उम्र के इस पड़ाव पर टेलीफोन की एक घंटी से मिली खबर अधमरा कर देती है, आज ऐसा ही हुआ। तकरीबन 45 साल पहले जुड़े अपने वैचारिक साथी अरविंद जैन का अचानक हृदय गति रुकने से देहावसान हो गया।
अरविंद हमारे उन साथियों में था जो वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध होने के साथ-साथ पत्रकारिता में दक्ष होने के कारण बहुत ही सजग, जानकारी, देश-विदेश के घटनाक्रमों, राजनीति पर बहुत ही पैनी नजर से लगातार समीक्षा करता रहता था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से इकोनॉमिक्स ऑनर्स में डिग्री हासिल करने के बाद पत्रकारिता में रुचि होने के कारण पत्रकारिता कोर्स में भी विधिवत् शिक्षा प्राप्त कर, पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लिखने के कार्य में भी जुट गया था।
अरविंद समाजवादी आंदोलन से बहुत ही शिद्दत, मजबूती से जहां एक और जुड़ा था वहीं राजनीति की मार्फत व्यक्तिगत कुछ चाहने की जरा सी भी इच्छा मैंने उसमें कभी नहीं देखी। जिस दौर में अरविंद समाजवादी तहरीक में शामिल हुआ, उस समय समाज परिवर्तन, वंचित शोषित तबकों के हक में तथा गैर बराबरी, जुल्म ज्यादती के खिलाफ लड़ने और नए समाज को बनाने का सपना हुआ करता था। अरविंद के साथ इसी तरह के हमारे एक साथी विनोद शर्मा जो अब इस दुनिया में नहीं है, वह भी लगातार इस मुहीम में लगे रहते थे। अरविंद की खासियत थी कि वह खबर मिलने पर हर संघर्ष, सभा, गोष्टी संगोष्ठी, आयोजन में शामिल होता था। परंतु वह कभी भी अगुवा के रूप में नजर नहीं आता था। चुपचाप सभा हाल, जुलूस में पीछे की कतार में बैठकर, चलकर शिरकत करता था।
सोशल मीडिया के जमाने में उसकी लिखी प्रतिक्रिया बहुत ही तथ्यों और तर्कों से लैस तथा समसामयिक भी होती थी। मैं सोशल मीडिया में जब भी अपनी पोस्ट डालता तो बेनागा बहुत जल्दी ही उसकी प्रतिक्रिया पढ़ने को मिलती। सादगी, दोस्ताना व्यवहार, हंसते हुए अपनी बात रखने वाले ऐसे साथी के जाने से बहुत कुछ ठहर सा गया है, ऐसा लग रहा है।
67 साल के अरविंद के दो सुयोग्य बेटे, पुत्रवधू है। अरविंद की शुरू से ही एक ख्वाहिश थी कि मेरे बच्चे एकेडमिक में जाएं, इसी विचार से उन्होंने बच्चों को प्रेरित किया, अथक परिश्रम की बुनियाद पर आज उनके पुत्र और उनकी पुत्रवधू दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। वेदना की इस घड़ी में मेरी संवेदना उनके साथ है।
राजकुमार जैन