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  • सत्ता के लिए अब श्रम कानून में संशोधन भी होगा वापस!

    सत्ता के लिए अब श्रम कानून में संशोधन भी होगा वापस!

    सी.एस. राजपूत  

    ले ही लोग ज्यादा चुनाव होने को फिजूल खर्ची मानते हों पर यह भी जमीनी हकीकत है कि चुनाव ही हैं जिनकी वजह से लोगों का भला हो जाता है। मोदी सरकार की कार्यप्रणाली का जीता-जागता उदाहरण सामने है। जो मोदी सरकार देश के किसी भी आंदोलन को कोई त्वज्जो न दे रही थी। हर आंंदोलन को बदनाम कर दबा दे रही थी। वही मोदी सरकार अब उप चुनाव में भाजपा की हार के बाद अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में हार के अंदेश के चलते न केवल किसानों के सामने झुक गई है वहीं मजदूरों को भी रिझाने जा रही है। मोदी सरकार के नये किसान कानून वापस लेने के बाद अब श्रम कानून में हुए संशोधन को टालने की तैयारी है। मतलब कारपोरेट घरानों के दबाव में किसान-मजदूरों की बर्बादी की पटकथा लिखने वाली मोदी सरकार को किसान और मजदूरों की चिंता सताने लगी है। नये कृषि कानूनों के वापस लेने के बाद अब श्रम कानून में किये गये संशोधन को टालने की खबरें आ रही हैं। मतलब जिन किसानों और मजदूरों को मोदी सरकार और उनके समर्थकों ने नक्सली, आतंकवादी, देशद्रोही न जाने क्या-क्या कहा उन किसानों और मजदूरों के लिए मोदी सरकार अब अपनी गलती मानते हुए उनके हित की सोचने का ड़ामा कर रही है। जो प्रधानमंत्री किसान आंदोलन में ६०० से अधिक किसानों के दम तोड़ने के बाद भी चुप्पी साधे रहे। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के किसानों को सुधर जाओ नहीं तो सुधार दिये जााओगे कहने पर चुप रहे। उनके बेटे आशीष के अपनी गाड़ी से कुचलकर तीन किसानों की हत्या करने पर चुप रहे। अजय मिश्रा को न पद से हटाया और न ही पार्टी से। जो प्रधानमंत्री विदेश से इतना ब्लैक मनी ला रहे थे कि हर भारतीय के खाते में पंद्रह लाख रुपये चले जाते। हर साल २ करोड़ युवाअेां को रोजगार देने की बात कर रहे थे। किसानों की फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलवा रहे थे पर कुछ न कर पाये। जो प्रधानमंत्री किसानों को जानकारी न होने की बात कर नये किसान कानून उनके हित में बता रहे थे। आंदोलित किसानों को किसान मान ही नहीं रहे थे। आखिर क्या हुआ कि उन्होंने न केवल नये कृषि कानून वापस ले लिये बल्कि श्रम कानून में हुए संशोधन को भी टालने जा रहे हैं। दरअसल यह सब सत्ता के लिए हो रहा है। उप चुनाव में हार के बाद अब जब पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का अंदेशा जताने लगा तो अब किसानों और मजूदरों को साधने की रणनीति अपनाई है। दरअसल मोदी सरकार पर किसान और मजदूर विरोधी नीतियां लागू करने के आरोप लगाया जा रहा है। इसकी बड़ी वजह यह थी कि किसानों की बिना सहमति के तीन नए कानून बना दिए गए थे। साथ ही कॉर्पोरेट घरानों के दबाव में श्रम कानून में संसोधन कर दिया गया था। जहां किसान संगठन कृषि कानूनों को वापस करने को लेकर एक साल से आंदोलित हैं वहीं श्रम कानून के संसोधन के विरोध में ट्रेड यूनियनें सड़कों पर हैं। अब जब उप चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी वहीं अगले साल होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार का डर सता रहा है। यही वजह है कि मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद श्रम कानून में किये गए संशोधन को वापस लेने की रणनीति बनाई है।
    दरअसल मोदी सरकार को किसान और मजदूर के नाराजगी से चुनाव में हारने का अंदेशा होने लगा है। विपक्ष को भले ही मोदी सरकार ने डरा रखा था पर किसान आंदोलन की मजबूती और नए कृषि कानून की वापसी के बाद विपक्ष आक्रामक मूड में आ गया है। जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टारगेट कर रहे हैं। हरियाणा और पंजाब में तो बीजेपी नेताओं का निकलना मुश्किल हो गया है। विरोध-प्रदर्शन से विपक्ष को हो रही मजबूती रोकने के लिए किसान कानून के बाद अब मोदी सरकार श्रम कानून में संशोधन के होने वाले नुकसान से बचने पर मंथन कर रही है। श्रम मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि नए श्रम कानून टालने को लेकर सरकार ने चार बार समय सीमा बढ़ाई है। हालांकि पहले तीन बार टालने के वक्त इसकी अगली तारीख भी बताई जाती रही लेकिन चौथी बार टालने के दौरान अगली तारीख की घोषणा नहीं की गई है। ऐसे में अब श्रम कानून कब तक लागू होगा उसकी कोई स्पष्ट तारीख सामने नहीं आई है। इसको देखते हुए संकेत मिल रहे हैं कि सरकार कृषि कानून की तरह श्रम कानून को भी टालने के मूड में है। मतलब श्रम कानून में संशोधन वापस होगा। दरअसल अगले साल के शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार चुनाव बाद ही कानूनों को लागू करने पर विचार करेगी। ज्ञात हो कि  2019 और 2020 में सरकार ने  श्रम कानून को लेकर विधेयक पारित किये गए थे। सरकार के इस रुख के खिलाफ 10 ट्रेड यूनियनें  मैदान में हैं।
    कृषि कानून वापसी के बाद नई पेंशन योजना वापस लेने की मांग भी जोर पकड़ रही है।  यूनियन ने उन नियमों पर आपत्ति जताई है जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति और बर्खास्तगी के नियम कंपनी के लिए आसान हैं। विरोध के स्वर उठने और चुनावी माहौल को देखते हुए सरकार अभी श्रम कानून को लागू से बचती नजर आ रही है। दरअसल किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को आक्रामक विरोध देखने को मिल रहा है। ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से पहले माना जा रहा था कि पार्टी को चुनावी राज्यों में तगड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।

  • 50 फीसदी लोगों के मुताबिक कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे : सर्वेक्षण

    50 फीसदी लोगों के मुताबिक कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे : सर्वेक्षण

     नई दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की। हालांकि, राजनीतिक जानकारों का ये भी मानना है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की एक वजह ये भी थी क्योंकि व्यापक रूप से ये तीनों कानून अलोकप्रिय थे। इस बारे में कानूनों को लेकर इस तरह की थ्योरी भी चल रही थी कि इन कानूनों के जरिये अंबानी और अडानी किसानों की जमीन हड़प लेंगे और खुले बाजार में किसानों के लिए सौदा करना आसान नहीं होगा।

    दिल्ली की ओर जाने वाली और दिल्ली के बाहर जाने वाली सड़कों की साल भर की नाकेबंदी को भी कृषि कानूनों की व्यापक अलोकप्रियता की वजह बताया गया।

    भारत भर में आईएएनएस-सीवोटर स्नैप पोल द्वारा मिले तथ्य और डेटा के मुताबिक, 50 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं का स्पष्ट बहुमत था कि कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे। इसके विपरीत, केवल 30 प्रतिशत को लगता है कि वे फायदेमंद नहीं हैं।

    प्रधानमंत्री ने स्वयं 19 नवंबर को कृषि कानूनों को निरस्त करते हुए कहा था कि उनकी सरकार चाहती है कि छोटे किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिले।

    कृषि कानूनों के समर्थन के और भी सबूत हैं। लगभग 48 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि सरकार को सभी हितधारकों के साथ परामर्श और आवश्यक संशोधनों के बाद संसद में कृषि कानूनों को फिर से पेश करना चाहिए।

    यह कोई नहीं जानता कि राजनीतिक माहौल को देखते हुए कृषि कानून फिर से पेश किया जाएगा या नहीं, लेकिन तथ्य यह है कि इस तरह के कदमों को लोगों का समर्थन है। उत्तरदाताओं के एक विशाल 56.7 प्रतिशत लोगों की राय थी कि राजनीतिक मकसद के कारण इन कानूनों का विरोध किया गया।

  • अब किसानों पर दर्ज मामले वापस कराने की तैयारी !

    अब किसानों पर दर्ज मामले वापस कराने की तैयारी !

    अब किसानों पर दर्ज मामले वापस कराने की तैयारी

  • प्रधानमंत्री का तीनों कृषि कानून की वापसी का निर्णय किसानों और लोकतंत्र की जीत है : रामस्वरूप

    प्रधानमंत्री का तीनों कृषि कानून की वापसी का निर्णय किसानों और लोकतंत्र की जीत है : रामस्वरूप

    एमएसपी की ग्यारंटी औरकेंद्रीय ग्रृह राज्य मंत्री को हटाने की घोषणा भी करें प्रधानमंत्री

    भोपाल। तीन किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस करने की प्रधानमंत्री की घोषणा आजादी के बाद के सबसे बड़े और शांतिपूर्ण ऐतिहासिक आंदोलन की जीत है, जिसे सरकार और सरकार के पीछे खड़े संगठनों और राजनीतिक तत्वों ने खालिस्तानी, पाकिस्तानी, पृथकतावादी, नक्सलवादी कह कर बदनाम किया था। इस जीत का श्रेय किसानों और आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चे को जाता है।

    सोशलिस्ट पार्टी इंडिया मध्य प्रदेश के अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति मालवा निमाड़ के संयोजक रामस्वरूप मंत्री एवं दिनेश सिंह कुशवाहा ने उक्त जीत के लिए किसानों को बधाई देते हुए कहा है कि सरकार ने खुद ही दावा किया है कि इस आंदोलन से सिर्फ दिल्ली को ही प्रतिदिन 3500 करोड़ का नुकसान हो रहा था। जाहिर है कि यदि सरकार पहले दिन ही किसानों की मांग को मान लेती तो 359 दिनों तक चले आंदोलन से होने वाले 12 लाख 56 हजार,500 करोड़ रुपए के नुकसान से बचा जा सकता था। यह सिर्फ दिल्ली के कारोबार का नुकसान है, इससे देश भर में हुए नुकसान की कल्पना की जा सकती है।आपने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है तथा जिन किसानों के लिए सरकार ने कानून बनाने का दावा किया था, वे किसान 357 दिन से विरोध कर रहे थे। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा।
    नेता द्वय ने कहा कि अडानी – अंबानी को यह समझ लेना चाहिए कि देश उनकी बपौती नहीं है तथा कोई भी सरकार देश को पूंजीपतियों को सौंपने की हैसियत नहीं रखती है। प्रधानमंत्री को तत्काल लखीमपुर खीरी हत्याकांड के जिम्मेदार केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को बर्खास्त करने के साथ-साथ हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को तत्काल बदलकर यह बतलाना चाहिए कि वह किसानों पर अत्याचार करने वाले मुख्यमंत्रियों का साथ नहीं देंगे।
    श्री मंत्री और कुशवाहा ने कहा कि प्रधानमंत्री को शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने, उनके परिवार के आश्रितों को एक करोड़़ रूपये की आर्थिक सहायता देने तथा दिवंगत किसानों का दिल्ली में स्मारक बनाने की घोषणा करनी चाहिए।
    आपने कहा कि देश की जनता ने जिस तरह से इमरजेंसी का विरोध कर इंदिरा गांधी का विरोध किया था, उसी तरह नरेंद्र मोदी को तीनों किसान विरोधी कानून वापस लेने को मजबूर कर यह साबित कर दिया है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत है तथा भारत में लोकतंत्र को कोई खत्म नहीं कर सकता।
    आपने कहा है कि सरकार की हठधर्मिता से सिर्फ राष्ट्र को आर्थिक क्षति ही नहीं हुई है, बल्कि आंदोलन के दौरान शहीद हुए 700 से अधिक किसानों और लखीमपुर खीरी में मंत्री के बेटे द्वारा कुचल दिए गए किसानों की मौत भी इसी हठधर्मिता का परिणाम है। यदि सरकार अपनी कारपोरेटपरस्ती को छोडक़र किसानो के साथ संवाद कर तभी इन कानूनो को वापस ले लेती तो इन घरों के चिरागों को भी बुझने से बचाया जा सकता था।

    श्री मंत्री एवं कुशवाहा ने कानून वापसी को सरकार की हठधर्मिता की हार बताते हुए कहा है कि संसद में बिना बहस के पारित कराये गए इन कानूनों को वापस लेने का अधिकार भी संसद को है। सरकार को संसद में इन कानूनों को वापस लेना चाहिए और किसानों की बुनियादी मांग एमएसपी की गारंटी पर कानून बनाने और किसान व जनविरोधी बिजली बिल को वापस लेने की भी घोषणा करनी चाहिए।

  • सत्ता के लिए किसानों के सामने नतमस्तक हुई मोदी सरकार!

    सत्ता के लिए किसानों के सामने नतमस्तक हुई मोदी सरकार!

    सी.एस. राजपूत 

    खिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी गलती का अहसास हो ही गया। नये कृषि कानूनों के विरोध में एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को तमाम तरह से बदनाम करने के बाद भी जब आंदोलन तुड़वाया न जा सका। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार दिखाई लेनी लगी तो भाजपा को समझ में आ गया है कि किसानों ने पंगा लेना उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। २९ नवम्बर को हो शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के ५०० किसानों के दिल्ली में घुसाने के ऐलान से केंद्र सरकार और बौखला गई। दरअसल किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा के हाथ से उत्तर प्रदेश निकलने का फीड बैक आरएसएस की खुफिया टीम से मिल रहा था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आतंरिक विवाद भी लोगों के बीच पहुंचने लगा था। उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नये किसान वापस लेने के अलावा कोई चारा दिखाई न दिया तो आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व पर देश को संबोधित करते हुए किसानों से माफी मांगते हुए नये किसान कानून वापस लेने का फैसला लिया।
    दरअसल नये कृषि कानूनों में जहां कॉरपोरेट घरानों को खाद्यान्न के भंडारण की छूट दी गई थी वहीं कांट्रेक्ट खेती में किसानों की जमीन हथियाने की आशंका किसान नेताओं ने व्यक्त की थी। अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने की नीति पर चल रही केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन को भी बदनाम करने के पूरे हथकंडे अपनाये। यहां तक कि २६ जनवरी को ट्रैक्टर परेड में लालकिला प्रकरण में किसानों को आतंकवादी तक कहा गया। किसान आंदोलन में पाकिस्तान, चीन से फंडिंग होने का भी आरोप लगाया गया। किसानों को आतंकवादी, नक्सली, देशद्रोही जाने क्या-क्या कहा गया। मतलब किसी भी कीमत पर केंद्र सरकार किसान आंदोलन को खत्म करने चाहती थी। उत्तर प्रदेश में केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष पर अपनी गाड़ी से कुचलकर किसानों की हत्या करने का आरोप भी है, जिसके चलते वह जेल में बंद हैं। बांसगांव के सांसद कमलेश मिश्रा के करीबी रामवृक्ष यादव ने अपने समर्थकों के साथ दीपक गुप्ता नाम के एक युवक के साथ गाली-गलोच करते हुए उसके साथ मारपीट की। उत्तर प्रदेश में ऐसा लगने लगा था कि जैसे केंद्र सरकार में बैठे भाजपा के लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नीचा दिखाने मंे लगे हैं। गत दिनों सुल्तानपुर में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन पर भी मोदी औेर योगी में आंतरिक विवाद की तस्वीरें मार्केट में आई। एक तस्वीर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे चलते दिखाई दिये। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश चुनाव में नये कृषि कानून भाजपा के खिलाफ जा रहे थे। अब किसान कानून वापस लेने के ऐलान के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार गन्ने के बकाया भुगतान पर भी फोकस कर रही है। मतलब गन्ना किसानों को उनके गन्ने के बकाया भुगतान भी होने वाला है।
    दरअसल केंद्र सरकार जहां किसानों की लागत के डेढ़ गुणे मूल्य पर विफल साबित हुई वहीं २०२२ में किसानो की आय दोगुनी करने के मामले में भी पिछड़ती होती प्रतीत हो रही है। कई राज्यों में हुए उप चुनाव की हार ने भी भाजपा को चेहरा दिखाया है। अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड समेत पांच राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी किसान आंदोलन का असर पड़ने की भी आशंका भाजपा को सता रही थी। यही वजह है कि किसानों की सहानुभूति बटोरने के लिए भाजपा ने नये किसान कानून वापस लिये हैं। जमीनी हकीकत तो यह है कि हर पार्टी बस किसानों के वोट बटेारने की राजनीति करती है। किसानों के लिए योजनाएं तो बहुत चलाई जा रही हैं पर उन योजना का फायदा या तो मंत्री और नौकरशाह उठाते हैं या फिर बिचौलिये। किसानों को तो बस ठगा ही जाता रहा है। दरअसल शीर्षस्थ उद्योगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी ने खेती से संबंधित हजारों करोड़ के खुदरा व्यापार पर अपनी निगाही गड़ाई हुई थी। यही वजह थी कि नये कृषि कानून बनने से पहले ही अडानिी ग्रुप ने खाद्यान भंडारण के लिए अपने गौदाम बना लिये थे।

  • उत्तर प्रदेश के लिए मोदी ने वापस लिए नए किसान कानून!

    उत्तर प्रदेश के लिए मोदी ने वापस लिए नए किसान कानून!

    सी.एस. राजपूत   
    शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला लिया है। बाकायदा  उन्होंने किसानों से माफी मांगी है। एक साल से ज्यादा लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन के आगे मोदी सरकार ने झुकते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। पीएम मोदी ने किसानों से क्षमा मांगते हुए यह ऐलान किया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह शायद वह किसानों को समझा नहीं पाए। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महीने के अंत में शुरू हो रहे संसद सत्र में तीनों कृषि कानून वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि किसान अब अपने घर और खेतों को लौट जाएं।
    प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुपर्व के मौके पर देश को संबोधित करते हुए कहा कि वह किसानों को समझा नहीं पाए। इसीलिए कानून वापस ले लिए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि कानूनों का उद्देश्य पवित्र था और यह किसानों के हित में था। पीएम मोदी ने कहा कि बहुत सारे वैज्ञानिकों, किसान संगठनों ने इस कानूनों का स्वागत भी किया था।
    द न्यूज 15 ने अपने न्यूज चैनल के साथ ही वेब पोर्टल पर भी नये कृषि कानून के चलते उत्तर प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के उलटफेर करने और 29 नवम्बर को शीतकालीन सत्र के शुरू होते ही दिल्ली सीमा पर बवाल होने का लेख प्रमुखता से प्रकाशित किया था। किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने बिना अनुमति के पांच सौ किसान दिल्ली में घुसाने की बात की थी।
    प्रधानमंत्री का देश के नाम संबोधन खत्म होने के तुरंत बाद कृषि क़ानून वापस लेने के उनके ऐलान पर टीवी चैनलों पर नेताओं की प्रतिक्रियाएं आने लगीं। बीजेपी का कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया। विनय कटियार और अनिल विज जैसे कुछ नेता ही बोलते दिखे। कटियार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कुछ सोच कर ही फैसला लिया होगा। विज बोले- अब किसानों को अपने घर जाकर नियमित काम में लगना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक ने ट्वीट करते हुए लिखा कि झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए।  वहीं यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बी वी श्रीनिवास ने ट्वीट करते हुए लिखा कि किसानों की जीत, तानाशाह की हार। आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के फैसले पर कहा कि किसानों व किसान आंदोलन को बधाई। निरंकुश सरकार को आपके एक साल लंबे अहिंसक आंदोलन ने झुकने को मजबूर कर दिया।
    वहीं आप सांसद संजय सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ये मोदी के अन्याय पर किसान आंदोलन की जीत ढेरों बधाई। भारत के अन्नदाता किसानों  पर एक साल तक घोर अत्याचार हुआ। सैंकड़ों किसानों की शहादत हुई। अन्नदाताओं को आतंकवादी कह कर अपमानित किया। इस पर मौन क्यों रहे मोदी जी? देश समझ रहा है चुनाव में हार के डर से तीनों काला क़ानून वापस हुआ।

  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान!

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान!

    सी.एस. राजपूत  
    त्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल चुनावी दंगल में उतर चुके हैं। चाहे सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी हो, विपक्ष में बैठी सपा हो, बसपा हो, कांग्रेस हो या फिर छोटे-छोटे दल सभी ने अपने दांव पेंच आजमाने शुरू कर दिए हैं, वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश के सभी मतदाताओं की भूमिका इन चुनाव में महत्वपूर्ण है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर बड़ा दांव लगा है। नए कृषि कानूनों के विरोध और गन्ने के बकाया भुगतान को लेकर संघर्षरत ये किसान मोदी और योगी सरकार पर बड़े आक्रामक हैं। केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर हैं। इस बात को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भली भांति समझ रहे हैं। यही वजह है कि उनके राज में भले ही चार से साल से गन्ने का मूल्य न बढ़ा हो पर चुनाव के करीब आते देख योगी आदित्यनाथ ने एक मुश्त गन्ने का मूल्य 25 रुपए बढ़ाया है।
    किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत के आंसू प्रकरण के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर  उन्होंने बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई हैं। लखीमपुर कांड में राकेश टिकैत के योगी सरकार के साथ किये गए सहयोग को भले ही उनके मैनेज होने के रूप में देखा गया हो पर टिकैत फिर से भाजपा पर आक्रामक हैं। वह जहां 22 नवम्बर को अपने संगठन भाकियू को साथ लेकर लखनऊ में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं वहीं 29 नवम्बर को ट्रैक्टर मार्च निकालने जा रहे हैं वह भी बिना अनुमति के। मतलब यदि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कृषि कानूनों और गन्ना किसानों के बारे में मोदी और योगी सरकार ने कुछ न किया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान चुनाव में योगी बड़ा उलटफेर कर सकते हैं।
    दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर कभी चौधरी चरण सिंह की पकड़ थी। उनके बाद काफी हद तक उन बेटे अजित सिंह की पकड़ रही।  2012 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से 38 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने  मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बदले राजनीतिक माहौल की वजह से साल 2014 के आम चुनाव में क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की। 2019 में भी इस क्षेत्र में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया।   लेकिन इस बार किसान विशेषकर जाट समुदाय बीजेपी से नाराज़ नज़र आ रहा है। बता दें कि 2019 के आम चुनाव तक बीजेपी को किसानों का समर्थन मिला था. लेकिन पिछले दो सालों से जाट समुदाय धीरे-धीरे बीजेपी से दूर हटता दिख रहा है।

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों में जाट समुदाय राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावशाली माना जाता है और बीजेपी साल 2013 के बाद से लगातार इस समुदाय को अपने साथ रखने की कोशिशें करती रही है। इन्हीं कोशिशों के दम पर बीजेपी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 की अपेक्षा बेहतरीन प्रदर्शन किया। लेकिन गन्ना किसानों की समस्याओं और किसान आंदोलन की वजह से अब यह समुदाय बीजेपी से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है।

  • यूपी में बाघ के हमले से एक किसान की मौत

    यूपी में बाघ के हमले से एक किसान की मौत

    लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) | लखीमपुर खीरी में दुधवा बफर जोन के अंतर्गत मैलानी रेंज के जंगलों के पास एक बाघ ने 52 वर्षीय किसान आशा राम की हत्या कर दी। उसका आंशिक रूप से खाया हुआ शव बुधवार को रिजर्व फारेस्ट के पास कटरा घाट के एक इलाके से बरामद किया गया।

    मृतक सोमवार दोपहर से लापता था, जब वह अपने पालतू जानवरों के लिए चारा लेने के लिए साइकिल से खेतों में गया था। मैलानी रेंज वन अधिकारी और संसारपुर पुलिस चौकी प्रभारी प्रवीण कुमार मौके पर पहुंचे। दुधवा बफर जोन के उप निदेशक डॉ. अनिल कुमार पटेल ने आशा राम को बाघ द्वारा मारे जाने की पुष्टि की है।

    उन्होंने कहा कि मौके पर बाघ के पैर के निशान मिले हैं और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।

    आशा राम सोमवार दोपहर खेतों में गया था और देर शाम तक जब वह नहीं लौटा तो उसके परिजनों ने आसपास के इलाकों में उसकी तलाश शुरू की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।