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  • अमेरिकी दबाव के बाद भी रूस के खिलाफ क्यों नहीं जा रहा भारत, रणनीति और फायदा दोनों

    अमेरिकी दबाव के बाद भी रूस के खिलाफ क्यों नहीं जा रहा भारत, रणनीति और फायदा दोनों

    द न्यूज 15  

    नई दिल्ली। यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहे रूस को लेकर भारत के नरम रुख पर अमेरिका ने हैरानी जताई है। अमेरिकी मैगजीन इंटरनेशनल अफेयर्स ने अपने एक आर्टिकल में भारत के इस स्टैंड को लेकर चिंता जाहिर की है। अमेरिकी मैगजीन ने कहा है यूरोप समेत दुनिया के तमाम हिस्सों से यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई की निंदा के स्वर उठे हैं, लेकिन भारत ने इस पर चुप्पी ही रखी है। अमेरिकी पत्रिका में कहा गया कि यदि भारत इस मसले पर रूस की निंदा करता है तो इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा और  यह साबित होगा कि वह अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को लेकर भविष्य में भी गंभीर रहने वाला है। इसके अलावा वह चीन के स्टैंड से भी अलग नजर आएगा।
    यूक्रेन और रूस में तनाव के बीच इजरायल ने सीरिया पर कर दिया मिसाइल अटैक : मैगजीन में भारत की रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि ऐसा लगता है कि वह तिराहे पर खड़ा है। यदि वह अमेरिका का समर्थन करता है तो फिर पुराने दोस्त रूस से नाराजगी का खतरा होगा, जिसके चीन लगातार करीब जा रहा है। इसके अलावा यदि वह रूस के साथ जाता है तो सबसे अहम और रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण साथी अमेरिका को खो देगा। वहीं तटस्थता बरतने की स्थिति में दोनों ही देशों की नाराजगी का संकट रहेगा। हालांकि अमेरिकी पत्रिका की यह टिप्पणी भारत के स्टैंड से बेचैनी को दर्शाती है।
    यूक्रेन संकट के बीच ताइवान पर चीन की बुरी नजर, बताया- अभिन्न हिस्सा
    भारत के स्टैंड से क्यों अमेरिका में है बेचैनी :  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मीटिंग में भारत ने रूस के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की और लगातार यही कहा कि कूटनीतिक तरीके से मसले का हल होना चाहिए। अमेरिका को उम्मीद थी कि भारत इस मसले पर रूस का साथ नहीं देगा और उसके पाले में आ जाएगा। लेकिन चीन और भारत जैसे बड़े देशों के दूरी बनाने से उसके खेमे में बेचैनी दिख रही है। इस बीच अमेरिकी टिप्पणियों के जवाब में ‘द हिंदू’ के विदेश मामलों के संपादक जॉन स्टैनली की टिप्पणी भी अहम है, जो इसे लोकतंत्र या दमनकारी नीतियों जैसी बहस से अलग राजनीति के तौर पर देखते हैं।
    अमेरिकी टिप्पणियों का जवाब देते हुए जॉन स्टैनली ने कहा, ‘जो लोग रूस के खिलाफ ज्यादा आक्रामक न होने को लेकर भारत पर हमला बोल रहे हैं, वे यह तथ्य भूल जाते हैं कि भारत के रूस के साथ गहरे संबंध हैं। बीते कुछ सालों में ये संबंध और मजबूत हुए हैं। इसके अलावा वह अपने हित के मुताबिक फैसले ले रहा है।’ स्टैनली ने वैश्विक राजनीति में डबल स्टैंडर्ड को भी उजागर किया। उन्होंने कहा, ‘रूस ने जब क्रीमिया पर हमला किया था और डोनबास को मान्यता दी थी तो तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। लेकिन जब इजरायल ने गोलान पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया तो उसे मान्यता दे दी गई। पूर्वी यरूशलम को भी मान्यता दे दी गई। तुर्की की ओर से सीरिया के एक हिस्से पर कब्जा करने की भी चर्चा नहीं होती। इसलिए वास्तविक राजनीति पर ही चर्चा होनी चाहिए।’
  • यूक्रेन बोला- रूस पर अमेरिका ने लगाया बैन, चीन का रुख दोस्ताना, कहा- हर इंच ज़मीन के लिए लड़ेंगे

    यूक्रेन बोला- रूस पर अमेरिका ने लगाया बैन, चीन का रुख दोस्ताना, कहा- हर इंच ज़मीन के लिए लड़ेंगे

    अमेरिका ने रूस की दो वित्तीय संस्थाओं वीईबी और रूसी मिलिट्री बैंक पर प्रतिबंध लगाया है। साथ ही ब्रिटेन ने भी रूस के पांच बैंकों और तीन अरबपतियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है

    द न्यूज 15 

    नई दिल्ली। रूस ने अलगाववादियों के नियंत्रण वाले यूक्रेन के दो प्रांतों लुहांस्क और डोनेट्स्क को अलग देश का दर्जा देने के ऐलान कर दिया है और साथ ही इन राज्यों में अपनी सेना भी भेज दी है। रूस के इस कदम से गुस्साए यूक्रेन ने कहा कि वह इस बेतुके और बेवकूफाना कदम को स्वीकार नहीं करता है। साथ ही यूक्रेन ने कहा कि रूस पर अमेरिका ने बैन लगा दिया है और इस मसले पर चीन का रुख दोस्ताना है। इसके अलावा यूक्रेन ने यह भी कहा है कि हम हर इंच जमीन के लिए लड़ेंगे।
    अमेरिका सहित कई देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाया है। रूस-यूक्रेन विवाद पर अमेरिकी लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हमने रूस की दो वित्तीय संस्थाओं वीईबी और रूसी मिलिट्री बैंक पर प्रतिबंध लगाया है। साथ ही ब्रिटेन ने भी रूस के पांच बैंकों और तीन अरबपतियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है।
    रूस ने ब्रिटेन के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को बताया अवैध : ब्रिटेन ने रूस के पांच बैंकों और तीन अरबपतियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है। ब्रिटेन के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर लंदन स्थित रूसी दूतावास ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए इसे अवैध बताया है। रूसी दूतावास ने कहा कि पिछले कई महीनों के दौरान हमने ब्रिटिश मीडिया में रूसी विरोधी उन्माद में बढ़ोतरी देखी है। इससे ब्रिटिश जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में एक आक्रामक रूस की छवि बनी है।
    जापान ने भी रूस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। जापान में अब रूसी सरकार के साथ नए बांड्स जारी नहीं होंगे। साथ ही जापान यूक्रेन के उन प्रान्तों के लोगों को भी वीजा जारी नहीं करेगा। जिन्हें रूस ने अलग देश की मान्यता दी है।
    यूक्रेन की सीमा के अंदर रूसी सैनिक भेजे जाने के कदम को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने बताया जीनियस, कहा- पुतिन के पास होगी सबसे मजबूत शांति सेना
    यूक्रेन की सीमा के अंदर रूसी सैनिक भेजे जाने को लेकर एक टीवी शो में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि जब मैंने टीवी पर यह देखा तो कहा कि ये तो जीनियस है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के एक बड़े हिस्से को स्वतंत्र घोषित किया। मैंने कहा ये कितना स्मार्ट है? वे अंदर जाएंगे और शांति रक्षक बनेंगे। उनके पास सबसे मजबूत शांति सेना होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान रूस ने कभी भी इस तरह की कार्यवाही नहीं की।
    रूस के साथ जारी विवाद के बीच यूक्रेन बोला- हमारे पास कूटनीतिक और लड़ाई दोनों की योजना :  यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने मंगलवार को कहा कि उनके देश के पास कूटनीति और लड़ाई दोनों की योजना है। हमारी पहली योजना रूस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कूटनीति के हर उपकरण का उपयोग करना है और अगर यह विफल हो जाता है तो हम हमारी जमीन के हर इंच के लिए लड़ने को तैयार हैं। जब तक हम जीत नहीं जाते, तब तक लड़ते रहेंगे।
    यूक्रेन में फंसे 240 भारतीय वापस अपने देश लौटे :  यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ रहे तनाव के मध्य एयर इंडिया के एक विमान से करीब 240 भारतीयों को दिल्ली लाया गया। एयर इंडिया का विमान देर रात इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। इससे पहले विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने भी ट्वीट कर जानकारी देते हुए कहा था कि करीब 250 भारतीय मंगलवार रात यूक्रेन से दिल्ली लौट रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन से लौटने वाले भारतीयों की मदद के लिए आने वाले दिनों में और अधिक विमान भेजी जाएंगी।
    दुनिया भर के देश रूस को दें सजा, बोले यूक्रेन के विदेश मंत्री :  मंगलवार को यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने दुनिया भर के देशों से रुसी अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाने का आग्रह किया है। कुलेबा ने अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में कहा कि दुनिया भर के देशों को रूस को उसके द्वारा किए गए अपराधों के लिए दंडित करना चाहिए और आर्थिक मोर्चे पर जवाब देना चाहिए।  करीब 30 साल पहले यूक्रेन को तब के सोवियत यूनियन से आजादी मिली। आजादी मिलने के बाद से ही यूक्रेन में आंतरिक संघर्ष चल रहा है। यूक्रेन का पश्चिमी हिस्सा जहां यूरोप का समर्थन करता है तो वहीं पूर्वी हिस्सा रूस के ज्यादा नजदीक है। कई मौकों पर यूक्रेन के पूर्वी हिस्से ने रूस के कई कदमों का समर्थन किया है। हालिया विवाद नाटो और यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के लिए यूक्रेन के द्वारा की जा रही कोशिशों की वजह से उपजा है। दरअसल रूस यूक्रेन को किसी भी कीमत पर नाटो में शामिल नहीं होने देना चाहता है लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने 2019 से ही इस कोशिश को तेज कर दिया है।
  • यूक्रेन के पूर्वी इलाके में सुनी गई कई विस्फोटों की आवाज!

    यूक्रेन के पूर्वी इलाके में सुनी गई कई विस्फोटों की आवाज!

    द न्यूज 15 
    कीव । यूक्रेन के पूर्वी इलाके में अलगाववादियों के नियंत्रण वाले डोनेट्स्क शहर में कई विस्फोटों की आवाज सुनी गई। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स का कहना है कि इन धमाकों की वजह अभी तक साफ नहीं हो पाई है। यह खबर ऐसे समय सामने आई है जब यूक्रेन में रूस के हमला करने की आशंका चरम पर है।
    अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कल ही कहा था कि वह इस बात से आश्वस्त हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण करने का फैसला कर लिया है। हमले का केंद्र राजधानी कीव होगा। अमेरिका को पहले इस बात का यकीन नहीं था  कि पुतिन ने आक्रमण करने का अंतिम निर्णय ले लिया है। बाइडेन ने इस दावे के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी की जानकारी का हवाला दिया।
    बाइडेन बोले- अगर रूस आक्रमण करता है तो : राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस के खिलाफ बड़े पैमाने पर आर्थिक और राजनयिक प्रतिबंधों की भी धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर रूस आक्रमण करता है तो पुतिन को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। उनके खिलाफ वह पूरी दुनिया को एकजुट करेंगे। बाइडेन ने कहा है कि यदि रूस यूक्रेन पर “आक्रमण” करता है, तो अमेरिका यूक्रेन में लड़ने के लिए अपने सैनिकों को नहीं भेजेगा, लेकिन यूक्रेन के लोगों का समर्थन करता रहेगा।
    रूस-यूक्रेन में बढ़ते तनाव पर भारत का कहना है कि इस समय ‘शांतिपूर्ण और रचनात्मक कूटनीति’ की जरूरत है और वह इस मामले में सभी संबंधित पक्षों के संपर्क में है। साथ ही भारत ने बताया कि यूक्रेन में 20,000 से अधिक भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। वहीं, रूस ने यूक्रेन संकट पर भारत के संतुलित और स्वतंत्र रुख की सराहना की है।
  • यूक्रेन समस्या: कौन दोषी ? रूस या अमेरिका या फिर पिछलग्गू देश

    यूक्रेन समस्या: कौन दोषी ? रूस या अमेरिका या फिर पिछलग्गू देश

    निर्मल कुमार शर्मा 
    प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के चलते करोड़ों निरपराध लोग मारे गए, और करोड़ों बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को अपना बाकी का जीवन बेहद गरीबी, भुखमरी एवं अभाव में जीने को अभिशप्त होना पड़ा था। इन दो महायुद्धों की विभीषिका को देखते हुए दुनिया के विभिन्न देश एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के गठन के लिए आगे आये, जिसे हम सभी संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम से जानते हैं। इसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी। इसका उद्देश्य, विश्वयुद्ध से पूर्व वाली विकट स्थिति उत्पन्न होने से पूर्व ही वैश्विक तनाव को कम करने, ताकि किसी भी बड़े युद्ध में जाने की स्थिति से यह दुनिया बची रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इस वैश्विक संगठन ने वैश्विक तनाव को कम करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की भरसक कोशिश भी की, लेकिन वर्तमान समय में यह कटु सच्चाई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी यह संस्था अब अमेरिका जैसे कुछ शातिर व सैन्य तौर पर ताकतवर देशों की एक जेबी संस्था बनकर रह गई है।
    आज रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, इस तनाव से यूरोप के देश बेहद चिंतित और घबराए हुए हैं, इन देशों की चिन्ता यह है कि अगर यह युद्ध बड़ा रूप ले लेता है तो उस स्थिति में उसकी आग पूरे यूरोप में दावानल की तरह फैल सकती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार दुनिया की हालत इतनी खराब है और जोखिम भरी हो रही है। इन देशों की खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन की सीमा पर एक लाख रूसी सेना टैंकों और तोपों के साथ डटी हुई है। अमेरिकी सूत्रों के अनुसार जनवरी 2022 के अंत तक इस रूसी सेना में सैनिकों की संख्या 1 लाख पचहत्तर हजार तक हो जाने की उम्मीद की जा रही थी। अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूस को पहले ही गंभीर चेतावनी दे चुके हैं कि ‘यूक्रेन पर रूस के किसी भी हमले की स्थिति में रूस को गंभीर आर्थिक परिणाम झेलना पड़ सकता है’, लेकिन रूस इन धमकियों को सीधे-सीधे नजरंदाज कर रहा है।
    यूक्रेन अपने पड़ोसी देश रूस के हमले की आशंकाओं और अनिश्चितताओं के बीच रूस के अगले कदम की सावधानी पूर्वक प्रतीक्षा कर रहा है। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि  ‘उन्हें लग रहा है कि उनके रूसी समकक्ष ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में दखल देंगे, लेकिन एक मुकम्मल लड़ाई से बचना चाहेंगे, किंतु रूसी सेना की छोटी दखल की आशंका है।’ अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान की दुनिया भर में कटु आलोचना हो रही है, विशेषकर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने जो बाइडन के उक्त बयान की इन शब्दों में जोरदार भर्त्सना की है कि ‘कोई छोटी सी दखल नहीं है, इसलिए कि कोई हताहत नहीं हुआ है या परिजनों के खोने की कोई शिकायत नहीं मिली है। ‘
    अमेरिका, यूक्रेन को बार-बार यह आश्वस्त कर देना चाह रहा है कि यूक्रेन के साथ वह चट्टान की तरह खड़ा है। उसने रूस को चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया है कि ‘रूस के पास एक तरफ कूटनीति और बात-चीत का रास्ता है तो दूसरी तरफ संघर्ष और उसके दुष्परिणाम का विकल्प ही बचा है ! ‘
    यूक्रेन के इस बेहद तनावपूर्ण माहौल में आशंका है कि कहीं रूस और अमेरिका आमने-सामने न आ जाएं। लेकिन उम्मीद की किरण यह है कि इन दोनों देशों के राष्ट्रपति इस तनाव को कम करने के लिए विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी आपसी बातचीत को जारी रखने के लिए सहमत हो गए हैं। रूसी प्रवक्ता की तरफ से बयान जारी करके बताया गया है कि रूसी राष्ट्रपति अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात करना चाहते हैं। वैसे सच्चाई यह है कि रूस और अमेरिका के रिश्ते शीतयुद्ध के बाद सबसे खराब दौर में हैं। यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेना की तैनाती ने इस तनाव को और भी चरम पर पहुंचा दिया है। अभी पिछले दिनों अमेरिकी और रूसी राष्ट्रपतियों के बीच हुई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग में हुई बातचीत में समाचार एजेंसी रायटर्स के अनुसार जो बाइडन ने ब्लादिमीर पुतिन को यह कड़ा संदेश देते हुए कहा कि ‘अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो अमेरिका उस पर सख्त आर्थिक व अन्य प्रतिबंध लगाएगा।’
    यूक्रेन के इस तनाव को यूरोप के देश एक और संकट के रूप में देखते हैं कि ‘अगर रूस से गैस नहीं आई तो पूरा यूरोप ठंड से जम जाएगा। ‘ इसलिए यूरोप के देश रूस पर गैसवॉर का आरोप लगा रहे हैं,जबकि रूस इसे सिरे से खारिज कर रहा है। यूरोप के लगभग सभी देश अपनी आबादी और उद्योग-धंधों दोनों को ही बचाने के लिए युद्धस्तर पर जी-जान से कोशिश करते दिख रहे हैं, लेकिन स्वार्थी और कुटिल अमेरिकी नीति-नियंताओं को इस बात की खुशी है कि अगर यूक्रेन समस्या की वजह से यूरोप में रूसी गैस की आपूर्ति बाधित होती है, तो उस स्थिति में उन्हें ऊंची और मनमानी कीमत पर अपना कोयला और गैस बेचने का सुनहरा मौका मिल जाएगा। वर्तमान समय में वैश्विक उर्जा संकट अपने चरम पर है। गैस और पेट्रोलियम की कीमतों में आग लगी हुई है, यूरोप में उर्जा संकट इतना विकट है कि वहां आम जनता से लेकर उद्योगों तक की बिजली और गैस की कीमत बेहिसाब बढ़ गई है।
    आज रूस यह चाहता है कि अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों का संघ, नॉर्थ ऍटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन संक्षेप में नाटो (NATO) के विस्तार की एक सीमा हो। वह रूस की सीमा तक नाटो के विस्तार की अमेरिकी कुटिल नीति के बिल्कुल खिलाफ है, जबकि सोवियत संघ के एक राज्य रहे यूक्रेन को अमेरिकी कर्णधार नाटो संघ में शामिल करने के लिए उतावले हो रहे हैं। और यही रूस के लिए सबसे कष्टदायक स्थिति है।
    रूस इसके लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय लब्ध-प्रतिष्ठित संस्था ‘इंटरनेशनल फॉरेन साइट ऐंड एनालिसिस फर्म जियोपॉलिटिकल फ्यूचर्स’ के संस्थापक जॉर्ज फ्राइडमैन स्पष्ट रूप से बताते हैं  “रूस चाहता है कि रूस और यूरोप की सीमाएं ठीक वैसी ही हों, जैसी शीतयुद्ध के समय थीं।’ ठीक इसी बात को वर्जीनिया के टेक यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का कथन है कि रूस की यह नीति है कि वह अपने देश की ठीक सीमा पर बन रहे ख़तरनाक सैन्य गठबंधन के प्लेटफार्म को, जो उसके ही एक भूतपूर्व यूक्रेन राज्य में बन रहा है, वह यूक्रेन को नाटो का एक सदस्य देश बनने से हर हाल में रोकना चाहता है, ताकि यूक्रेन को नाटो के सदस्य देशों से मिसाइल व अन्य घातक हथियार न मिल सके।
    यूक्रेन रूस के पश्चिमी सीमा पर स्थित है, जब रूस पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हमला हुआ था, तब इसी यूक्रेन के विस्तृत क्षेत्र ने उसकी रक्षा की थी। वहां से रूस की राजधानी मास्को की दूरी 1600 किलोमीटर है, लेकिन अगर यूक्रेन राज्य नाटो की जकड़ में चला जाता है, तब वहां से मास्को की दूरी घटकर महज 640 किलोमीटर रह जाएगी ! इसीलिए रूस यूक्रेन रूपी अपने बफर और सिक्यूरिटी जोन को हर हाल में अपने साथ रखना चाहता है। यह भी ऐतिहासिक सच्चाई है कि यही यूक्रेनी बफर जोन रूस को नेपोलियन बोनापार्ट और एडोल्फ हिटलर के अति विध्वंसक आक्रमणों से बचाने में सहायक सिद्ध हुआ था। रूसी जनता में यह धारण सर्वत्र व्याप्त है कि उनका देश दुश्मनों के एक महागठबंधन से घिरा हुआ है, जो उनके अस्तित्व के लिए अत्यंत चिंता की बात है। यूक्रेन संकट के संदर्भ में रूस की जवाबी कार्यवाही के रूप में क्यूबा और वेनेज़ुएला में 1962 की तरह अपने सैन्य बलों और मिसाइलों को फिर से लगाकर, अपने पड़ोस में नाटो द्वारा उत्पात मचाने का जोरदार तरीके से जबाब दे सकता है, जिसे अमेरिका कतई नहीं होने देना चाहेगा, लेकिन यह कदम रूस के लिए बिल्कुल न्यायसंगत और समयोचित भी है। रूस के अनुसार बेलारूस, रूस और यूक्रेन तीनों देशों के पूर्वज एक समान थे। रूस यूक्रेन को एक अन्य देश के रूप में न मानता है, न देखता है, अपितु उसके दृष्टिकोण में यूक्रेन एक बहुस्लाविक राष्ट्र है, जिसके चलते वह उसे अपना दिल मानता है। इसलिए रूस जैसा देश हर हाल में यूक्रेन को अमेरिकी पाले में जाने से रोकने के लिए कृतसंकल्प और प्रतिबद्ध है। लेकिन जब यूक्रेन स्वयं को रूस के एक विरोधी देश के रूप में प्रदर्शित और चिन्हित करता है, तब रूसी जनता में उसके इस व्यवहार को लेकर भयंकर गुस्सा और निराशा होती है, जैसे एक परिवार में एक भाई के विश्वासघात से दुःस्थिति पैदा हो जातीं हैं। रूस के अनुसार अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने उसके एक पड़ोसी राज्य यूक्रेन को एक रूस विरोधी मंच बनाकर रख दिया है, इसलिए रूस को इस फोड़े रूपी समस्या का स्थाई हल निकालना अत्यंत आवश्यक हो गया है। रूस के अभिन्न मित्र और समर्थक चीन के अनुसार ‘अमेरिका और उसके समर्थकों की तरफ से संघर्ष शुरू करने की अधिक संभावना है, और उस परिस्थिति में जबाब देना रुस की मजबूरी है। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस एक हमलावर देश नहीं, अपितु अपने स्वयं का रक्षक या डिफेंडर देश बन गया है। परन्तु अमेरिका और उसके पिछलग्गू यूरोप और अन्य देश उसकी एक हमलावर देश के रूप में छवि बनाकर पेश कर रहे हैं, यह बिल्कुल गलत है। इन पश्चिमी देशों को रूस पर इतना दबाव नहीं डालना चाहिए कि वह रक्षक देश हमला करने पर मजबूर हो जाय।’ अभी चार दिन पूर्व 5 फरवरी 2022 को रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक संयुक्त बयान आया, जिसमें इन दोनों देशों ने अमेरिका और उसके दुमछल्ले देशों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा गया कि ‘कुछ ताकतें, जो कि दुनिया के एक बहुत ही छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करतीं हैं, वे अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिए एकतरफा तरीकों से ताकत की, राजनीति की, दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी, उनके वैधानिक अधिकारों और हितों को नुकसान पहुंचाने, भड़काने, असहति और टकराव का समर्थन कर रहीं हैं। ‘
    अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुसार यह  मानना सर्वथा अनुचित होगा कि यूक्रेन समस्या के हल के लिए वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन द्वारा उठाए गये कदम गलत या पागलपन भरे हैं। वास्तविकता यह है कि पुतिन की भावनाएं वास्तविक हैं, क्योंकि यूक्रेन रूस का एक भू-राजनैतिक और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। इसलिए वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन की जगह रूस का कोई भी अन्य नेता होता तो वह भी यही कदम उठाता। यूक्रेन पर रूसी जज्बात वास्तविक हैं, ये कतई नहीं कह सकते कि यह केवल वर्तमान समय के रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के व्यक्तित्व का एक हिस्सा मात्र है। ‘
    इसलिए उक्त वर्णित तथ्यों से यह शीशे की तरह साफ है कि अमेरिका सहित उसके सभी दुमछल्ले पूंजीवादी देश रूसी राष्ट्रराज्य के एक अभिन्न पड़ोसी और राज्य यूक्रेन के कुछ अलगाववादी और देशहंता नेताओं को भड़काकर रूसी राष्ट्रराज्य की अस्मिता और उसके स्वाभिमान पर कुटिल चोट कर रहे हैं। इसलिए इस कुकृत्य को नेस्तनाबूद करने के लिए रूस द्वारा उठाया गया हर कदम बिल्कुल न्यायसंगत और सर्वथा उचित कदम है, इस बिषम परिस्थिति में  अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को रूस का पुरजोर तरीके से समर्थन करना ही चाहिए ।
    (निर्मल कुमार शर्मा लेखक और टिप्पणीकार हैं।)