देश में बढ़ रहे धार्मिक उन्माद में मीडिया का गैर जिम्मेदाराना रवैया ज्यादा जिम्मेदार 

मीडिया का गैर जिम्मेदाराना रवैया
चरण सिंह राजपूत 
ब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहा हो। देश में हिजाब का धार्मिक मुद्दा जोर पकड़ रहा हो। इस मुद्दे ने ऐसा रूप धारण कर लिया हो कि सुप्रीम कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ रहा हो ऐसे में यदि कोई पत्रकार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री से धार्मिक मुद्दे पर आधारित प्रश्न पूछता है तो क्या कहेंगे ? दरअसल एक एजेंसी के पत्रकार ने  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रश्न पूछा कि क्या वह प्रदेश में सभी को भगवा पहनने का आदेश दे सकते हैं?
भले ही योगी आदित्यनाथ भगवा रंग के मुखर समर्थक हों पर वह भी जानते हैं कि वह एक जिम्मेदारी के पद पर विराजमान हैं। यही वजह है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की व्यवस्था संविधान के अनुरूप चलनी चाहिए। हमारी व्यक्तिगत आस्था और पसंद-नापसंद हम देश और संस्थाओं पर लागू नहीं कर सकते हैं। उन्होंने स्कूल में ड्रेस कोड लागू करने पर जोर दिया है।
दरअसल देश में यह जो जाति और धर्म के उन्माद का माहौल बन रहा है। इसमें राजनीतिक दलों से ज्यादा जिम्मेदार मीडिया है। मीडिया एक ऐसा तंत्र है, जिसके आधार पर ही हम विभिन्न मुद्दों को लेकर चर्चा करते हैं। लोगों के बारे में अपनी धारणा बनाते हैं। ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी देश और समाज के प्रति और ज्यादा बन जाती है। मीङिया की एक गलती देश और समाज बड़ी घातक साबित हो सकती है। ऐसे में मीडिया को खबर चलाने और प्रकाशित करने में बड़ी गंभीरता बरतने की जरूरत है। भड़काऊ भाषा से बचते हुए संयमित भाषा को अपनाने की जरूरत है। राजनीतिक दलों के एजेंडे में इस्तेमाल होने से बचने की जरूरत है। हिजाब मुद्दे को कर्नाटक के एक सरकारी स्कूल से शुरू होकर देश के कौने-कौने तक फैलने में सियासतदारों से ज्यादा रोल मीडिया का है।

भगवा रंग के मुखर समर्थक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यदि कोई पत्रकार पूछेगा कि क्या वह उत्तर प्रदेश के स्कूलों में भगवा धारण करने का आदेश देंगे तो कोई भी जिम्मेदार पद पर बैठने वाला व्यक्ति यही बोलेगा कि वह कर सकते हैं पर संविधान और लोकतंत्र के चलते ऐसा नहीं करेंगे । ड्रेस कोड पर ज्यादा जोर देंगे। दरअसल इस तरह के प्रश्न उकसाने वाले होते हैं। कोई पत्रकार अखिलेश यादव से पूछे कि क्या वह मुस्लिमों के लिए मस्जिद बनवाएंगे? वह तो बनवाने की ही बात करेंगे ही पर मुख्यमंत्री के तौर पर बनवाने बचने की बात करेंगे। इस तरह के उकसावे वाले प्रश्नों से पत्रकारों को बचना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ से यदि कोई पत्रकार यह पूछेगा कि क्या आप किसी कार्यक्रम में जय श्रीराम के नारे लगाएंगे तो स्वभाविक है वह लगाने की बात ही करेंगे। असदुद्दीन ओवैसी से यदि कोई पूछे कि क्या आप संसद में अल्ला हू अकबर के नारे लगाएंगे तो वह लगाने की बात ही करेंगे। आज के माहौल में मुस्लिम लड़कियों से हिजाब पहनने क प्रश्न पूछेंगे तो वह पहनने की ही बात करेंगी। किसी हिन्दू लड़की से भगवा रंग के बारे में पूछेंगे तो उसकी प्रतिक्रिया सकारात्मक ही होगी। ऐसे प्रश्न पत्रकार पूछते ही क्यों हैं ?
दरअसल इलेक्टो्रनिक मीडिया में टीआरपी बढ़ाने के लिए जाति धर्म के उन्माद वाले प्रश्न पूछने की एक परिपाटी शुरू हो गई है जो देश और समाज के लिए बड़ी घातक हो रही है। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि मीडिया भी जाति धर्म और पार्टी पॉलटिक्स में बंट गया है। खबरों से खिलवाड़ आज की तारीख में आम बात हो गई है।

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