राम विलास
राजगीर।मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी राजगीर से देश की राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली तक जाने वाली श्रमजीवी एक्सप्रेस शुक्रवार को एक घंटा 15 मिनट विलंब से राजगीर स्टेशन से खुली। स्टेशन प्रबंघक चन्द्र भूषण सिन्हा ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि 9:20 बजे श्रमजीवी एक्सप्रेस शुक्रवार को खुली है।
यह रेलगाड़ी राजगीर से चलकर बख्तियारपुर, पटना, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, लखनऊ होते नई दिल्ली तक जाती है। श्रमजीवी एक्सप्रेस पर्यटक शहर राजगीर से सुबह 8:05 बजे खुलती है। खुलने के समय ऐन मौके पर श्रमजीवी एक्सप्रेस का इंजन और पावर ब्रेक में अचानक तकनीकी खराबी हो गयी।
फलस्वरूप यह अपने निर्धारित समय से नहीं खुल सकी। बताया जाता है कि तकनीकी गड़बड़ी को दूर करने का स्थानीय स्तर पर प्रयास किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। थक हार कर घटना की जानकारी वरीय अधिकारियों को दिया गया। स्टेशन प्रबंधक द्वारा दानापुर से दूसरा रेलवे इंजन मंगाकर श्रमजीवी एक्सप्रेस को राजगीर से खुलवाया जा सका।
सूत्रों की माने तो इस दौरान यात्रियों को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा। बहुत से लोगों ने अपना टिकट कैंसिल करवा लिया। रेलवे सूत्रों के अनुसार राजगीर में ही श्रमजीवी एक्सप्रेस का मेंटेनेंस किया जाता है। इस दौरान साफ सफाई से लेकर रेलवे इंजन तक की मेंटेनेंस जिम्मेदार लोगों के द्वारा की जाती है। मेंटेनेंस कार्य रेलकर्मी के अलावे संविदा कर्मी भी करते हैं ।
बताया जाता है कि पदाधिकारियों की देखरेख में करीब छह घंटे से आठ घंटे तक श्रमजीवी एक्सप्रेस का मेंटेनेंस राजगीर में किया जाता है। जिम्मेदार पदाधिकारी द्वारा फिटनेस एनओसी देने के बाद ही श्रमजीवी एक्सप्रेस को यार्ड से रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर लाया जाता है।
सूत्रों की माने तो जिम्मेदार पदाधिकारियों की लापरवाही या चूक के कारण कभी श्रमजीवी एक्सप्रेस के इंजन तो कभी गार्ड ब्रेक, कभी पावर ब्रेक, कभी एसी कोच में परेशानी होती रहती है। कई बार तो राजगीर से ट्रेन खुल जाने के बाद रास्ते में भी कोच में परेशानी आती रहती है।
वर्षों से अंगद की तरह जमे हैं रेलकर्मी
राजगीर में सैकड़ों रेल कर्मी दसकों से जमे हैं। दर्जनों कर्मियों का ट्रांसफर देय है। लेकिन अपने प्रभाव के कारण वे यहां जमे हैं। यही कारण है कि दसकों से वैसे लोगों का स्थानांतरण नहीं हुआ है। बताया जाता है कि अनेकों रेल कर्मी अपना स्थानांतरण का इंतजार करते करते राजगीर से ही रिटायर भी हो गये हैं। लंबे अर्से से पदस्थापित कर्मियों में जिम्मेदारी से अधिक स्थानीयता और राजनीति में दिलचस्पी होने लगती है।