जयंत चौधरी ने योगी सरकार पर औरंगजेब पर बात शुरू करते हैं और अंत में पलायन पर आ जाते हैं। पेपर दिला नहीं पाते। मजबूर होकर नौजवान दूसरे प्रदेश जाकर नौकरी ढूंढते हैं, योगी जी को ये पलायन नहीं दिखता। बाबा जी को गु्स्सा भी बहुत आता है। कभी मु्स्कराते नहीं हैं। जयंत ने कहा कि आज कल राजनीति में एक शब्द का प्रयोग बहुत होता है फायरब्रांड नेता… लेकिन ये फायरब्रांड नहीं हैं। एक साल किसानों का अपमान हुआ लेकिन भाजपा के किसी भी नेता की एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। ये फायरब्रांड कैसे हुए। उन्होंने कहा कि किसानों के मामले में भाजपा को दाढ़ी भी मुंडवानी पड़ी, नाक भी कटवानी पड़ी। #thenews15 #jayantchoudhary
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राहुल गांधी ने 500 मृत किसानों की सूची लोकसभा के पटल पर रखी
नई दिल्ली, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में शून्यकाल में किसानों को मुआवजा दिए जाने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने करीब 500 किसानों की एक सूची लोकसभा के पटल पर रखी और यह दावा किया कि यह किसान प्रदर्शन के दौरान मारे गए हैं।
सांसद ने लोकसभा में मंगलवार को कहा कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान करीब 700 किसानों की मौत हो गई है। इन किसानों के परिजनों को केंद्र सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाए। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार करीब 400 किसान परिजनों को पहले ही 5 लाख रुपये का मुआवजा दे चुकी है और उनमें से 152 किसान परिवारों को नौकरी भी दे चुकी है।
राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार ने पहले ही अपनी गलती स्वीकार कर ली है ऐसे में मुआवजा देने में क्या हर्ज है।
राहुल गांधी ने मंगलवार को लोकसभा में कहा, “मैंने 30 नवंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से पूछा था कि आंदोलन में कितने किसानों की मौत हुई थी? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मेरे पास इसकी कोई सूची या आंकड़ा नहीं है। यदि सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है तो फिर हमसे लिस्ट ले लें। मैं सदन में आंदोलन के दौरान मरे किसानों की पूरी सूची रख रहा हूं।”
राहुल गांधी ने कहा, पंजाब सरकार ने 400 किसानों के परिजनों को मुआवजा दिया है। इसके अलावा 152 किसानों के परिजनों को सरकारी नौकरी भी दी गई है। मेरे पास पूरी सूची है। इसके अलावा हमने हरियाणा के भी 70 किसानों की सूची तैयार की है। लेकिन आपकी सरकार कहती है कि आपके पास मारे गए किसानों की सूची ही नहीं है।
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किसान आंदोलन में घुसी आढ़तियों की राजनीति!
सी.एस. राजपूतवजह जो भी हो पर मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन में कुछ पेंच नजर आ रहे हैं। जहां संयुक्त किसान मोर्चा ने नई दिल्ली में होने वाले ट्रैक्टर मार्च को स्थगित किया है। वहीं आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाया है। गत चार दिसम्बर को हुई संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में आंदोलन को तेज करने के ऐलान की उम्मीद आंदोलनकारी किसान कर रहे थे पर मीटिंग सरकार से बातचीत करने के लिए पांच नेताओं की कमेटी बनाने तक ही सिमट कर रह गई। यही वजह रही कि मोर्चे को ७ दिसम्बर को फिर मीटिंग रखनी पड़ी। संयुक्त किसान मोर्चा जिस तरह से कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि आंदोलन में कहीं न कहीं ऐसा कोई झोल है जो आंदोलन को आगे बढ़ाने में रोड़ा बन रहा है।
दरअसल जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार एमएसपी गारंटी कानून की मांग न करने को आढ़ती लॉबी किसान नेताओं पर दबाव बना रही है। आंदोलन में शामिल होने वाले पंजाब के कई किसान भी आढ़ती बताये जा रहे हैं। ये आढ़ती एमएसपी गारंटी कानून को अपने धंधे में घाटा मान कर चल रहे हैं। इन आढ़तियों को लगता है कि यदि एमएसपी गारंटी कानून बन जाता है तो जो फसल वे औने-पौने दाम पर खरीदते हैं वे उन्हें एमएसपी पर खरीदने पड़ेंगी। पंजाब और हरियाणा में एमएसपी होने की वजह से एमएसपी गारंटी कानून की मांग पर आंदोलन करने पर किसान नेताओं में मतभेद होने की बात सामने आ रही है। उत्तर प्रदेश भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत एमएसपी गारंटी कानून बनवाने के लिए किसान आंदोलन को तेज करने का ऐलान कर चुके हैं तो पंजाब के कुछ किसान वैसे भी एमएसपी गारंटी कानून की मांग की गूंज गाजपुर बार्डर पर ज्यादा गूंज रही है। गाजीपुर बार्डर पर जो किसान जमे हैं उनमें अधिकतर उत्तर प्रदेश के बताये जा रहे हैं। यह भी अपने आप में प्रश्न है कि गत 4 तारीख को सरकार के साथ बातचीत करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 नेताओं की जो कमिटी बनाई है उसमें किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत का नाम नहीं है। इस कमेटी में बलबीर राजेवाल, गुरनाम चढूनी, शिव कुमार कक्का, युद्धवीर सिंह, अशोक धवले का नाम है। मीटिंग में एमएसपी गारंटी कानून पर कोई बात न होने का मतलब कहीं न कहीं इस मामले में झोल कुछ है।दरअसल एमएसपी किसी कृषि उपज (जैसे गेहूँ, धान आदि) का न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिससे कम मूल्य देकर किसान से सीधे वह उपज नहीं खरीदी जा सकती। न्यूनतम समर्थन मूल्य, केंद्र सरकार तय करती है। उदाहरण के लिए, यदि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य २००० रूपए प्रति कुन्तल निर्धारित किया गया है तो कोई व्यापारी किसी किसान से २१०० रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद सकता है किन्तु १९७५ रूपए प्रति कुन्तल की दर से नहीं खरीद सकता।
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एमएसपी गारंटी कानून पर निर्णय नहीं ले पा रहा है संयुक्त किसान मोर्चा
मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा में एक राय नहीं हो पा रही है। सरकार से बातचीत करने के लिए बनाई गई पांच नेताओं की कमेटी में राकेश टिकैत नहीं हैं। ऐसे में लोगों के दिमाग में यह प्रश्न कौंध रहा है कि किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत इस कमेटी में क्यों नहीं शामिल हैं|
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अब तक किसान आंदोलन में कितना हुआ नुकसान, किसानों की आगे की क्या रणनीति है?
द न्यूज 15, किसान एकता मोर्चा, राकेश टिकैत, एमएसपी कानून, विधेयक कानून, किसान समिति
किसान कानून वापस लिए जाने के बाद एमएसपी का मुद्दा कई दिनों से चर्चा में है। ऐसे में एमएसपी पर गठित होने वाली कमेटी के लिए केंद्र सरकार ने किसान नेता अशोक धवले, गुर नाम चदुनी, युद्धवीर सिंह, शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्का और बलबीर सिंह राजेवाल के नाम तय किए हैं. -
एक साल बाद भी किसानों का आंदोलन जोरो पर! क्या खत्म होगा किसान आंदोलन
द न्यूज 15, किसान एकता मोर्चा, राकेश टिकैत, एमएसपी कानून, विधेयक कानून, किसान समिति
किसान कानून वापस लिए जाने के बाद एमएसपी का मुद्दा कई दिनों से चर्चा में है। ऐसे में एमएसपी पर गठित होने वाली कमेटी के लिए केंद्र सरकार ने किसान नेता अशोक धवले, गुर नाम चदुनी, युद्धवीर सिंह, शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्का और बलबीर सिंह राजेवाल के नाम तय किए हैं.