चरण सिंह
आखिरकार रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता भूपेंद्र चौधरी ने अपने पद के साथ ही पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा क्यों दे दिया ? भूपेंद्र चौधरी ने जयंत चौधरी के एनडीए में जाने का विरोध उस समय क्यों नहीं किया जब वह एनडीए से लोकसभा चुनाव का ऐलान कर रहे थे। इसमें दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव में एनडीए को जयंत चौधरी का कोई खास फायदा नहीं हुआ। हां जयंत चौधरी को जरूर दो सीटों का फायदा एनडीए में जाने से हो गया और खुद केंद्र में राज्य मंत्री बन गये। हां यह बात अलग है कि यदि वह इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ते शायद और भी सीटें जीत जाते। भूपेंद्र चौधरी ने जयंत चौधरी पर मुस्लिमों को धोखा देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है मुस्लिमों के चलते रालोद से ९ विधायक बने थे। बीजेपी से जाट नाराज थे। भाजपा ने मुजफ्फरनगर से चौधरी अजीत चौधरी को हराया था तो उसी हार का बदला जाटों ने मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान को हराकर लिया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि भूपेंद्र चौधरी ने रालोद से कई बड़े नेता जोड़े थे। क्या ये नेता भी रालोद का दामन छोड़ने वाले हैं ?
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का वोट हासिल करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भारत रत्न दिलवाया। मोदी ने जाट वोटों के लिए जयंत चौधरी को एनडीए में शामिल करने के लिए यह सब किया गया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर और मुरादाबाद में भाजपा हार गई। मतलब जाट वोटबैंक पूरी तरह से भाजपा को नहीं मिला। दरअसल किसान आंदोलन के साथ ही भाजपा के पूर्व सांसद और तत्कालीन कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के आंदोलन में जाट समाज ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। उस समय मोदी सरकार जाट नेताओं की एक नहीं सुन रही थी। यही वजह रही कि जब जयंत चौधरी एनडीए में शामिल हुए तो जाट नेताओं में नाराजगी देखने को मिली। मोदी सरकार के प्रति जाटों में कोई खास सम्मान नहीं है। ऐसे में जब जयंत चौधरी मोदी की गोद में जा बैठे हैं तो जाटों को यह बहुत बुरा लग रहा है।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट लैंड के नाम से जाना जाता है। यहां पर जाट लॉबी हावी है। चाहे राजनीति हो या फिर आंदोलन जाट समुदाय अग्रणी भूमिका में दिखाई देता है। चाहे सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष दोनों ही जाट नेता दिखाई देते हैं। क्योंकि रालोद को ९ विधायक भाजपा के विपक्ष में चुनाव लड़ने पर मिले थे। समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से ही रालोद फिर से खड़ा हुआ। अखिलेश यादव ने विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद रालोद को राज्यसभा भेजा पर जयंत चौधरी भाजपा के बरगलाने में आ गये और एनडीए में चले गये। अब भले ही उन्हें दो सांसद मिल गये हों पर आने वाला समय उनके पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि अभी तक भाजपा के पास बहुमत नहीं है तो जयंत चौधरी को साथ ले रही है। जिस दिन भाजपी अकेली के पास बहुमत हो जाएगा उस दिन जयंत चौधरी को भी ऐसे दरकिनार कर दिया जाएगा जैसे कि चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस को दिया गया है।
आखिरकार रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता भूपेंद्र चौधरी ने अपने पद के साथ ही पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा क्यों दे दिया ? भूपेंद्र चौधरी ने जयंत चौधरी के एनडीए में जाने का विरोध उस समय क्यों नहीं किया जब वह एनडीए से लोकसभा चुनाव का ऐलान कर रहे थे। इसमें दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव में एनडीए को जयंत चौधरी का कोई खास फायदा नहीं हुआ। हां जयंत चौधरी को जरूर दो सीटों का फायदा एनडीए में जाने से हो गया और खुद केंद्र में राज्य मंत्री बन गये। हां यह बात अलग है कि यदि वह इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ते शायद और भी सीटें जीत जाते। भूपेंद्र चौधरी ने जयंत चौधरी पर मुस्लिमों को धोखा देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है मुस्लिमों के चलते रालोद से ९ विधायक बने थे। बीजेपी से जाट नाराज थे। भाजपा ने मुजफ्फरनगर से चौधरी अजीत चौधरी को हराया था तो उसी हार का बदला जाटों ने मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान को हराकर लिया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि भूपेंद्र चौधरी ने रालोद से कई बड़े नेता जोड़े थे। क्या ये नेता भी रालोद का दामन छोड़ने वाले हैं ?
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का वोट हासिल करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भारत रत्न दिलवाया। मोदी ने जाट वोटों के लिए जयंत चौधरी को एनडीए में शामिल करने के लिए यह सब किया गया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर और मुरादाबाद में भाजपा हार गई। मतलब जाट वोटबैंक पूरी तरह से भाजपा को नहीं मिला। दरअसल किसान आंदोलन के साथ ही भाजपा के पूर्व सांसद और तत्कालीन कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के आंदोलन में जाट समाज ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। उस समय मोदी सरकार जाट नेताओं की एक नहीं सुन रही थी। यही वजह रही कि जब जयंत चौधरी एनडीए में शामिल हुए तो जाट नेताओं में नाराजगी देखने को मिली। मोदी सरकार के प्रति जाटों में कोई खास सम्मान नहीं है। ऐसे में जब जयंत चौधरी मोदी की गोद में जा बैठे हैं तो जाटों को यह बहुत बुरा लग रहा है।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट लैंड के नाम से जाना जाता है। यहां पर जाट लॉबी हावी है। चाहे राजनीति हो या फिर आंदोलन जाट समुदाय अग्रणी भूमिका में दिखाई देता है। चाहे सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष दोनों ही जाट नेता दिखाई देते हैं। क्योंकि रालोद को ९ विधायक भाजपा के विपक्ष में चुनाव लड़ने पर मिले थे। समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से ही रालोद फिर से खड़ा हुआ। अखिलेश यादव ने विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद रालोद को राज्यसभा भेजा पर जयंत चौधरी भाजपा के बरगलाने में आ गये और एनडीए में चले गये। अब भले ही उन्हें दो सांसद मिल गये हों पर आने वाला समय उनके पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि अभी तक भाजपा के पास बहुमत नहीं है तो जयंत चौधरी को साथ ले रही है। जिस दिन भाजपी अकेली के पास बहुमत हो जाएगा उस दिन जयंत चौधरी को भी ऐसे दरकिनार कर दिया जाएगा जैसे कि चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस को दिया गया है।