पूर्णिया। सीमांचल में सैकड़ों शिक्षक रोज अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं। नाव ही उनका एकमात्र सहारा है। कई बार नाव हादसों से बाल-बाल बचे हैं। कभी दलदल में फंसकर, कभी खेतों के मेड़ों से गुजरकर, ये शिक्षक किसी तरह समय पर स्कूल पहुंचते हैं। यह समस्या खासकर अमौर प्रखंड के खाड़ी महीनगांव पंचायत में विकराल है, जहां 2007 में कनकई नदी पर पुल बनना शुरू हुआ था। लेकिन 2013 में अधूरा बनकर रह गया। तब से यह अधूरा पुल लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है।
स्थानीय लोग और शिक्षक नाव के सहारे नदी पार करते हैं। तीन महीने पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें नाव पुल के पिलर से टकराते-टकराते बची थी। तेज बहाव में नाव पलटते-पलटते बची थी। वीडियो में साफ दिख रहा था कि कैसे नाविक की सूझबूझ से बड़ा हादसा टल गया। वीडियो में शिक्षिकाओं को अपनी जान जोखिम में डालकर नाव से स्कूल जाते हुए देखा जा सकता है। शिक्षकों ने कहा कि कभी पानी में घुसकर तो कभी कीचड़ में घुसकर स्कूल तक पहुंचते हैं और बच्चों को शिक्षा देते हैं। समय पर स्कूल पहुंचना होता है, वरना उनकी हाजिरी कट जाती है। ध्यान रहे कि नाव के इंतजार में उन्हें अक्सर दो-दो घंटे की देरी हो जाती है। लेकिन सीमांचल और पूर्णिया में शिक्षकों को रोजाना इस समस्या का सामना करना पड़ता है।दुख की बात यह है कि सरकार, स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन सब आंखें मूंदे बैठे हैं।
ग्रामीणों के मुताबिक अगर यह पुल बन जाता है तो इस इलाके के लाखों लोगों को आवागमन में सुविधा होगी। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि इस खाड़ी पुल के निर्माण के लिए उन्होंने कई बार आंदोलन किए। किशनगंज के सांसद मोहम्मद जावेद, अमौर के विधायक अख्तरुल ईमान और जदयू नेता मास्टर मुजाहिद ने भी कई बार आश्वासन दिया, लेकिन पुल आज तक नहीं बना। लिहाजा वे लोग यहां नाव से ही आवागमन करते हैं। कई बार वे लोग दुर्घटना का भी शिकार हो जाते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी तो शिक्षकों को होती है, जिन्हें समय पर स्कूल पहुंचना होता है। लेकिन नाव की वजह से वे समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं।
लोगों का कहना है कि अगर यह पुल बन जाता है तो अमौर से लेकर अनगढ़ और किशनगंज तक आवागमन का रास्ता आसान हो जाएगा। लाखों लोगों को इससे फायदा होगा। यह हालात सिर्फ अमौर के खाड़ी महीनगांव का ही नहीं है। बल्कि पूर्णिया जिले में कई ऐसे इलाके हैं जहां आजादी के 77 साल बाद भी लोगों को अपनी जान जोखिम में डालकर नाव के सहारे आना-जाना पड़ता है। खासकर बाढ़ प्रभावित बायसी अनुमंडल में लोगों के लिए यह नियति बन चुकी है। सबसे बुरा हाल उन शिक्षकों का है जिसको प्रतिदिन ड्यूटी करनी होती है। भले ही उनकी जान क्यों ना चली जाए। इससे न तो सरकार को मतलब है ना ही प्रशासन को और ना ही जनप्रतिनिधि को।