कहिए श्रीमान क्या हाल है

मैं सत्यदेव त्रिपाठी बोल रहा हूं। जब कभी सत्यदेव जी का टेलीफोन आता था तो इसी वाक्य से बात शुरू शुरू करते थे। 7 दिन पहले 19 मार्च 2025 को सायंकाल 6:36 पर आखरी बार उनसे टेलीफोन पर बात हई। तकरीबन 59 साल पहले नवंबर 1966 में पहली बार उनसे मुलाकात हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस में लाइब्रेरी के सामने बने कैफेटेरिया में हमारे नेता प्रोफेसर विनय कुमार मिश्रा ने बृजभूषण तिवारी तथा सत्यदेव त्रिपाठी से परिचय करवाया था। मैं उस वक्त दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का उपाध्यक्ष था। डॉ राममनोहर लोहिया ने छात्रों, युवकों की मांग के समर्थन में 18 नवंबर 1966 को संसद को मांग पत्र देने के लिए प्रदर्शन की घोषणा कर दी थी। प्रदर्शन की घोषणा के कारण कांग्रेस सरकार रेडियो, अखबारों से लगातार मुनादी कर रही थी कि दिल्ली की सरहद में बाहर से आने वाले किसी युवक को आने की इजाजत नहीं है। रेलवे स्टेशनों बस अड्डों तथा दिल्ली की सीमाओं में दाखिल होने वाले सारे रास्तों में पुलिस का कड़ा पहरा लगा हुआ था। दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिल होने वाले गेटों को बंद कर दिया गया था। उस समय के केंद्रीय उपमंत्री विद्या चरण शुक्ल लगातार चेतावनियां जारी कर रहे थे कि दिल्ली में किसी भी बाहर के युवक को आने की इजाजत नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष सुभाष गोयल जो कि यूथ कांग्रेस के थे, उनके वक्तव्य कि दिल्ली में कोई प्रदर्शन नहीं होगा, लगातार अखबारों रेडियो में प्रकाशित हो रहे थे। माहौल बहुत ही तनावपूर्ण था क्योंकि कुछ ही दिन पहले संसद पर गौरक्षा को लेकर साधुओं का प्रदर्शन हुआ था जिस पर गोली चलने के कारण कई साधु संसद भवन के सामने मारे गए थे, अनेक लोग घायल हुए थे। संसद पर घोषित प्रदर्शन में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन भी शामिल थे। प्रोफेसर विनय कुमार ने मुझे खबर दी कि डॉक्टर लोहिया के रकाबगंज के आवास पर एक आवश्यक बैठक में जरूर पहुंचना है। बैठक में जब मैं वहां पहुंचा तो डॉक्टर लोहिया के साथ जनेश्वर मिश्र, (भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री) प्रोफेसर विनय कुमार मिश्रा, बृजभूषण तिवारी (भूतपूर्व सांसद) सत्यदेव त्रिपाठी, सतपाल मलिक (भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यपाल) तथा दो तीन अन्य साथी वहां मौजूद थे। डॉक्टर साहब ने सूचना दी कि कम्युनिस्ट पार्टियों ने प्रदर्शन से अपने आप को यह कहकर अलग कर लिया है कि हमें गुप्त सूचना मिली है कि जैसे साधुओं के जुलूस पर गोली चली थी, वैसा ही खतरा इस प्रदर्शन पर है। डॉक्टर साहब ने हमसे पूछा कि अब आप लोगों का क्या इरादा है, हमारी ओर से सबसे पहले और बड़े दमदार तरीके से सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि हम पीछे नहीं हटेंगे, प्रदर्शन होकर रहेगा। आखरी में फैसला हुआ की 18 नवंबर को प्रदर्शन होगा। उसी दिन कम्युनिस्ट पार्टी के नेता भूपेश गुप्त (राज्यसभा सदस्य) के फिरोजशाह रोड के सरकारी घर पर एसएफआई के बड़े नेता विमान बोस जो कि बाद में बंगाल में लेफ्ट पार्टियों के संयोजक तथा बड़े नेता रहे हैं तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के रंजीत गुहा तथा जोगेंद्र दयाल भी पहले से मौजूद थे। समाजवादी युवजन सभा की तरफ से बृजभूषण तिवारी, सत्यदेव त्रिपाठी, सतपाल मलिक तथा में शामिल हुए। स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने कहा कि प्रदर्शन को टाल दिया जाए, जिसकी सूचना डॉक्टर लोहिया ने हमें पहले से ही दे दी थी। कुछ ही मिनट के बाद पुलिस की बख़्तरबंद लारी मकान के गेट पर आकर रुकी तथा पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया। उनके अफसर ने कहा कि आप लोग गिरफ्तार है। पुलिस को अंदर आता देखकर मै और सतपाल मलिक एक मंजिला मकान की छत पर गिरफ्तारी से बचने के लिए पहुंच गए। नीचे कमरे से सत्यदेव जी की जोरदार आवाज में गिरफ्तारी से पूर्व के स्टेटमेंट की डिक्टेशन जारी थी। सत्यदेव त्रिपाठी, बृजभूषण तिवारी को पुलिस पकड़ कर ले गई। मैं और सतपाल मलिक पुलिस जाने के बाद छत से उतरकर बचते बचाते अपने स्थान पर पहुंचे।
18 नवंबर को मैंने और मेरे पांच साथियों प्रसिद्ध पत्रकार रमेश गौड, मनजीत सिंह एडवोकेट ने विश्वविद्यालय में नारा लगाते हुए जुलूस निकाला। पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल की बैंरक नंबर दो में पहुंचा दिया, जहां डॉक्टर लोहिया सहित सैकड़ो गिरफ्तार साथी मौजूद थे।
सत्यदेव त्रिपाठी हमारे संगठन के प्रमुख नेता थे। लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री के पद पर भी चुने जा चुके थे, वे धारा प्रवाह भाषा में माहौल बना देते थे। वह हमारे संगठन “समाजवादी युवजन सभा” के महामंत्री भी रह चुके थे। उस दौर में उनका समय क्या तो रेल में या जेल में बितता था। बिना किसी साधन के दौरा करके विपरीत हालात में संगठन को विस्तार देने में लगे रहते थे। देहरादून में समाजवादी युवजन सभा का शिक्षण शिविर आयोजित था, प्रतिनिधियों के लिए जिस व्यक्ति ने भोजन की जिम्मेदारी ली थी किन्हीं कारण वश वे उसको निभा नहीं पाए। सत्यदेव त्रिपाठी और मारकंडेय सिंह बिना देर किए देहरादून की अनाज मंडी में पहुंच गए तथा अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कुछ ही समय में राशन पानी की व्यवस्था कर दी।
19778 में उत्तर प्रदेश सरकार में वे मंत्री भी बनाए गए,तभी उनका विवाह भी हुआ था। उनकी राजनीति का दुखद अध्याय उनके गृह नगर इटावा की स्थानीय सियासत से शुरू हुआ। मुलायम सिंह यादव भी इटावा के थे और यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुलायम सिंह जी की 1966 में राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान नहीं बनी थी, वह बेशक विधायक बन गए थे। सोशलिस्टों में राष्ट्रीय स्तर पर त्रिपाठी जी को सभी नेता कार्यकर्ता जानते थे। हालांकि मुलायम सिंह जी भी उनका सम्मान करते थे। परंतु स्थानीय राजनीति में कुछ लोगों ने इन दोनों के बीच अलगाव पैदा कर दिया। मुलायम सिंह प्रदेश के नेता के साथ ही राष्ट्रीय स्तर के नेता भी बन गए। मुख्यमंत्री तथा केंद्र में डिफेंस मिनिस्टर के पद पर भी वे पहुंच गए।
निराशा के दौर में सत्यदेव त्रिपाठी कांग्रेस में शामिल हो गए। परंतु अपनी आदत से मजबूर वे कांग्रेस पार्टी में भी सोशलिस्ट स्टाइल में जवाब सवाल करने लगे, वहां उनका बहुत दिनों तक कैसे निर्वाह होता। इधर बढ़ती हुई उम्र और परिवार के दबाव में वे आखिर में भाजपा में भी शामिल हो गए। भाजपा में शामिल होने के बाद उनके पुराने संगी साथी जो उनका आदर करते थे वह भी उनसे नाराज हो चले थे। कांग्रेस में रहते वक्त भी उनका अधिकतर समय अपने पुराने सोशलिस्टों की संगत में गुजरता था तथा सब उनका बेहद सम्मान करते थे। परंतु बीजेपी में जाने के बाद वे निराशा के शिकार हो गए। मेरी आखिरी बातचीत में भी मैंने उनसे कहा कि आप हमारे नेता रहे हैं, आपको भाजपा में नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि हां गलती हुई है, मैं तुम्हारे, रमाशंकर और अन्य साथीयों के साथ बैठकर बात कर भाजपा को छोड़ दूंगा। अफसोस उससे पहले ही उनका इंतकाल हो गया।
सत्यदेव त्रिपाठी वैचारिक प्रतिबद्ध, आस्थावान सोशलिस्ट थे। तमाम उम्र उन्होंने संघर्ष किया। सोशलिस्ट इतिहास, सिद्धांतों नीतियों के बहुत ही उच्च कोटि के व्याख्याकार थे। मिलनसारिता, खुशमिजाजी, बिना किसी शिकायत उनकी शख्सियत के आयाम थे।
मैं अपने अग्रज सोशलिस्ट नेता को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
राजकुमार जैन

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