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  • नोटों पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा’, चुनावी बॉन्ड को रद्द करने का फैसला

    नोटों पर वोट की शक्ति को मजबूत करेगा’, चुनावी बॉन्ड को रद्द करने का फैसला

    (चुनावी बांड पर दिया गया फैसला अभिव्यक्ति की आजादी को मजबूत करता है। चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करना लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में पहल।)

    चुनाव में नियमों का उल्लंघन करके प्रत्याशी बड़े पैमाने पर काले धन का चुनावों में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, सभी पार्टियों को कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से चंदा मिलता है। पार्टियों के संगठित पैसे से कॉरपोरेट ऑफिस, चार्टर्ड फ्लाइट, रोड शो, रैलियां और नेताओं की खरीद-फरोख्त भी होती है। बोहरा कमेटी की रिपोर्ट में नेता, अपराधी और कॉरपोरेट्स की मिलीभगत को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट माना गया था। दिवालिया कानून की आड़ में अनेक कंपनियां सरकारी बैंकों का पैसा हजम कर रही हैं। ऐसी कंपनियों को चुनावी बॉन्ड की आड़ में फंडिंग की इजाजत देना देश के खजाने की लूट ही मानी जाएगी।
    एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमें उनकी समृद्ध लोकतांत्रिक परंपराओं को भी अंगीकार करने की जरूरत है। यह ऐतिहासिक फैसला लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मील का पत्थर बन सके, इसके लिए पार्टियों और नेताओं द्वारा पारदर्शी फंडिंग पर अमल जरूरी है।

     

    प्रियंका सौरभ

    सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान में पारदर्शिता से जुड़े प्रमुख सवालों पर फैसला सुनाया। इस फैसले के केंद्र में न केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत की पुष्टि है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता पर धन का प्रभाव और सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देने में सूचना के अधिकार की भूमिका भी है।
    अदालत ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग की संवैधानिक वैधता से संबंधित एक महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित किया, जिसे कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 182 में संशोधन करके संभव बनाया गया, जिसने राजनीतिक संस्थाओं को कॉर्पोरेट दान पर लगी सीमा को हटा दिया।
    चुनावी बॉन्ड योजना पर बहस के मूल में चुनावी राजनीति में पैसे की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिस पर अदालत ने अपने पूरे फैसले में जोर दिया है। धन, शक्ति और राजनीति के बीच सांठगांठ को पहचानते हुए, अदालत ने चुनावी लोकतंत्र पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला। धन का प्रभाव स्वयं चुनावी प्रक्रिया के लिए खतरा पैदा करता है, और सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की गुणवत्ता और अखंडता को कमजोर करता है।
    असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग कंपनियों को चुनावी प्रक्रिया पर अनियंत्रित प्रभाव डालने के लिए अधिकृत करती है, जिससे चुनावी वित्तपोषण में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार, अदालत ने फैसला सुनाया कि इस तरह की प्रथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करती है और स्वाभाविक रूप से मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है। यह फैसला अपने व्याख्यात्मक अभ्यास के माध्यम से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संवैधानिक सिद्धांतों में विश्वास बहाल करता है और विधायिका के पालन के लिए स्पष्ट मानक प्रदान करता है। यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में आरटीआई के महत्व को भी मजबूत करता है और सूचनात्मक गोपनीयता के दायरे की समझ का विस्तार करता है।

    उच्च मूल्य के बेनामी दान चुनावी लोकतंत्र और शासन को कमजोर करते हैं क्योंकि वे दानदाताओं और लाभार्थियों के बीच प्रतिदान की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। चुनावी बांड योजना (ईबीएस) को रद्द करके सुप्रीम कोर्ट ने इस बीमारी को चिन्हित किया है और लोकतंत्र व राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को मजबूती प्रदान किया है। ईबीएस के तहत कोई भी चुनावी बांड खरीद सकता था और उसे भुनाने के लिए राजनीतिक दलों को दान कर सकता था। यह पूरी योजना संविधान, खासतौर पर मतदाताओं के सूचना के अधिकार, का उल्लंघन करती है। उसने कंपनी अधिनियम में उस संशोधन को भी स्पष्ट रूप से मनमाना पाया गया, जिसके तहत कंपनियों द्वारा अपने लाभ और हानि वाले खातों में चंदा पाने वाले राजनीतिक दलों का खुलासा किए बिना उन्हें अपने मुनाफे के 7.5 फीसदी की सीमा से परे जाकर चंदा देने का प्रावधान किया गया है। इस फैसले ने 2019 से दिए गए दान के विवरण का खुलासा करना भी अनिवार्य कर दिया है। यह फैसला मतदाताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और चुनावों की शुद्धता को बनाए रखने के लिए अदालत द्वारा दिए गए फैसलों की लंबी श्रृंखला में एक कड़ी है।

    यह फैसला वर्षों पहले निर्धारित किए गए उस सिद्धांत का स्वाभाविक अनुसरण है कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मतदाताओं की अभिव्यक्ति की आजादी उम्मीदवार की पृष्ठभूमि की जानकारी के बिना अधूरी होगी। इस सिद्धांत को अब आगे बढ़ाकर उन कॉरपोरेट दानदाताओं पर से पर्दा हटाने तक ले जाया गया है जो एहसान के बदले में सत्ताधारी पार्टियों को फंडिंग कर रहे हैं। इस फैसले से धनबल के जरिए शासन पर दानदाताओं की पकड़ को कम करने में मदद मिल सकती है, लेकिन एक सवाल यह उठता है कि क्या इस योजना की वैधता पहले तय की नहीं जा सकती थी या नियमित आधार पर इस बांड को जारी करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती थी। इस योजना के तहत पार्टियों को दिए गए हजारों करोड़ रुपये में से कितना दानदाताओं के लिए अनुकूल नीतिगत उपायों के रूप में सामने आया या चुनाव अभियान संबंधी अतिरिक्त संसाधनों की तैनाती के लिए धन लगाने में कितनी मदद मिली, यह कभी पता नहीं चलेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला दिया है। पिछले छह वर्षों में इस योजना से 16 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा धन सभी पार्टियों को मिला है। चुनावी बॉन्ड योजना को निरस्त करने का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मील का पत्थर बन सके, इसके लिए पार्टियों और नेताओं द्वारा पारदर्शी फंडिंग पर अमल जरूरी है। फंडिंग पर जोर कम होने से धन के बजाय कार्यकर्ताओं का मान बढ़ेगा।

    चुनावी बॉन्ड लागू होने से पहले पुरानी कानूनी व्यवस्था के अनुसार, कंपनियां सालाना मुनाफे की अधिकतम सीमा के अनुसार ही दान दे सकती थीं। लेकिन कानून में बदलाव के बाद घाटे वाली कंपनियां भी बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों को चंदा देने की हकदार हो गईं थी। मतदाताओं और पार्टियों को चुनावी बॉन्ड देने वाले की जानकारी नहीं मिल सकती थी। लेकिन सरकार को स्टेट बैंक के माध्यम से ये सारी जानकारियां हासिल थीं। कहा जा रहा था कि निजी कंपनियां और कॉरपोरेट्स चुनावी बॉन्ड में पैसा लगाकर सरकारों से अपने हित में अनुचित काम कराते रहे हैं।

    चुनाव आयोग ने ऐसे बॉन्ड और विदेशों से मिल रहे चंदे पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। रिजर्व बैंक ने भी इन बॉन्डों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग होने की आशंका जाहिर की थी। केंद्र और राज्य सरकारों को चुनावी बॉन्ड में विशेष बढ़त मिलती है, इसलिए इस योजना को जजों ने समानता के विरुद्ध माना है। भारत में लॉबिंग गैर-कानूनी है, लेकिन चुनावी बॉन्डों के माध्यम से निजी कंपनियां सरकारों से अनुचित लाभ ले रही थी।

    चुनाव में नियमों का उल्लंघन करके प्रत्याशी बड़े पैमाने पर काले धन का चुनावों में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, सभी पार्टियों को कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से चंदा मिलता है। पार्टियों के संगठित पैसे से कॉरपोरेट ऑफिस, चार्टर्ड फ्लाइट, रोड शो, रैलियां और नेताओं की खरीद-फरोख्त भी होती है। बोहरा कमेटी की रिपोर्ट में नेता, अपराधी और कॉरपोरेट्स की मिलीभगत को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट माना गया था। दिवालिया कानून की आड़ में अनेक कंपनियां सरकारी बैंकों का पैसा हजम कर रही हैं। ऐसी कंपनियों को चुनावी बॉन्ड की आड़ में फंडिंग की इजाजत देना देश के खजाने की लूट ही मानी जाएगी।

    एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमें उनकी समृद्ध लोकतांत्रिक परंपराओं को भी अंगीकार करने की जरूरत है। यह ऐतिहासिक फैसला लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मील का पत्थर बन सके, इसके लिए पार्टियों और नेताओं द्वारा पारदर्शी फंडिंग पर अमल जरूरी है।

    (लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
    कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

  • बच्चो को नोच खाते थे दरिन्दे

    बच्चो को नोच खाते थे दरिन्दे

    आखिर क्या था निठारी हत्याकांड मामला ?

    निठारी कांड
    निठारी कांड

    निठारी कांड में दोषी सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर की मौत की सजा को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है, जिसने हाल ही में अपना फैसला सुनाया है. निठारी मामला भारत के नोएडा के पास एक गाँव निठारी में हुई सिलसिलेवार हत्याओं और यौन शोषण का एक भयानक उदाहरण है।

    नॉएडा सेक्टर 31, कोठी
    नॉएडा सेक्टर 31, कोठी

    यह मामला दिसम्बर 2006 में नॉएडा सेक्टर 31 के निठारी गाँव से सामने आई है, जहां आज भि बच्चे से लेकर बूढ़े तक इस मर्डर केस के बारेमे याद करते है तो दिल देहेल जाती है, बताया जाता है निठारी गाव के Businessman Moninder Singh Pandher के कोठी नंबर D-5 में 17 बच्चो को अगवाह कर उनके साथ दुष्कर्म करने के बाद उनको कई टुकड़ो में काट के आस-पास के नाले और एक कुएं में उनके शव को फेकने का दावा किया गया है.

    बताया जाता है की इस कोठी के लोग पहले मासूम बच्चो को बहला-फुसला कर अपने पास बुलाते थे इसके बाद उन बच्चो के साथ हैवानियत पार कर उनकी बेरहमी से हत्या कर देते थे, क्या-क्या नहीं किया इस कोठी के मालिक और उसके नौकर सुरेंदर कोहली ने मासूम बच्चो को अपनी कोठी में ले जाने के बाद पहले तो उनके साथ दुष्कर्म करते थे  और फिर उनकी गले घोट कर हत्या कर देते थे, और इतना करने के बाद भी जब मन नहीं भरता था तो वो लोग बच्चो के शव को टुकड़ो में काट कर कुछ को पका कर खा जाते थे और वहीँ कुछ को कोठी के आगे बहने वाले नाले में फेक देते थे, हम आपको बता दे यह सिलसिला करीब डेढ़ साल तक चला लेकिन किसीको भी भनक नही हुई की यह मामला कोठी से हो रही है.

    लोगों में शक तब हुआ.. 

    कोली
    कोली

    वहा के लोगो को शक तब हुआ जब कोठी के आगे एक कुएं के पास से बच्चे गायब होने लगे थे मगर गांव वाले ये मानने लगे कि कुएं मे भुत-पिशाचों का डेरा है और वही बच्चो को मार रहा है.

    लेकिन, दिसम्बर 2006 में एक लापता लड़की के जांच के दौरान पता चला की इसकी हत्या Moninder Singh Pandher के नौकर कोहली ने की है और पुलिस ने इस मामले को गहराई से जांच शुरू कर दी और उसके बाद एक के बाद एक मामले खुलते चले गए उस दौरान कोठी के आगे बहने वाले नाले को जांच करने पर कई बच्चो के कंकाल बरामद हुए.

    कोहली को एक रिम्पा हल्दर नाम की युवती के ऊपर हत्या के जुर्म 2005 में अदालत ने मृत्युदंड सुनाया था जिसकी पुष्टि अलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर दी थि और 15 फ़रवरी, 2011 को इस फैसले पर अपनी मोहर भि लगा दी.

    कहानी यहाँ से होती है शुरू 

    Moninder Singh Pandher and Surinder Koli
    Moninder Singh Pandher and Surinder Koli

    साल 2006, नोएडा का निठारी गाँव, कोठी नंबर D-5 जहा से जब नर कंकाल मिलने शुरू हुए तो पुरे देश में सनसनी फ़ैल गयी सीबीआई को जांच के दौरान मानव हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट्स मिले थे जिसमे मानव अंगो को भर कर नालो में फेका गया था उसके बाद पुलिस ने Moninder Singh Pandher और सुरेंदर कोहली को अगवा कर लिया, इस मामले का खुलासा तब हुआ जब,

    7 MAY 2006 को पायल नाम की लड़की लापता हुई 

    Delhi, निठारी काण्ड
    Delhi, निठारी काण्ड

    पायल जब Moninder Singh Pandher के कोठी में रिक्शे से आई तो उसने रिक्शे वाले को रुकने को बोला और कहा वो कोठी के अन्दर से पैसे ले कर आ रही है, मगर रिक्शे वाले के बहोत देर इंतज़ार करने के बाद भी वह लड़की जब कोठी के बहार नही आई तो रिक्शा वाला खुद कोठी के पास जाकर जब कोठी की गेट खाट-खटाया तो दरवाजे पे सुरेंदर कोल्ही को पाया जिसने रिक्शे वाले को बताया की पायल तो काफी देर पहले हि जा चुकी है.

    मगर रिपोर्ट्स के मुताबिक रिक्शे वाले ने बयान में कहा कि वह कब से कोठी के बहार हिं खड़ा था उसने लड़की को बहार आते हुए देखा हिं नहीं और रिक्शे वाले ने यह बात पायल के घरवालों को सूचित कर दिया जिसके बाद पायल के पिता नन्दलाल ने पास के ठाणे में FIR दर्ज करवाया की उसकी बेटी कोठी से गायब हो गयी, जिसके बाद पुलिस जांच में जुट गयी.

    इससे पहले निठारी गाँव से दर्जनों बच्चे गायब हो चुके थे पुलिस को जाँच के दौरान पता चला कि पायल के पास एक फ़ोन था जो की घटना के बाद बंद आ रहा था इसके बाद पुलिस ने जब फ़ोन की डिटेलिंग निकाली तो मुंबई से ले कर तमाम जगहों के नंबर मिले जिसके बाद हिं पुलिस ने पंधेर के कोठी में छापा मारा और इसके बाद निठारी का काला सच सामने आया. कोहली को सिसिलेवर हत्यारा करार देने के लिए अदालत ने कहा था की उसके प्रति कोई भी दया नहीं दिखाई देनी जानी चाहिए.

    Nithari killings
    Nithari killings

    कोहली के खिलाफ कुल 16 मामले दर्ज किये गए उसके नियुक्ता मोहिंदर सिंह पन्हेल को भि पिम्पा हल्दर मामले में मृत्युदंड सुनाया गया था लेकिन अलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया, कोहली के खिलाफ दर्ज 16 मामलो में से 5 में उसे मृत्युदंड सुनाया गया और बाकि अभी विचारधीन बताया जा रहा है, इसमें 13 फरवरी, 2009 को CBI विशेष न्यायधीश प्रमा जैन ने सुरेन्द्र कोहली और मोनिंदर पन्हेल को फासी की सजा सुनाई थि.

    कालांतर ने अलाहाबाद हाईकोर्ट में पंधेर को बरी कर दिया जबकि सुरेंदर की सज़ा बरक़रार राखी गयी, सुप्रीम कोर्ट ने भि सुरेन्द्र की सज़ा को बरक़रार रखते हुए अपिल को खारिज़ कर दिया.

    इसके बाद कई ऐसेही मामलो में हाईकोर्ट तक तो घशिटा गया मगर कभी ये आरोपी फांसी के फंदों में नहीं चढ़ा, वहीँ 16 Oct को भी अलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुरेंदर को बरी कर दी और साथ ही जितने भी आरोप लगे थे सभी खारिज़ कर दी गयी. और सवाल यहाँ यह उठ रही है की आखिर कब तक इनलोगों को बरी और इनके मामलो को ख़ारिज कीया जायेगा और जो 16 बच्चों की लापता हुई उनकी जवाबदेहि कोवन करेगा कोवन सुनेगा उनकी माता पिता के आसुओं की आवाज़ को और कब उठेगा ये

  • बिहार के बाहुबली आनंद मोहन के जेल से बाहर आने पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

    बिहार के बाहुबली आनंद मोहन के जेल से बाहर आने पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

    Aanand Mohan: एक वक्त था जब बिहार और उत्तर प्रदेश माफिया राज में नंबर 1 पर आता था। आज जहां उत्तर प्रदेश के हालात में कुछ सुधार हुआ है और माफियाओं में पुलिस का खौफ पैदा हुआ है, वहीं बिहार में माफियाराज खत्म होना तो दूर की बात है एक बार फिर से शुरू होता है नजर आ रहा है। ये हम क्यूं कह रहे हैं, क्योंकि 27 अप्रैल की सुबह तड़के 4.30 बजे पूर्व सांसद और बिहार के बाहुबली आनंद मोहन(Aanand Mohan) की जेल से रिहाई ने बिहार की सियासत में एक भूचाल ला दिया है। हद तब हो गई, जब आनंद मोहन की रिहाई के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेल कानून में ही संशोधन कर दिया। एक ऐसा बाहुबली जो 14 साल जेल की सजा काटने के बाद कानून में संशोधन के ज़रीए रिहा हुआ। अब इस मामले में एक नया मोड़ सामने आया है, दरअसल, बाहुबली कि रिहाई के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में DM जी कृष्णैया की पत्नी उमा की अर्जी के बाद, 8 मई को सुनवाई होगी। इन सबके के साथ, लोगो के मन में एक सवाल आता है कि आखिरी आनंद मोहन सिंह है कौन? तो आपको हम बताते हैं आनंद मोहन सिंह का पूरा चिट्ठा। लेकिन सबसे पहले हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें।

    बिहार के जेल कानून में संशोधन के बाद, बिहार के बाहुबली आनंद मोहन के जेल से रिहाई के बाद, बिहार की सियासत में गर्मा- गर्मी तेज़ हो गई थी। बहुत से civil servants के साथ-साथ, बहुत से राजनेताओं ने भी इसके खिलाफ आवाज़ उठाई थी। अब, DM जी कृष्णैया की पत्नी उमा ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट 8 मई को इस केस की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।

    कौन है बिहार के आनंद मोहन सिंह? 

    आनंद मोहन सिंह का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। सिंह के दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक आनंद मोहन का सियासी सफर 17 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने 1974 में जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा और इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल तक जेल में रहना पड़ा। 1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की। इसे आनंद मोहन की प्राइवेट आर्मी कहा जाता था। इसके बाद आनंद मोहन का नाम अपराधियों की list में शुमार होता गया।

    आनंद मोहन की 1990 में हुई राजनीति में एंट्री

    आनंद मोहन की कहानी basically उस समय शुरू होती है, जब बिहार में जात की लड़ाई अपने चरम पर थी। आए दिन राज्य में जाति के नाम पर हत्याएं हो रही थीं, और इसी दौर दौर में बाहुबली राजनेता आनंद मोहन का नाम खूब चर्चा में था। 90 का दशक था जब आनंद मोहन को जनता दल ने माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, और उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थान की और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया। 1994 में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता। 1995 आते-आते आनंद मोहन का नाम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा और नतीजन वह लालू यादव का मुख्य विरोधी चेहरा माने जाने लगे। सन 1995 में आनंद मोहन की पार्टी ने बिहार में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया, लेकिन, खुद आनंद मोहन को हार का सामना करना पड़ा। 1996 में आनंद मोहन ने शिवहर लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और समता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की। गौरतलब है कि आनंद का रसूख इतना था कि उस समय जेल में रहते हुए भी उन्होंने जीत हासिल की थी। फिर 1999 में आनंद मोहन ने एक बार फिर जीत हासिल की। यूं तो आनंद मोहन पर हत्या, लूट और अपहरण जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे, लेकिन आनंद मोहन का सूर्य तब अस्त होना शुरू हुआ, जब उनका नाम गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णनैया की हत्या में शामिल हुआ।

    सन 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी के नेता ओर गैंगस्टर छोटन शुक्ला को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। जिसके बाद उसकी शवयात्रा में हजारों लोग इकट्ठा हुए, और इसी भीड़ का नेतृत्व खुद आनंद मोहन कर रहे थे। भीड़ को संभालने की जिम्मेदारी तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या की थी। इसी दौरान दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और डीएम को उनकी सरकारी कार से बाहर खींच लिया गया और पीटने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई। आपको बता दें कि 1985 बैच के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। भीड़ को कथित रूप से भड़काने का आरोप आनंद मोहन पर लगा, और ये मामला अदालत में पहुंचा, जिसके बाद आनंद को निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी। आजाद भारत के वह ऐसे पहले नेता थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, एक साल बाद 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। तब से लेकर अब तक आनंद मोहन जेल की सलाखों के पीछे थे, लेकिन जेल नियम में बदलाव होने का बाद 24 अप्रैल को आनंद मोहन जेल से रिहा हो गए। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, बिहार सरकार ने उनकी रिहाई का आदेश जारी किया और इसके साथ 27 अन्य कैदियों को छोड़ने के प्रस्ताव पर सहमति बनी।

    आनंद मोहन की रिहाई पर किसने क्या कहा? 

    आनंद मोहन की रिहाई के बाद से जी कृष्णैया के परिवार समेत बहुत से सिविल सर्वेंटस और विपक्ष के नेता लगातार नीतीश सरकार के इस फैसले पर विरोध जता रहे हैं। आनंद मोहन की रिहाई को जी कृष्णैया की बेटी ने दुखद बताया, उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अन्याय है। वहीं जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने कहा था, ”जनता आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करेगी, उसे वापस जेल भेजने की मांग करेगी। आनंद मोहन को रिहा करना गलत फैसला है। सीएम नीतीश को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अगर वह (आनंद मोहन) चुनाव लड़ेंगे तो जनता को उनका बहिष्कार करना चाहिए। मैं उन्हें (आनंद मोहन) वापस जेल भेजने की अपील करती हूं।”

    AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी 

    AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर कहा कि ये दूसरी बार कृष्णैया की हत्या है। कहा कि 5 दिसंबर 1994 को एक दलित आईएएस की हत्या की गई, जब वह महज 37 साल का था. उन्होंने कहा कि आखिर अब कौन सा आईएएस अधिकारी बिहार में जान जोखिम में डालेगा. कृष्णैया ने मजदूरी कर पढ़ाई की थी. उन्होंने कहा कि वह कृष्णैया के परिवार के साथ हैं और ये भी उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर इस मामले को लेकर सोचा जाएगा।

    IAS एसोसिएशन ने जताई निराशा 

    भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) एसोसिएशन ने आनंद मोहन की रिहाई पर बिहार सरकार की निंदा करते हुए कहा कि ये फैसला सही नहीं है। आईएएस एसोसिएशन ने ट्वीट किया कि आनंद मोहन को रिहा किए जाने का फैसला बहुत ही निराश करने वाला है. उन्होंने (आनंद मोहन) जी. कृष्णैया की नृशंस हत्या की थी. ऐसे में यह दुखद है. बिहार सरकार जल्दी से जल्दी फैसला वापस ले. ऐसा नहीं होता तो ये न्याय से वंचित करने के समान है।

  • LG हर फ़ाइल पर बेतुके Objections लगा कर रोक देते हैं- Cm केजरीवाल

    LG हर फ़ाइल पर बेतुके Objections लगा कर रोक देते हैं- Cm केजरीवाल

    दिल्ली सरकार और एलजी के बीच तनातनी का दौर लगातार जारी है। एक बार फिर सीएम केजरीवाल ने एलजी वीके सकसेना से शिकक्षों को फिनलैंड जाने की अनुमति मांगी है।आपको बतां दे इससे पहले भी दिल्ली सरकार ने इस दिशा मे एलजी से अनुमति मांगा था जिसका प्रस्ताव रद्द कर दिया गया था। बीते वीरवार को CM केजरीवाल ने फ्रेस कॉन्फेंस में बीजेपी पर तीखा वार कर कहा कि LG साहब जानबुझकर दिल्ली की जनता से दुश्मनी निकाल रहें है,तभी तो हर चीज़ में रोक-टोक करते है। वह सीएम केजरीवाल ने कहा कि पंजाब के 36 शिक्षक ट्रेनिंग के लिए सिंगापुर जा रहे हैं, दिल्ली के शिक्षकों को भी जाने की अनुमति दें। दिल्ली की तर्ज पर पंजाब के सरकारी स्कूलों के 36 प्रिंसिपल 6 से 10 फरवरी तक ट्रेनिंग के लिए सिंगापुर जा रहे हैं, जो वापस आकर अपने स्कूल सुधारेंगे। हमारे 30 प्रिंसिपल दिसंबर में ट्रेनिंग करने जाने वाले थे, लेकिन उपराज्यपाल की आपत्ति की वजह से नहीं जा पाए।

    अब हमारे स्कूलों के 30 प्रिंसिपल मार्च में विदेश जाने वाले हैं। 20 जनवरी को तीसरी बार इसकी फाइल भेजी है और अभी तक यह उपराज्यपाल कार्यालय में लंबित है। जब उपराज्यपाल को शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश जाने से कोई आपत्ति नहीं है तो फाइल इतने दिनों से लंबित क्यों हैं। cm केजरीवाल ने कहा कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि फाइलों को एलजी के पास भेजने की जरूरत नहीं है लेकिन साल 2021 में कोर्ट के इस फैसले को केंद्र सरकार ने दरकिनार कर दिया और असैधानिक रूप से एक कानून पास कर दिया कि सारी फाइलें पास होने के लिए एलजी के पास भेजी जायेगी। जिसके कारण अब LG हर फ़ाइल पर बेतुके Objections लगा कर रोक देते हैं। हम SC में गए हैं, हमें उम्मीद है कि SC इस ग़लत क़ानून को रद्द करेगी।

    उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस वार्ता के दौरान LG पर कई आरोप लगाए उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के दखल की वजह से दिल्ली सरकार शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड नहीं भेज पा रही है। सिसोदिया ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) कानून में किए गए संशोधन से एलजी को दिल्ली सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करने की शक्ति मिल गई है।

  • DELHI- वॉशिगटन DC मे फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर क्या बोले मुख्यमंत्री केजरीवाल ? फ्री सेवाओं पर भाजपा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आमने-सामने है

    DELHI- वॉशिगटन DC मे फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर क्या बोले मुख्यमंत्री केजरीवाल ? फ्री सेवाओं पर भाजपा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आमने-सामने है

    प्रियंका रॉय

    अरविंद केजरीवाल की फ्री योजनाओं पर बीजेपी से लेकर कांग्रेस पार्टी तक में जंग छिड़ी है। विपक्षी पार्टिया AAP को घेंरने का एक भी मौका नहीं छोड़ती। इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी और भाजपा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आमने-सामने है।

    केजरीवाल ने बीजेपी पर साधा निशाना 

    अरविंद केजरीवाल की फ्री योजनाओं पर बीजेपी से लेकर कांग्रेस पार्टी तक ने जंग छिड़ी है। विपक्षी पार्टी AAP को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ती । इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी और भाजपा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आमने-सामने है। आप की निशुल्क मेडिकल सेवा पर तो बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने ये तक कह दिया कि केजरीवाल दिल्ली को कंगाल कर रहा है। दरसअल हाल ही में एक समाचार लेख को शेयर करते हुए लिखा था कि वाशिंगटन डीसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को हमेशा के लिए मुफ्त कर रहा है, इस पर मुख्यमंत्री ने रिएक्ट करते हुए लिखा कि ‘क्या इसका मुफ्त की रेवड़ी कहकर मजाक उड़ाया जाना चाहिए? या नहीं। अपने नागरिकों पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ डाले बिना सार्वजनिक सेवाएं मुफ्त प्रदान करना ये दर्शाता है कि वहां पर एक ईमानदार और संवेदनशील सरकार का शासन है जो जनता के पैसे बचाती है और लोगों को सुविधाएं प्रदान करती है।

    फ्री रेवड़ी पर आम आदमी ने किया पीएम मोदी का धेराव

    आपको बतां दे आम आदमी पार्टी ने पीएम मोदी पर दोस्तावाद को लेकर निशाना साधते हुए कई आरोप लगाएं थे। उन्होंने 9 अगस्त को AAP ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए लिखा “PM Modi ने दोस्तवाद के लिए देश का खाली किया खजाना” इसके साथ ही आप ने एक पोस्ट भी शेयर की थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि “मोदीराज में मित्रों के 11 लाख करोड़ के लोन माफ”। जिस तरह बीजेपी आम आदमी पर तंज कसने का कोई मौका नहीं छोड़ती। ठीक उसी तरह आप बीजेपी को घेंरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती।

  • जल्द आ सकता है Karnataka Hijab प्रतिबंध पर Supreme Court का फैसला

    जल्द आ सकता है Karnataka Hijab प्रतिबंध पर Supreme Court का फैसला

    Supreme Court के Judge न्यायमूर्ति Hemant Gupta के Retire होने से पहले Karnataka Hijab Protest पर बड़ा फैसला आ सकता है। सूत्रों के मुताबिक, Supreme Court इसी सप्ताह इस मामले पर अपना फैसला सुनाने की तैयारी में है। दरअसल, Supreme Court में Karnataka High Court के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसके तहत Educational Establishments में Hijab प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था।

    Hijab Protest in Karnataka

    बता दें, Hijab विवाद मामले में Justice Hemant Gupta और Sudhanshu Dhulia की पीठ ने 10 दिन तक सुनवाई के बाद 22 September को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। माना जा रहा है कि इन याचिकाओं पर इसी सप्ताह में फैसला सुनवाया जा सकता है, क्योंकि पीठ को  Lead कर रहे न्यायमूर्ति Gupta 16 October को Retire होने वाले हैं।

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    Constitution Bench के पास मामला भेजने की मांग

    Supreme Court में दलीलों के दौरान, Petitioners की ओर से पेश कई Lawyers ने जोर देकर कहा था कि Muslim लड़कियों को Hijab पहनने से रोकने से उनकी शिक्षा खतरे में पड़ सकती है क्योंकि शायद वो कक्षाओं में भाग लेना बंद करदे। उनका ये भी कहना था कि लड़कियों को कक्षाओं में जाने से रोका जा सकता है।

    Supreme Court pics

    वहीं कुछ Lawyers ने इस मामले को Five-Member Constitution Bench के पास भेजने की भी मांग की थी। वहीं, State Government का तर्क था कि Karnataka सरकार का फैसला धार्मिक रूप से Neutral था। Petitioners के Lawyer ने State Government के 5 February , 2022 के आदेश सहित बहुत से पहलुओं पर तर्क दिया था, जिसमें Schools और Colleges में Equality, Integrity और Public Order को बिगाड़ने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

    Karnataka High Court का फैसला

    Karnataka High Court ने 15 March को Udupi में Government Pre-University Girls College की Muslim छात्राओं द्वारा दायर Petitions को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने कक्षाओं के भीतर Hijab पहनने की अनुमति मांगी थी। वहीं, अदालत ने कहा था कि Hijab Islam में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और ये कहकर उनकी याचिका खारिज करदी गयी थी। इसके बाद High Court के फैसले को चुनौती देते हुए Supreme Court में कई Petitions दायर की गयीं थीं।

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    – Ishita Tyagi 

  • मृत्यु दंड को समाप्त करने के लिए दर्ज हुई याचिका

    मृत्यु दंड को समाप्त करने के लिए दर्ज हुई याचिका

    मृत्यु दंड एक ऐसी सजा है जो एक बहोत ही गंभीर अपराध करने पर उस इंसान को दी जाती है, लेकिन सजा देने से पहले ये देखना बहोत जरूरी होता है कि उस जुर्म पर मृत्यु दंड देने का आधार क्या है? क्या उस जुर्म के लिए उस इंसान को मृत्यु दंड के अलावा कोई और दंड दिया जा सकता है? और अब तक कितने सारे मामले ऐसे भी हैं जिनके आधार सामने आने पर भी उनका फैसला नहीं हो पाया है, क्योंकी बहोत सी जगाहों पर मृत्यु दंड को Human Rights के खिलाफ बताया है। और इसी विषय पर बहोत समय से ये विवाद भी चल रहें हैं कि मृत्यु दंड को समाप्त करना चाहिए और इस बात पर गौर करना चाहिए कि मृत्यु दंड की जगह अपराधी को क्या सजा दी जा सकती है।

    human rights

    बहोत सी जगाहों में मृत्यु दंड को Human Rights का उलँघन करने जैसा माना जाता है, जैसे की United Nations, Amnesty International और इस नियम को समाप्त करने वाले देशों का मानना है, या ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ मामलों में ऐसा दंड दिया जाना सही है, इस गंभीर मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए। पर सवाल ये आ जाता है कि जब कोई इंसान अपराध करने से नहीं डरता तो फिर उसे मृत्यु दंड देने के लिए इतना सोचना क्यों?

    Supreme Court में दर्ज याचिका

    Supreme Court का कहना है कि किसी भी मामले में जमानत देने के सवाल पर एक Approach और Clarity होना बहोत ही जरूरी है। इसी वजह से Supreme Court ने एक फैसला लिया और कहा कि जिन Courts को मृत्यु दंड देने की Power है, उन सभी की जांच होगी कि वो किस प्रकार से उसका इस्तेमाल करती हैं। किन किन आधारों पर किसी को वो मृत्यु दंड देते हैं। अब ये खबर आई है कि Constitutional Bench द्वारा एक मीटिंग रखी जाएगी जिसमे मृत्यु दंड को लागू करते समय उसे कम करने वाली Possible Circumstances पर विचार करने के संबंध में Guidelines का Assessment किया जाएगा।

    Supreme Court

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    दरअसल ये बात तब से चल रही है जब National Law University, दिल्ली के मृत्युदंड विरोधी निकाय, प्रोजेक्ट 39ए द्वारा ये याचिका दर्ज हुई थी। उस याचिका में ये कहा गया था कि मृत्यु दंड के योग्य मामलों के संदर्भ में  शमन, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत कारकों या कोई भी और Relevant Factors जैसी सूचनाओं के Extensive Collection, Documentation और Analysis का अभ्यास हो जो किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है।

    2013 में एक Amendment आया था कानून में जिसमे ये जाहिर किया गया था कि अब उन मामलों में भी मृत्यु दंड की अनुमति दे दी है, जहां कोई भी अपराधी पीड़िता की मृत्यु का कारण बना हो या पीड़िता को मरणासन्न की स्थिति में डाल दिया हो।

    1973Jagmohan Banam Case

    Death Penalty की Validity के परीक्षण का विषय सबसे पहले Supreme Court के सामने 1973 में Uttar Pradesh राज्य के Jagmohan Banam  मामले में लाया गया था, जिसमें Court ने स्पष्ट किया कि मृत्यु दंड या आजीवन कारावास के बीच चुनाव करते समय Facts, Circumstances और किए गए अपराध की प्रकृति की जांच Judge द्वारा की जाएगी।

    इसी तरह, 1979 में Uttar Pradesh के Rajendra Prasad Banam मामले में न्यायालय ने यह कहा कि Death Penalty सफेदपोश अपराधों, समाज-विरोधी अपराधों में और उस व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जो पूरे समाज के लिए खतरा बन गया हो।

    भारत में सही है ये दंड?

    जहां तक Death Penalty की तार्किकता का सवाल है, भारत में इसके प्रचलन को गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह नियमों द्वारा स्थापित Process से नियमित है और Legal Positivism  की Theory के अनुरूप है। लेकिन हाँ इस बात को भी नहीं भूला जा सकता है कि अपराधी को भी अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया जाता है, उसे अपना अपने आपको निर्दोष साबित करने के लिए सभी सुविधाएं दी जाती हैं।

    Death Penalty

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    – Ishita Tyagi 

  • क‍िस आधार पर की थी शराबबंदी- सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार से पूछा

    क‍िस आधार पर की थी शराबबंदी- सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार से पूछा

    बताया- 26 में से 16 जजों के पास इसी से जुड़े केस
    बिहार में 2016 से ही शराबबंदी कानून लागू है। जिसके तहत शराब की बिक्री, पीने और बनाने पर प्रतिबंध है।

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली । बिहार सरकार के शराबबंदी कानून से न्यायालयों में लगे जमानत याचिकाओं के अंबार के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार से सवाल पूछा है कि आपने किस आधार पर शराबबंदी लागू की थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट के 26 में से 16 जजों के पास शराबबंदी कानून से ही जुड़े मामले हैं।
    सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के लगभग हर बेंच में बिहार शराबबंदी कानून से जुड़ी याचिकाएं हैं। इसलिए हमें यह जानना अनिवार्य है कि क्या बिहार सरकार ने इन कानूनों को लागू करने से पहले कोई अध्ययन किया था और बुनियादी न्यायिक ढांचों को ध्यान में रखा था।
    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जारी अपने आदेश में कहा कि पटना हाईकोर्ट के 26 में से 16 जज बिहार में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े मसले ही देखने में व्यस्त हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस कानून से जुड़े कई मामलें न्यायालय में आ रहे हैं। निचली अदालत और उच्च न्यायालय दोनों में जमानत याचिकाओं की बाढ़ आ गई है जिसकी वजह से हाई कोर्ट के 16 जजों को इसकी सुनवाई करनी पड़ रही है। अगर इन मामलों में जमानत याचिकाओं को खारिज किया जाता है तो इससे जेलों में भी भीड़ बढ़ेगी। कोर्ट ने नीतीश सरकार को शराबबंदी कानून लागू करने से पहले किए गए अध्ययन को भी अदालत में पेश करने को कहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हम इस बात की जांच करना चाहते हैं कि बिहार सरकार शराबबंदी कानून के प्रभाव के आकलन को लेकर क्या कदम उठा रही है और साथ ही कानून को लागू करने से पहले किस तरह का अध्ययन किया गया था। अदालत ने 8 मार्च तक राज्य सरकार को अपना जवाब रखने के लिए कहा है।
    गौरतलब है कि बिहार में 2016 से ही शराबबंदी कानून लागू है। जिसके तहत शराब की बिक्री, पीने और बनाने पर प्रतिबंध है। इस कानून में पहले संपत्ति कुर्क करने और उम्र कैद तक का प्रावधान किया गया था। लेकिन 2018 में इस कानून में संशोधन किया गया था और सजा में थोड़ी छूट दी गई थी। हालांकि पिछले दिनों जहरीली शराब से हुई मौत के बाद कानून में थोड़ी और ढील देने की चर्चा सामने आई थी। माना जा रहा है कि शराबबंदी संशोधन बिल जल्दी ही विधानसभा में पेश किया जा सकता है।
  • रामसेतु को मिले ऐतिहासिक स्मारक का दर्जा, सुप्रीम कोर्ट में फिर उठी मांग, केंद्र से मांगी राय

    रामसेतु को मिले ऐतिहासिक स्मारक का दर्जा, सुप्रीम कोर्ट में फिर उठी मांग, केंद्र से मांगी राय

    द न्यूज 15 

    नई दिल्ली। रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक घोषित करने की मांग फिर सुप्रीम कोर्ट में उठी है। इसको लेकर एक याचिका दायर की गई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी है।
    सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगते हुए अगली सुनवाई की तारीख 9 मार्च तय की है। स्वामी ने इससे पहले 2020 में रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने की याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। उस समय कोर्ट ने बाद में विचार करने की बात कही थी।
    सुप्रीम कोर्ट ने उस समय भी केंद्र सरकार को इस मामले पर एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था। आपको बता दें कि सुब्रमण्यम स्वामी ने 2018 में यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दी थी। उन्होंने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की थी।
    वानर सेना ने बनाया था राम सेतु : हिंदू धर्म ग्रंथ ‘रामायण’ में कहा गया है कि “वानर सेना” ने राम को लंका पार कराने और सीता को बचाने में मदद करने के लिए समुद्र पर एक पुल बनाया था। चूना पत्थर के शोलों की 48 किलोमीटर की श्रृंखला को रामायण के साथ जोड़ दिया गया है। यह इस दावे पर टिका है कि यह मानव निर्मित है। 2007 में एएसआई ने कहा था कि उसे इसका कोई सबूत नहीं मिला है। बाद में इसने सर्वोच्च न्यायालय में यह हलफनामा वापस ले लिया।
    रामायण का समय पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों के बीच एक बहस का विषय है। राम सेतु और उसके आसपास के क्षेत्र की प्रकृति और गठन को समझने के लिए पानी के नीचे पुरातात्विक अध्ययन करने का प्रस्ताव है।

  • बंगाल पूर्व मुख्य सचिव मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया

    बंगाल पूर्व मुख्य सचिव मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया

    नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही को पश्चिम बंगाल से नई दिल्ली स्थानांतरित करने पर रोक लगा दी गई थी। बंद्योपाध्याय तब सुर्खियों में आए जब वह चक्रवात यास के मद्देनजर कोलकाता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में शामिल नहीं हुए। जस्टिस ए.एम. खानविलकर और सी.टी. रविकुमार ने 29 नवंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में विस्तृत फैसला बाद में दिन में उपलब्ध होगा।

    शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र की अपील की अनुमति दी, जिसने मामले को कोलकाता के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की पीठ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने बंदोपाध्याय को कैट की प्रधान पीठ के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी थी।

    सुनवाई के दौरान, केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि अदालत द्वारा अपना फैसला सुनाए जाने से पहले बंद्योपाध्याय के खिलाफ कोई ‘प्रारंभिक कार्रवाई’ नहीं की जाएगी।

    बंद्योपाध्याय को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। हालांकि, उन्होंने सेवा से इस्तीफा दे दिया, लेकिन केंद्र द्वारा शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के अधीन थे। उन्होंने इन कार्रवाई के खिलाफ कोलकाता में कैट का रुख किया।

    बंद्योपाध्याय के आवेदन को कोलकाता से नई दिल्ली स्थानांतरित करने के केंद्र के आवेदन पर कैट की प्रधान पीठ ने एक आदेश पारित किया। उच्च न्यायालय ने मामले के हस्तांतरण को रद्द कर दिया और कहा कि कैट की प्रधान पीठ सरकार के आदेश को पूरा करने के लिए अति उत्साही थी।

    उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देते हुए केंद्र ने शीर्ष अदालत का रुख किया। इसने बंद्योपाध्याय के मामले पर विचार करने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी, जब इसे पहले ही दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया था।