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जाति जनगणना के ऐलान ने बिहार में मचाई सियासी हलचल: लालू, नीतीश और तेजस्वी के बयानों से गरमाया माहौल

केशव पांचाल
दिल्ली, 30 अप्रैल 2025: केंद्र सरकार द्वारा देशव्यापी जातिगत जनगणना कराने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर अपने-अपने बयान दिए हैं, जिससे सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। यह घोषणा बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में उभर रही है।
“सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक जीत” : लालू यादव
लालू प्रसाद यादव ने जाति जनगणना के ऐलान को “सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक जीत” करार देते हुए कहा, “यह फैसला हर जाति के गरीबों की आर्थिक स्थिति को सामने लाएगा और सरकार को योजनाएं बनाने में मदद करेगा। राजद शुरू से इस मुद्दे का समर्थन करता रहा है।” लालू ने केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “लंबे समय तक भाजपा ने इस मांग को दबाया, लेकिन हमारे दबाव के आगे उन्हें झुकना पड़ा।”
लालू के इस बयान को राजद के पारंपरिक वोट बैंक, खासकर यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
“राष्ट्रीय स्तर पर प्रेरणा बनेगा बिहार” : नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने बिहार में 2023 में जाति सर्वेक्षण कराकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया था, ने केंद्र के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “बिहार का जाति सर्वेक्षण राष्ट्रीय जनगणना के लिए प्रेरणा बना है। इसके आधार पर सभी वर्गों के विकास और उत्थान के लिए काम किया जाएगा।”
हालांकि, नीतीश के इस बयान पर राजद और कुछ विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाए। राजद प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा, “नीतीश जी अब क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह लालू जी और तेजस्वी की लड़ाई का नतीजा है।”
“युवाओं और पिछड़ों के लिए नया दौर”: तेजस्वी यादव
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस घोषणा को बिहार के युवाओं और पिछड़े वर्गों के लिए “नए दौर की शुरुआत” बताया। उन्होंने कहा, “जाति जनगणना से नौकरी, शिक्षा और आरक्षण में समानता आएगी। हमारी सरकार बनने पर 65% आरक्षण को फिर से लागू करेंगे।” तेजस्वी ने नीतीश सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “20 साल के शासन में नीतीश जी ने दो पीढ़ियों को बर्बाद किया। अब जनता बदलाव चाहती है।”
तेजस्वी के इस बयान ने सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा गठबंधन को बैकफुट पर ला दिया है। भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने पलटवार करते हुए कहा, “तेजस्वी सिर्फ जंगलराज की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। जनता उनके परिवारवाद को बर्दाश्त नहीं करेगी।”
सियासी समीकरण के भविष्य में उलझा बिहार !
जाति जनगणना का मुद्दा बिहार की राजनीति में पहले से ही महत्वपूर्ण रहा है। 2023 में बिहार सरकार द्वारा जारी जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 36.01%, यादव 14.27% और कुर्मी 2.88% है। इन आंकड़ों ने राजद और जदयू के बीच वोट बैंक की जंग को और तेज कर दिया था।
राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे के अनुसार, “जाति जनगणना का ऐलान बिहार में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति को फिर से जिंदा कर सकता है। राजद इसे अपने ओबीसी और दलित वोट बैंक को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करेगा, जबकि भाजपा और जदयू सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी वोटों को साधने की कोशिश करेंगे।”
विपक्ष और सत्ताधारी दल में तकरार
भाजपा ने इस मुद्दे पर सतर्क रुख अपनाया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “जाति जनगणना का फैसला सभी वर्गों के कल्याण के लिए लिया गया है, लेकिन इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।” वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘जाति बताओ’ अभियान के जरिए सामाजिक न्याय की राजनीति को धार देने की कोशिश कर रहे थे. अब मोदी सरकार के फैसले से उनकी यह रणनीति कमजोर हो सकती है. उन्हें नए नैरेटिव और मुद्दों की तलाश करनी होगी. इसके बाद अन्य राज्यों में भी जाति जनगणना की मांग जोर पकड़ेगी. केंद्र की सामाजिक नीति में बदलाव के संकेत मिल सकते हैं. आरक्षण की समीक्षा और विस्तार पर नई बहस शुरू होगी

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