डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’
राजा अगर प्रजा की देखभाल नीतिगत रूप से नहीं करता तो प्रजा उसे ठुकरा देती है । धर्म-जाति का उन्माद स्थाई नहीं ।अपने निजी स्वार्थों के लिए समाज को अस्थिर करने वाले, घृणित कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने की कवायद हर पार्टी कर रही है। किसी पार्टी में नैतिकता नहीं बची । एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के दौर चल रहे हैं। व्यक्तिगत और निजी जीवन का पटाक्षेप हो रहा है। राजनीति, नीतियों से एकदम अलग हो चुकी है।
कभी धर्म का कहर, कभी क्षेत्र का और अब जाति का। समाज को टुकड़ों में बांट देने की प्रक्रिया चल रही है सिर्फ़ वोट बैंक के लिए। इंसान को इंसान से अलग कर उनमें नफरत, घृणा, हिंसा, आपसी मतभेद , अलगाव, अंतर और न जाने कितने अबोध सवालों के घेरे में जनता को बांटने की कोशिश हो रही है।
अनगिनत जातियां, उपजातियां कहां तक बटेंगे हम और क्यों बटेंगे ? सब को बांटने का अधिकार कुछ तथाकथित लोगों के अधिकार क्षेत्र में क्यों ? एक समुदाय में अगर सभी मिलकर विकास का रास्ता तय करते हैं तो नीति निर्धारकों को अपच क्यों हो जाता है? अतीत के मुर्दे उखाड़ने के सतत् प्रयास निर्बाध गति से जारी हैं। पर वर्तमान की बिगड़ती व्यवस्था और दीमक की तरह कमज़ोर करते छोटे-छोटे विनाशक कारणों की किसी को कोई परवाह नहीं। एकता ,सहिष्णुता ,भाईचारा, सिर्फ़ अब संविधान के कुछ पन्नों की विरासत है ।असल में तो सबको अलग-थलग करने की आजमाइश जोरों पर है।
विकास एक इंच आगे नहीं बढ़ा । शिक्षा -स्वास्थ्य की समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं । बेरोजगारी से हर नवयुवक संत्रास झेल रहा है। निर्धनता ,किसानों की दशा, मज़दूरों के बिगड़े हालात, लघु- कुटीर उद्योगों की खस्ता हालत, बैंकों का निजीकरण और विदेशी कंपनियों की भरमार। पर इन सभी के निस्तारण के लिए सरकारों के पास , पार्टियों के पास समय ही कहां है ? कहां है सार्थक प्रयास ? हां ! बस एक कार्य प्रगति पर है जाति -जाति का नामकरण ,वर्गीकरण और वोटों की राजनीति। जाति के नाम पर किसी का भला नहीं होगा ।पार्टियां सब का फ़ायदा उठाकर भूल जाएंगी। विकास अलग-अलग जातियों का न होकर पूरे समाज का होता है। ” सबका साथ सबका विकास “। दीमक की तरह सारी अच्छाइयों को खा जाने की प्रवृत्ति ने ही जाति प्रथा को हवा दे दी है। एक देश एक नागरिकता और बस एक जाति । तभी स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण संभव है। बरसाती मेंढकों के टर्र -टर्र बेमौसम नहीं सुनाई देते इसलिए होशियार- खबरदार रहिए, चुनाव आ गया है।