Tag: msp

  • खेती घाटे का सौदा लेकिन एमएसपी व्यावहारिक संभव नहीं है

    खेती घाटे का सौदा लेकिन एमएसपी व्यावहारिक संभव नहीं है

    बड़ी टेढ़ी खीर है एमएसपी की गारंटी वाला कानून, एमएसपी कानून की माँग किसान और देश के हित में नहीं है। ब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं। ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा। दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने सेपहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा। देश में पैदा होने वाली हर फसल को एमएसपी के दायरे में लाने की किसानों की बड़ी मांग को मानने का मतलब होगा, पूरा केंद्रीय बजट इसके लिए समर्पित करना। इससे अगले पांच सालों के लिए भारत की”तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” का लक्ष्य गंभीर खतरे में पड़ जाएगा और लोगों को डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के जरिए ज्यादा टैक्सेशन का सामना करना पड़ेगा।


    डॉ. सत्यवान सौरभ

     

    एमएसपी का उद्देश्य फसल की कीमत में उतार-चढाव के बीच किसानों को नुकसान से बचाना है। इसकी गारंटी आज देश में सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है जोव्यावहारिक, संभव नहीं है। भारत सरकार सिर्फ 23 फसलों पर ही एमएसपी की घोषणा करती है। उनमें भी गेहूं और धान की फसलों की खरीद ही एमएसपी पर होती है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा और भंडारण के लिए सरकार को इन फसलों की व्यापक खरीद करनी पड़ती है। किसानों की निरंतर मांग रही है कि एमएसपी गारंटी कानून बनाया जाए। इसके मायने होंगे कि सरकार ने कागज पर उतना दाम दिलाने का वायदा किया है। लेकिन सरकार यह तय नहीं कर सकती कि वह कितनी मात्रा खरीदना चाहती है। किसानों द्वारा सरकार को कितना अनाज दिया जाता है? खरीदना होगा। बाजार कीमतें एमएसपी से तय होती हैं जो ज्यादातर समय ऊंची ही रहती है। एमएसपी-आधारित खरीद प्रणाली की बड़ी समस्या बिचौलियों, कमीशन एजेंटों पर कामकाजी निर्भरता और एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) के अधिकारियों की लालफीताशाही है। एक औसत किसान के लिए इन मंडियों तक पहुंच पाना मुश्किल होता है और वह कृषि उपज बेचने के लिए बाजार पर निर्भर रहता है। वर्तमान प्रणाली विशेष फसलों की बाजार में बहुतायत पैदा करती है। इससे साल-दर-साल गहन खेती होती है, जिससे मिट्टी का क्षरण होता है। किसान अपनी समस्याओं के समाधान के लिए बाज़ार के अनुरूप ढलने के बजाय राजनीतिक दबाव पर भरोसा करते हैं। यह सब इस क्षेत्र में निजी निवेश को दूर रखता है और इस प्रकार कृषि में पिछड़ेपन में योगदान देता है। यह मिट्टी को ख़राब करता है क्योंकि मिट्टी की स्थिति चाहे जो भी हो, कुछ फसलों को प्राथमिकता दी जाती है जिनके ऊपर एमएसपी होता है जिसके परिणामस्वरूप समूह के जल संसाधनों का दोहन, क्षारीयता, लंबे समय में फसलों के उत्पादन में कमी और पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है। अगर एमएसपी लाया जाता है तो सरकार की नज़र अतिरिक्त व्यय पर होगी जो सालाना 10 लाख करोड़ होगा; जो हमारे पिछले वर्ष के बुनियादी बजट से भी अधिक है। इसलिए इसकी मांग का कोई अर्थ नहीं है। यह सच है की खेती घाटे का सौदा बन गयी है लेकिन खेती क्या किसी भी उत्पाद का मूल्य सरकार तय नहीं कर सकती। सरकार के पास भी आर्थिक स्त्रोतों की एक सीमा होती है।

    एमएसपी प्रणाली न्यूनतम मूल्य तय करने वालेकानून की परिकल्पना करती है ताकि किसान को आर्थिक रूप से नुकसान न हो। एमएसपी कोलेकर कानूनी बाधाएं एक जटिल मुद्दा है। इसके अलावा, ये सिर्फ कानूनी मुद्दे नहीं हैं, बल्कि कार्यान्वयन के और भी मुद्दे हैं। कानूनी तौर पर इन्हें उतनी आसानी से हल नहीं किया जा सकता है,जितनी किसान उम्मीद कर रहे हैं कि ये हो जाएंगे। पिछले साल ज्वार, तुअर, कपास, उड़दऔर धान (गैर-बासमती) की अखिल भारतीय औसत कीमतें उनके एमएसपी से 5 से 38 प्रतिशत तकअधिक थीं। कर्नाटक में मक्के की कीमतें एमएसपी से अधिक थीं, लेकिन पूरे भारत में वे कम दिख रही थींजो अन्य राज्यों में कम गुणवत्ता के कारण हो सकता है। दरअसल कीमतों का यहउतार-चढ़ाव ही एमएसपी पर गारंटी के लिए सबसे बड़े बाधक के रूप में सामने आ रहा है।दूसरा, पंजाब की मुख्यफसल धान व गेहूं है, दोनोंपर एमएसपी पहले से है और इसकी खरीद सरकार कर रही है। वहीं, एमएसपी पर कानून बनने से बाकी फसलों कोखरीदना भी सरकार की मजबूरी होगी और उनको स्टोर करना व आगे बेचना सरकार कीजिम्मेदारी बन जाएगी। इसलिए एमएसपी पर कानून आसान नहीं है। एमएसपी हमेशा फसल की एक ”फेयर एवरेजक्वालिटी” के लिए दिया जाता है। यानी कि जब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं। ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा। दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने सेपहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा। देश में पैदा होने वाली हर फसल को एमएसपी के दायरे में लाने की किसानों की बड़ी मांग को मानने का मतलब होगा, पूरा केंद्रीय बजट इसके लिए समर्पित करना। इससे अगले पांच सालों के लिए भारत की”तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” का लक्ष्य गंभीर खतरे में पड़ जाएगा और लोगों को डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के जरिए ज्यादा टैक्सेशन कासामना करना पड़ेगा।

    किसानों का फायदा पहुंचाने और उन्हें किसी भी नुकसान से बचाने के लिए फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था काफी सालों से चल रही है। केंद्रीय सरकार फसलों की निम्नतम कीमत तय करती है जिसे एमएसपी या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है। सवाल यह उठता है की क्या एमएसपी कानून बनाने से किसानों की सारी समस्याएं हल हो जाएगी? अभी सरकार लगभग 23 फसलों पर एमएसपी देती है। क्या किसान इन सभी फसलों को एमएसपी पर बेचते है? कई बार ऐसा होता है कि कई फसलें एमएसपी से कम या एमएसपी से ज्यादा मूल्य पर बेचीं जाती है। दरअसल फसलों के दाम बहुत हद तक हालात पर निर्भर करते है। इसलिए एमएसपी घोषित होने के बावजूद अलग-अलग दामों पर फसलें बेचीं जाती है। जब कोई खरीदार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान करने को तैयार नहीं होगा तो सरकार के पास बड़ी मात्रा में उपज का भंडारण करने के लिए आवश्यक भौतिक संसाधन नहीं हो सकते हैं। सरकार को खरीद और उन खरीदों को करने में तेजी की एक और चिंता का भी सामना करना पड़ेगा। एमएसपी लगाने से भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है, क्योंकि निजी व्यापारियों को एमएसपी पर खरीदारी करने के लिए मजबूर करना मुश्किल हो सकता है। साथ ही, जो किसान उक्त फसलें नहीं उगाते हैं वे इस मांग का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। ये सरकार ही है कि विपरीत परिस्थितियों में किसानों कि जेब पर बोझ नहीं पड़ने देती किसानों को समझना होगा कि एमएसपी घोषित होने से उनका भला नहीं होगा। उनका भला तब होगा जब उनकी कृषि लगत कम होगी और उनकी उपज बिना किसी बिचौलिए के मंडी तक पहुंचेगी। स्टार्टअप के इस युग में किसानों को एमएसपी कि बजाय मार्केटिंग कि मांग करनी चाहिए। एमएसपी कानून से सरकार पर लगभग 10 लाख करोड़ रुपया अतिरिक्त खर्च आएगा। इसके लिए देश का बुनियादी ढांचा ही बिगड़ जायेगा या फिर चिकित्सा /रक्षा खर्च में कटौती होगी। या जनता पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स लगेंगे। क्या देश इंफ्रा और डिफेंस से सरकारी खर्च को कम करने के पक्ष में होगा? क्या डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स को बढ़ाने के पक्ष में कोई है या होगा? ऐसे में समस्या कृषि या आर्थिक नहीं है। देश की अर्थव्यस्था सँभालने की जिम्मेदारी केवल सरकार की न होकर प्रत्येक नागरिक की है।

    (लेखक कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)

  • अब MSP गारंटी कानून का वादा कर रही कांग्रेस, 2010 में लागू करने से साफ कर दिया था इनकार

    अब MSP गारंटी कानून का वादा कर रही कांग्रेस, 2010 में लागू करने से साफ कर दिया था इनकार

    किसान संगठन विभिन्‍न मांगों को लेकर सड़क पर हैं. बड़ी तादाद में किसान अपनी मांगों को लेकर पंजाब से दिल्‍ली की तरफ कूच कर चुके हैं. कुछ जगहों पर किसानों और पुलिस में टकराव की स्थिति भी उत्‍पन्‍न हुई. किसानों के ‘दिल्‍ली चलो’ मार्च को देखते हुए देश की राजधानी में सुरक्षा के पुख्‍ता इंतजाम किए गए हैं. दिल्‍ली से लगती सीमाओं को सील कर दिया गया है, ताकि प्रदर्शनकारी किसान दिल्‍ली की सीमा के अंदर प्रवेश न कर सकें.
    पंजाब के हजारों किसानों ने फसलों की MSP पर खरीद की कानूनी गारंटी मांगते हुए दिल्ली कूच कर दिया। फिलहाल हरियाणा और पंजाब को जोड़ने वाले शंभू बॉर्डर पर हजारों किसान और पुलिस आमने-सामने हैं। इसके चलते हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। सरकार MSP की कानूनी गारंटी को लेकर तमाम पेच बता रही है, जबकि कांग्रेस ने किसानों को सरकार बनने पर इसे लागू करने का वादा कर दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ में ऐलान किया था कि यह कांग्रेस की गारंटी है कि हम सत्ता में आए तो MSP पर फसल खरीद का कानून लागू करेंगे।
    हालांकि कांग्रेस ने ही 2010 में स्वामीनाथन आयोग की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था, जिसमें फसलों की MSP लागत से डेढ़ गुना तक करने की सिफारिश थी। इस संबंध में भाजपा के तत्कालीन राज्यसभा सांसद प्रकाश जावड़ेकर कृषि मंत्री केवी थॉमस से सवाल पूछा था कि क्या स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा।

    यह सवाल 16 अप्रैल, 2010 को पूछा गया था। इस पर कांग्रेसी मंत्री ने विस्तार से जानकारी देते हुए रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि यदि ऐसा हुआ तो फिर अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। प्रकाश जावड़ेकर ने तब सवाल किया था कि क्या किसानों को MSP दिए जाने के मसले पर सरकार स्वामीनाथन आयोग की ओर से दी गई सिफारिशों को लागू करने जा रही है? इस पर जवाब देते हुए केवी थॉमस ने विस्तार से इसे लागू न कर पाने के कारण बताए थे और कहा था कि इससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।

    कांग्रेसी मंत्री ने कहा था, ‘प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में किसानों पर बने राष्ट्रीय की सिफारिशें मिली हैं। इनमें कहा गया है कि फसलों पर लगी किसान की कुल लागत से डेढ़ गुना अधिक MSP दी जानी चाहिए। हालांकि सरकार ने उनकी इन सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया है। यदि इन्हें लागू किया तो फिर इससे मार्केट पर बुरा असर होगा। इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। कुछ मामलों में MSP और फसलों के उत्पादन लागत को जोड़कर देखना गलत होगा। इससे बाजार पर सही असर नहीं होगा।’

    अब राहुल गांधी क्या कह रहे हैं?
    कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी देश के लिए फैसले लेती है, न कि राजनीति के लिए, एमएसपी पर कानूनी गारंटी के वादे पर आलोचना का जवाब देते हुए। उन्होंने यह भी बताया कि यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन समिति द्वारा की गई 201 में से 175 सिफारिशों को लागू किया था। किसान, समिति की सिफारिशों के आधार पर, C2+50 फॉर्मूले को लागू करने की मांग कर रहे हैं, जिसमें एमएसपी द्वारा कवर की गई 23 फसलों के लिए उत्पादन की व्यापक लागत शामिल है। हालांकि, सरकार ने कहा है कि कोई भी प्रतिबद्धता बनाने से पहले इस मुद्दे की विस्तार से जांच करने की जरूरत है।

  • उत्तर प्रदेश के चुनाव जीतते ही बढ़ जाएगा फिर से नए कृषि कानून लागू करने का अंदेशा !

    उत्तर प्रदेश के चुनाव जीतते ही बढ़ जाएगा फिर से नए कृषि कानून लागू करने का अंदेशा !

    चरण सिंह राजपूत 
    जो लोग सोच रहे हैं कि नये कृषि कानून लागू होने का अब कोई खतरा नहीं है। वे प्रधानमंत्री के गए वादों पर जरा थोड़ा मंथन कर लें। चाहे इतना काला धन विदेश से लाने का वादा कि हर नागरिक के खाते में 150000 रुपए हर नागरिक के खाते में आ जायेंगे। या फिर  किसान की फसल की लागत से डेढ़ गुना मूल्य देने का वादा हो या फिर हर वर्ष युवाओं को 2 करोड़ रोजगार देने का वादा हो सभी वादे खोखले साबित हुए हैं।  लोगों को सपने दिखाना और उन सपनों के बल पर उन पर राज करना ही मोदी की बड़ी कला है। बड़े से बड़ा संकट टालने की कला में भी मोदी माहिर हैं। जब बीजेपी को कृषि कानूनों के चलते उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में हार का संकट सताने लगा तो किसी भी तरह इस संकट को टालने की रणनीति बनाई गई और कानून वापस ले लिए गए।

    (more…)

  • जीत के बाद किसानों की वापसी !thenews15

    जीत के बाद किसानों की वापसी !thenews15

    मोदी सरकार के किसानों की सभी मांगों मानने के बाद किसान अपने घरों को लौट रहे हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान बाक़ायदा पेट पूजा करके अपने घरों को लौट रहे हैं। जीत के बाद किसानों की वापसी

  • आंदोलन स्थगित ख़त्म नहीं

    आंदोलन स्थगित ख़त्म नहीं

    द न्यूज़ 15 से बात करते हुए किसानो ने कहा कि आंदोलन स्थगित हुआ है खत्म नहीं। अब हम लोग यू पी मिशन के लिए निकलेंगे अब किसान गन्ने के बकाया भुगतान के अलावा दूसरी समस्याओ को लेकर आंदोलन करेंगे |

  • आंदोलन में एकजुट हुए किसान |The News 15

    आंदोलन में एकजुट हुए किसान |The News 15

    द न्यूज 15 ने जब गाजीपुर बार्डर पर पहुंचकर किसानों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन ने किसानों को बहुत मजबूती दी है। जो मोदी सरकार किसानों को नक्सली, आतंकवादी और नकली किसान बता रही थी, उसी सरकार को ही किसानों की बातें माननी पड़ी। किसानों का कहना था कि वे लोग भले ही अपने घरों को वापस लौट रहे हैं आंदोलन जारी रहेगा।

  • अभी आराम करना चाहते हैं राकेश टिकैत |The News 15

    अभी आराम करना चाहते हैं राकेश टिकैत |The News 15

    गाजीपुर बार्डर पर किसानों की जीत के जश्न मनाते हुए भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत से द न्यूज 15 के एडिटर इन चीफ सी.एस. राजपूत ने बीतचीत की। इस दौरान राकेश टिकैत ने फिलहाल घर जाकर आराम करने की बात की। साथ ही यूपी चुनाव में आचार संहिता के बाद निर्णय लेने की भी बात की। उनका कहना था कि हर बात को गिगेटिव ही नहीं लेना चाहिए।

  • अब यूपी मिशन पर जाएंगे किसान |The News 15

    अब यूपी मिशन पर जाएंगे किसान |The News 15

    द न्यूज 15 से बातचीत करते हुए किसान नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि किसान अपने घरों को जा रहे हैं पर आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। किसान अब यूपी मिशन पर जाएंगे। जब उनसे पूछा गया कि क्या किसान योगी सरकार के खिलाफ प्रचार करेंगे तो उन्होंने कहा कि उत्तर प्र्देश में योगी सरकार को घेरा जाएगा। उन्होंने बेबाक तरीके से मोदी सरकार पर निशाना साधा। उनका कहना था कि किसानों ने मोदी सरकार को सबक सिखा दिया।

  • कैसे मान गई आंदोलन को तवज्जो न देने वाली मोदी सरकार?

    कैसे मान गई आंदोलन को तवज्जो न देने वाली मोदी सरकार?

    किसान आंदोलन पर मोदी सरकार फिलहाल भले ही नरम नजर आ रही हो पर उसका रवैया आंदोलन के प्रति ठीक नहीं रहा है। यही वजह है कि अभी भी मोदी सरकार के किसानों की मांगों को पूरा करने में संशय बना हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अगले साल पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए ही यह सब किया जा रहा है। चुनाव के बाद फिर से यह मामला गरमा जाए।

  • किसानों की मांगें पूरी होने में अभी भी हैं झोल !

    किसानों की मांगें पूरी होने में अभी भी हैं झोल !

    जो किसान मोदी सरकार के सभी मांगें मानने पर खुश हो रहे हैं उन्हें जरा किसान आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के रवैये की भी समीक्षा कर लेनी चाहिए। इसी सरकार की शह पर किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। २६ जनवरी को ट्रैक्टर मार्च को तिरंगे से जोड़कर किसानों को देशद्रोही साबित करने की कोशिश की गई। एक साल तक गर्मी, सर्दी और बरसात झेलने वाला किसान आंदोलन सरकार को विपक्ष दिखाई देता रहा। सरकार और सरकार के समर्थक आंदोलन को फर्जी बताते रहे। ७०० से ऊपर किसान आंदोलन में दम तोड़ गये पर सरकार में बैठे किसी नेता ने शोक व्यक्त तक नहीं किया। तो क्या अचानक मोदी सरकार का मन बदल गया है ? क्या सरकार को किसानों की चिंता सताने लगी है ? क्या सरकार किसानों की पीड़ा समझने लगी है ?
    जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार तो सरकार को आरएसएस का हुकुम बजाना पड़ रहा है। दरअसल आरएसएस की ग्राउंट रिपोर्ट यह है कि किसान आंदोलन लगातार भाजपा को नुकसान पहुंचा रहा है। आने वाले चुनाव में किसान आंदोलन उलट-फेर कर सकता है। यही वजह रही कि मोदी सरकार ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल किसानों की सभी मांगें मानने की रणनीति बनाई है। वैसे भी सरकार के वादे और सरकार के काम के बारे में सब कुछ उजागर हो चुकाहै। मोदी सरकार यानी कि भाजपा हर हाल में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है। विशेषकर उत्तर प्रदेश मे। उत्तर प्रदेश में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैली में जुट रही भीड़ ने भाजपा की बेचैनी को और बढ़ा दिया है। भाजपा और आरएसएस की चिंता यह है कि इन विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा हार गई तो २०२४ के लोकसभा चुनाव में इसका सीधा असर पड़ेगा। यही वजह है कि भाजपा इन विधानसभा चुनाव को जीतकर लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनाना चाहती है। भले ही उसको फिलहाल कुछ भी करना पड़े। नहीं तो जो सरकार आंदोलित किसानों को गलत और नये कृषि कानूनों को सही बताती रही वह सरकार ऐसे ही अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हुई है।
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नये कृषि कानूनों को वापस लेते समय आंदोलित किसानों को कुछ किसान बोलना यह दर्शाता है कि सरकार ने यह फैसला बड़े दबाव में लिया है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने किसी किसी वादे पर खरा नहीं उतर पाये हैं। चाहे २०१४ में विदेश से इतना काला काला धन लाने का वादा हो जिसमें हर भारतीय के खाते में १५ लाख रुपये आ जायें। चाहे हर साल २ करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा हो या किसानों की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलाने का। ऐसे में सरकार का किसानों की सभी मांगें मानना फिलहाल आंदोलन को खत्म कराकर चुनाव के लिए माहौल बनाना प्रतीत हो रहा है। सरकार किसानों पर दर्ज मुकदमों औेर एमएसपी पर कानून मामले में फसलों को लेकर पेंच फंसा सकती है। वैसे भी लालकिले पर तिरंगे के अपमान जैसे कितने मामले ऐसे हैं जिन पर वापस लेने पर विवाद हो सकता है। इन मामलों में सरकार को अपने ही घिरने का अंदेशा है। एमएसपी कानून पर अलग से पेंच हैं।
    दरअसल पंजाब और हरियाणा में एमएसपी होने की वजह से इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के किसानों को पंजाब और हरियाणा के किसानों से अलग करना चाहते थे। काफी हद तक हुआ भी यही। मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद पंजाब के कई जत्थे घर लौटने को तैयार होने लगे। मोदी सरकार को किसान आंदोलन की यह कमजोरी समझ में आ गई। मोदी सरकार के लिए आंदोलन को तुड़वाना का  यह सही अवसर था, जिसका फायदा उसने उठाया। फिलहाल मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा की सभी मांगें मान ली हैं। अब देखना यह है कि मोर्चा ने जो ५ नेताओं की कमेटी बनाई है यह मांगों को कितने प्रभाव से अमली जामा पहनवाने का दम रखती है।  वैसे राकेश टिकैत का इस कमेटी में न होना किसान आंदोलन में राजनीति को दर्शाता है। इसे सरकार की रणनीति भी कहा जा सकता है कि प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐेलान के बाद किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत लगातार कमजोेर होते नजर आए। यहां तक कि संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से बात करने के लिए जो ५ नेताओं की कमेटी बनाई उसमें भी राकेश टिकैत नहीं हैं। यही सब कारण रहे कि प्रधानमंत्री के नये कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन को तेज करने के लिए सिंघु बार्डर पर असमंजस तो गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनती रही। दरअसल एमएसपी गारंटी कानून की मांग गाजीपुर बार्डर से ही उठ रही थी। यही वजह रही कि सरकार के सभी मांगें मान लेने के बाद भी राकेश टिकैत कागज आ जाने के बाद घर वापसी की बात करते रहे। राकेश टिकैत सरकार के खेल को समझ रहे हैं। राकेश टिकैत के इस रुख से तो यह साबित होता है कि गाजीपुर बार्डर से आंदोलन समाप्त होने में अभी समय लगेगा। वैसे भी वह कांग्रेस का हवाला देेकर नये ट्रैक्टर की मांग कर चुके हैं।

    नये कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन को तेज करने के लिए सिंघु बार्डर पर असमंजस तो गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनती रही। दरअसल एमएसपी गारंटी कानून की मांग गाजीपुर बार्डर से ही उठ रही थी। यही वजह रही कि सरकार के सभी मांगें मान लेने के बाद भी राकेश टिकैत कागज आ जाने के बाद घर वापसी की बात करते रहे। राकेश टिकैत सरकार के खेल को समझ रहे हैं। राकेश टिकैत के इस रुख से तो यह साबित होता है कि गाजीपुर बार्डर से आंदोलन समाप्त होने में अभी समय लगेगा। वैसे भी वह कांग्रेस का हवाला देेकर नये ट्रैक्टर की मांग कर चुके हैं।