किसान आंदोलन पर मोदी सरकार फिलहाल भले ही नरम नजर आ रही हो पर उसका रवैया आंदोलन के प्रति ठीक नहीं रहा है। यही वजह है कि अभी भी मोदी सरकार के किसानों की मांगों को पूरा करने में संशय बना हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अगले साल पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए ही यह सब किया जा रहा है। चुनाव के बाद फिर से यह मामला गरमा जाए।
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किसानों की मांगें पूरी होने में अभी भी हैं झोल !
जो किसान मोदी सरकार के सभी मांगें मानने पर खुश हो रहे हैं उन्हें जरा किसान आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के रवैये की भी समीक्षा कर लेनी चाहिए। इसी सरकार की शह पर किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। २६ जनवरी को ट्रैक्टर मार्च को तिरंगे से जोड़कर किसानों को देशद्रोही साबित करने की कोशिश की गई। एक साल तक गर्मी, सर्दी और बरसात झेलने वाला किसान आंदोलन सरकार को विपक्ष दिखाई देता रहा। सरकार और सरकार के समर्थक आंदोलन को फर्जी बताते रहे। ७०० से ऊपर किसान आंदोलन में दम तोड़ गये पर सरकार में बैठे किसी नेता ने शोक व्यक्त तक नहीं किया। तो क्या अचानक मोदी सरकार का मन बदल गया है ? क्या सरकार को किसानों की चिंता सताने लगी है ? क्या सरकार किसानों की पीड़ा समझने लगी है ?
जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार तो सरकार को आरएसएस का हुकुम बजाना पड़ रहा है। दरअसल आरएसएस की ग्राउंट रिपोर्ट यह है कि किसान आंदोलन लगातार भाजपा को नुकसान पहुंचा रहा है। आने वाले चुनाव में किसान आंदोलन उलट-फेर कर सकता है। यही वजह रही कि मोदी सरकार ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल किसानों की सभी मांगें मानने की रणनीति बनाई है। वैसे भी सरकार के वादे और सरकार के काम के बारे में सब कुछ उजागर हो चुकाहै। मोदी सरकार यानी कि भाजपा हर हाल में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है। विशेषकर उत्तर प्रदेश मे। उत्तर प्रदेश में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैली में जुट रही भीड़ ने भाजपा की बेचैनी को और बढ़ा दिया है। भाजपा और आरएसएस की चिंता यह है कि इन विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा हार गई तो २०२४ के लोकसभा चुनाव में इसका सीधा असर पड़ेगा। यही वजह है कि भाजपा इन विधानसभा चुनाव को जीतकर लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनाना चाहती है। भले ही उसको फिलहाल कुछ भी करना पड़े। नहीं तो जो सरकार आंदोलित किसानों को गलत और नये कृषि कानूनों को सही बताती रही वह सरकार ऐसे ही अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नये कृषि कानूनों को वापस लेते समय आंदोलित किसानों को कुछ किसान बोलना यह दर्शाता है कि सरकार ने यह फैसला बड़े दबाव में लिया है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने किसी किसी वादे पर खरा नहीं उतर पाये हैं। चाहे २०१४ में विदेश से इतना काला काला धन लाने का वादा हो जिसमें हर भारतीय के खाते में १५ लाख रुपये आ जायें। चाहे हर साल २ करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा हो या किसानों की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलाने का। ऐसे में सरकार का किसानों की सभी मांगें मानना फिलहाल आंदोलन को खत्म कराकर चुनाव के लिए माहौल बनाना प्रतीत हो रहा है। सरकार किसानों पर दर्ज मुकदमों औेर एमएसपी पर कानून मामले में फसलों को लेकर पेंच फंसा सकती है। वैसे भी लालकिले पर तिरंगे के अपमान जैसे कितने मामले ऐसे हैं जिन पर वापस लेने पर विवाद हो सकता है। इन मामलों में सरकार को अपने ही घिरने का अंदेशा है। एमएसपी कानून पर अलग से पेंच हैं।
दरअसल पंजाब और हरियाणा में एमएसपी होने की वजह से इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के किसानों को पंजाब और हरियाणा के किसानों से अलग करना चाहते थे। काफी हद तक हुआ भी यही। मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद पंजाब के कई जत्थे घर लौटने को तैयार होने लगे। मोदी सरकार को किसान आंदोलन की यह कमजोरी समझ में आ गई। मोदी सरकार के लिए आंदोलन को तुड़वाना का यह सही अवसर था, जिसका फायदा उसने उठाया। फिलहाल मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा की सभी मांगें मान ली हैं। अब देखना यह है कि मोर्चा ने जो ५ नेताओं की कमेटी बनाई है यह मांगों को कितने प्रभाव से अमली जामा पहनवाने का दम रखती है। वैसे राकेश टिकैत का इस कमेटी में न होना किसान आंदोलन में राजनीति को दर्शाता है। इसे सरकार की रणनीति भी कहा जा सकता है कि प्रधनामंत्री नरेंद्र मोदी के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐेलान के बाद किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत लगातार कमजोेर होते नजर आए। यहां तक कि संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से बात करने के लिए जो ५ नेताओं की कमेटी बनाई उसमें भी राकेश टिकैत नहीं हैं। यही सब कारण रहे कि प्रधानमंत्री के नये कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन को तेज करने के लिए सिंघु बार्डर पर असमंजस तो गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनती रही। दरअसल एमएसपी गारंटी कानून की मांग गाजीपुर बार्डर से ही उठ रही थी। यही वजह रही कि सरकार के सभी मांगें मान लेने के बाद भी राकेश टिकैत कागज आ जाने के बाद घर वापसी की बात करते रहे। राकेश टिकैत सरकार के खेल को समझ रहे हैं। राकेश टिकैत के इस रुख से तो यह साबित होता है कि गाजीपुर बार्डर से आंदोलन समाप्त होने में अभी समय लगेगा। वैसे भी वह कांग्रेस का हवाला देेकर नये ट्रैक्टर की मांग कर चुके हैं।नये कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन को तेज करने के लिए सिंघु बार्डर पर असमंजस तो गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनती रही। दरअसल एमएसपी गारंटी कानून की मांग गाजीपुर बार्डर से ही उठ रही थी। यही वजह रही कि सरकार के सभी मांगें मान लेने के बाद भी राकेश टिकैत कागज आ जाने के बाद घर वापसी की बात करते रहे। राकेश टिकैत सरकार के खेल को समझ रहे हैं। राकेश टिकैत के इस रुख से तो यह साबित होता है कि गाजीपुर बार्डर से आंदोलन समाप्त होने में अभी समय लगेगा। वैसे भी वह कांग्रेस का हवाला देेकर नये ट्रैक्टर की मांग कर चुके हैं।
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किसानों की सभी मांगें मानने को मजबूर हुई मोदी सरकार
३७८ दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के सामने आखिरकार मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा। मोदी सरकार ने किसानों की सभी मांगें मान ली हैं। किसान भी ११ दिसम्बर से अपने घरों को लोैट रहे हैं। आज किसानों ने अपनी जीत पर जश्न मनाया।
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दिल्ली की सीमाओं से मोर्चे होंगे वापस, किसान आंदोलन ‘खत्म’ नहीं बल्कि होगा ‘स्थगित’
नई दिल्ली, कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन पर गुरुवार को एक बड़ा फैसला आने की उम्मीद है। केंद्र की ओर से दोबारा भेजे गए मसौदा प्रस्ताव पर किसानों ने अपनी सहमति जाहिर कर दी है। एसकेएम मसौदे पर आधिकारिक पुष्टि मांग आंदोलन पर अंतिम फैसला लेने की बात कर रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा की गई बैठक में इस बात को भी साफ कर दिया गया है कि, आंदोलन समाप्त नहीं किया जाएगा बल्कि उसे स्थगित किया जाएगा, एमएसपी पर किसानों की लड़ाई जारी रहेगी।
किसानों के मुताबिक, सरकार की ओर से इन सभी मांगों पर फॉर्मल लेटर भी जल्द आने की संभावना है। जिसके बाद गुरुवार 12 बजे मोर्चा बैठक कर किसान आगे की रणनीति सबके सामने रखेगा।
वहीं अपनी इन मांगों के अलावा किसान लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की भी लगातार मांग कर रहे थे। लेकिन सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर इसको लेकर कोई चर्चा नहीं की गई।
लेकिन किसान नेताओं के मुताबिक, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है इसलिए जब तक वहां से फैसला नहीं हो जाता, हम इसपर कुछ नहीं कह सकते।
दरअसल सरकार द्वारा दूसरी बार भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया कि, सरकार ने किसान आन्दोलन के दौरान हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में हुई एफआईआर को तुरंत प्रभाव से रद्द करने की बात मानी है। वहीं एमएसपी पर बनने वाली कमेटी पर भी एसकेएम के प्रतिनिधि होंगे।
साथ ही इलेक्ट्रीसिटी बिल पर भी एसकेएम प्रतिनिधियों से बात के बाद ही सरकार संसद में पेश करेगी। इसके अलावा मुआवजे पर भी सरकार ने किसानों को सहमती दे दी है।
दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा, सरकार की ओर से भेजे गए मसौदे प्रस्ताव पर सहमति बन गई है। सरकर की ओर से इस संबंध में फॉर्मल लेटर मिलने के बाद गुरुवार एक किसान नेताओं की बैठक होगी। जिसमें आंदोलन को स्थगित करने को लेकर कोई निर्णय लिया जाएगा।
दरअसल संयुक्त किसान मोर्चा कृषि कानून वापसी के बाद भी दिल्ली की सीमाओं पर बने रहे और सरकार के सामने कुछ अन्य मांगों को रखा, उनमें सबसे अहम एमएसपी की गारंटी की मांग है।
वहीं किसान आंदोलन के दौरान जिन किसानों पर दिल्ली, यूपी और हरियाणा में मुकदमे दर्ज किए गए हैं, (धारा 302 और 307 के केस छोड़कर) उन्हें वापस लेना भी शामिल है।
साथ ही आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा दिए जाने की मांग भी किसानों ने की है। वहीं बिजली बिल 2020 को रद्द किए जाने की मांग और पराली जलाने पर होने वाली कार्रवाई को रोकने की मांग भी की गई थी।
बुधवार को हुई संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक के बाद किसान जश्न मनाते दिखाई दिए वहीं मिठाई भी बांटी गई। बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने इसे अपनी एक बड़ी जीत बताया है।
दरअसल इस वर्ष प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की थी और संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया।
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किसान आंदोलन खत्म! कल होगी घोषणा
नई दिल्ली। कृषि कानून के बाद अब न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून बनाने की मांग पर अड़े किसानों का आंदोलन कल खत्म हो सकता है। बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए रिवाइज ड्रॉफ्ट पर किसानों की सहमति बन गई है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम बुधवार को कहा कि आज सरकार की तरफ से जो ड्राफ्ट आया है, उस पर हमारी सहमति बनी है। सरकार की ओर से फॉर्मल लेटर भी जल्द से जल्द आने की संभावना है। गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा ‘सरकार की ओर से भेजे गए रिवाइड ड्रॉफ्ट पर सहमति बन गई है।
सरकर की ओर से इस संबंध में फॉर्मल लेटर मिलने के बाद कल एक किसान नेताओं की बैठक होगी। जिसमें आंदोलन को स्थगित करने को लेकर कोई निर्णय लिया जाएगा।’बता दें कि तीन कृषि कानूनों को रद करने और एमएसपी पर काननू बनाने सहित दूसरे मुद्दों पर समिति गठित करने की घोषणा के बाद केंद्र ने पहली बार मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा के पास लिखित प्रस्ताव भेजा था। इसमें किसानों की सभी मांगों को मानने का जिक्र है, लेकिन मोर्चा के नेताओं ने उक्त प्रस्ताव का स्वागत करते हुए तीन प्रमुख आपत्तियों के साथ सरकार को वापस भेज दिया था।किसानों की तरफ से उम्मीद जताई गई है कि सरकार उनकी चिंताओं पर विचार कर बुधवार तक अपनी प्रतिक्रिया देगी। जिसके बाद अब सरकार की ओर से रिवाइज ड्रॉफ्ट किसानों के पास भेज दिया गया है। रिवाइज ड्रॉफ्ट पर किसानों की सहमति बन गई है। इसके बाद अब सरकार की ओर से फॉर्मल लेटर मिलेगा। -
हर हाल में किसान आंदोलन समाप्त कराना चाहती है मोदी सरकार
मोदी सरकार ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए हर हाल में किसान आंदोलन समाप्त कराने की रणनीति बनाई है। मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को बैठक का न्यौता भेजा है। सरकार की ओर से उनकी मांगें मानने की बात कही जा रही है। सरकार चाहती है कि किसान हर हाल में अपने घरों को लौट जाएं।
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किसानों का आंदोलन हुआ तेज़, बजाज की तीसरी मिल को भी कराया बन्द ! thenews15
लखीमपुर खीरी में किसानों का आंदोलन तेज होता जा रहा है किसानो की मांग है कि उनका बकाया भुगातन किया जाए मगर बजाज की मिलें किसानों का बकाया भुगतान नही कर रही है और गन्ना किसानों से लगा तार लेती जा रही है जिससे नाराज किसानों ने पहले बजाज की पलिया मिल में ताला डाल दिया था उसके बाद मिल पर मुकदमा दर्ज किया गया था उसके बाद गोला की बजाज शुगर मिल में भी किसानों ने ताला डाल दिया था तब छेत्रिय विधायक अरविंद गिरी ने बजाज मिल मालिक कुशाग्र बजाज पर मुकदमा दर्ज कराया
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जयंत चौधरी ने सरकार बनेगी तो सबसे पहले मेरठ में किसानों के लिए एक स्मारक हम बनाएंगे। TheNews15
जयंत चौधरी ने योगी सरकार पर औरंगजेब पर बात शुरू करते हैं और अंत में पलायन पर आ जाते हैं। पेपर दिला नहीं पाते। मजबूर होकर नौजवान दूसरे प्रदेश जाकर नौकरी ढूंढते हैं, योगी जी को ये पलायन नहीं दिखता। बाबा जी को गु्स्सा भी बहुत आता है। कभी मु्स्कराते नहीं हैं। जयंत ने कहा कि आज कल राजनीति में एक शब्द का प्रयोग बहुत होता है फायरब्रांड नेता… लेकिन ये फायरब्रांड नहीं हैं। एक साल किसानों का अपमान हुआ लेकिन भाजपा के किसी भी नेता की एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। ये फायरब्रांड कैसे हुए। उन्होंने कहा कि किसानों के मामले में भाजपा को दाढ़ी भी मुंडवानी पड़ी, नाक भी कटवानी पड़ी। #thenews15 #jayantchoudhary
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तो समाप्ति की ओर जा रहा है किसान आंदोलन !
सी.एस. राजपूत
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सरकार द्वारा भेजे गये ड्रॉफ्ट प्रपोजल पर चर्चा की और उन्होंने बताया कि कई मुद्दों पर सहमति बन गयी है जबकि कुछ पर स्पष्टीकरण की जरूरत है।
कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल शुरू हुआ किसान आंदोलन इन कानूनों को वापस लिये जाने के बाद संभवत: समाप्ति की ओर है। सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सरकार द्वारा भेजे गये ड्राफ्ट प्रपोजल पर चर्चा की और उसके बाद किसान नेता कुलवंत संधू ने कहा कि कई मुद्दों पर सहमति बन गयी है जबकि कुछ मुद्दों पर हमें स्पष्टीकरण की जरूरत है. उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन के भविष्य पर कल फैसला हो सकता है।
जानकारी के अनुसार संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सरकार द्वारा भेजे गये ड्रॉफ्ट प्रपोजल पर चर्चा की। किसान नेता कुलवंत संधू ने बताया कि केंद्र सरकार एमएसपी तय करने के लिए जो समिति बना रही है। उसमें संयुक्त किसान मोर्चा के पांच सदस्य शामिल होंगे, लेकिन उन्हें समिति के गठन पर कुछ और स्पष्टीकरण चाहिए, जिस पर हम सरकार से सवाल कर रहे है। इसके अलावा किसानों पर जो मुकदमा दर्ज किया गया है उसे भी वापस लिया जायेगा और किसानों को पंजाब मॉडल पर मुआवजा दिया जायेगा। साथ ही इन तमाम बिंदुओं पर सहमति बनने के बाद किसान आंदोलन वापस करने की घोषणा कर सकते हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में एमएसपी पर कानून बनाये जाने। किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने, आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिजनों को मुआवजा देने, पराली बिल को निरस्त करने, लखीमपुरखीरी मामले में मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त करने की मांग की गई।
सूत्रों के हवाले से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार सरकार की ओर से जो ड्रॉफ्ट किसानों को मिला है उसके अनुसार सरकार इस बात पर राजी है कि एमएसपी के मुद्दे को लेकर जो समिति बनायी जा रही है उसमें संयुक्त किसान मोर्चा के पांच सदस्य होंगे। साथ ही सरकार इस बात पर भी राजी है कि किसानों के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया गया है, उसे वापस ले लेगी और मुआवजा के मुद्दे पर भी सरकार राजी है. अजय मिश्रा के मुद्दे पर पेज फंसने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र से पहले पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लिये जाने की घोषणा कर दी गयी थी और सत्र के पहले दिन इन कानूनों को रद्द करने का बिल संसद से पास हो गया. बावजूद इसके अब तक किसानों का आंदोलन जारी है और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि जब तक एमएसपी पर उनकी बातें नहीं मानी जायेंगी वे आंदोलन करते रहेंगे। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या अब किसान आंदोलन समाप्त हो जायेगा? -
राहुल गांधी ने 500 मृत किसानों की सूची लोकसभा के पटल पर रखी
नई दिल्ली, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में शून्यकाल में किसानों को मुआवजा दिए जाने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने करीब 500 किसानों की एक सूची लोकसभा के पटल पर रखी और यह दावा किया कि यह किसान प्रदर्शन के दौरान मारे गए हैं।
सांसद ने लोकसभा में मंगलवार को कहा कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान करीब 700 किसानों की मौत हो गई है। इन किसानों के परिजनों को केंद्र सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाए। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार करीब 400 किसान परिजनों को पहले ही 5 लाख रुपये का मुआवजा दे चुकी है और उनमें से 152 किसान परिवारों को नौकरी भी दे चुकी है।
राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार ने पहले ही अपनी गलती स्वीकार कर ली है ऐसे में मुआवजा देने में क्या हर्ज है।
राहुल गांधी ने मंगलवार को लोकसभा में कहा, “मैंने 30 नवंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से पूछा था कि आंदोलन में कितने किसानों की मौत हुई थी? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मेरे पास इसकी कोई सूची या आंकड़ा नहीं है। यदि सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है तो फिर हमसे लिस्ट ले लें। मैं सदन में आंदोलन के दौरान मरे किसानों की पूरी सूची रख रहा हूं।”
राहुल गांधी ने कहा, पंजाब सरकार ने 400 किसानों के परिजनों को मुआवजा दिया है। इसके अलावा 152 किसानों के परिजनों को सरकारी नौकरी भी दी गई है। मेरे पास पूरी सूची है। इसके अलावा हमने हरियाणा के भी 70 किसानों की सूची तैयार की है। लेकिन आपकी सरकार कहती है कि आपके पास मारे गए किसानों की सूची ही नहीं है।