द न्यूज 15
लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार कई तरह के रंग देखने को मिल रहे हैं। इनमें एक रंग, खाकी उतारकर खादी पहनने वाले नेताओं का है। चुनाव से ठीक पहले यूपी के दो ऐसे आईपीएस अधिकारी रहे जिन्होंने नौकरी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। इनमें से एक कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरूण तो दूसरे ईडी के ज्वाइंट कमिश्नर रहे राजेश्वर सिंह हैं। दोनों को नौकरी के दौरान सुपर कॉप कहा जाता था। बीजेपी ने इनमें से एक सुपर कॉप राजेश्वर सिंह को लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से मैदान में उतारा है। उन्हें योगी सरकार की महिला कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वाति सिंह का टिकट काटकर यह मौका दिया गया है। राजेश्वर सिंह आज नामांकन कर रहे हैं। इसके पहले वह सुबह-सुबह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद लेने पहुंचे।
उन्होंने कल राज्यममंत्री स्वाति सिंह के आवास पर जाकर उनसे भी मुलाकात की थी। सीएम योगी से मुलाकात की तस्वीर ट्वीट करते हुए राजेश्वर सिंह ने लिखा-‘श्रद्धेय योगी आदित्यनाथ, माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से आशीर्वाद प्राप्त किया। उनकी ऊर्जा अप्रतिम है। उनके मार्गदर्शन से आज नयी यात्रा का आरम्भ है।’ सीएम से मुलाकात के बाद वह लखनफ के हनुमान सेतु मंदिर पहुंचे और विधिवत पूजा-अर्चना करके नामांकन दाखिल करने के लिए आशीर्वाद लिया। बताया जा रहा है कि नामांकन से पहले राजेश्वर सिंह पार्टी मुख्यालय भी जाएंगे। वहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकात होगी। बुधवार शाम राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वाति सिंह के आवास पर उनसे मुलाकात के दौरान राजेश्वर सिंह ने कहा कि वे मिलकर सरोजनीनगर विधानसभा क्षेत्र का विकास कराएंगे। स्वाति सिंह ने उन्हें बधाई दी।
गौरतलब है कि 2017 के चुनाव में स्वाति सिंह ने इसी सीट से जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उनका टिकट कट गया। राजेश्वर सिंह पुलिस की नौकरी छोड़ पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। इस सीट से बसपा से मोहम्मद जलीस खान, कांग्रेस से रुद्र दमन सिंह और सपा से पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा मैदान में हैं।
कौन हैं राजेश्वर सिंह : राजेश्वर सिंह 1994 बैच के पीपीपीएस अधिकारी थे। 24 वर्षों की सरकारी सेवा के बाद वीआरएस लेकर उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की है। उनका 11 वर्ष का सेवाकाल अभी बचा हुआ था। राजेश्वर, लखनऊ में सीओ गोमतीनगर और सीओ महानगर के पद पर तैनात रह चुके हैं। लखनऊ के अलावा प्रयागराज में भी वह महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त रहे हैं। वर्ष 2009 में वह प्रतिनियुक्ति पर ईडी में गए थे। बाद में उन्हें ईडी में समायोजित कर लिया गया था। राजेश्वर सिंह की गिनती तेजतर्रार अधिकारियों में की जाती थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ईडी अधिकारी के रूप में वह अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर डील, 2जी घोटाला, जगनमोहन रेड्डी केस, कॉमनवेल्थ गेम्स केस जैसे कई हाईप्रोफाइल मामलों की जांच में शामिल रहे हैं।
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नामांकन से पहले CM योगी का आशीर्वाद लेने पहुंचे राजेश्वर, कल स्वाति सिंह से की थी मुलाकात
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भाजपा या सपा किसने उतारे ज्यादा दागी उम्मीदवार? ADR की रिपोर्ट से खुलासा
द न्यूज 15
लखनऊ । उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण के लिए 10 फरवरी को मतदान होना है. इसके लिए सभी प्रत्याशियों ने नामांकन कर दिया है। यूपी चुनाव के पहले चरण में कुल 623 प्रत्याशी मैदान में हैं जिनमें से 280 प्रत्याशी करोड़पति हैं जिसमें से सर्वाधिक करोड़पति प्रत्याशी बीजेपी के हैं। रिपोर्ट की मानें तो बीजेपी के 57 में से 55 प्रत्याशी करोड़पति हैं। राष्ट्रीय लोकदल के 29 में से 27, सपा के 28 में से 23 और बसपा के 56 में से 50 प्रत्याशी करोड़पति हैं। कांग्रेस के 58 में से 32 और आम आदमी पार्टी के 52 में से 22 प्रत्याशी करोड़पति हैं।वहीं, पहले चरण की 58 सीटों पर हो रहे चुनाव में सपा के 75% उम्मीदवारों पर आपराधिक मुकदमे हैं। वहीं, रालोद ने 59%, भाजपा ने 51%, कांग्रेस ने 36% और बसपा ने 34% टिकट आपराधिक छवि वालों को दिए हैं। आप के भी 15% उम्मीदवार दागी है। एडीआर के अनुसार, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 25 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 12 महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं और छह पर हत्या का आरोप है।
‘द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) ने कहा कि उसने राज्य के 11 जिलों में 58 विधानसभा सीटों से राजनीतिक दलों के 615 उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवारों के स्व-हलफनामों का विश्लेषण किया है।
एडीआर ने कहा कि कुल 623 उम्मीदवार मैदान में हैं और उनमें से आठ के हलफनामों का विश्लेषण नहीं किया जा सका क्योंकि वे स्कैन नहीं किए गए थे या अधूरे थे। उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि पर, एडीआर ने कहा, ”विश्लेषण किए गए 615 उम्मीदवारों में से 156 (25 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जबकि 121 (20 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।”
उसने कहा कि प्रमुख दलों में सपा के 28 उम्मीदवारों में से 21 (75 प्रतिशत), रालोद के 29 उम्मीदवारों में से 17 (59 प्रतिशत), बीजेपी के 57 उम्मीदवारों में से 29 (51 प्रतिशत), कांग्रेस के 58 उम्मीदवारों में से 21 (36 प्रतिशत), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 56 उम्मीदवारों में से 19 (34 प्रतिशत) और आम आदमी पार्टी (आप) के 52 उम्मीदवारों में से आठ (15 प्रतिशत) ने अपने हलफनामों में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
एडीआर ने कहा कि प्रमुख दलों में, सपा के 28 उम्मीदवारों में से 17 (61 प्रतिशत), रालोद के 29 उम्मीदवारों में से 15 (52 प्रतिशत), बीजेपी के 57 उम्मीदवारों में से 22 (39 प्रतिशत), कांग्रेस के 58 उम्मीदवारों में से 11 (19 फीसदी), बसपा के 56 उम्मीदवारों में से 16 (29 फीसदी) और आप के 52 उम्मीदवारों में से पांच (10 फीसदी) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। समूह के अनुसार, 12 उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिन्होंने ”महिलाओं के खिलाफ अपराध” से संबंधित मामले घोषित किए हैं और उनमें से एक ने बलात्कार से संबंधित मामल घोषित किया है। -
वोटबैंक की राजनीति तक सिमटी आरक्षण व्यवस्था!
चरण सिंह राजपूत
देश में आरक्षण ऐसा मुद्दा है कि जो समाज के उत्थान के लिए कम और राजनीति में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। कभी दलित तो कभी ओबीसी बस आरक्षण के नाम पर राजनीतिक दलों को वोट चाहिए। वोटबैंक की राजनीति ने तो 10 फीसद आरक्षण सवर्णों के लिए भी करा दिया। मतलब इससे समाज का भला हो या न हो पर राजनीतिक दलों के लिए वोटबैंक की एक व्यवस्था जरूर हो जाती है। अब जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहा है तो देश के गृहमंत्री अमित शाह जाटों के आरक्षण की बात करने लगे हैं। इससे पहले मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह 27 फीसद आरक्षण देने की बात कर चुके हैं। वोटबैंक की राजनीति ने इतना बड़ा रूप ले लिया है कि प्रमोशन में भी आरक्षण की बात की जा रही है।
दरअसल आरक्षण नाम के कोढ़ ने देश को ऐसे चपेट में ले लिया है कि इस परिपाटी पर समय रहते अंकुश न लगा तो समाज जातियों में तो वैमनस्यता तो घोल देगा ही साथ ही यह व्यवस्था देश की प्रतिभा को चाट जाएगी। आरक्षण नामक इस कुप्रथा ने देश में वोटबैंक की राजनीति का रूप ले लिया है। इस व्यवस्था से देश की प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। आरक्षण को लेकर कभी जाटों का आंदोलन तो कभी गुर्जरों का । कभी हरियाणा तो कभी गुजरात में आरक्षण के लिए आंदोलन होते ही रहे हैं।
इस व्यवस्था में योग्यता, प्रतिभा का जैसे कोई मतलब ही न रह गया हो। जहां राजनीतिक दल वोटबैंक के लिए आरक्षण की पैरवी करते रहे हैं वहीं जातीय आधार पर बने कुछ संगठन राजनीतिक चमकाने के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। ये लोग आरक्षण की मांग कर अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की जगह पंगू बना रहे हैं। उनके मन में आरक्षण नाम की बैसाखी थमाने की बात कर रहे हैं।
देश में आरक्षण की बात की जाए तो 1949 में जातीय विषमता को दूर करने के लिए दलितों के लिए की गई आरक्षण की व्यवस्था ने वोटबैंक का ऐसा रूप लिया है कि अब यह व्यवस्था विषमता मिटाने की जगह उसे और बढ़ा रही है। यह सब आरक्षण के लिए बनाई गई प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीम राव अम्बेडकर ने भी महसूस किया था। यही वजह थी कि उन्होंने उस समय ही स्पष्ट कर दिया था कि अनुसूचित जाति तथा जनजाति को आरक्षण का प्रावधान केवल दस वर्ष तक के लिए ही होगा। हालांकि इसी बीच डॉ. अम्बेडकर का निधन हो गया। वह राजनीति का बदलता स्वरूप ही था कि एक दशक बाद जब धारा 335 के नवीनीकरण का प्रस्ताव आया तब तक आरक्षण वोटबैंक का रूप ले चुका था, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू आरक्षण से मिल रहे कांग्रेस के फायदे को समझ चुके थे। अब मुसलमान अल्पसंख्यक व ब्रााह्मणों के साथ ही दलित भी कांग्रेस का वोटबैंक बन चुका था। इसलिए उन्होंने आरक्षण की समय सीमा आैर बढ़ा दी।
आज के दौर में भले ही समाजवादी नेता पिछड़ों के आरक्षण की राजनीति कर रहे हों पर जगजाहिर है कि 60 के दशक में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस की मुस्लिम, ब्रााह्मण व दलित वोटबैंक काट के लिए पिछड़ी जातियों का गठजोड़ बनाया था। वह आरक्षण और जातिवाद, परिवारवाद के घोर विरोधी थे। आरक्षण समय सीमा पर निर्णय लेने का समय फिर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में आया तो उन्होंने भी अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू के पदचिह्नों पर चलते हुए अनुसूचित जाति के आरक्षण वाली धारा 335 को अम्बेडकर की राय के खिलाफ जाकर फिर बढ़ा दिया। देश में आरक्षण का कार्ड खेला जाता रहा है। 1989 में जब समाजवादियों की सरकार बनी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने पिछड़ों को रिझाने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू कर दिया। वह बात दूसरी है कि यह पासा वीपी सिंह को उल्टा पड़ गया। आरक्षण के विरोध में लामबंद हुए सवर्ण छात्रों के आक्रोश ने ऐसा रूप लिया कि देश में बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। तब इस माहौल को भाजपा कैस करा ले गई। अब तक आरक्षण की मांग राजनीतिक दल ही करते रहे हैं अब कुछ जातीय संगठन भी आरक्षण की मांग की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।
हमें यह भी देखना होगा कि आज के हालात में भले ही वोटबैंक के चलते कुछ दल आरक्षण की पैरवी कर रहे हों पर आरक्षण को लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. भीम राव अम्बेडकर का मानना था कि आरक्षण एक बैसाखी है और लम्बे दौर में यह आरक्षण का लाभ लेने वाले लोगों को पंगु बना डालेगी। आज भले ही अम्बेडकर के नाम पर कई दल राजनीति कर रहे हों पर वह बड़े तार्किक थे, यही वजह थी कि उन्होंने आरक्षण की समय सीमा तय की थी। वह नहीं चाहते थे कि देश में किसी भी तरह की विषमता पनपे, पर वह वोटबैंक की राजनीति ही थी कि नेहरू-इंदिरा की कांग्रेस पार्टी ने अम्बेडकर के चिंतन को नकार कर आरक्षण को राजनीति का मुद्दा बना दिया। यह राजनीति का बदला हुआ रूप ही है कि महात्मा गांधी ने जिस आरक्षण को दलित कल्याणकारी योजना बनाया था, आजकल नेता इस पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। देश में अयोग्यता को बढ़ावा दे रहे हैं।
आज के परिवेश में हम आरक्षण पर वैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय विश्लेषण करें तो पूरा दृश्य समाने आ जाता है। दरअसल आजादी मिलने के बाद देश में ऐसा महसूस किया गया कि दलितों के साथ हुए अत्याचारों और अन्याय को रोका जाए। उस समय लोकशाही के लिए जरूरी था कि यह विषम स्थिति किसी भी तरह से खत्म की जाए और सभी जातियों की विकास करने के लिए समान अवसर प्रदान किए जाएं। यही सब कारण थे कि गणतीय संविधान में धारा 335 को सम्मिलित किया गया पर क्या पता था कि समानता के सोशलिस्ट प्रयास में ही विषमता का बीज छिपा हुआ था। आज स्थिति यह है जहां गरीब दलित आज भी आरक्षण का कोई खास फायदा नहीं उठा पा रहे हैं वहीं काफी सम्पन्न दलित परिवार आरक्षण का लाभ पाकर सर्वशक्ति मान हो गए हैं। इसके विपरीत सवर्णांे में बड़े स्तर पर लोग आर्थिक कमजोर होेते जा रहे हैं।ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या गरीब दलितों व पिछड़ों में ही हैं, सवर्णों में नहीं हैं क्या ? या क्या व्यवस्था से दलित, पिछड़ों व सवर्ण युवाओं में द्वेष भावना नहीं पनप रही है ? हमें यह भी देखना होगा कि आरक्षण के चलते अनुसूचित जातियों में सम्पन्नता तो आ गई पर उनमें पारस्पिरिक सामूहिक सामजस्य नहीं आ पाया है। जैसे मोची आज भी पासवान अथवा खटीक जाति के लोगों से रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं रखता है। दलित समाज आज भी अनेक उप जातियों में विभक्त है और उनमें आपस में परस्पर है। आरक्षण की पैरवी करने वाले नेताओं को यह देखना चाहिए कि इतने वर्षों बाद भी धारा 335 समतामूलक समाज बनाने में कारगर क्यों नहीं हुई ? आज भी आरक्षण का फायदा संपन्न दलित व पिछड़े ही उठा रहे हैं। जरूरतमंद लोग तो आज भी आरक्षण से वंचित रह जा रहे हैं।
हमें यह भी देखना होगा कि आजादी के बाद से ही मुस्लिमों को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही कांग्रेस ने उनके लिए कितने आरक्षण की व्यवस्था की। इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस ने समय-समय आरक्षण का लॉलीपॉप दिखाकर मुस्लिमों का वोट हथियाया है, पर देने के नाम पर मात्र झुनझुना ही थमाया है।मुजफ्फरनगर दंगों के बाद गड़बड़ाए समीकरणों को कैस कराने के लिए कांग्रेस को केंद्रीय सेवाओं में भी जाटों आरक्षण देने की चिंता तो होने लगी थी पर मुस्लिमों को आरक्षण देने के उसके वादे का क्या हुआ ? जाटों को तो कई प्रदेश की नौकरियों में भी आरक्षण मिला हुआ है। यह देश की विडम्बना ही है कि जब आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की बात आती है तो कई दल दलितों व पिछड़ों के नाम पर सियासत करने लगते हैं। पिछले दशकों में आरक्षण के चलते कई जातियां विपन्न, असहाय और दरिद्र हो गई हैं। वैसे होना यह चाहिए कि यदि आरक्षण देना है हर जाति की दयनीय आर्थिक दशा पर भी विचार हो और उनकी मदद की जाए, जहां चयन की बात आए वहां मापदंड योग्यता ही होनी चाहिए, जबकि आरक्षण के चलते योग्य युवा पिछड़े जाते हैं और अयोग्यों को आगे बढ़ने का मौका मिल जाता है। क्या इससे व्यवस्था पर असर नहीं पड़ता ? क्या विकास प्रभावित नहीं होता ? देश में व्यवस्था ऐसी हो कि आकृष्ट बहुलतावादी समाज को सशक्त बनाया जाए न कि जातिगत, विषमता को भरमाया जाए। यह राजनीतिक का गंदा रूप ही है कि जातिवादी प्रकृति का यह विकृत और भोंडा स्वरूप हमारे इतिहास और संविधान की विभूतियों को भी उनके जातीय उपमान से पहचाना जा रहा है। जैसे महात्मा गांधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया को बनिया, सरदार बल्लभ भाई पटेल को कुर्मी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और लोकनायक जयप्रकाश नारायण व राजेंद्र बाबू को कायस्थ, राजनारायण, चंद्रशेखर, वीपी सिंह को ठाकुर, चौधरी चरण सिंह जाट व भीम राव अंबेडकर को दलित नेता की संज्ञा दे दी गई है। -
सत्ता के मद में चूर नेताओं का एक ही स्वर, अबकी बार मेरी सरकार
डॉ. कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’
घात-प्रतिघात, हठ- बलात् सबके बीच में एक ही बात, अबकी बार मेरी सरकार । ” नाच न जाने आंगन टेढ़ा ” सत्ता के मद में चूर सभी नेताओं का एक ही स्वर है, अबकी बार मेरी सरकार। जनता बता देगी , अरे ! क्या बता देगी? किसे बता देगी? क्यों बता देगी? जब जी में आया चुनाव के नाम पर बिसात बिछाई और पांसे से फेंके। जनता को प्यादों की तरह हर तरफ़ से नाच नचाया । कभी जनता की सरकार जनता के लिए बन पाएगी ! ऐसा कहना मुमकिन नहीं नामुमकिन ज़रूर लगता है।
बेसिर -पैर के, बिना किसी वज़ूद के, जूठे पत्तल चाटने वालों का, कैसा बहुआयामी चरित्र है ! सुबह से शाम, हरपल ,दलबदल , एक ही चेहरा इस पार्टी से उस पार्टी में बोलता है। चरित्रहीनता की पराकाष्ठा है । सभी का चरित्र बिकाऊ सा लगता है । ये जनता को मूल्यों -आदर्शों की बात क्या समझाएंगे? अपने गिरेबान में झांककर देखें, न नीचे धरती है न ऊपर आसमान। सपनों के महल बनाने वाले, जनता को झूठे वादों में फंसाने वाले, कहीं से भी हमारे शुभचिंतक नहीं।
हमारे देश की यही विडंबना है। जात-पात इस क़दर हावी है कि चुनावी रणनीतियों में उच्च आदर्शो के साथ खड़ा होना बिल्कुल ही बेमानी लगता है। अराजक तत्वों की भरमार है ।गुंडे- बदमाश, माफियाओं के सरगना , अपराधिक पृष्ठभूमि से राजनीतिक पार्टियां इस तरह सुशोभित हो रही हैं मानो अमृत का घड़ा उन्हें मिल गया हो। न हारने की जादुई छड़ी हाथ में लग गई हो। सारे नियम -कानून ताक पर रख “इस कोठरी का धान उस कोठरी में ” हो रहा है । चोर -चोर मौसेरे भाई बने पड़े हैं।
ज़मीनी धरातल पर जनता को बहुत सोचने-विचारने की ज़रूरत है । चिंतन-मनन की आवश्यकता है। छोटे-छोटे मुद्दों को जातिगत आधार देने वाले तिगड़मबाज़ों से सावधान रहने की आवश्यकता है। यह देश उन सभी का है, जिनका दिल देश के लिए धड़कता है , मर मिटने का जज़्बा रखता है, तिरंगे की शान का कभी अपमान नहीं देख सकता है। सरकार बनाने वाली पार्टी को बिना भेदभाव सबके विकास की रूपरेखा तय करनी होगी । जिस भी पार्टी के प्रत्याशी दाग़दार हों, उन्हें जनता को कतई वोट नहीं देना चाहिए । समाज से गुनाहों का सफ़ाया करने के लिए पहल ख़ुद से शुरू करनी है।भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए भ्रष्ट हो जाना कतई आवश्यक नहीं। कूड़ा -कबाड़ा ख़ुद से ही साफ़ करना होगा ।स्वच्छ हवा में सांस लेने के लिए कोशिश जनता को ही करनी होगी।
हिंदू,मुस्लिम, सिख, ईसाई , अनेक जातियो और उप-जातियों, सभी के विकास का दारोमदार इन्हीं नेताओं पर है। पर जिसे धर्म-जाति को आधार बनाकर समीकरण बिठाना है उससे हाथ जोड़ किनारा कर लेना ही श्रेयस्कर है। बंटकर समाज का कभी भला नहीं हो सकता। एकता में असीम ताकत है। भड़काऊ भाषणों की अपराधिक पृष्ठभूमि से सतर्क रहने की ज़रूरत है। ऐसी प्रवृत्ति के घातक लोग जनता का इस्तेमाल अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। होशियार और ख़बरदार रहना होगा।
तू -तू मैं-मैं की रोज़मर्रा की टीआरपी बटोरने वाले, छोटी- मानसिकता के राजनेताओं की छुट्टी करनी होगी। जो जनता के दैनिक जीवन में घट रहे हर पल की समस्याओं से निजात दिलाने का संकल्प करे, छोटे-छोटे प्रयासों के सुंदर परिणाम दिखाएं , नफ़रत की कौड़ी न फेंके, शांति-अमन और भाईचारे की बात करे। देश सर्वोपरि हो। भीख में कोई ख़ैरात नहीं चाहिए । हमे श्रेष्ठ नेताओं को परखने की शक्ति का अपने अंदर संचार करना होगा। मत का प्रयोग व्यर्थ न जाए , आंखें मूंदकर नहीं खोलकर विवेचना करें। अपना नेता ऐसा चुनें जिसे आपकी परवाह हो। लोक संवरेगा तो परलोक अपने आप संवर जाएगा । दिग्भ्रमित करने वाले, लोभ-लालच के झांसे में फंसाने वाले, स्वार्थी तत्वों से ,अपने को बचाकर अपना बहुमूल्य मत उसे दें, जो स्थानीय स्तर पर आपके समाज का हित करने को तत्पर हो । ” दूर के ढोल सुहावने ” होते हैं । आपसी निजी मतभेदों और स्वार्थपूरित राजनीति के लिए राष्ट्रकवि को, अपनी ओछी मानसिकता के लिए इस्तेमाल करना, उनका भी अपमान है। जिसने अपनी पंक्तियां ऐसे राष्ट्र को समर्पित कीं जिसमें मात्र देशसेवा थी , झकझोर देने की प्रवृत्ति थी, कुप्रवृत्तियों पर प्रहार था। पर आज के नेता उसे अपनी पार्टियों की स्वार्थपरता के लिए उन सुंदर पंक्तियों का भी मज़ाक उड़ा रहे हैं। यहां ” सबकी अपनी-अपनी ढपली और अपना राग” है। सबके स्वरों की पहचान और अपने स्वर का प्रभाव छोड़ने की आदत बनान होगी ।हमारे नेता हमारी ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं कर सकते । विकास की आंधी बहाने वाले के साथ ही कदमताल करना होगा। मत का प्रयोग सोच-समझकर करें हुजूर!
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आंध्र प्रदेश की अदालत का भाजपा नेता को अपनी पुत्रवधू को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने का निर्देश
द न्यूज 15
विजयवाड़ा | आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा की एक अदालत ने आंध्र प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष कन्ना लक्ष्मीनारायण, उनकी पत्नी और बेटे को घरेलू हिंसा के एक मामले में अपनी पुत्रवधू को एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
विजयवाड़ा के पहले अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी की अदालत ने पुलिस को श्रीलक्ष्मी कीर्ति को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश भी दिया।
अदालत ने पूर्व मंत्री, उनकी पत्नी कन्ना विजयलक्ष्मी और उनके बेटे कन्ना नागराजू को कीर्ति और उसकी बेटी को उनके घर में रहने का आदेश दिया है और ऐसा न करने की स्थिति में 50,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का आदेश दिया है।
न्यायाधीश ने प्रतिवादियों को कीर्ति की बेटी के इलाज के लिए 50,000 रुपये का भुगतान करने के लिए भी कहा है। अदालत ने बुधवार को पारित आदेश में तीन महीने में राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हुए
स्पष्ट कहा कि यदि इस अवधि में ऐसा नहीे किया जाता है तो उन्हें 12 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करना होगा।
कन्ना नागराजू ने 10 मई 2006 को कीर्ति के साथ प्रेम विवाह किया था। उनकी बेटी का जन्म 2013 में हुआ था। कीर्ति ने बाद में अपने ससुराल और पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था।
कीर्ति ने आरोप लगाया कि उसकी सास उसे ताना मारती थी और उसके माता-पिता से मिलने नहीं देती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि नागराजू का एक अन्य महिला के साथ संबंध है और वह उसे परेशान कर रहा था। उसने कीर्ति के साथ 29 मार्च 2015 को मारपीट की और तब से वह उसे अलग रह रहा है।
कीर्ति ने अपने ससुरालवालों से अपनी और अपनी बेटी की सुरक्षा की गुहार लगाते हुए उनके खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, आवास और इलाज के खर्च के तहत कार्रवाई की मांग की थी।
कन्ना लक्ष्मीनारायण ने 1991 से 1994 और 2004 से 2014 तक अविभाजित आंध्र प्रदेश में कांग्रेस सरकारों में मंत्री के रूप में कार्य किया था और राज्य के विभाजन के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे और 2018 में पार्टी की आंध्र प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने थे।
कन्ना नागराजू ने इससे पहले गुंटूर के मेयर के रूप में भी कार्य किया था।
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यूपी चुनाव: अपर्णा यादव, संघमित्रा मौर्य भाजपा की नई पोस्टर गर्ल बनी
द न्यूज 15
लखनऊ | अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने के कुछ घंटों बाद, पार्टी ने महिला सुरक्षा पर केंद्रित एक नया पोस्टर जारी किया है। ‘सुरक्षा चक्र’ शीर्षक वाले पोस्टर में अपर्णा यादव और भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य हैं, जिनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हाल ही में समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़ दी थी। कैप्शन में लिखा है, ‘सुरक्षा जहां, बेटीयां वहां’। पोस्टर को प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा कांग्रेस के अभियान की प्रतिक्रिया के रूप में बताया गया है – ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं।’
इस बीच, भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य ने उन लोगों पर निशाना साधा जो उनके पिता के एसपी में जाने को लेकर उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि संस्कार अच्छा शब्द है, लेकिन किसके पास है? एक हफ्ते पहले एक पिता ने पार्टी बदली और बेटी को खरी खोटी सुनाई गई। आज एक बहू ने पार्टी बदल दी है और उसका स्वागत किया जा रहा है। क्या इसे इस बात से जोड़ा जाना चाहिए कि बेटी पिछड़ी जाति की है और बहू ऊंची जाति की है?
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यूपी चुनाव : बीजेपी में शामिल होंगी कांग्रेस की पोस्टर गर्ल!
द न्यूज 15
लखनऊ | उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के पोस्टर का चेहरा प्रियंका मौर्य जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकती हैं। भाजपा सूत्रों ने कहा कि उन्होंने बुधवार को लखनऊ में पार्टी मुख्यालय का दौरा किया, जिससे उनके भगवा पार्टी में शामिल होने की अटकलें तेज हो गईं।
मौर्य ने कहा, ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ को केवल एक नारा के रूप में प्रस्तुत किया गया है क्योंकि लड़की के रूप में, मुझे चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी क्योंकि मैं रिश्वत नहीं दे सकती थी।
उन्होंने दावा किया कि टिकट उन्हें देने के बजाय एक महीने पहले पार्टी में शामिल हुए व्यक्ति को दिया गया।
मौर्य ने कहा कि मैंने सभी औपचारिकताएं पूरी की, लेकिन टिकट पूर्व नियोजित था और एक महीने पहले आए एक व्यक्ति को दिया गया था। मैं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को यह संदेश देना चाहती हूं कि इस तरह की चीजें जमीन पर हो रही हैं।
मौर्य ने कहा कि वह सरोजिनी नगर विधानसभा क्षेत्र में एक साल से अधिक समय से लगातार काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि हमें महिलाओं और पिछड़े समुदाय के लोगों को लुभाने के लिए मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया था। बहुत जल्द आप मुझे और मेरे समुदाय के सदस्यों को भाजपा के साथ देखेंगे।
मौर्य की सोशल मीडिया प्रोफाइल, स्पष्ट रूप से उन्हें महिला कांग्रेस उपाध्यक्ष, डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वर्णित करती है। यह 170, सरोजिनी नगर विधानसभा, लखनऊ की एक विधानसभा सीट को भी संदर्भित करता है।
14 जनवरी को पोस्ट किए गए एक ट्वीट में, मौर्य ने आरोप लगाया कि कांग्रेस का ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान और कुछ नहीं, बल्कि एक धोखा है। लोग कहेंगे कि अगर आपको टिकट नहीं मिला, इसलिए आप ऐसा कह रही हैं। जांच करें और खुद पता लगाएं। हमें 2024 की तैयारी करने के लिए कहा गया था।
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अखिलेश ने लिया संकल्प, भाजपा को हराना ही है
द न्यूज़ 15
लखनऊ। सोमवार को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर किसानों के लिए सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाएगा।अखिलेश ने कहा कि वह गन्ना बकाया का भुगतान सुनिश्चित करने ,किसानों के लिए मुफ्त सिंचाई, ऋण, पेंशन और बीमा जैसी सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था करने के लिए एक कोष बनाएंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि वह किसानों के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेंगे और आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों को 25-25 लाख रुपये दिए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि यह सब समाजवादी घोषणापत्र में शामिल किया जाएगा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घोषणा पत्र जारी करने के बाद इसे जारी किया जाएगा।
राज्य के लखीमपुर में 3 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा द्वारा किसानों को गाड़ी से कुचले जाने की घटना में घायल हुए लोगों में शमिल किसान नेता तजिंदर विर्क ने मुट्ठी भर गेहूं और चावल के साथ ‘किसानों पर अत्याचार करने वालों’ को हराने की प्रतिज्ञा की है।
श्री यादव ने लखीमपुर की घटना की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से करते हुए कहा कि भाजपा ने निर्दोष किसानों को कुचलकर अक्षम्य अपराध किया है।
उन्होंने कहा कि यह किसानों की एकजुटता ही थी जिसने भाजपा को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा और उसके नेता खुलेआम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं। वह इस मामले में जल्द ही चुनाव आयोग के पास औपचारिक शिकायत दर्ज कराएंगे और उम्मीद है कि आयोग इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा।
अखिलेश यादव ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर के साथ गठबंधन बातचीत विफल होने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने दो सीटों की पेशकश की थी, लेकिन यह नहीं पता कि इस पेशकश को क्यों ठुकरा दिया गया है।
उन्होंने कहा, चंद्रशेखर को पता होना चाहिए कि डॉ अंबेडकर और डॉ लोहिया ने साथ काम किया था और उन्हें भी हमारे साथ एक भाई के रूप में सकारात्मक भावना से मिलकर काम करना चाहिए।
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बीजेपी के ओबीसी दांव (2017) को अपनाकर 2022 को फतह करने में लगी सपा
चरण सिंह राजपूत
योगी आदित्यनाथ के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भारतीय जनता पार्टी से ओबीसी विधायकों की टूट का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जारी है। अब बिधूना से बीजेपी विधायक विनय शाक्य ने भी इस्तीफा दे दिया है। विनय शाक्य 48 घंटे के भीतर भाजपा छोड़ने वाले 8वें विधायक हैं। साथ ही योगी सरकार के एक और मंत्री धर्म सिंह सैनी ने भी सरकारी आवास और सुरक्षा लौटा दी है। मतलब वह भी इस्तीफा देने की ओर जा रहे हैं। शिकोहाबाद के विधायक मुकेश वर्मा ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह अखिलेश यादव का ओबीसी दांव ही है कि ओबीसी समुदाय के दिग्गज नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद उनके समर्थक विधायक और नेता बीजेपी छोड़कर सपा की ओर रुख कर रहे हैंं।
भाजपा से टूट की स्थिति यह है कि 24 घंटे के भीतर योगी कैबिनेट से दो मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है। पहले श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और फिर वन मंत्री दारा सिंह चौहान। ओबीसी समुदाय से आने वाले दोनों ही नेता अगली पारी की शुरुआत समाजवादी पार्टी के साथ करने जा रहे हैं। ओबीसी को लेकर ऐसे ही भाजपा में मंथन नहीं चल रहा था। इन चुनाव में सपा वही काम कर रही है जो काम 2017 में भाजपा ने किया था। मतलब गैर यादव ओबीसी जातियों जैसे कुर्मी, मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, राजभर और निषाद नेताओं को अपने साथ लेकर सरकार बनाने का मार्ग प्रसस्त किया था। दरअसल भाजपा ने एक रणनीति के तहत 2012 से 2017 तक चले सपा शासनकाल में यादव समुदाय को ही फायदा मिलने की धारणा का फायदा उठाते हुए गैर-यादव पिछड़ी जाति के नेताओं को अपने साथ मिलाया था।2022 के विधानसभा चुनाव में सपा भी बीजेपी वाला काम कर रही है। सपा योगी शासनकाल में सवर्णों को ही फायदा मिलने की बात करते हुए पिछड़े नेताओं को उकसा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके सिंह पटेल, एसपी सिंह बघेल, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी, ब्रिजेश कुमार वर्मा, रोशन लाल वर्मा और रमेश कुशवाहा जैसे नेता सपा और बसपा को छोड़कर ही भाजपा में गए थे। ये ही वे नेता थे जिन्होंने बीजेपी की प्रचंड जीत में अहम भूमिका निभाई थी। भाजपा ने एक रणनीति के तहत दूसरे दलों से आए कई नेताओं को टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया तो कई को विधान परिषद और संगठन में जगह देकर खुश किया। यह ओबीसी का समर्थन ही था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 सीटों वाली विधानसभा में अकेले 312 सीटों पर कब्जा कर लिया था। जबकि के सहयोगी दलों अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को क्रमश: 9 और 4 सीटें मिलीं थी। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद सुभासपा ने बीजेपी से नाता और गठबंधन तोड़ लिया था।
अब भाजपा वाला काम अखिलेश यादव कर रहे हैं। गैर यादव ओबीसी नेताओं को भाजपा से तोड़ सपा में मिलाया जा रहा है। एक दूरगामी रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने यह काम 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ हुए गठबंधन में मिले झटके के बाद से ही शुरू कर दिया था। अखिलेश यादव ने बसपा से पहले ही बगावत करके सपा में आ चुके इंद्रजीत सरोज और आरके चौधरी को बसपा के दूसरे नेताओं से संपर्क साधने और मानने में लगा रखा था। इस अभियान पर काम कर अखिलेश यादव ओबीसी समुदाय से जुड़े बीएसपी के ओबीसी नेताओं जैसे आरएस कुशवाहा, लालजी वर्मा, रामाचल राजभर, केके सचान, वीर सिंह और राम प्रसाद चौधरी को सपा में लाने में कामयाब रहे हैं। 2017 में बीएसपी से पाला बदल कर भाजपा में जा चुके नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, रोशन लाल वर्मा, विजय पाल, ब्रजेश कुमार प्रजापति और भगवती सागर जैसे नेताओं को भी अखिलेश अपने खेमे में ले आये हैं।बीजेपी भलीभांति जानती है कि ओबीसी समुदाय के इन नेताओं के टूटने से उसे कितना भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए बीजेपी इन रूठे नेताओं को मनाने में लगी है। बीजेपी ने अपने ओबीसी नेताओं केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान को मनाने में लगा दिया है। केशव प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट के दोनों मंत्रियों के इस्तीफे के तुरंत बाद ट्वीट करके उनसे दोबारा विचार करने की अपील भी की है। दरअसल उत्तर प्रदेश की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 45 फीसद है। इसमें दो राय नहीं कि 2007 में बसपा, 2012 में सपा और फिर 2017 में भाजपा को सत्ता दिलाने में ओबीसी ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ओबीसी की ताकत को पहचान कर ही भाजपा ने 2017 में सपा से उनके मोहभंग का फायदा उठाया था। यही काम इस बार सपा कर रही है। अब बीजेपी से ओबीसी की नाराजगी का फायदा उठाकर ही अखिलेश यादव २०२२ का चुनाव फतह करने में लगे हैं। -
उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए बीजेपी सीईसी की बैठक
द न्यूज 15
नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) गुरुवार को बैठक करेगी। बैठक कथित तौर पर हाइब्रिड रूप में होगी क्योंकि पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा सहित सीईसी के कुछ सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य सीईसी सदस्य, जो बैठक में फीजिकल रूप से शामिल हो रहे हैं, पार्टी मुख्यालय पहुंच गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चअली बैठक में शामिल होंगे और सीईसी के पहले दो या तीन चरणों के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप देने की संभावना है। उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के बाद, नामों की घोषणा की जाएगी।
विधानसभा चुनाव सात चरणों में 10 फरवरी से शुरू होंगे। मतगणना 10 मार्च को होगी।
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि पिछले दो दिनों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठकों में काफी चर्चा और विचार-विमर्श हुआ है। पिछले दो दिनों में 10 घंटे से अधिक समय तक चली मैराथन बैठकों में, अधिकांश सीटों के लिए नाम चुने गए हैं। सीईसी के नामों को अंतिम रूप देने के बाद, भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा करेगी।
नड्डा के अलावा, सीईसी सदस्य राजनाथ सिंह, शाहनवाज हुसैन और नितिन गडकरी ने भी हाल ही में कोविड के लिए पॉजिटिव परीक्षण किया है। 58 विधानसभा सीटों के लिए पहले चरण में होने वाले चुनाव के लिए नामांकन का अंतिम दिन 21 जनवरी है, जबकि दूसरे चरण में 55 सीटों के लिए नामांकन का अंतिम दिन 28 जनवरी है। पहले और दूसरे चरण में क्रमश: 10 फरवरी और 14 फरवरी को मतदान होगा।