चरण सिंह
देश में रोजगार, कानून व्यवस्था और अर्थव्यवस्था पर बात होनी चाहिए या फिर राजतंत्र के किसी शासक पर ? देश के जनप्रतिनिधियों को उन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को महान बताना चाहिए जिनके त्याग बलिदान की वजह से हमें आज़ादी मिली या फिर उन राजाओं और शाशकों को जो जनता का दमन करते थे ? उनका अहसानमंद होना चाहिए कि जिनकी वजह से आज़ाद भारत के संसाधनों का मजा लूट रहे हैं या फिर उन राजाओं का जो गरीब जनता से भी कर वसूलते थे।
इसी देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन क्रांतिकारियों की वजह ये नेता प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक बने उनको महान नहीं बताएंगे। उन शासकों को महान बताएंगे जो जनता को गुलाम बनाकर रखते थे। क्या देश में भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे, खुदीराम बोस के त्याग बलिदान को लेकर कोई बहस होती है ? नहीं न। क्योंकि इन महान क्रांतिकारियों के नाम पर कोई वोट बैंक नहीं है।
राम, बाबर, महाराणा प्रताप, अकबर, औरंगजेब और शिवाजी पर बहस होगी क्योंकि इनके नाम पर वोटबैंक बनता है। ऐसा नहीं है कि सभी राजा क्रूर हुए हैं। अच्छे राजा और शासक भी हुए हैं। पर लोकतंत्र में स्वतंत्रता सेनानी नायक और महान हैं न कि राजतंत्र के राजा। मुगल शासकों में नाम लेना है तो फिर बहादुर शाह जफ़र का लो। जिन्होंने देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। ऐसे में ही हिन्दू राजाओं में नाम लेना है तो रानी लक्ष्मी बाई, वीर कुंवर सिंह जैसे राजाओं महान बताया जाए, ये महान लोग देश के लिए मर मिटे। क्रांतिकारी तो कितने नेताओं की नजरों में आज भी आतंकवादी हैं। स्थिति यह है कि आज भी जो लोग व्यवस्था और सत्ता से टकराते हैं कितनी सरकारें उन्हें आतंकवादी मानती हैं। कोई बताएगा कि औरंगजेब पर बहस कर देश को क्या मिलेगा ? बस राजनीतिक दलों का वोटबैंक ही बन और बिगड़ रहा है न। अबू आजमी को भी अशफाक उल्ला खान, वीर अब्दुल हमीद और अब्दुल कलाम जैसे महान लोग याद नहीं आए। सत्तापक्ष और विपक्ष का कोई नेता बताएगा कि यदि आज राजतंत्र होता।
औरंगजेब, अकबर, राम, महाराणा प्रताप या फिर दूसरे राजा होते तो ये नेता कहां होते ? इन राजाओं के बेटे और बेटे ही राजा बनते न। इनका ही राज होता न। क्या अबू आजमी औरंगजेब किसी रियासत का नवाब बन जाते ? क्या अखिलेश यादव कहीं के सेनापति बन जाते ? क्या योगी आदित्यनाथ किसी स्टेट के राजा हो जाते ? क्या पीएम मोदी कहीं के राजा हो जाते ? आज जो नेता मंत्री सांसद या विधायक हैं। किसी राजा के दरबार में दरबारी भी हो जाते क्या ? मजा लूट रहे हैं लोकतंत्र का और बात कर रहे हैं राजतन्त्र की। मतलब गुलामी अभी गई नहीं है। राजा महाराजा ही इनकी नजरों में महान हैं। जिस क्रांतिकारियों ने भूखे रहकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी वे तो इनकी नजरों में सिरफिरे हैं।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन क्रांतिकारियों ने देश की आज़ादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। उनके वंश के लोग आज की तारीख में फटे हाल में हैं और जिन रियासतों ने स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रेजों का साथ दिया वे आज आज़ाद भारत के संसाधनों के मजे लूट रहे हैं। ग्वालियर, पटौदी और रामपुर रियासत का क्या इतिहास है ? क्या इन रियासतों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रेजों का साथ नहीं दिया था ? आज़ाद भारत का मजे मार रहे हैं इन रियासतों के लोग।
क्या कोई भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस, सुभाष चंद्रबोस जैसे क्रांतिकारियों के परिजनों को भी जानता है कि वे किस फ़टे हाल में हैं। देश में ऐसे में ही जाति धर्म के नाम पर वोटबैंक की राजनीति होती रही तो देश को रसातल में जाने से कोई नहीं रोक सकता। हर दल का नेता अपने को सबसे योग्य समझता है पर सोने की चिड़िया कहा जाने वाला हमारे देश पर लाखों करोड़ का कर्जा है। मतलब जो बच्चा पैदा होता है उसे पैदा होते ही कर्जदार बना दिया जाता है। नेताओं को क्या ये तो जाति धर्म की राजनीति करने में मशगूल हैं। जनता भी कुछ इसी तरह की हो गई है।
क्या आज़ादी के समय के नेताओं में जातिवाद और धर्मवाद था ? नहीं न। क्या पंडित नेहरू, डॉ. राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लोकनायक जयप्रकाश, कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं को किसी जाति या धर्म से बांधकर देख सकते थे ? नहीं न।फिर आज की राजनीति विशुद्ध रूप से जाति और धर्म पर आधारित क्यों हो गई है ? ऐसा नहीं है कि बीजेपी ही धर्म की राजनीति कर रही है। आज की तारीख में सभी दल जाति धर्म की राजनीति कर रहे हैं। हां वामपंथी दल अभी जाति धर्म की राजनीति से थोड़े अभी बचे हैं पर इन पर भी अब रिजाइ ओढ़कर घी पीने के आरोप लगने लगे हैं।