राजकुमार जैन
आज के माहौल में जब सियासत एक तिजारत बन गई, पद पैसा शोहरत जैसे भी मिले, सिद्धांत नीति विचारधारा पार्टी संगठन सब बेफजूल है। बरसों बरस राज्यों से लेकर केंद्र की मंत्रिपरिषद में बने रहे श्रीमान, कपड़े बदलने की तरह पार्टियों को बदल रहे हैं। बेशर्मी के साथ, एक ही जुमले की ओट में, कि सुबे के अवाम के हितों के लिए ऐसा करना वक्त की दरकार है, हम रोज देख रहे हैं। अफसोस इस बात का है की फिर भी वह सिरमौर बने हुए है।
परंतु इससे उलट एक और दूसरी धारा भी जारी है। जिसकी बुनियाद पर जम्हूरियत समाजवाद आदर्शवाद की शमां भी पूरे तेवर के साथ दहक रही है, भले ही ज्यादा दिख ना रही हो। आज भी सोशलिस्ट तवारीख तथा अन्य सियासी जमातों में ऐसे अनेकों लोग विचारधारा से बंधे, मिशन के सपने को पूरा करने में अपने को खफाए हुए हैं ।समाजवादी समागम जो महात्मा गांधी, आचार्य नरेंद्र, युसूफ मेहर अली, जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया की विचारधारा में यकीन रखता है.सोशलिस्ट सिद्धांतों नीतियों, कार्यक्रमों, के प्रचार प्रसार, फैलाव के कार्यों में लगा है। जमीनी स्तर पर अपनी सीमित शक्ति के बावजूद बिना किसी पार्टी, संगठन, साधन के लगा है। मेरे कई साथी पूर्णकालिक रूप से इस कार्य में जुटे हुए हैं।
भयंकर सर्दी के दिनों में भी साथी प्रोफेसर आनंद कुमार, रमाशंकर सिंह, डॉक्टर सुनीलम इस अलख को जलाए रखने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे पर होने वाले सम्मेलनों, सभाओं, विचार गोष्ठियों, व्याख्यान मालाओं, धरने प्रदर्शनों में हर प्रकार की परेशानियों को झेलते हुए पहुंच रहे हैं। तीनों ही साथींओ कि शख्सियत की पहचान किसी की मोहताज नहीं है। कलम और किरदार में अव्वल दर्जे पर होने के बावजूद एक सधारण कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। प्रोफेसर आनंद कुमार देश-विदेश के नामवर समाजशास्त्री तो है ही आज भी बौद्धिक बहसो, शिक्षण शिविरों, आयोजनों मैं शिरकत करने के लिए पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण के दर-दुराज के ग्रामीण अंचलों के छोटे-छोटे इलाकों में जाकर समाजवाद का पाठ पढ़ाने के लिए 70 वर्ष की उम्र के होने के आसपास होने के बावजूद, विषम परिस्थितियों में भी अपनी हाजिरी लगाकर स्थानीय कार्यकर्ताओं को निराश नहीं होने देते। समसामयिक विषयों पर अग्रलेख, पुस्तकों की भूमिका लिखने, न रुकने वाला क्रम तो उनसे जुड़ा ही रहता है। अच्छा स्वास्थ्य न होने के बावजूद उनका उत्साह देखने लायक है।
मुझे तो लगने लगा है कि रमाशंकर सिंह अपने आप में ही एक तहरीक बनते जा रहे हैं। पिछले सालों में जिस तरह उन्होंने समाजवादी साहित्य का प्रकाशन, उसका प्रचार प्रसार किया वह एक नजीर बन गया है। पुरखों की याद में होने वाले व्याख्यान माला, जन्म, पुण्यतिथि का भव्य आयोजन, देशभर में भ्रमण करके शिक्षण शिविरो से लेकर सभाओं में हिस्सेदारी करते हुए हर प्रकार का साधन मुहैया कराते हुए मधुलिमए कर्पूरी. ठाकुर जनशताब्दी समारोह का भव्य आयोजन के लिए दौड़ भाग कर रहे हैं, वह कोई साधारण कार्य नहीं है। रमाशंकर ने एक जिम्मेदारी और औढ रखी है, कि सोशल मीडिया में, सोशलिस्ट तहरीक पर हो रहे हमलो का तीखा परंतु तथ्यों पर आधारित जवाब देकर दूसरों की नापसंदीद को भी झेल रहे हैं। दिल्ली में शुरू हुए कर्पूरी.ठाकुर जन्मशताब्दी समारोह से शुरू हुए भव्य आयोजन से लेकर पटना में 23 जनवरी को संपन्न हो रहे समारोह की तैयारी में जुटे हुए हैं।
डॉक्टर सुनीलम स्वयं अपने आप में चलते फिरते समाजवाद के प्रचार-प्रसार, प्रसारण बने हुए हैं। केरल से कश्मीर तक हर इजलास में शिरकत करना उनका शग़ल है। सारी मसरूफियात के बावजूद बहुजन संवाद पोर्टल का संचालन उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है। दूर दराज के बुजुर्ग समाजवादियों की खबरे देना खासतौर से मामा बालेश्वर जैसे भीलों के नेता याद में आयोजित होने वाले मेले की याद तथा पुस्तिका प्रकाशित करना, उनके द्वारा जारी है।
लोहिया जयप्रकाश के नाम पर बनी पार्टियों सारे दमखम, लावा लश्कर, जन धन होने के बावजूद विचार के प्रचार प्रसार के क्षेत्र में इन लोगों के सामने बौनी बनी है।