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बिहार कांग्रेस और प्रदेश समिति वाला जिन्न!

 आखिर ये ‘बोतल’ से बाहर आता क्यों नहीं?

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने भी करीब 22 महीने गुजर गए, लेकिन वह प्रदेश समिति का गठन नहीं कर सके हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार संगठन को लेकर पार्टी आलाकमान की नजर हाल के दिनों में तिरछी हुई है। माना जा रहा है कि आलाकमान ने बिना किसी विवाद और विघटन के संगठन को चुनावी राजनीति के अनुकूल बनाने का लक्ष्य तय कर लिया है। हाल के दिनों में कांग्रेस आलाकमान ने भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) का बिहार प्रदेश अध्यक्ष जयशंकर प्रसाद को और अल्पसंख्यक विभाग का प्रदेश अध्यक्ष ओमैर खान को नियुक्त किया है। यह साफ संदेश है कि आने वाले समय में कई और मनोनयन हो सकते हैं। बताया जाता है कि आलाकमान ने इन नियुक्तियों को लेकर प्रदेश नेतृत्व से कोई सलाह भी नहीं ली थी।
दरअसल, प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ऐसे कोई पहले अध्यक्ष नहीं हैं, जो इतने समय में प्रदेश समिति का गठन नहीं कर सके। इससे पहले मदन मोहन झा भी प्रदेश समिति का गठन नहीं कर सके थे। इस बीच, हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी हुए। इस दौरान चुनाव समिति भले ही कार्यशील होती है। आलाकमान का मानना है कि प्रदेश समिति के नहीं रहने से इन चुनावों में अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आए।
कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। वह जानते हैं कि प्रदेश समिति के गठन के बाद गुटबाजी उभरकर सामने आ जायेगी। इस स्थिति में कांग्रेस आलाकमान स्वयं ऐसे चेहरे सामने ला रहे हैं जो जुझारू और पार्टी के प्रति ईमानदार हों।
दरअसल, कांग्रेस के दो विधायकों मुरारी गौतम और सिद्धार्थ सौरव के पार्टी से किनारा करने और एनडीए के साथ गलबहियां लेने के बाद कांग्रेस नेतृत्व को इसका आभास हुआ। कांग्रेस के नेता दबी जुबान से स्वीकारते भी हैं कि संगठन अगर कारगर पहल करती तो ये नेता पार्टी के साथ बने रहते। कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि पार्टी नेतृत्व ने छात्र संगठन और अल्पसंख्यक विभाग को अपने मनोनुकूल लोगों को लाकर कार्य पद्धति में परिवर्तन के संकेत दिए हैं। अब देखने वाली बात होगी कि आगे और किस पद पर नियुक्ति होती है।

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