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  • Indian Army Lieutenant Rekha Singh : शहीद की पत्नी बनी लेफ्टिनेंट

    Indian Army Lieutenant Rekha Singh : शहीद की पत्नी बनी लेफ्टिनेंट

    Indian Army Lieutenant Rekha Singh

    Indian Army Lieutenant Rekha Singh : चीन की गलवान घाटी में हुई झड़प के दौरान शहीद हुए जवान की पत्नी भी मेहनत कर अब भारतीय सेना में शामिल होने जा रहीं है। रेखा जी ने पर्सनैलिटी और इंटेलिजेंस टेस्ट क्लीयर कर लिया है। जाएगा। 23 साल की रेखा देवी की नौ महीने तक ट्रेनिंग होगी। बताया जा रहा कि 28 मई से उनकी ट्रेनिंग चेन्नई में शुरू होने जा रही है जानिए पूरी कहानी –

    अपने पत्नी के शहीद हो जाने के बाद शोक में डुब जाने और किस्मत को कोसने की जगह मध्य प्रदेश रीवा की रेखा सिंह जी ने कड़ी मेहनत के बाद भारतीय सेना में अब लेफ्टिनेंट (Indian Army Lieutenant Rekha Singh) बन चुकी हैं। ये खबर तब सामने आ रही जब भारत में 2017 से 2022 तक करीब 2 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी है साथ ही महिलाएं अब नौकरी के लिए अप्लाई भी नही कर रहीं हैं ऐसे समय में रेखा जी कि ये उपलब्धि एक बड़ी उम्मीद की रोशनी लाता हैं। रेखा अकेली नहीं है

    मां- बाप के साथ सब्जी बेचकर सिविल जज बनी अंकिता नागर मध्यप्रदेश के इंदौर से ही आती हैं अंकिता के मां-बाप को 3 दिनों तक भरोसा नहीं हुआ जब उन्होने ये बताया कि उन्होने सिविल जज की परीक्षा पास कर ली हैं।

    शादी के 7 महीने बाद पति शहीद –

    रेखा तथा दीपक जी की शादी 30 नवंबर 2019 को हुई। दीपक सिंह जी मनगवां के फरेहता गांव (रीवा) के निवासी थे और रेखा जी (Galwan Valley Martyred Wife Rekha Singh) रायपुर कचुलियान ब्लॉक के जोगनहाई गांव की रहने वाली हैं। दीपक और रेखा शादी के बाद केवल एक बार ही मिल पाए थे। दीपक होली की छुट्टी पर घर आए थे उसी दौरान वे दोनो मिल थे। उसी दौरान दीपक जी ने रेखा जी से कश्मीरी शॉल और गहने लाने का वादा किया था। शहीद होने के करीब 15 दिन पहले दीपक जी ने आखिरी बार अपने घर बात की थी।

    Indian Army Lieutenant Rekha Singh, Galwan Valley Martyred Wife Rekha Singh, Lance Naik Deepak Singh Wife Rekha Singh
    शहीद दीपक सिंह और उनकी पत्नी रेखा सिंह जी

    15 जून 2020 को लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प हुई। दीपक सिंह वहां जी नर्सिंग सहायक की ड्यूटी कर रहे थे। भारतीय सैनिकों की चीनी सैनिकों के साथ कड़ा मुकाबला हुआ। भारतीय सैनिक ने चीनी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया।

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    दीपक जी ऑपरेशन के दौरान घायलों को इलाज मुहैया करा रहे थे।उनको भी गंभीर चोटें आई थीं। फिर भी 30 सैनिकों की जान बचाई। इसके बाद दीपक मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।

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    शहीद दीपक को मिला राष्ट्रपति द्वारा  वीर चक्र –

    शहीद होने के दीपक सिंह जी को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया  गया।  24 नवंबर 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में शहीद दीपक जी की पत्नी रेखा सिंह जी (Galwan Valley Martyred Wife Rekha Singh) को वीर चक्र दिया। जहां पर शहीद के पिता गजराज सिंह और भाई प्रकाश सिंह भी कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इनका सम्मान भी राष्ट्रपति की ओर से किया गया था।

    शहीद दीपक सिंह की पत्नी रेखा सिंह जी को वीर चक्र प्रदान करते राष्ट्रपति

    रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद के परिजन के साथ डिनर किया था। साथ ही तत्कालीन CDS शहीद बिपिन रावत भी गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिकों की याद में टी-पार्टी में सभी से मिले थे। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री CM शिवराज सिंह चौहान ने शहीद के परिजन को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि प्रदान की थी।

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    बताया जाता है कि शहीद दीपक जी अपने बड़े भाई से प्रेरणा लेकर बचपन से ही सेना में भर्ती होने का तय कर लिया था और वे इस काम में सफल भी हुए थे। अब शहीद दीपक शर्मा की पत्नी रेखा सिंह जी अब लेफ्टिनेंट (Indian Army Lieutenant Rekha Singh) बनेंगी। रेखा जी ने न केवल दीपक जी के सपने को पूरा किया बल्कि समाज के ताने बाने से आगे जा कर सभी को गलत साबित कर इस मुकाम को हासिल किया।

  • भारतीय राजनीति का मैला आंचल

    भारतीय राजनीति का मैला आंचल

    प्रेम सिंह
    भारतीय राजनीति का अधिकांश आंचल सांप्रदायिकता से मैला हो चुका है। देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को देख कर लगता है कि जिस तरह से राजनीतिक और बौद्धिक ईलीट के बीच नवउदारवाद पर सर्वसम्मति है, उसी तरह सांप्रदायिक राजनीति अथवा राजनीतिक सांप्रदायिकता पर भी सर्वसम्मति बन चुकी है। धर्मनिरपेक्ष कही जाने वाली राजनीतिक पार्टियां सांप्रदायिक भाजपा की होड़ में सांप्रदायिकता का सहारा लेती हैं, तो यह ठीक ही कहा जाता कि सांप्रदायिकता के पिच पर वे भाजपा को नहीं हरा सकतीं। हालांकि ऐसा कहते वक्त यह चिंता नहीं व्यक्त की जाती कि धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली पार्टियों द्वारा सांप्रदायिकता का सहारा लेने से देश की पूरी राजनीति सांप्रदायिक होती जा रही है। इस मामले में दूसरी बात यह देखने में आती है कि धर्मनिरपेक्ष नेता और विद्वान आरएसएस/भाजपा के हिंदुत्व के मुकाबले हिंदू धर्म की दुहाई देते पाए जाते हैं। गोया हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करना सांप्रदायिक आचरण नहीं है!
    संविधान के परिप्रेक्ष्य से सांप्रदायिकता की सीधी परिभाषा है। धर्म का राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए इस्तेमाल सांप्रदायिकता है। धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल हिंदुत्व के नाम पर किया जाए, नरम हिंदुत्व के नाम पर किया जाए या हिंदू धर्म के नाम पर किया जाए या अल्पसंख्यकों के वोट हासिल करने के लिए किया जाए, सांप्रदायिक राजनीति की कोटि में आता है। अल्पसंख्यक नेताओं द्वारा उनके धर्मों के नाम पर की जाने वाली राजनीति भी सांप्रदायिक राजनीति है। राजनीति की मुख्यधारा में सक्रिय शिरोमणि अकाली दल, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, शिवसेना, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तहादुल मुसलमीन आदि पार्टियों/नेताओं की राजनीति सीधे-सीधे सांप्रदायिक राजनीति है। अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता बहुसंख्यक सांप्रदायिकता से कम खतरनाक है, ऐसा कहने से सांप्रदायिक राजनीति के फैलाव की सच्चाई निरस्त नहीं होती।
    मण्डल बनाम कमण्डल की बहस में जातिवादी राजनीति को सांप्रदायिक राजनीति की काट माना गया था। अब तक यह समझ आ जाना चाहिए कि जातिवाद की राजनीति अंतत: धर्म से ही जुड़ी होती है। अर्थात वह सांप्रदायिक राजनीति का ही एक रूप है। नेताओं द्वारा राजनीतिक अभियान में हाथी को गणेश, ब्रह्मा-विष्णु-महेश बताना, परशुराम का फरसा और कृष्ण का सुदर्शन चक्र लहराना जैसे कार्यकलाप इसके सीधे प्रमाण हैं। सांप्रदायिक राजनीति की बिसात पर राहुल गांधी जब अपनी जाति/कुल बताने के लिए जनेऊ का प्रदर्शन करते हैं, अथवा प्रियंका गांधी रैलियों में मस्तक पर चंदन पोतती हैं, तो अगड़ा-पिछड़ा विभेद निरर्थक हो जाता है। सांप्रदायिक राजनीति पर सर्वानुमति का ही नतीजा है कि पिछड़े प्रधानमंत्री और दलित राष्ट्रपति की ‘हिंदू-राष्ट्र’ के नायक के रूप में सहज स्वीकृति है।
    ध्यान देने की जरूरत है कि भारत के प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों द्वारा स्थापित एवं पोषित आम आदमी पार्टी (आप) सांप्रदायिक राजनीति को आरएसएस/भाजपा से आगे बढ़कर गहरा और दीर्घजीवी बनाने में लगी है। सांप्रदायिक राजनीति के रास्ते पर अन्य प्रचलित युक्तियों के साथ आप के कुछ नूतन प्रयोग देखे जा सकते हैं। मसलन, चुनावी जीत पर और पार्टी कार्यालयों में मंत्रोच्चार के साथ हवन का आयोजन, बड़ी संख्या में होने वाले धार्मिक प्रवचनों में पार्टी की सीधे हिस्सेदारी, मोहल्लों में ‘सुंदर कांड’ के कार्यक्रम आयोजित करने का सरकारी फैसला, सरकारी खर्च पर वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थाटन कराने की सुविधा, विधानसभा जैसी जगह पर भी रामलीला आदि धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन, अयोध्या में बनने वाले भव्य राममंदिर की प्रतिकृति (रेप्लिका) को सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों/अभियानों का हिस्सा बनाना आदि-आदि।
    सत्ता के खेल में शामिल भाजपा समेत सभी पार्टियां का किसी न किसी विचारधारा को मानने का दावा करती हैं। आप घोषित रूप से राजनीति में विचारधारा का निषेध करने वाली पार्टी है। अन्य पार्टियों ने नवउदारवाद के प्रभाव में धीरे-धीरे संविधान की विचारधारा का त्याग किया है। आप चूंकि सीधे नवउदारवाद की कोख उत्पन्न हुई है, इसलिए शुरू से ही संविधान की विचारधारा के प्रति नक्कू रवैया रखती है। शुरू में प्रभात पटनायक और एसपी शुक्ला जैस विद्वानों ने आप के संविधान-विरोधी रुख की आलोचना की थी। लेकिन वह सिलसिला आगे नहीं बढ़ा। धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील विद्वानों, खास कर कम्युनिस्टों, की तरफ से आप सुप्रीमो को पूरी छूट है – वह बहुसंख्यक सांप्रदायिकता का कुशल प्रबंधन करते हुए, पंजाब में रेडिकल तत्वों के साथ मीजान बिठा सकता है; देश की सबसे बड़ी अकलियत को मुट्ठी में रख सकता है; जब चाहे आरएसएस/भाजपा के साथ और जब चाहे अन्य किसी पार्टी के साथ संबंध बना और बिगाड़ सकता है।
    पारिवारिक नेतृत्व के जिद्दीपन की बदौलत कांग्रेस का तेजी से क्षरण जारी है। आप कांग्रेस की जगह लेने की सुनियोजित रणनीति पर चल रही है। ऐसा होने पर देश की केंद्रीय राजनीति दक्षिणपंथ बनाम दक्षिणपंथ हो जाएगी; और नवउदारवादी नीतियों को निर्विघ्न गति मिलेगी। दुनिया में होने वाले दक्षिणपंथी उभार से इस परिघटना को बल मिलेगा। इस तरह निगम भारत और हिंदू-राष्ट्र के मिश्रण से ‘नया भारत’ अंतत: तैयार हो जाएगा। आरएसएस/भाजपा पर दिन-रात हल्ला बोलने वाले यह सच्चाई मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि नवउदारवाद और सांप्रदायिक फासीवाद एक-दूसरे के कीटाणुओं पर पलते हैं।
    बहरहाल, सांप्रदायिक राजनीति के फैलाव के हमारे राष्ट्रीय जीवन पर कई प्रभाव स्पष्ट हैं: एक, सांप्रदायिक राजनीति लोकतंत्र के रथ पर चढ़ कर विचरण करती है। समझा जा सकता है कि सांप्रदायिकता का मैला ढोते हुए भारतीय लोकतंत्र का चेहरा बुरी तरह विद्रूप हो गया है। दो, संवैधानिक संस्थाएं मसलन चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, कार्यपालिका आदि सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ वास्तव में कारगर कदम नहीं उठा सकती हैं। यानी सांप्रदायिक राजनीति पर सर्वसम्मति होने के बाद संवैधानिक संस्थाओं से शिकायतों के निस्तारण की उम्मीद करना अपने को धोखे में रखना है। तीन, नफरती अभियान के विभिन्न रूप – भीड़ हत्याएं, नफरत भरे बयान, सुल्ली डील्स-बुल्ली बाई एप्पस, हिंदू ट्राड  आदि – प्राथमिक रूप से देश में बेरोक चलने वाली सांप्रदायिक राजनीति की देन हैं। चार, सांप्रदायिक राजनीति के प्रभाव से नेता ईश्वर और देवी-देवताओं के अवतार और रक्षक एक साथ हो गए हैं। पांच, धर्म अपने सर्वोत्तम रूप में हमेशा से दर्शन, कला, करुणा और सामाजिक उल्लास का अक्षय स्रोत रहा है। सांप्रदायिक राजनीति धर्म के उस स्वरूप को निर्लज्जता से विनष्ट करती जा रही है।

    (लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फ़ेलो हैं)