शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाकर फिर से अच्छा खासा वजूद हासिल कर लिया था। उनकी पार्टी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहमियत भी मिलने लगी थी। उनके प्रवक्ताओं को टीवी चैनल डीबेट में भी बुलाने लगे थे। उत्तर प्रदेश के चुनाव में शिवपाल यादव को एक कद्दावर नेता के रूप में देखा जा रहा था। शिवपाल यादव को क्या सूझा कि निकल पड़े भतीजे को फिर से मुख्यमंत्री बनवाने के लिए। भतीजे ने क्या किया सीटें मांगी थे 65 और दी मात्र एक। वह भी शिवपाल यादव की परंपरागत जसवंतनगर । अब शिवपाल यादव जसवंतनगर सीट से अखिलेश यादव के साथ प्रतियोगिता बता रहे हैं। उनका दर्द है कि जिस पार्टी में अधिकतर सीटें उनकी सहमति पर दी जाती थी उस पार्टी में उन्हें एक ही सीट मिली है। शिवपाल यादव चाहते हैं कि जसवंत नगर से उनकी इतनी बड़ी जीत हो कि करहल से अखिलेश यादव की जीत फीकी पद जाये। वह चाहते हैं कि लोग अभी भी उन्हें अखिलेश यादव से बड़ा नेता मानें।
शिवपाल यादव ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि अखिलेश से शुरू में 65 सीटें मांगीं, तो कहा गया कि ये ज्यादा हैं। फिर उन्होंने 45 सीटें मांगी, मगर तब भी कहा गया कि ज्यादा है। उन्होंने कहा है कि आखिर में 35 सीटों का प्रस्ताव दिया। मगर उन्हें एक ही सीट मिली है। शिवपाल यादव एक सीट पर इतनी बड़ी जीत हासिल करना चाहते हैं कि उनका कद राजनीति फिर से बढ़ जाये। शिवपाल यादव कम से कम 50 सीट चाहते थे और अपने चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ना चाहते थे। प्रसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर तो लिया, लेकिन अंदरखाने बताया जा रहा है कि वे इससे संतुष्ट नहीं हैं। वे अपने बेटे को भी चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन उसे भी टिकट नहीं मिला।”