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  • दिल्ली विश्वविद्यालय : 28 कॉलेजों की गवर्निग बॉडी को मिली मंजूरी

    दिल्ली विश्वविद्यालय : 28 कॉलेजों की गवर्निग बॉडी को मिली मंजूरी

    नई दिल्ली| दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी) ने विश्वविद्यालय के 28 कॉलेजों की गवर्निग बॉडी को मंजूरी दे दी है। ये सभी 28 कॉलेज दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं। दिल्ली सरकार के ये कॉलेज बिना गवर्निग बॉडी के चल रहे हैं। इनमें से 20 से अधिक कॉलेज ऐसे हैं, जो बिना परमानेंट प्रिंसिपल के चल रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी) ने दिल्ली सरकार के वित्त पोषित 28 कॉलेजों की प्रबंध समिति (गवर्निग बॉडी) के नामों को मंजूरी दी है। पिछले तीन महीने से प्रबंध समिति के न होने से शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति संबंधी रोस्टर व गैर शैक्षिक पदों पर होने वाली नियुक्ति व पदोन्नति का कार्य रुका हुआ था।

    अब प्रबंध समिति के बनने से शैक्षिणक व गैर शैक्षिणक कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

    दिल्ली सरकार के वित्तपोषित 28 कॉलेजों की प्रबंध समिति का कार्यकाल दो बार तीन-तीन महीने का एक्सटेंशन देने के बाद 13 सितंबर 2021 को पूरा हो चुका था।

    दिल्ली सरकार दो बार विश्वविद्यालय प्रशासन को प्रबंध समिति के सदस्यों के नाम भेज चुकी थी, लेकिन डीयू व सरकार द्वारा कम नामों को लेकर गवर्निग बॉडी बनने में देरी हुई।

    डीटीए के अध्यक्ष व एकेडेमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि दिल्ली सरकार ने अपनी गवर्निग बॉडी बनाने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया।

    12 कॉलेजों के शिक्षकों की सैलरी रोक दी गईं। बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय व सरकार के बीच संवाद हुआ, जिससे कार्यकारी परिषद ने दिल्ली सरकार द्वारा भेजे गए 144 नामों पर अपनी मुहर लगा दी। दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा गवर्निग बॉडी की लिस्ट कॉलेजों को भेजने के बाद संभावना है कि दो तीन सप्ताह में 28 कॉलेजों में नए चेयरमैन व कोषाध्यक्ष बन जाएंगे।

    दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी) ने 288 सदस्यों के नामों की संस्तुति की है, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के 144 और दिल्ली सरकार के 144 सदस्य शामिल हैं।

    प्रत्येक कॉलेज में 5 सदस्यों के नाम दिल्ली विश्वविद्यालय और 5 दिल्ली सरकार की ओर से भेजे गए हैं। सांध्य कॉलेजों में सरकार व विश्वविद्यालय की ओर से एक एक नाम अतिरिक्त भेजा गया है।

    इसके अतिरिक्त प्रत्येक कॉलेज में डीयू के दो प्रोफेसरों के नाम, प्रिंसिपल व दो शिक्षक मिलाकर गवर्निग बॉडी बनती है। इस तरह से प्रात कॉलेजों में 15 सदस्य और प्रात व सांध्य कॉलेजों में 20 सदस्यीय प्रबंध समिति होती है।

    4 कॉलेजों में सरकार व विश्वविद्यालय की ओर से 6- 6 नाम भेजे गए हैं। इन कॉलेजों में मोतीलाल नेहरू कॉलेज, सत्यवती सहशिक्षा कॉलेज, शहीद भगत सिंह कॉलेज व श्री अरबिंदो कॉलेज है।

  • डीयू: ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट’ लागू, अब सिर्फ 12वीं के अंकों पर नहीं होंगे दाखिले

    डीयू: ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट’ लागू, अब सिर्फ 12वीं के अंकों पर नहीं होंगे दाखिले

    नई दिल्ली| दिल्ली विश्वविद्यालय में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की नीति लागू कर दी गई है। यानी अब दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए केवल 12वीं कक्षा के अच्छे अंक काफी नहीं है। बल्कि देश के इस सबसे बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय में अगले सत्र से दाखिले के लिए छात्रों को कॉमन एंट्रेंस टेस्ट भी अच्छे नंबरों के साथ पास करना होगा। शुक्रवार शाम दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की एक अहम बैठक बुलाई गई। इस बैठक में सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट को मंजूरी दे दी गई है। एग्जीक्यूटिव काउंसिल द्वारा मंजूरी प्रदान किए जाने के उपरांत अब यह स्पष्ट हो गया है कि अगले सत्र से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के इच्छुक छात्रों को कॉमन एंट्रेंस टेस्ट पास करना होगा। कॉमन एंट्रेंस टेस्ट और 12वीं में प्राप्त किए गए अंकों का को 50-50 फीसदी वेटेज दिया जाएगा।

    दरअसल केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय चाहता है कि आगामी सत्र से देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट’ के जरिए किए जाएं। इसके लिए आवश्यक तैयारियां भी शुरू कर दी गई है। देश भर के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को इस संबंध में आवश्यक दिशा निर्देश व संवाद किया गया है।

    ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट’ का आयोजन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा करवाया जाएगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह नई शिक्षा नीति के अंतर्गत आने वाले इस प्रावधान को लागू करने की इच्छा पहले ही जता चुके थे। कुलपति के प्रयासों के कारण ही पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल और अब एग्जीक्यूटिव काउंसिल में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के प्रावधान को मंजूरी दी गई है।

    शुक्रवार शाम बुलाई गई इस बैठक के दौरान एग्जीक्यूटिव काउंसिल के दो सदस्यों अशोक अग्रवाल और सीमा दास ने मौजूदा प्रारूप में सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट को लागू किए जाने का विरोध किया।

    दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय का अपना अलग ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम टेस्ट’ आयोजित किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय एवं यूजीसी द्वारा दिए गए निदेशरें के बाद अब अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय भी इस और तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि अगले शैक्षणिक सत्र 2022 -2023 से दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय समेत अन्य ऐसे सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिला केवल कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से संभव हो सकेगा।

    मौजूदा व्यवस्था के तहत अधिकांश विश्वविद्यालयों में 12वीं कक्षा में प्राप्त किए गए अंकों के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार की जाती है। छात्रों को अलग-अलग विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए अलग-अलग तिथियों पर संबंधित विश्वविद्यालय के फॉर्म भरने होते हैं। मनचाहे विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं मिल पाने पर छात्र उन विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों का रुख करते हैं जहां दाखिले के लिए सीटें शेष बची रह जाती हैं।

    दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अशोक अग्रवाल इस नए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में भी इसका पुरजोर विरोध किया। अग्रवाल के मुताबिक इस तरह का कॉमन एंटरेंस टेस्ट बिना तैयारी के लाया जा रहा है। इसमें कई खामियां हैं जिसके कारण गरीब बच्चों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। इसे लेकर अभी और चर्चा की जानी चाहिए जिसके बाद ही यह कॉमन एंट्रेंस टेस्ट अमल में लाया जा सकता है। अशोक अग्रवाल के मुताबिक इस नए प्रावधान से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए गला काट प्रतिस्पर्धा और अधिक बढ़ जाएगी। साथ ही कोचिंग सेंटर भी उभरने लगेंगे जिनकी पहुंच केवल समृद्ध छात्रों तक है।

  • डीयू एक्जीक्यूटिव काउंसिल: संघर्ष के बाद एडहॉक शिक्षिकाओं को मिला मातृत्व अवकाश

    डीयू एक्जीक्यूटिव काउंसिल: संघर्ष के बाद एडहॉक शिक्षिकाओं को मिला मातृत्व अवकाश

    नई दिल्ली| दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत सभी तदर्थ शिक्षकों और संविदा कर्मचारियों के अब मातृत्व अवकाश मिल सकेगा। शुक्रवार रात विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने तदर्थ शिक्षकों और संविदा कर्मचारियों के लिए सवैतनिक मातृत्व अवकाश की मांग को स्वीकार कर लिया। मातृत्व अवकाश की यह मांग लंबे समय से चली आ रही थी। तदर्थ शिक्षकों, संविदा कर्मचारियों के लिए लागू किया गया मातृत्व अवकाश डीयू और उसके कॉलेजों में कार्यरत हजारों महिला शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत है। अपनी इस मांग को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक लंबे समय से विभिन्न स्तर पर प्रयास करते रहे हैं।

    शिक्षकों के मुताबिक शुक्रवार को हुआ यह निर्णय सामूहिक और कई व्यक्तियों के निरंतर कार्य का परिणाम है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि इन युवा शिक्षकों को वास्तविक राहत और पेशेवर और शैक्षणिक विकास दिलाने के लिए काम करने वाले शिक्षकों के अवशोषण के लिए संसद के आदेश और यूजीसी विनियमों की मांग करने का आंदोलन जारी रहेगा।

    दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा कि यह हमारे कई वर्षों के सामूहिक, ²ढ़ निश्चयी और अथक संघर्ष का परिणाम है। शिक्षकों के इस मानव अधिकार से वंचित करने का अंत आखिरकार हो गया है। डीयू और उसके कॉलेजों में कार्यरत हजारों महिला शिक्षकों और गैर शिक्षण सहयोगियों के लिए सवैतनिक मातृत्व अवकाश की व्यवस्था एक बड़ी राहत है।

    वहीं प्रोफेसर नंदिता नारायण ने कहा कि हम डीयू प्रशासन से इस निर्णय को तुरंत लागू करने के लिए तुरंत सूचित करने का आह्वान करते हैं। शिक्षक समूह के हिस्से के रूप में हमारे निरंतर काम को इस संबंध में तब तक जारी रखने की आवश्यकता होगी जब तक कि तदर्थ शिक्षकों और अनुबंध कर्मचारियों के लिए सवैतनिक पितृत्व अवकाश भी स्थापित नहीं किया जाता है।

    दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठनों का कहना है कि सवैतनिक मातृत्व अवकाश की हमारी उपलब्धि सार्वजनिक उच्च शिक्षा को एक लोकतांत्रिक और समावेशी स्थान के रूप में संरक्षित और विकसित करने के हमारे संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके भीतर शिक्षण सीखने की प्रक्रिया विकसित हो सकती है। संघर्ष की इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में शिक्षक आंदोलन सही रोस्टर के अनुसार तदर्थ और अस्थायी शिक्षकों के अवशोषण के लिए संसद अधिनियम और यूजीसी विनियमन की पुरजोर मांग करते रहेंगे।

  • दिल्ली विश्वविद्यालय में डीयू, जेएनयू, जामिया के शिक्षकों का धरना

    दिल्ली विश्वविद्यालय में डीयू, जेएनयू, जामिया के शिक्षकों का धरना

    नई दिल्ली| दिल्ली विश्वविद्यालय में डीयू, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और राष्ट्रीय राजधानी के आसपास के कई शिक्षक और रिसर्चर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं। दरअसल यूजीसी द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में दो साल पहले सेकेंड ट्रांच के पदों के भरने के निर्देश दिए गए थे, बावजूद इसके कुछ कॉलेजों ने आज तक इन पदों पर नियुक्ति नहीं की है। धरना दे रहे शिक्षक अभिलंब इन नियुक्तियों को किए जाने की मांग कर रहे हैं।

    दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू जामिया और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र एवं शिक्षक इसके खिलाफ डीयू की आर्ट्स फैकल्टी पर अनिश्चित कालीन धरने पर हैं। शिक्षकों का यह धरना गुरुवार 16 दिसंबर से शुरू हुआ है। नियुक्तियां न किए जाने का विरोध कर रहे, नाराज शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय ने यदि तुरंत कोई कदम नहीं उठाया तो वे अनिश्चितकालीन धरना देंगे।

    दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स फोरम के तत्वावधान में ओबीसी एक्सपेंशन के सेकेंड ट्रांच (दूसरी किस्त) की बकाया शिक्षकों के पदों को भरवाने की मांग को लेकर टीचर्स फोरम के शिक्षक बृहस्पतिवार 16 दिसंबर से डीयू की आर्ट्स फैकल्टी पर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं। धरने का नेतृत्व टीचर्स फोरम के महासचिव व पूर्व विद्वत परिषद सदस्य डॉ. हंसराज सुमन व अध्यक्ष डॉ. के.पी. सिंह कर रहे हैं।

    विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों के प्राचार्यों को 19 सितंबर 2019 को एक सकरुलर भेजकर ओबीसी एक्सपेंशन के सेकेंड ट्रांच (दूसरी किस्त) की बकाया शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति करने के आदेश दिए थे।

    ओबीसी कोटे के शिक्षक पदों की दूसरी किस्त जारी किए जाने पर कुछ कॉलेजों ने इन पदों पर एडहॉक टीचर्स की नियुक्ति कर ली, लेकिन बहुत से कॉलेजों ने इन पदों पर आज तक नियुक्ति नहीं की और न ही इन पदों को रोस्टर में शामिल कर विश्वविद्यालय प्रशासन से पास कराकर विज्ञापित किया।

    टीचर्स फोरम के महासचिव डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि पिछले दो साल से कॉलेजों द्वारा सेकेंड ट्रांच के पदों को न भरने पर दलित, पिछड़े वर्गों के शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है।

    डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी के निर्देश के बावजूद कुछ कॉलेजों ने सेकेंड ट्रांच के पदों को अपने रोस्टर रजिस्टर में जोड़ा तक नहीं है। उन्होंने बताया है कि बहुत से कॉलेजों की स्टाफ एसोसिएशन व स्टाफ काउंसिल ने इन पदों को रोस्टर रजिस्टर में जोड़े जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था फिर भी रोस्टर में इन पदों को शामिल नहीं किया गया और न ही इन पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को शुरू किया गया।

    टीचर्स फोरम के अध्यक्ष डॉ.के.पी. सिंह ने बताया कि एडहॉक शिक्षकों के बीच यह डर पैदा किया जा रहा है कि सेकेंड ट्रांच के पदों को रोस्टर में जोड़े जाने से लम्बे समय से कॉलेजों में पढ़ा रहे एडहॉक शिक्षक नौकरी से हटा दिए जाएंगे। जबकि ऐसा नहीं है उन सभी एडहॉक शिक्षकों को सेकेंड ट्रांच के रोस्टर के अंतर्गत शामिल (एकमोडेट) किया जाता है।