Tag: After all

  • आखिर क्या परिणाम आएंगे द कश्मीर फाइल्स फिल्म को भाजपा के बढ़ावा देने के ?

    आखिर क्या परिणाम आएंगे द कश्मीर फाइल्स फिल्म को भाजपा के बढ़ावा देने के ?

    चरण सिंह राजपूत 
    कश्मीर फाइल्स फिल्स को लेकर देश में माहौल गरमा गया है। गर्माये भी क्यों न। कश्मीर पंडितों के दर्द पर बनी फिल्म को भाजपा राजनीतिक रूप से बेचने में जो लग गई है। खुद प्रधानमंत्री फिल्म का प्रमोशन करने के लिए आगे आये हैं। बाकायदा  भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, त्रिपुरा, गोवा और हरियाणा में  फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है। फिल्म को लेकर फिल्म के प्रशंसकों और विरोधियों के अपने-अपने तर्क -वितर्क हैं। देश में मंथन करने की जरूरत इस बात की है कि आखिरकार जिस तरह से खुद सरकारें फिल्मों के प्रमोशन के लिए आगे आई हैं। जिस तरह से फिल्म में एक विशेष धर्म के अलावा जेएनयू और लाल झंडे को लेकर नफरत का माहौल बनाया गया है। जिस तरह से फिल्म को देखकर दर्शक न केवल ग़मज़दा दिखाई दे रहे हैं बल्कि उनमें गुस्से के अलावा नफ़रत की भावना भी देखी जा रही है। उसके परिणाम क्या सामने आएंगे ?
    अक्सर देखा जाता है कि उन फिल्मों को टैक्स फ्री किया जाता है जो फिल्में समाज को शांति, सौहार्द्र, भाईचारा बढ़ाने और नफरत मिटाने का संदेश देती हैं। ऐसा कोई संदेश तो फिल्म दिखाई नहीं देता है। फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ कत्लेआम और खुलेआम मस्जिद से कश्मीर पंडितों के लिए कश्मीर छोड़ने या फिर जान गंवाने की चेतावनी जारी कर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को दर्शाया गया है। फिल्म में जिस तरह से जेएनयू कैंपस, लाल झंडे को देश के दुश्मन रूप में दिखाया गया है। क्या इनसे जुड़े लोग इस माहौल के खिलाफ मुखर नहीं होंगे ?  2016 में जेएनयू में लगे नारों को जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पलायन/नरसंहार से जोड़ने का क्या मतलब है ?
    फिल्म में जिस तरह से न्याय का इंतज़ार दिखाया गया है। फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित की भूमिका निभा रहे अनुपम खेर के मुंह से यह बात कहलवाना कि न्याय तब होगा जब अपनी मातृभूमि छोड़ चुके कश्मीरी पंडित दोबारा अपनी सरजमीं पर वापस होंगे। आज की राजनीति का हिस्सा लगता है। क्या कश्मीरी पंडितों के लिए आवाज़ उठाते हुए जान देने वाले सैकड़ों मुस्लिम भी नहीं थे ? जिन्हें आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था। जिस तरह से छात्र संघ चुनाव के दौरान कृष्णा के 10 मिनट से ज्यादा चले लंबे भाषण में कश्मीर की महत्ता को बताया जाता है। कश्मीर को ज्ञानियों यानी पंडितों की ज़मीन बताया जाता है, जिस तरह से नाजियों के यहूदियों के कत्लेआम की तुलना मुसलमानों के कश्मीर पंडितों के कत्लेआम से की गई है। कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने की बात की गई है। ऐसा महसूस होता है कि जैसे आज की तारीख में यह कोई सोशल मीडिया की प्रचार सामग्री हो। जिस तरह से आतंकियों के हाथों कश्मीरियों का नरसंहार दिखाया गया है, जिस तरह से पुष्कर नाथ की बहू को उनके बेटे के सामने निर्वस्त्र करने और आरी मशीन से काट दिए जाने के दृश्य फिल्माए गये हैं। एक साथ 24 स्त्री-पुरुष-बच्चे को बारी-बारी से गोली मारते दिखाया गया है, निश्चित रूप से किसी का भी खून खोल उठेगा।
    फिल्म में जिस तरह से फिल्म में कश्मीरी पंडितों के दर्द को उभारा गया है तो लगता है कि जैसे उनके दर्द को राजनीतिक रूप से बेचने के लिए तैयार किया गया हो। मस्जिद और धार्मिक नारे का  उपयोग, कम्युनिस्टों और जेएनयू छात्रों के खिलाफ नफरत, मुस्लिम नेतृत्व को नकारना किसी राजनीति का मकसद लगता है। यदि फिल्म में कश्मीरी पंडितों से हमदर्दी या उन्हें सहयोग करने वालों का भी जिक्र किया जाता तो एक अच्छा सामाजिक संदेश जाता।
    ऐसे में मंथन करने की जरूरत इस बात की है कि देश में बन रहा यह नफरत का माहौल देश और समाज को कहां ले जाएगा ? इस फिल्म से बनाये जा रहे माहौेल के परिणाम क्या आएंगे ? क्या इस फिल्म के माध्यम से एक विशेष पार्टी के वोटबैंक को संगठित करने का प्रयास नहीं किया गया है ? क्या इस फिल्म के खुद सरकार के बढ़ावे के बाद अब आजादी के बाद हुए दंगों पर फ़िल्में बननी शुरू नहीं हो जाएंगी ?
    क्या 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख दंगों पर फिल्म नहीं बनेगी ? क्या 1989 में बिहार भागलपुर दंगे पर फिल्म नहीं बनेगी ? गुजरात के गोधरा में हुए दंगे पर फिल्म नहीं बनेगी ?  2013 में हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगे पर फिल्म नहीं बनेगी ?  कल्पना कीजिये जिस तरह से भाजपा ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म का प्रमोशन किया है। यदि ऐसे ही देश में हुए कत्लेआम और दंगों पर फिल्म बनकर सरकारें और राजनीतिक दल उनके प्रमोशन में लग जाएं तो देश और समाज का क्या होगा ? क्या कत्लेआम और दंगों के समय से ज्यादा दूषित माहौल अब नहीं हो जाएगा ?
  • आखिर अमित शाह ने मायावती और BSP को क्यों बताया मजबूत ?

    आखिर अमित शाह ने मायावती और BSP को क्यों बताया मजबूत ?

    द न्यूज 15

    लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान अब चरम पर है। चार चरणों की वोटिंग के बाद बचे हुए तीन फेज के लिए सभी दलों और नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी है। एक तरफ जहां विरोधी दलों के नेता एक दूसरे के लिए बेहद तीखे और चुभने वाले शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इस बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह की ओर से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की तारीफ ने सबको चौंका दिया। पिछले कुछ सालों में अपने कई दांव और कठिन हालात में चौंकाने वाले नतीजे लाने की वजह से बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले शाह ने आखिर विरोधी दल को मजबूत क्यों बताया? आखिर इसके पीछे उनका क्या गेम प्लान हो सकता है? आइए समझने की कोशिश करते हैं।
    अमित शाह के बयान के मायने तलाशने से पहले आइए एक बार फिर आपको याद दिला दें कि उन्होंने कहा क्या है। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अमित शाह ने एक सवाल के जवाब में कहा, “बसपा ने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है। मुझे विश्वास है कि उन्हें वोट मिलेगा। मुझे नहीं पता कि यह कितनी सीटों में तब्दील होगा लेकिन बसपा को वोट मिलेगा।” शाह ने कहा कि मायावती की जमीन पर अपनी पकड़ है। जाटव वोटबैंक मायावती के साथ जाएगा। मुस्लिम वोट भी बड़ी मात्रा में मायावती के साथ जाएगा।
    राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अमित शाह ने यूं ही बसपा को मजबूत नहीं बताया, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा गेमप्लान है। दरअसल, यूपी चुनाव में कहने को तो चार राष्ट्रीय और कई क्षेत्रीय दल दावेदारी पेश कर रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही माना जा रहा है। ऐसे में बीजेपी की कोशिश है कि मुकाबला त्रिकोणीय दिखे, ताकि भाजपा विरोधी दलों का बंटवारा हो सके। यह माना जा रहा है कि बसपा और कांग्रेस को कमजोर आंकते हुए अधिकांश मुस्लिम वोटर्स सपा की ओर जा रहे हैं। यही वजह है कि अमित शाह ने बसपा को मजबूत बताते हुए यह भी कहा कि मुस्लिम वोट भी बसपा को मिल रहा है। यही हाल जाटव वोटर्स का भी है। जाटव को बसपा का कोर वोटर माना जाता है, इस बार मायावती के मुकाबले में नहीं दिखने की वजह से जाटव मतदाता भी नया ठिकाना तलाश सकते हैं। ऐसे में बीजेपी को आशंका है कि यदि इन्होंने सपा की ओर रुख किया तो नुकसान उठाना पड़ सकता है।
    ‘त्रिकोणीय मुकाबला चाहती है बीजेपी’ : वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं, ”मुझे लगता है कि बीजेपी को अहसास है कि यूपी में बाइपोलर चुनाव होने से कुछ मुश्किल हो सकती है, ऐसे में वह चाहेंगे कि मुकाबला त्रिकोणीय हो। सवाल यह भी उठता है कि क्या बीजेपी को यह आशंका है कि मायावती के कोर वोटर्स यदि मूव करते हैं तो वह बीजेपी की तरफ आने की बजाय सपा की ओर जा सकते हैं। एक सवाल यह भी उठता है कि यदि बीजेपी मायवती की तारीफ करती है तो इससे बसपा को फायदा होगा या नुकसान? यदि बसपा के वोटर्स में यह संदेश जाता है तो कि बीजेपी और बसपा में नजदीकी बढ़ रही है तो ऐसे मतदाता जो बीजेपी को नहीं चाहते, सपा की ओर रुख कर सकते हैं।”
    डिफॉल्ट वोट का अखिलेश को फायदा : सतीश के सिंह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को ‘डिफॉल्ट वोट’ का फायदा हो सकता है। इसका मतलब है कि सपा के कोर वोटर ‘मुस्लिम यादव’ और जो अन्य समुदाय के ऐसे लोग जो सरकार से खुश नहीं है, डिफॉल्ट में अखिलेश की तरफ आ रहे हैं। कुछ ऐसे दलित मतदाता जिन्हें लग रहा है कि बसपा इस बार निर्णायक स्थिति में नहीं है और वह बीजेपी को पसंद नहीं करते है, वे डिफॉल्ट में सपा की ओर जा सकते हैं। ऐसे में बीजेपी की रणनीति है कि बसपा के वोटर्स हाथी के साथ रहें तो बीजेपी का फायदा है।

  • आखिर नसबंदी की जिम्मेवारी भी महिलाओं पर क्यों ?

    आखिर नसबंदी की जिम्मेवारी भी महिलाओं पर क्यों ?

    (पुरुष नसबंदी की कम लागत और सुरक्षित प्रक्रिया के बावजूद, भारत की एक तिहाई से अधिक यौन सक्रिय आबादी में महिला नसबंदी को क्यों अपनाया जा रहा है ?  पुरुष नसबंदी का विकल्प नगण्य-सा है। हमारे राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्तमान में 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं के बीच गर्भनिरोधक के उपयोग में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों और गर्भनिरोधक विकल्पों को नियंत्रित करने के लिए पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण जारी हैं। )

    प्रियंका ‘सौरभ’

    प्रजनन अधिकार कानूनी और स्वास्थ्य से संबंधित स्वतंत्रताएं हैं जो दुनिया भर के देशों में अलग-अलग हैं। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों में कानूनी और सुरक्षित गर्भपात का अधिकार; जन्म नियंत्रण का अधिकार; जबरन नसबंदी और गर्भनिरोधक से मुक्ति; अच्छी गुणवत्ता वाली प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने का अधिकार; और मुफ्त और सूचित प्रजनन के लिए शिक्षा और पहुंच का अधिकार शामिल है।

    हालाँकि, हमारे देश में महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों की मान्यता अभी भी नगण्य है। महिलाओं के लिए एक सख्त एजेंसी की कमी सबसे बड़ी बाधा है। प्रजनन और यौन अधिकारों की अनुपस्थिति का महिलाओं की शिक्षा, आय और सुरक्षा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे “अपना भविष्य खुद बनाने में असमर्थ” हो जाती हैं।

    वर्तमान में 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं में गर्भनिरोधक के उपयोग में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है यानी 2015-16 में 53.5% से 2019-20 में 66.7% हो गई है। कंडोम के उपयोग में उल्लेखनीय उछाल देखा गया है, जो 5.6% से बढ़कर 9.5% हो गया। भारत में परिवार नियोजन की अवधारणा की स्थापना के कई वर्षों बाद भी केवल महिला नसबंदी सबसे लोकप्रिय विकल्प बनी हुई है। पुरुष नसबंदी का विकल्प नगण्य-सा है।

    कम उम्र में शादी, जल्दी बच्चे पैदा करने का दबाव, परिवार के भीतर निर्णय लेने की शक्ति की कमी, शारीरिक हिंसा और यौन हिंसा और पारिवारिक संबंधों में जबरदस्ती के कारण शिक्षा कम होती है और बदले में महिलाओं की आय कम होती है। अपने प्रजनन अधिकारों पर कमी के कारण लगातार बच्चे पैदा करने से वह ज्यादातर एक गृहिणी बन गई है, जिससे वह वित्त के लिए जीवनसाथी पर निर्भर हो गई है।

    पितृसत्तात्मक मानसिकता और बच्चों के बीच उचित दूरी के बिना अपेक्षित संख्या में बेटे पैदा होने तक बच्चे को जन्म देना उसे शारीरिक रूप से कमजोर बनाता है और उसके जीवन को खतरे में डालता है। समाज में बेवजह ये डर कि शिक्षित महिलाओं को पति और उसके परिवार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, उसके शिक्षा अधिकारों को कही न कही कम कर देता है।

    पुरुष नसबंदी की कम लागत और सुरक्षित प्रक्रिया के बावजूद, भारत की एक तिहाई से अधिक यौन सक्रिय आबादी के साथ महिला नसबंदी सबसे व्यापक प्रसार विधि है। भारत में प्रजनन अधिकारों को बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, लिंग चयन और मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के मुद्दों जैसे चुनिंदा मुद्दों के संदर्भ में ही समझा जाता है।

    महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों, उनके पोषण की स्थिति, कम उम्र में शादी और बच्चे पैदा करने के जोखिम पर ध्यान देना चिंता का संवेदनशील मुद्दा है और अगर महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है तो इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही बड़े स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से जमीनी स्तर तक स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। भारत में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के प्रचार और संरक्षण को संबोधित करने और पहचानने के लिए उचित कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।

    महिलाओं के लिए उपयुक्त, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और संबंधित सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता है। स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्रजनन स्वास्थ्य सहित महिलाओं के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए। महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य के सभी मुद्दों की देखभाल करने के लिए प्रजनन अधिकार अधिनियम के रूप में कानून बने चाहे वह चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने या जागरूकता पैदा करने के संबंध में हो या महिलाओं से संबंधित स्वास्थ्य नीतियां और कार्यक्रम का।

    इसलिए, यह समय की मांग है कि नीति  और व्यापक स्तर पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए। बेहतर  और स्वस्थ प्रजनन व्यवहार को बढ़ावा देना जो  लड़कियों और युवाओं को जीवन रक्षक यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को पूरा करें। सार्वजनिक बहस और मांगों में  इन मुद्दों को लाने के लिए नागरिक समाज की जिम्मेदारी है।

    पिछले कुछ वर्षों में, महिलाओं ने लैंगिक अंतर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति के साथ कई क्षेत्रों में काफी प्रगति की है। फिर भी महिलाओं और लड़कियों की तस्करी, मातृ स्वास्थ्य, हर साल गर्भपात से होने वाली मौतों की वास्तविकताओं ने उन सभी विकासों के खिलाफ कड़ा प्रहार किया है।

    जैसा कि स्वामी विवेकानंद के शब्दों में, “जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक दुनिया के कल्याण के बारे में सोचना असंभव है। एक पक्षी के लिए केवल एक पंख पर उड़ना असंभव है।”

  • आखिर छह साल में भी क्यों नहीं खत्म हुई सुब्रत राय की पैरोल : अभय देव शुक्ल 

    आखिर छह साल में भी क्यों नहीं खत्म हुई सुब्रत राय की पैरोल : अभय देव शुक्ल 

    ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सहारा के चेयरमैन के विदेश भागने का जताया अंदेशा 

    द न्यूज 15 

    बस्ती/लखनऊ। 25 फरवरी को उत्तर प्रदेश के बस्ती में सहारा के खिलाफ हल्ला बोल जनांदोलन की तैयारी में जुटे ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय देव शुक्ल लगातार सहारा के चैयरमैन सुब्रत राय के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। उन्होंने कहा है कि सुब्रत राय देश की संवैधानिक संस्थाओं को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह देश में अपने आप में कानून के साथ खिलवाड़ है कि सहारा इण्डिया के सर्वोच्च पद पर आसीन-व्यक्ति सुब्रत राय को 2016 में उनकी मां के निधन पर पैरोल मिली थी कि आज की तारीख में इस पैरोल को छह साल होने जा रहे हैं पर पैरोल खत्म नहीं हुई है। अभय शुक्ल का कहना है कि देश में लाखों मुकदमें ऐसे हैं जिन पर गिरफ़्तारी के आदेश के बाद भी सरकार ने क़ोई एक्शन नहीं लिया है। प्रभावशाली लोगों पर सरकार इतनी  मेहरबान  क्यों  है ? उन्होंने आरोप लगाया है कि यह सब “3000 करोङ” में ङील का नतीज़ा है। उन्होंने कहा है कि यह व्यक्ति न सिर्फ़ जेल से बाहर है, बल्कि कभी भी देश छोड़कर विदेश भी भाग सकता है।

    उन्होंने प्रश्नात्मक लहजे में कहा है कि किसी आम आदमी को अपनी मां के निधन पर जमानत मिले और छह साल तक उसे खुला छोड़ दिया जा सकता है। देश में बड़ी शान से कहा जाता है कि कानून सभी के लिए बराबर हैं तो फिर एक आम आदमी को भी छह साल तक की पैरोल की व्यवस्था की जाये।
     उन्होंने कहा है कि एक बार नियामक ने कोशिशें की भी तो सरकार ने झिड़क दिया। उनका कहना है कि और तो और जिन वज़हो से सुब्रत राय को जेल और पासपोर्ट अदालत में जमा करवाया गया था। सरकार के कहने पर और नियामक के विरोध के बावजूद अदालत ने पासपोर्ट रिलीज कर दिया।
  • आखिरकार RLD चीफ Jayant Chaudhary ने नहीं ही किया मतदान, समय से मथुरा नहीं पहुंच सके | The News15

    आखिरकार RLD चीफ Jayant Chaudhary ने नहीं ही किया मतदान, समय से मथुरा नहीं पहुंच सके | The News15

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के पहले चरण के लिए आज जमकर वोटिंग हुई. मगर चुनावी व्यस्तता के चलते आरएलडी चीफ जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) आखिरकार मतदान नहीं ही कर पाए. बताया जा रहा है कि बिजनौर में रैली के चलते जयंत (Jayant Chaudhary News) समय पर मथुरा नहीं पहुंच सके और इस तरह से वह वोट नहीं डाल पाए. इससे पहले खबर थी कि भाजपा के हमलों के बाद वह वोट डालने जाएंगे, मगर शाम 6 बजे तक वह मतदान स्थल पर नहीं पहुंच पाए थे. #UPElection2022 #JayantChaudhary #UttarPradesh

  • आखिर क्यों Virat Kohli Anushka Sharma ने अपनी Daughter Vamika का Face छिपाया ? | The News15

    आखिर क्यों Virat Kohli Anushka Sharma ने अपनी Daughter Vamika का Face छिपाया ? | The News15

    Virat Kohli Anushka sharma Daughter Vamika kohli face revealed for the first time Video हुआ Viral। विराट और अनुष्का ने कभी भी अपनी Daugher Vamika Kohli का चेहरे नही दिखाया है। लेकिन, अब वामिका की एक तस्वीर कैमरे में कैद हो गई है और Social Media पर खूब वायरल हो रही है।

  • आखिर क्या है मध्य प्रदेश की नई आबकारी नीति में ? 

    आखिर क्या है मध्य प्रदेश की नई आबकारी नीति में ? 

    MP में 1 अप्रैल से सस्ती होगी शराब : होम बार लाइसेंस को मिली मंजूरी, देशी-विदेशी शराब अब एक ही दुकान पर मिलेगी

    द न्यूज 15 

    भोपाल। मध्य प्रदेश में नए वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से नई आबकारी नीति लागू हो जाएगी। नई आबकारी नीति में अंगूर के अलावा जामुन से भी शराब बनाने की अनुमति दी जाएगी। वहीं विदेशी शराब सस्ती होगी। कैबिनेट ने घर पर शराब रखने की सीमा भी बढ़ा दी है। अब लोग पहले के मुकाबले 4 गुना ज्यादा शराब घर पर रख सकेंगे। इसके अलावा जिस शख्स की सालाना आय 1 करोड़ रु है, वो घर पर बार भी खोल सकेगा।
    विदेशी शराब पर एक्साइज ड्यूटी कम होगी : प्रदेश में शराब की नई दुकानें नहीं खोली जाएंगी। आबकारी विभाग ने उप-दुकानें खोलने का प्रस्ताव दिया था, जिसे मुख्यमंत्री ने खारिज कर दिया। शिवराज कैबिनेट ने मंगलवार को वर्ष 2022-23 के लिए नई शराब नीति को मंजूरी दे दी है। इसके मुताबिक विदेशी यानी अंग्रेजी शराब सस्ती होगी। क्योंकि सरकार ने विदेशी शराब पर एक्साइज डयूटी 10 से 13% तक कम करने का निर्णय लिया है। इससे शराब की डिमांड बढ़ेगी और ज्यादा बिक्री होगी। प्रदेश में फिलहाल 2544 देशी, 1061 विदेशी शराब दुकानें हैं। सरकार के प्रवक्ता व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि नई शराब नीति नए वित्तीय वर्ष यानी 1 अप्रैल 2022 से लागू होगी।
    देशी-विदेशी शराब की दुकानें अलग-अलग नहीं होंगी : नई आबकारी नीति में प्रावधान किया गया है कि अब से देशी और अंग्रेजी शराब की बिक्री एक ही दुकान से होगी। प्रदेश में 11 डिस्टलरी के जिलों में सप्लाई के लिए टेंडर जारी नहीं होंगे। ऐसे में सभी 11 डिस्टलरी को सभी संभागों में विदेशी शराब की तरह ही गोदामों में शराब रखना होगी। वहां से ठेकेदार शराब की क्वालिटी और कीमत का अध्ययन कर शराब अपनी दुकानों के लिए खरीदेंगे।
    भोपाल और इंदौर में माइक्रो बेवरेज को मंजूरी : भोपाल और इंदौर के लिए माइक्रो बेवरेज बनाई जाएंगी। माइक्रो बेवरेज छोटी यूनिट होती हैं, जिनमें रोज 500 से 1000 लीटर शराब बनाने की क्षमता होती है। माइक्रो बेवरेज प्लांट होटलों में लगाए जा सकते हैं। इनमें फ्रेश बीयर (कम एल्कोहल वाली शराब) मिल सकेगी। एयरपोर्ट पर अंग्रेजी शराब की दुकानें होंगी। मॉल्स में काउंटर पर शराब भी मिल सकेगी।
    घर पर शराब रखने की लिमिट भी बढ़ाई : शिवराज सरकार ने होम बार लाइसेंस देने का निर्णय भी लिया है। अगर किसी व्यक्ति की सालाना आय एक करोड़ रुपए है, तो वह व्यक्ति घर पर बार खोल सकता है। इसके अलावा, घर पर शराब रखने की लिमिट भी सरकार ने बढ़ा दी है। जिसके बाद वर्तमान लिमिट की 4 गुना शराब घर पर रखी जा सकेगी। फिलहाल घर में एक पेटी बीयर व 6 बॉटल शराब रखने की अनुमति है। इसके अलावा आलीराजपुर और डिंडौरी में पायलट प्रोजेक्ट के तहत महुए से बनने वाली शराब लाई जा रही है। महुआ की शराब हैरिटेज नीति से ग्रामीण इलाकों की शराब को बाहर बेचने के लिए बाजार मिलेगा।

  • आखिर कौन जिम्मेदार है भिवानी हादसे का ?

    आखिर कौन जिम्मेदार है भिवानी हादसे का ?

    चरण सिंह राजपूत 

    जब खेल है जनता की भलाई के लिए बनाए गये तंत्रों का। यदि मौजूदा हालात की बात करें तो जो तंत्र जनता की भलाई के लिए बने होने का दंभ भरते हैं वे सभी सत्ता पावर और पूंजीपतियों के दबाव में काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। या यह कहें कि धंधेबाजों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं। हरियाणा में अरावली पहाड़ियों को बचाने के नाम पर गरीब जनता को तो परेशान किया जा रहा है पर खनन माफियाओं पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि खनन के चलते भिवानी में जो हादसा हुआ है, उसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं ?  तमाम प्रतिबंधों के बावजूद आखिरकार अरावली पहाड़ी पर खनन कैसे हो रहा है ?

    हरियाणा के भिवानी डाडम खनन क्षेत्र में खनन के दौरान पहाड़ दरकने से आधा दर्जन वाहनों समेत 12 से अधिक लोगों के पहाड़ के मलबे में दब होने की बात सामने आ रही है। हादसे में अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर ये खनन किसके इशारे पर चल रहा था ? हरियाणा सरकार क्या कर रही थी ? घटना स्थल पर मीडियाकर्मियों के जाने पर पाबंदी लगाने का मतलब सरकार का खनन माफियाओं का बचाना माना जा रहा है। क्या अवैध अवैध खनन रुकवाने की जिम्मेदारी शासन प्रशासन की नहीं है।

    दरअसल तोशाम विधानसभा क्षेत्र के तहत डाडम गांव खनन कार्यो के लिए जाना जाता है। जब अरावली पहाड़ियों के लिए सरकार और अदालत इतनी चिंतित है तो फिर ये खनन क्यों नहीं रुका ? जिस सरकार और जिस प्रशासन ने अरावली पहाड़ी पर अतिक्रमण का नाम देकर फरीदाबाद के खोरी गांव को उजाड़ दिया उस सरकार और प्रशासन को यह खनन दिखाई नहीं दिया ?
    यह भी अपने आप में प्रश्न है कि ग्रीन ट्रीब्यूनल के कड़े रुख को देखते हुए डाडम क्षेत्र की पहाड़ियों में खनन कार्य को प्रदूषण के चलते प्रशासन ने काफी समय पहले ही बंद कर दिया था। यदि यह खनन बंद था तो फिर कौन लोग थे जो जिनको सरकार और कोर्ट का दर नहीं था ? अभी तक किसी की गिरफ़्तारी क्यों नहीं की गई है ?  बताया जा रहा है कि क्रेशर प्लांट दोबारा शुरू होने की उम्मीद में यहां खनन गतिविधियां फिर शुरू हो गई थी। जब अरावली पहाड़ियों को अतिक्रमण मुक्त किया जा रहा है तो फिर खनन क्यों नहीं रुक पा रहा है ?

    जमीनी हकीकत तो यह है कि भिवानी जैसे हादसे हरियाणा में जगह जगह न्यौता दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद फरीदाबाद में अरावली हिल्स की अवैध बसावत को तो उजाड़ दिया गया पर खनन माफिया अरावली हिल्स की हरियाली, खनिज पदार्थों, जंगली जीवन और दूसरी प्राकृतिक संपदा का लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। गुरुग्राम में तो अवैध फार्म हाउसों ने न सिर्फ अरावली का सीना छलनी कर दिया, बल्कि रईसजादे व माफिया पहाड़ी का महत्व ही समाप्त करने पर आमादा हैं।
    यही हाल मेवात इलाके में अवैध खनन के कारण हो रहा है। कासन, मानेसर, नौरंगपुर, राठीवास, सकतपुर, गैरतपुर बांस, रायसीना, बंधवाड़ी ग्वालपहाड़ी, सोहना, रिठौज, दमदमा समेत कई ऐसे इलाके हैं जहां पांच हजार से ज्यादा फार्म हाउस अवैध तरीके से बना लिए गए हैं। आज भी यंहा अवैध तरीके से फार्म हाउस बनाने का काम धड़ल्ले से चालू हैं।
    दरअसल 1980 में एक बिल्डर ने अंसल रिट्रीट के नाम से गांव रायसीना में 1200 एकड़ पर करीब 700 फार्महाउस विकसित करने का प्लान बनाया था। हालांकि इसी दौरान यहां निर्माण पर प्रतिबंध लग गया। नोटिफिकेशन जारी हुआ, लेकिन उसका पालन नहीं हुआ।  निर्माण होते रहे, टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने सर्वे कराया, जिसमे पता चला कि 500 से ज्यादा फार्म हाउस  विकसित हो चुके हैं।
    अरावली पर्वत श्रृंखला में अवैध रूप से बने करीब 500 फार्म हाउस को मलबे में तब्दील करने का प्लान जनवरी महीने में बनाया गया था। तत्कालीन डीसी ने दावा किया था कि अगले 2 से 3 महीने में कार्यवाई की जाएगी।
    पर्यावरण प्रेमियों की माने तो दिल्ली एनसीआर के लिए अरावली एक बड़ी लाइफ लाइन है और इसे बचना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट और NGT ने कई बार इस अरावली को बचाने के लिए आदेश दिए हैं, जिस तरह से दिल्ली एनसीआर में जनसंख्या बढ़ रही है और मल्टी स्टोरी इमारतें बन रही हैं। उस लिहाज से अरावली को बचाना बेहद जरूरी है ताकि मानव जीवन बच सके. क्योंकि अरावली ही एक ऐसी श्रंखला है जहां साफ हवा और पानी मिल सकती है। क्योंकि हर साल देखते है को दिल्ली एनसीआर में किस कदर हवा ज़हरीली होती है और ऑफिस स्कूल तक बंद करने पड़ते है।  अरावली की इन पहाड़ियों में खतरनाक जंगली जानवर रहते हैं, जिनमे तेंदुआ, लक्कड़ बग्घा, गीदड़  जैसे जानवर अक्सर यंहा देखे जाते हैं, लेकिन जैसे जैसे अरावली की पहाड़ियों में खनन कर बड़े बड़े फार्म हाउस बन रहे हैं, वैसे ही अब ये जंगली जानवर या तो पहाड़ो से नीचे आकर सड़क पर वाहनों का शिकार हो जाते हैं या इन पहाड़ियों से विलुप्त होते जा रहे है और इनकी जगह अब नजर आते हैं।

    दरअसल गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा तक फैली अरावली की पहाड़ियां एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में आती हैं। दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक माना जाने वाला यह क्षेत्र खनिजों के मामले में काफी समृद्ध है, जिसने इसे खनन का एक प्रमुख क्षेत्र बना दिया है। ,

    ग्राउंडवाटर रिचार्ज के लिहाज से यह सीमावर्ती काफी अहम हैं और इसे प्रदूषण प्रभावित दिल्ली-एनसीआर का ‘ग्रीन लंग’ तक कहा जाता है। इसे पश्चिमी रेगिस्तान के उत्तर प्रदेश में गंगा के किराने बसे अनाज का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्रों तक पहुंचने में आखिरी अवरोध भी माना जाता है।
    यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पिछले कुछ वर्षों में पारित आदेशों के तहत यहां खनन पर तो रोक लगी हुई है, लेकिन अवैध अतिक्रमण और निर्माण के साथ गैरकानूनी तरीके से खनन लगातार यहां के लिए एक बड़ा संकट बना हुआ है।  इस पर्वत श्रृंखला के अत्यधिक दोहन ने स्थानीय पारिस्थितिक परिवर्तनों को लेकर चिंता बढ़ा दी है। खोरी गांव अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित था, जहां कभी एक खदान होती थी, कोर्ट के आदेश पर 2009 में फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात के अरावली पहाड़ी क्षेत्रों में सभी खनन गतिविधियों पर रोक लग गई थी। खोरी में बस्तियां बसने की शुरुआत 1990 के दशक में हुई. शुरू में यहां खदान श्रमिक रहते थे, लेकिन बाद में और लोगों के आने से इसका दायरा बढ़ गया था।

  • आखिर क्या हुआ, जब सलमान खान को सांप ने काटा

    आखिर क्या हुआ, जब सलमान खान को सांप ने काटा

    रायगढ़| बॉलीवुड के जाने माने सितारे सलमान खान को उनके जन्मदिन (27 दिसंबर) की पूर्व संध्या पर उनके फार्महाउस पर सांप ने काट लिया था। जो कि रायगढ़ जिले में नवी मुंबई के करीब है। फार्महाउस एक हरे, घने जंगलों वाले क्षेत्र में स्थित है। इंडस्ट्री के सूत्रों ने यह जानकारी दी। कि सांप जहरीला नहीं था। शनिवार को, सलमान खान को ‘बिग बॉस 15’ में आलिया भट्ट और एसएस राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ के अन्य कलाकारों के साथ प्री-बर्थडे पार्टी करते देखा गया।

    सांप के काटने से सलमान खान की सुरक्षा में लगे लोगों और परिवार में खलबली मच गई। उन्हें इलाज के लिए नवी मुंबई के एक अस्पताल में ले जाया गया और बाद में उन्हें छुट्टी दे दी गई। आईएएनएस के प्रयासों के बावजूद, उनका परिवार इस मामले पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं था।

    परिवार के करीबी सूत्रों ने कहा कि स्टार का पनवेल गेटअवे होम, जहां खान क्वालिटी टाइम बिताते है, वहां सांप अधिक है।

    कुछ साल पहले एक कोबरा भी वहीं देखा गया था, लेकिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी।

  • आखिर क्यों ड्राइवर्स बैठे धरने पर ?

    आखिर क्यों ड्राइवर्स बैठे धरने पर ?

    जंतर मंतर पर आज जन सेवा ड्राइवर पार्टी धरने पर बैठे है. यह लोग सरकार से अपनी मांग को लेकर अड़े हुए है। आपको बता दे की यह लोग ट्रैफिक पुलिस द्वारा चालान काटे जाने पर काफी ज्यादा परेशान है। अगर सरकार इनकी मांग को पूरा नहीं करती है तो, इनका कहना है की फिर यह सिस्टम को ठीक करने के लिए सिस्टम का हिस्सा बनेगे।