राजकुमार जैन
यह देखने में आया है कि आर.एस.एस., भाजपा, नरेन्द्र मोदी के दिल्ली की गद्दी से लेकर कई सूबों में काबिज होने पर कुछ तथाकथित वामपंथी, कम्यूनिस्ट और अपने पर प्रगतिशील कांग्रेसी का ठप्पा चस्पाने वाले अपनी भड़ास, सोशलिस्टों और विशेष तौर पर जयप्रकाश नारायण तथा डॉ. लोहिया पर निकाल रहे हैं। अफसोस की बात तो यह भी है कि कुछ तथाकथित सोशलिस्ट भी जो कांग्रेसी राज में जी हजूरी करके, सत्ता की झूठन चाट रहे थे, वे भी बेरोजगारी के आलम में इसी जमात में शामिल हो गए हैं, जिसकी ताजा मिशाल कुर्बान अली है, जो अब जयप्रकाश नारायण, डॉ. लोहिया को सी.आई.ए. का एजेंट लिखने तक की हिमाकत कर रहे हैं।
इस कहावत से हर कोई वाकिफ़ है कि आसमान पर थूका मुँह पर गिरता है। हालाँकि सोशलिस्ट तहरीक और उसके रहबरो पर शुरू से ही तरह-तरह के हमले होते रहे हैं और इन बेचारे छुटभैयों की तो औकात ही क्या नामवर कम्यूनिस्टों, कांग्रेसियों, भाजपाइयों ने तरह-तरह के लांछण सोशलिस्टों पर लगाए हैं। सोशलिस्टों ने अनेकों बार इन बेसिर पैर के बेहूदा व्यक्तिगत खीझ से भरे, आरोपों का तथ्यों और ऐतिहासिकता के आधार पर जवाब दिया है।
प्रो. आनंद कुमार ने मुक्तसर रूप से सिलसिलेवार जवाब आज दिया है, परंतु उन्होंने अपनी भद्रता में ऐसे लोगों को नासमझ, अज्ञानी, गप्पबाज तक ही सीमित किया है, जो कि हकीकत से परे है। ये लोग कांग्रेसी राज में जो मलाई चाट रहे थे, उसके छिनने पर साजिशन आरोप लगा रहे है। इन तथ्यों पर ज़रा नज़र दौड़ाएं। नरेन्द्र मोदी के राज आ जाने के बाद किस पार्टी के नेता ने केवल गाल बजाए अथवा जमीनी रूप से उसकी मुखालफत की। एल.के. अडवाणी की रथ यात्रा का सड़क चौराहों पर विरोध करते हुए कौन मार खा रहे थे ? पकड़े जा रहे थे। सोशलिस्ट मुलायम सिंह यादव की राजनीति की अनेकों कमियाँ हो सकती हैं परंतु जिस हिम्मत से बाबरी मस्जिद के विध्वंस होने पर उन्होंने अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया, किस कांग्रेसी, कम्यूनिस्ट की ऐसी हिम्मत थी ? क्या कांग्रेसी, कम्यूनिस्टों में कोई सोशलिस्ट लालू प्रसाद यादव का मुकाबला कर सकता है ? अडवाणी को गिरफ़्तार करने की हिम्मत केवल एक सोशलिस्ट ही कर सकता था ?
जनता पार्टी बनने पर जब जनसंघ घटक ने पार्टी पर कब्ज़ा करने की कोशिश की तो सोशलिस्ट मधुलिमये, राजनारायण जैसे हमारे नेताओं ने जनसंघ को दोहरी सदस्या पर ललकारा, जिसके कारण सरकार गिर गई। यही संघी, कम्यूनिस्ट और इनके लग्गुभग्गु मधुलियमे पर आरोप लगा रहे थे कि ये पार्टी तोड़क है, रूस से रूबल मधुलिमये को मिल रहा है। राजनारायण जी का विरोध जनसंघ किस स्तर पर कर रहा था, कौन नहीं जानता? सिर पर हैलमेट पहनकर, राजनारायण जी, लखनऊ और जयपुर की जनसभा में पत्थर खाते हुए जनसंघ पर हमला कर रहे थे। जनता पार्टी के राज में शिमला के रिज मैदान में संघी मुख्यमंत्री शान्ता कुमार के खिलाफ़ सोशलिस्टों (युवा जनता) ने मोर्चा खोला, राजनारायण जी ने उस सभा में भाषण दिया, सैकड़ों युवा सोशलिस्ट गिरफ़्तार कर नाहन की जेल में बंद किये गये। ज्यों ही मधुलिमये ने दोहरी सदस्यता के सवाल को उठाया तथा अलग पार्टी बनी देशभर की विधान सभाओं में जहाँ पर भाजपाइयों के हाथ में सरकारें थी, सोशलिस्टों ने मंत्री पद पर लात मारते हुए इस्तीफा दिया। दिल्ली की विधानसभा (महानगर परिषद्) में सोशलिस्ट सदस्य, सर्वश्री ब्रजमोहन तूफान, सांवलदास गुप्ता, डी.डी. वशिष्ट, रामगोपाल सिंसोदिया, ललित मोहन गौतम, राजकुमार जैन सदस्य थे, बिना एक पल देर किये छहों सोशलिस्टों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।
10 आज भी भाजपा के खिलाफ़, बिहार में तेजस्वी यादव, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव लड़ रहे हैं।
सोशलिस्टों की गाथा लिखने के लिए तो सैकड़ों पन्नों को काला करना पड़ेगा, आज़ादी की जंग से लेकर आज तक सांप्रदायिकता, मजहबी, कट्टरता, जातिवाद, बेरोजगारी, महंगाई, सरमायेदारी के खिलाफ़ लड़ने की सोशलिस्टों की शानदार रवायत रही है।
कुछ लोग अपनी खारिश मिटाने के लिए सोशलिस्टों में से निकले, इक्के-दूक्के गद्दारों की मिशाल देकर पूरे सोशलिस्ट आंदोलन को बदनाम करने के लिए हाथ-पैर मार रहे है, परंतु व्यक्तिगत तौर पर इस तरह के लोगों का इतिहास खंगाला जाए तो सिर्फ़, सत्ताधारियों की जी हुजूरी कर खैरात में मिली भीख के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।