही ओर से अपने आकाओं का महिमामंडन किया गया है। समझ यह भी लेना चाहिए कि जब लोकतंत्र में कलम सत्ता के दबाव में चल रही है तो फिर राजतंत्र में कलम पर कितना बड़ा पहरा होगा। राजतन्त्र में राज कवि होते थे। मतलब उन्हें राजा का महिमामंडन ही करना होता था। राजा अपने-अपने हिसाब से अपने बारे में लिखवाते थे। क्या संसद में बस बाबर राणा सांगा और औरंगजेब की ही बात होगी ? इतिहासकारों ने भी इन्हीं पुस्तकों के आधार पर इतिहास लिखा होगा।
संसद में चर्चा करनी ही तो यह करिये कि क्या कोई क्रांतिकारी अपनी जाति या समाज के लिए लड़ रहा था ? क्या भगत सिंह सिखों के लिए लड़े थे ? क्या चंद्रशेखर आज़ाद हिन्दुओं के लड़े थे ? क्या अशफाक उल्ला खां मुस्लिमों के लड़े थे ? क्या इन लोगों ने अपने जाति और धर्म के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी ? क्या आज़ादी की लड़ाई में बाबर, राणा सांगा, ओरंगजेब की चर्चा होती थी ?
क्या रामलाल जी सुमन बाबर के राज में कुछ बन सकते थे ? क्या राजतन्त्र में ये सांसद कुछ बन सकते थे ? नहीं न। इन नेताओं को तो हर बात में वोटबैंक की राजनीति घुसेड़नी है। सांसद का काम अपने क्षेत्र की समस्याएं उठाना होता है न कि किसी मुग़ल शासक या हिंदू शासक का इतिहास बताना। वह वर्चस्व की लड़ाई थी। दोनों ओर से ही हिन्दू और मुस्लिम लड़ते थे। अकबर के सेनापति हिन्दू थे और महाराणा प्रताप के सेनापति मुस्लिम। न तो बाबर ने किसी आम आदमी को अपना उत्तराधिकारी बनाया और न ही राणा सांगा ने। यह तो लोकतंत्र है जो रामजी लाल जैसे लोगों को भी संसद में जाने का मौका मिला। क्या रामजी लाल सुमन राजतन्त्र की संसद में जा सकते थे ?
यह बात हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोगों को समझनी चाहिए कि ये नेता हैं इन्हें किसी जाति और धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इन्हें तो बस अपना वोट बैंक देखना है। समाजवादी पार्टी का मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस की ओर खिसक रहा है। समाजवादी पार्टी मुस्लिमों को यह दिखाना चाहती है कि वह उनके लिए कुछ भी कर सकती। ऐसे ही बीजेपी हिन्दू वोट बैंक की ठेकेदार बनी हुई है। किसी भी पार्टी का नेता सभी समाज की बात करने को तैयार नहीं। देश और समाज की बात करने को तैयार नहीं है।
क्या रामजी लाल सुमन को उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों ने इसलिए चुनकर संसद में भेजा है कि वे बाबर और राणा सांगा का मुद्दा संसद में उठाएंगे ? रोजगार, महंगाई कानून व्यवस्था पर कोई बात करने को तैयार नहीं रोज रोज वोटबैंक से जुड़े मुद्दे चाहिए।