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  • RSS chief MS Golwalkar : RSS के “गोलवलकर” जिन्हे गुरुजी कहते थे।

    RSS chief MS Golwalkar : RSS के “गोलवलकर” जिन्हे गुरुजी कहते थे।

    RSS chief MS Golwalkar

    RSS chief MS Golwalkar: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी की (RSS) आज भारत का शायद ही कोई ऐसा प्रान्त बचा हो जहां इस संगठन की पहुंच न हो आपको अपने आस – पास RSS की शाखा से जुड़े युवा मिल ही जाऐगें। RSS न केवल एक संगठन हैं बल्कि इसके अलावा RSS अपने विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर और हर संकट की घड़ी में बचाव कार्य के लिए भी जानी जाती हैं, वर्तमान में सत्ता पर काबिज BJP पार्टी का आधार RSS संगठन को ही माना जाता हैं।

    इसी संगठन को 43 साल तक चलाने वाले माधव सदाशिव गोलवलकर जिन्हे गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन, 5 जून को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्म दिवस मनाया जाता हैं। उसी दिन RSS के भावी नेता माधव सदाशिव गोलवलकर की पुण्यतिथि मनाई जाती हैं। वही गोलवलकर जिनके हिसाब से मुस्लिमों को अगर भारत में रहना हैं तो हिन्दू बनना चाहिए, तो चलिए जानते हैं कि कैसे थे RSS के गोलवलकर (RSS chief MS Golwalkar) और RSS को भी समझने का प्रयास करेगें।

    शुरुआती जीवन –

    माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म बंगाल विभाजन के बाद  19 फरवरी 1906 में महाराष्ट्र, नागपुर के पास स्थित गांव रामटेक में हुआ था। माधव सदाशिव गोलवलकर के पिताजी का नाम सदाशिवराव और माता जी का नाम लक्ष्मीबाई था।

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    माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। परिवार के समृद्ध होने के कारण उन्होंने उनकी पढ़ाई और गतिविधियों में उनका साथ दिया। गोलवलकर अपने 9 भाई-बहनों में एकमात्र जीवित पुत्र थे।

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    RSS को दिशा दिखाने वाले माधवराव

    माधव बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उन्होने अपनी स्नातक डिग्री हिस्लोप कॉलेज से प्राप्त की जो कि एक मिशनरी संस्था था इसके बाद वे मास्टर डिग्री के लिए वाराणसी के हिंदू विश्वविद्यालय गए। कॉलेज में रहते हुए उनकी मुलाकात विश्वविद्यालय के संस्थापक और प्रतिष्ठित हिंदू नेता पंडित मदन मोहन मालवीय से हुई। मालवीय जी ने गोलवलकर को हिंदुओं के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। इसी कॉलेज में गोलवलकर, गुरूजी (Guruji Madhav Sadashiv Golwalkar) के नाम से ही मशहूर हो गये थे।

    गोलवलकर और संघ –

    अपनी पढ़ाई के बाद गोलवलकर ने संन्यास के मार्ग पे चलने को तय किया, लेकिन संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने गोलवलकर की क्षमता को पहचाना और उन्हे संघ में शामिल कर लिया, गोलवलकर ने आजीवन किसी पद की इच्छा जाहिर नहीं की लेकिन हेडगेवार के निधन के बाद 34 साल के गोलवलकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सर्वोच्च पद सरसंघचालक का पद सम्भांला। इसी के बाद गोलवलकर की जिंदगी का दूसरा पहलू शुरू होता है जहां हम उनके दूसरे धर्मों के प्रति विचारों और हिंदुत्व के प्रति उनके निष्ठा को देख सकते हैं। आज उनकी पुण्यतिथि (Golwalkar’s death anniversary) पर उनके विचारों और कार्यों को जानते हैं।

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    RSS के सरसंचालक माधव सदाशिव गोलवलकर

    गोलवलकर के जीवन के विवाद –

    गोलवलकर का मानना था कि भारत हमेशा से ही हिन्दुओं की जन्मभूमि रही हैं मुस्लिम बाहर से यहां आए अगर उन्हे यहां रहना है तो खुद को हिन्दुत्व का मानना होगा, हिन्दु हमेशा से दूसरे धर्मों के लोगों को अपनाता रहा है, खुशवन्त सिंह गोलवलकर से मिलकर बताते हैं।

    इसके अलावा गोलवलकर के जीवन से जुड़े दूसरे विवाद रहे कि जब 1942 में संघ ने भारत छोड़ो आंदोलन से खुद को पीछे खीच लिया जिसके कारण आज भी उनकी आलोचना होती हैं।

    गोलवलकर खुद को बदलने के पक्ष में कभी नही थे वे भारत के संविधान को नही मानते थे, संघ के कार्यालय में 1947 और 1950 इन दो दिनों के अलावा 2002 में भारत के तिरंगे झंडे को अपनाया था।

    दिखावे से दुर रहने वाले माधव –

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    आजीवन हिन्दुत्व को बढ़ावा देने वाले – गोलवलकर
    • ऐसा नहीं है कि गोलवलकर की असहमतियां केवल दूसरे दलों से थी, गोलवलकर जातिगत भेदभाव को नही मानते थे जिसके कारण एक तबका उसे हमेशा से दूरी बनाकर रखता हैं।
    • गोलवलकर किसी भी प्रकार के ख्याति या दिखावे से दूर भागते थे। वे कहते थे कि अगर मैं अपनी मां कि लिए काम कर रहा तो उसे दिखाने की जरुरत नहीं।
    • गोलवलकर ने हमेशा राजनीति से दूरियां बना कर रखीं। वे महाभारत के श्लोक का हवाला देकर इसे एक गिरा हुआ काम बताते थे। कहा जाता है कि ख्याति के मामले में गोलवलकर नेहरु को टक्कर देने वाले व्यक्तित्व थे लेकिन उन्होने आजीवन राजनीति से दूरी बनाई।

    संघ को गोलवलकर के बगैर नही देखा जा सकता संघ की विचारधारा में गोलवलकर की छाप दिखती हैं आज भी उन्हे गुरुजी (Guruji Madhav Sadashiv Golwalkar) के नाम से सम्मानित कर याद किया जाता हैं उनके द्वारा किये गए कार्यों का प्रचार किया जाता हैं।

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    गोलवलकर अपने आप को बदलने के पक्ष पर कभी सहमत नहीं थे उन्होंने आजीवन हिन्दुत्व के मुद्दे को आगे रखा, चीन के युद्द के दौरान RSS के लोग सेवा कार्यों से प्रधानमंत्री नेहरु भी प्रभावित हुए, RSS के राजनीतिक आधार न होने  के चलते RSS ने कभी अंग्रेजों से सीधा लोहा नही लिया। आप गोलवलकर (RSS chief MS Golwalkar) के विचारों और कार्यों से सहमत असहमत  हो सकते हैं। लेकिन इसके पहले उन्हे जानना और पढ़ना भी जरुरी हैं।

  • Jawaharlal Nehru Death: भारत के पहले प्रधानमंत्री मरने के बाद भी उनकी इतनी चर्चा क्यों?

    Jawaharlal Nehru Death: भारत के पहले प्रधानमंत्री मरने के बाद भी उनकी इतनी चर्चा क्यों?

    Jawaharlal Nehru Death

    Jawaharlal Nehru Death: मरने के 50 साल बाद भी भारत के पहले प्रधानमंत्री जितनी चर्चा में रहते है उतनी शायद ही किसी अन्य देश के प्रधानमंत्री को चर्चा में रहने का सौभाग्य मिला हो। बीते 27 मई को उनकी पुण्यतिथि (Jawaharlal Nehru Death Anniversary) के मौके पर सभी ने उनको याद किया। लेकिन नेहरू को केवल इन मौकों पर याद नही किया जाता बल्कि इतिहास में पीछे जाकर वर्तमान की स्थिति का कनेक्शन नेहरु से निकाला जा रहा यही नही नेहरू सोशल मीडिया में गलतियों और चरित्रहीनता के बांड एंबेसडर बन चुके हैं।

    दशको से भारत के पहले प्रधानमंत्री को बदनाम करने के लिए भरसक प्रयास किये गए, किताबे, वीडियो, लेख, फेसबुक, ट्विटर हर जगह नेहरू को चरित्रहीन बताने वाली सामग्री मिल जाएंगी। ये बदनाम करना वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने से अलग है, बात ये है कि आप नेहरू की नीतियों पर उन्हे घेर सकते हैं 58 साल बाद (Jawaharlal Nehru Death) भी लेकिन उनको चरित्रहीन बताकर किस राजनीतिक दल को फायदा हो रहा इतना तो आप समझ ही सकते हैं।

    पिछले कुछ सालों इस बात पर भी कई बार जोर दिया गया कि अगर देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरु की जगह पटेल होते तो देश बहुत आगे तक जाता। नेहरू को पटेल के बरक्स खड़े करके देखना भी उनके रिश्तों को मजाक बनाकर देखा जाने जैसा हैं। पहले के नेताओं में तमाम असहमति के बाद भी एक दूसरे के प्रति सम्मान व्यक्त करने का परंपरा रही थी इसके अलावा देश में पहली बार आम चुनाव 1952 में हुए तो पटेल का मरोपरान्त प्रधानमंत्री बनना कैसे संभव था?

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    या फिर प्रधानमंत्री जी का चुनाव के दौरान रैली में भगत सिंह जेल में बंद रहने के दौरान से न मिलने जाने पर कांग्रेस को घेरना। क्या प्रधानमंत्री पटेल से भी यही सवाल कर रहे थे? क्योंकि तब पटेल भी उसी कांग्रेस का हिस्सा थे? जबकि लोगों ने प्रधानमंत्री के भाषण के बाद ही लोगों ने पंडित नेहरू के भगत सिंह से मिलने के साक्ष्य सोशल मीडिया में लेकर तैराने लगे। प्रधानमंत्री जी का 58 साल बाद आजादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस का आज की परिवार वाद से ग्रसित कांग्रेस की तुलना करना कितना सही? उनकी पुण्यतिथि (Jawaharlal Nehru Death Anniversary) के दिन हम उन्हे क्या एसे याद करें

    आपने नेहरू को सिगरेट पीते जरूर देखा होगा बेसक सिगरेट एक खराब वस्तु है और आदत भी, सभी को उससे दूरी बनानी चाहिए लेकिन यहां नेहरू फस गए। अगर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की पार्टी आज के समय विपक्ष में होती तो आप भी जरुर उनकी भी सिगरेट पीने के चलते चरित्रहीन होने की पोस्ट से गुजर चुके होते। या फिर आइंसटीन को भी ये सौभाग्य प्राप्त हो चुका होता।

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    नेहरु और नेहरु की बहन की तस्वीर अक्सर आपने सोशल मीडिया पर तैरती देखीं होगी, इसके अलावा उनकी भांजी की तस्वीरें भी देखी होगी लेकिन किसी और ही कंटेक्ट के साथ उनको चरित्रहीन बताते रहना

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    भारत के पहले प्रधानमंत्री और उनकी बहन विजय लक्ष्मी

    ऐसा नही पंडित नेहरु आलोचना से परे है हम उनकी नीतियों और राजनीतिक जीवन में रहते हुए लिए गए निर्णयों की समीक्षा कर सकते है लेकिन जीवन भर में 9 साल जेल में रहने के बाद भारत का प्रधानमंत्री बने नेहरु की तुलना इस तरीके से करना कितना सही?

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    आप नेहरु द्वारा लिखी 600 पेज की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में उनकी कही बातों (Jawaharlal Nehru Quotes) को पढ़ सकते हैं या राजमोहन गांधी द्वारा लिखी पटेल की जीवनी जिसमें उनके और पटेल के रिश्तों के बारे में समझाया गया है एक प्रमाण के साथ।

    पण्डित नेहरु चीन से हार के बाद कमजोर और बीमार से रहने लगे थे जिसके बाद नेहरु को सार्वजनिक जीवन में उतना ऊर्जावान नही देखा गया 27 मई 1964 को उन्होने अंतिम सांस ली(Jawaharlal Nehru Death), नेहरु की अंतिम यात्रा में करीबन 20 लाख लोग दिल्ली का सड़को पर इकट्ठा हुए अपने प्रधानमंत्री को अंतिम विदाई देने के लिए।