पहरेदार ही पहरेदार पर लगा रहा है निशाना!

डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’
कौन है पहरेदार ? कौन देगा पहरा नस्ली बयानों पर ? जो ज़िंदगी को तार-तार कर रहे हैं । जब कलम चलती है तो पूछती है; लिखने को लिख लो, तसल्ली कर लो पर पहरेदार ही पहरेदार पर निशाने लगा रहा है। सुरक्षा के घेरे में असुरक्षित महसूस करा रहा है। मरहूम कर रहा है, मन को सुकून पहुंचाने वाली उन सारी भावनाओं से , जिनसे गले मिलकर ज़िंदगी जीना चाहती है।

कहां ले आया है ईमान का झूठा दिखावा ! नफ़रतों के उबलते सैलाब, समंदर की गहराई और खो जाने के लिए बने गहरे भंवर। कितनी कट्टरता और दिल बेरहम। कहां बसा करता था !प्यार! और अब कहां हर दिल में बस छेद ही छेद ।भावनाएं हर ओर बह निकलती हैं, ठहरने के लिए सतह ही नहीं।

इश्क इबादत का पैमाना ज़हर उगलते संवादों में कहीं किसी किनारे की चाह में उदास, अपने ही अस्तित्व से लड़ता नज़र आ रहा है । फूलों के साथ कांटे नहीं चुरा पाते उसकी ख़ुशबू और सुंदरता। पूरी बगिया महकती रहती है पर कांटे बोना उनकी फ़ितरत नहीं। कड़वाहट का अंदाज़ यूं रखिए कि मैल निकल जाए मैला न कर जाए। सही को सही , गलत को गलत कहना कायरता नहीं न ही किसी के प्रति पक्षपात है। अपनेपन की सुंदर बातों से, सुंदरता की परिभाषा को बढ़ाना और समझाना आज के समय की सुंदरतम बात है।

छोटे-छोटे वर्गों में बंटकर , कटकर , अलग-थलग, छोटी-छोटी जहरीली बातों से बिना डसे , बिना प्रभावित, एकता का मूल मंत्र , स्वर्ग से सुंदर दिखने वाले समाज का आधार स्तंभ है।
गरीबी-अमीरी का भेद ही मात्र एक सच्चाई है बाकी सब झीने पर्दो से झांकते, हमारी गहराइयों को तौलते, कटुता के वे पैमाने हैं जिसे हर वक़्त बेलगाम भरने की, स्व की सत्ता में मदांध मौकापरस्तों की साजिशी चाल हैं।

हम तुम और वो यूं ही नहीं वक़्त -बेवक्त की चाहरदीवारों से झांकता है । हमारे मन का कोना इतना कमज़र्फ है ही कि प्यार की बारिश में नहाने के बजाए नफ़रतों के सैलाब में बह जाना चाहता है। किसी को समझाने की ज़रूरत नहीं, ख़ुद की तीमारदारी करनी है। मन को क़ैद होने से बचाना है। हंसना- हंसाना, मिलना -मिलाना, विश्वास- भरोसा लुटाना ,अपनी चारदीवारी में महफूज़ समझाना, बेरोकटक आना- जाना, दिल से दिल का टकराना , शक की गुंजाइश न रहे ऐसी दूरियां मिटाना।

बेमौसम बरसात और बरसाती मेंढककों के टर्राने से मौसम नहीं बदला करते । तीन-पांच करने वाले तिकड़मबाज कहलाते हैं। एन-केन प्रकारेण कुछ भी करके अपने ही हितों की पूर्ति मे लगे, मौकापरस्तों की छींटाकशी से हमारे दामन रक्तरंजित न हो जाएं, सावधान रहें, दिखावे के पहरेदारों से। अपनी दिमागी कसरत को दुरुस्त रखें । रोज़ ही आकलन करते रहें अपनी और उनके चरित्र की। न लगने दें दाग किसी भी कीमत पर , दाग अच्छे नहीं । जिनके हर तरफ़ पैबंद लगे हैं उनसे साफ-सुथरी ज़िंदगी के पैगाम मिलने नामुमकिन है।

रास्ता वही जो मंज़िल को ले जाए । पर मंज़िल की भी पाक पहचान ज़रूरी है। किस्तों में ,भाड़े पर ,कर्ज़दार बनकर रिश्तों- संबंधों की परवाह बेमानी है । मन की सुंदरता आर- पार शीशे की तरह पारदर्शक हो। दिल चीर कर दिखाने की ज़रूरत ही न पड़े । कोना -कोना मखमली रूहानियत से भरा हो। ऐसे इंसानी फरिश्तों की बस्ती में सबकी आमद हो। नेकी- बदी को भूलेंगे तो गुमनाम हो जाएंगे। समय कोई भी हो दानवों- असुरों का संघार समाज की भलाई के लिए अपरिहार्य है। समय की मांग पर अपने को तौलना है । कुछ भी हो जाए इंसानियत नहीं मरनी चाहिए। शरीर के अंग बंट जाएं पर आत्मा नहीं मरनी चाहिए। संवेदनाओं से भरी मूर्तियां ही पूजी जानी चाहिए । उद्गारों से गर्म सांसे , उल्लसित ,अपनेपन के भाव से भरे , सारे वातावरण में पहरेदार बनकर सत्य की सुरक्षा का ज़िम्मा लेने के लिए जो कमरबद्ध हों उनकी तलाश हो।

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