द न्यूज 15
नई दिल्ली। कुछ पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि रक्षा मंत्रालय को सशस्त्र बलों के बजटीय आवंटन में कोई कमी नहीं करनी चाहिए। बुधवार को लोकसभा में पेश एक रिपोर्ट में भाजपा सांसद जुआल ओराम की अध्यक्षता वाले पैनल ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में हमारे पड़ोसी देशों के साथ तनाव बढ़ा है, विशेष रूप से हमारे देश की सीमाओं पर ऐसी स्थिति बनी हुई है। ऐसे में रक्षा तैयारियों के लिए बजट में कमी करना अनुकूल नहीं है।
पैनल ने अपनी पिछली रिपोर्टों में, पूंजीगत बजट को “नॉन-लैप्सेबल” और “रोल-ऑन” प्रकृति में बनाने की सिफारिश की थी। समिति ने कहा कि यह अवगत कराया गया है कि अव्यपगत रक्षा आधुनिकीकरण कोष के लिए एक मसौदा कैबिनेट नोट विचाराधीन है। रिपोर्ट में कहा गया है, “2020-21 में 3,43,822.00 के कुल बजटीय आवंटन में से दिसंबर 2020 तक मंत्रालय द्वारा केवल 2,33,176.70 रुपये का ही उपयोग किया गया।”
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा : 2022-23 के लिए पूंजी शीर्ष के तहत 2,15,995 करोड़ रुपए की मांग का अनुमान लगाया गया था, लेकिन 1,52,369.61 करोड़ रुपए बजट का आवंटन था। धन की इस तरह की कटौती रक्षा सेवाओं की परिचालन तैयारियों से समझौता कर सकती है। 2022-23 में बजट अनुमान स्तर पर, सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए अनुमानित और आवंटित बजट के बीच का अंतर क्रमशः 14,729.11 करोड़, 20,031.97 करोड़ और 28,471.05 करोड़ है रुपए, जो उल्लेखनीय रूप से अधिक है।
अव्यपगत रक्षा आधुनिकीकरण कोष के लिए एक मसौदा कैबिनेट नोट विचाराधीन है।
भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पास दो मोर्चे की प्रतिरोधक क्षमताएं होनी चाहिए, जो कि सबसे जरूरी हैं क्योंकि भारत अपने पड़ोस के दोनों किनारों पर तनाव झेल रहा है (समिति का यहां आशय पाकिस्तान और चीन से है)। इन खतरों नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अधिकांश मौजूदा स्क्वाड्रन का कुल तकनीकी समय खत्म हो रहा है। ऐसे में स्क्वाड्रन की ताकत उत्तरोत्तर कम होती जा रही है।