एनडीए में सीट बंटवारा हुआ नहीं, बिहार में उम्मीदवारों की घोषणा करने लगे हैं चिराग

 2020 दोहराने की मंशा तो नहीं

दीपक कुमार तिवारी

पटना। नीतीश कुमार आरजेडी के साथ न जाने और भाजपा के साथ बने रहने की लाख सफाई दें, पर शायद ऐसा न हो पाए। ऐसा तभी हो सकता है, जब भाजपा चिराग पासवान को काबू में रख पाए। लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के तेवर देख ऐसा नहीं लगता कि वे भाजपा की भी बात मानेंगे। ऐसा कहने का बड़ा आधार यह है कि बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के नेता हैं। भाजपा उनके मातहत चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। एनडीए में लोजपा के दोनों धड़े शामिल हैं। जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा (हम), उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम, भाजपा और जेडीयू शामिल हैं। सीट शेयरिंग अभी तक नहीं हो पाया है। सच तो यह है कि सीट बंटवारे की बातचीत भी शुरू नहीं हुई है। जबकि चिराग पासवान विधानसभा सीटों पर अभी से उम्मीदवार घोषित करने लगे हैं।
चिराग पासवान की योजना विधानसभा चुनाव के पहले सभी 243 सीटों पर दौरे की है। इसी क्रम में वे पहले बेगूसराय के मटिहानी गए। दूसरे दिन शेखपुरा पहुंचे। दोनों जगहों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की। मटिहानी सीट से 2020 में लोजपा के उम्मीदवार राजकुमार सिंह जीत भी गए थे, लेकिन बाद में उन्होंने जेडीयू ज्वाइन कर लिया था। चूंकि वे अपनी पार्टी के इकलौते विधायक थे, इसलिए दल बदल का मामला भी उनके खिलाफ नहीं बना। चिराग अब भी मटिहानी को अपनी ही सीट मानते हैं। शेखपुरा में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी के जिला अध्यक्ष इमाम गजाली ही इस बार चुनाव लड़ेंगे। गजाली वही हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान सिवान में जेडीयू उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं निर्दलीय हिना शहाब के समर्थन में चुनाव प्रचार किया था। गजाली 2020 में भी शेखपुरा से चुनाव लड़े थे। उन्हें 14 हजार वोट मिले थे। जेडीयू प्रत्याशी को 50 हजार वोट पड़े। पर, 56 हजार वोट आरजेडी उम्मीदवार को मिले और 6000 वोटों से आरजेडी उम्मीदवार की जीत हो गई।
चिराग पासवान के इस कदम से नीतीश कुमार को सर्वाधिक परेशानी हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी चिराग पासवान ने ऐसा ही बखेड़ा किया था। उन्होंने जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। भाजपा की भी इक्का-दुक्का सीटों पर उनके उम्मीदवार थे। इतना ही नहीं भाजपा और दूसरे दलों में टिकट से वंचित नेताओं को भी उन्होंने टिकट दे दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि जेडीयू को तकरीबन तीन दर्जन सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा। नीतीश कुमार तब से ही चिराग से खार खाए हुए थे। लंबे समय बाद इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों के बीच रिश्ते तब सामान्य हुए, जब चिराग की एनडीए में वापसी हुई।
भाजपा ने भले चिराग पासवान को उनके चाचा से अधिक तवज्जो दी है, लेकिन वे उसे भी आंख दिखाने से परहेज नहीं करते। चिराग को नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। वे भी चुनाव होने तक अपने को मोदी का हनुमान बताते रहे। लेकिन मोदी सरकार के फैसलों पर जिस तरह उन्होंने अलग स्टैंड लेना शुरू किया है, उससे लगता है कि वे एनडीए में बगावती तेवर अपनाने की ठान चुके हैं। बिहार में विधानसभा की कम से कम 40 सीटों की हिस्सेदारी की वे बात कर रहे। झारखंड में भी उन्होंने दावेदारी की है। बात नहीं बनने पर अलग चुनाव लड़ने की भी बात कही है। इससे लगता है कि उन्होंने पहले से ही एनडीए छोड़ने का मन बना लिया है। एनडीए में रह कर अगर वे बिहार में अभी से उम्मीदवारों की जिस तरह घोषणा करने लगे हं, उससे उनके तेवर को समझा जा सकता है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *