चरण सिंह
क्या उत्तर प्रदेश उप चुनाव बकरे की बोटी पर जीता जाएगा। मिर्जापुर की मझवां विधानसभा में तो यही देखने को मिल रहा है। बीजेपी के सांसद महोदय बकरे की बोटी पर मझवां सीट को निकालने की रणनीति पर काम करते देखे जा रहे हैं। भदोही के सांसद विनाद विंद के करसड़ा क्षेत्र में स्थित उनके कार्यालय पर मटन पार्टी दी गई और जमकर हंगामा हुआ। हंगामा भी बोटी को लेकर हुआ। भाई मटन पार्टी दोगे और पिलाओगे ग्रेबी तो हंगामा तो होगा न। यह बात भले ही चटकारे लेकर की जा रही हो पर बहुत गंभीर है। आज का पढ़ा-लिखा मतदाता भी बकरे की बोटी पर बिकने को तैयार है और जो पार्टी ८० करोड़ लोगों को फ्री राशन देने का दावा कर रही है वह बकरे की बोटी पर चुनाव जीतने की जुगत में है।
देश के जनप्रतिनिधि देश और समाज की कितना चिंता करते हैं? कितनी चिंता जनता करती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र की मझवां विधानसभा के उप चुनाव में मतदाता मटन की ग्रेबी को लेकर उलझ बैठे। दरअसल जानकारी मिल रही है कि करसड़ा क्षेत्र में भदोही के सांसद विनोद विंद के पार्टी कार्यालय पर मटन पार्टी चल रही थी कि ड्राइवर के भाई ने एक युवक को बोटी की जगह ग्रेवी परोस दी। फिर क्या था युवक ने ड्राइवर के भाई को अबशब्द बोले और उसे थप्पड़ जड़ दिया। दोनों ओर से खूब झगड़ा हुआ। मतलब जमीनी मुद्दों से न तो नेताओं को मतलब है और न ही जनता को।
बात मझवां विधानसभा के उप चुनाव की ही नहीं है। अधिकतर चुनाव मटन पार्टी, चिकन पार्टी और शराब पार्टी से ही जीते जाते हैं। जब जनता मटन, चिकन और शराब पर वोट देगी तो फिर विकास कौन करेगा ? जमीनी मुद्दों पर कौन काम करेगा ? दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ८० करोड़ लोगों को फ्री राशन देने की बात करते हैं। मतलब देश के ८० करोड़ लोग राशन खरीद कर नहीं खा सकते हैं। चुनाव जीतने के लिए मटन पार्टी चल रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब देश के ८० करोड़ लोग खरीद पर राशन नहीं ले सकते हैं तो िॅफर मटन पार्टियों में लग रहा पैसा कहां से आ रहा है ? यह पैसा किसकी टटरी में से निकलेगा ? जनता यह समझने को तैयार नहीं कि एक दिन का खाया मटन पांच साल तक निकलता है।
लोग पांच साल तक नेताओं को कोसते रहते हैं। पर जब निर्णय क्षेत्र को लेकर लेना होता है तो मटन पार्टी, चिकन पार्टी और शराब पार्टी पर दे देते हैं। जो लोग धन खर्च कर चुनाव जीतेंगे उनसे क्षेत्र के विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है ? जो ईमानदार प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं वे मटन पार्टी तो करा नहीं कर सकते। उन्हें लोग तवज्जो नहीं देते। लोग यह समझने को तैयार नहीं कि मटन पार्टी देकर नेता उनके हाथ की रोटी उतारने का इंतजाम कर देते हैं। बात बीजेपी की ही नहीं। लगभग सभी पार्टियों में यही स्थिति है। वैसे तो अधिकतर प्रत्याशी किसी सांसद या विधायक के बेटे हैं नहीं तो खुद धनाढय हैं। इन नेताओं से मटन पार्टी लेकर लोग उम्मीद करते हैं कि ये उनके काम कराएंगे। लोग यह समझने को तैयार नहीं कि काम वह नेता करता है जो ईमानदार होता है, जिसे क्षेत्र की चिंता होती है जो क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को समझता है।
चुनाव आयोग के तमाम प्रयास के बावजूद चुनावी खर्च कम नहीं हो रहा है। किसी न किसी रूप में नेता जनता को खुश करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं और चुनाव जीत लेते हैं। चुनाव जीतकर ये नेता जनता को खिलाया मटन, चिकन और पिलाई गई शराब सब निकाल लेते हैं। जनता है कि जमीनी हकीकत समझने को तैयार नहीं। स्थिति तो यह हो गई है कि जनता को जागरूक करने वाले लोग भी उनकी नजरों में बेवकूफ बनते जा रहे हैं।
देश के जनप्रतिनिधि देश और समाज की कितना चिंता करते हैं? कितनी चिंता जनता करती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र की मझवां विधानसभा के उप चुनाव में मतदाता मटन की ग्रेबी को लेकर उलझ बैठे। दरअसल जानकारी मिल रही है कि करसड़ा क्षेत्र में भदोही के सांसद विनोद विंद के पार्टी कार्यालय पर मटन पार्टी चल रही थी कि ड्राइवर के भाई ने एक युवक को बोटी की जगह ग्रेवी परोस दी। फिर क्या था युवक ने ड्राइवर के भाई को अबशब्द बोले और उसे थप्पड़ जड़ दिया। दोनों ओर से खूब झगड़ा हुआ। मतलब जमीनी मुद्दों से न तो नेताओं को मतलब है और न ही जनता को।
बात मझवां विधानसभा के उप चुनाव की ही नहीं है। अधिकतर चुनाव मटन पार्टी, चिकन पार्टी और शराब पार्टी से ही जीते जाते हैं। जब जनता मटन, चिकन और शराब पर वोट देगी तो फिर विकास कौन करेगा ? जमीनी मुद्दों पर कौन काम करेगा ? दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ८० करोड़ लोगों को फ्री राशन देने की बात करते हैं। मतलब देश के ८० करोड़ लोग राशन खरीद कर नहीं खा सकते हैं। चुनाव जीतने के लिए मटन पार्टी चल रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब देश के ८० करोड़ लोग खरीद पर राशन नहीं ले सकते हैं तो िॅफर मटन पार्टियों में लग रहा पैसा कहां से आ रहा है ? यह पैसा किसकी टटरी में से निकलेगा ? जनता यह समझने को तैयार नहीं कि एक दिन का खाया मटन पांच साल तक निकलता है।
लोग पांच साल तक नेताओं को कोसते रहते हैं। पर जब निर्णय क्षेत्र को लेकर लेना होता है तो मटन पार्टी, चिकन पार्टी और शराब पार्टी पर दे देते हैं। जो लोग धन खर्च कर चुनाव जीतेंगे उनसे क्षेत्र के विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है ? जो ईमानदार प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं वे मटन पार्टी तो करा नहीं कर सकते। उन्हें लोग तवज्जो नहीं देते। लोग यह समझने को तैयार नहीं कि मटन पार्टी देकर नेता उनके हाथ की रोटी उतारने का इंतजाम कर देते हैं। बात बीजेपी की ही नहीं। लगभग सभी पार्टियों में यही स्थिति है। वैसे तो अधिकतर प्रत्याशी किसी सांसद या विधायक के बेटे हैं नहीं तो खुद धनाढय हैं। इन नेताओं से मटन पार्टी लेकर लोग उम्मीद करते हैं कि ये उनके काम कराएंगे। लोग यह समझने को तैयार नहीं कि काम वह नेता करता है जो ईमानदार होता है, जिसे क्षेत्र की चिंता होती है जो क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को समझता है।
चुनाव आयोग के तमाम प्रयास के बावजूद चुनावी खर्च कम नहीं हो रहा है। किसी न किसी रूप में नेता जनता को खुश करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं और चुनाव जीत लेते हैं। चुनाव जीतकर ये नेता जनता को खिलाया मटन, चिकन और पिलाई गई शराब सब निकाल लेते हैं। जनता है कि जमीनी हकीकत समझने को तैयार नहीं। स्थिति तो यह हो गई है कि जनता को जागरूक करने वाले लोग भी उनकी नजरों में बेवकूफ बनते जा रहे हैं।