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  • क्रिकेट ‘सुपर स्पेल ईयर’ रहा 2021 : केएल राहुल, भारत

    क्रिकेट ‘सुपर स्पेल ईयर’ रहा 2021 : केएल राहुल, भारत

    सेंचुरियन, (द न्यूज़ 15)| सेंचुरियन में टीम इंडिया की पहली टेस्ट जीत के बाद सलामी बल्लेबाज के एल राहुल ने गुरुवार को कहा कि 2021 भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे अच्छे सालों में एक के रूप में जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि यहां पहले टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 123 रन बनाना, विदेशी धरती पर बनाए गए अन्य शतकों के जैसा ही था।

    राहुल के सातवें टेस्ट शतक के अलावा, पहली पारी में मयंक अग्रवाल के साथ 117 रन की ओपनिंग साझेदारी ने बॉक्सिंग डे टेस्ट में भारत को 113 रन की जीत दर्ज करने में मदद की, जिससे तीन मैचों की श्रृंखला में 1-0 से बढ़त मिली।

    राहुल ने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मुझे लगता है कि यहां की परिस्थितियों में खेलना चुनौतीपूर्ण होता है। मुझे यह शतकीय पारी खेलने के लिए बहुत हिम्मत और अनुशासन लगा, जिससे टीम जीतने की स्थिति में पहुंच सकी।”

    टेस्ट उपकप्तान ने ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और अब दक्षिण अफ्रीका में शानदार विदेशी जीत के कारण भारतीय क्रिकेट के लिए 2021 को ‘सुपर स्पेशल ईयर’ के रूप में अभिव्यक्त किया।

    उन्होंने कहा, “यह टीम इंडिया के लिए एक सुपर स्पेशल साल है। इस साल हमने जिस तरह की उपलब्धियां हासिल की हैं, वह वास्तव में खास है। यह भारतीय क्रिकेट इतिहास, विशेष रूप से टेस्ट क्रिकेट में सबसे अच्छे वर्षों में से एक के रूप में जाना जाएगा। हमने वास्तव में अच्छा काम किया है। पिछले कुछ वर्षों से एक खिलाड़ी के रूप में कड़ी मेहनत कर रहा हूं और ऐसे परिणाम देखकर वास्तव में खुश हूं।”

    जीत के बाद ड्रेसिंग रूम के मिजाज के बारे में बात करते हुए राहुल ने कहा, “इस समय ड्रेसिंग रूम का माहौल बहुत अच्छा है। जाहिर है, यह एक शानदार टेस्ट जीत है। कोई भी एशियाई टीम यहां यहां नहीं जीत पाई है और हमने सेंचुरियन में जीत हासिल की है।”

    29 वर्षीय खिलाड़ी को अपने प्रदर्शन के लिए ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ का पुरस्कार मिला। उन्होंने श्रृंखला में पहली जीत का श्रेय सबक को दिया। हमने पिछले दौरे से बहुत कुछ सीखा। पिछले कई दौरे से हमे कई सारी चीज सीखने को मिली है। हमने एक टीम के रूप में इस पर चर्चा की है कि दक्षिण अफ्रीका जैसे देश में क्या बेहतर करने की आवश्यकता है, जिससे हमें सफलता मिले।”

    उन्होंने आगे कहा, “हमने टीम के साथ अपने अनुभव साझा किए हैं। मुझे लगता है कि इससे हमें वास्तव में मदद मिली है और इस बार बेहतर तैयारी की है। टीम के प्रशिक्षण, तैयारी और मानसिकता ने हमें श्रृंखला में इतनी शानदार शुरुआत दी है।

  • भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, केन्या, युगांडा के उभरते हुए बाजारों में ‘क्रॉस बॉर्डर’ सहयोग

    भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, केन्या, युगांडा के उभरते हुए बाजारों में ‘क्रॉस बॉर्डर’ सहयोग

    नई दिल्ली| नीति आयोग ने यूएनसीडीएफ बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और राबो फाउंडेशन के साथ भागीदारी में साउथ-साउथ इनोवेशन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से भारत, इंडोनेशिया, मलावी, मलेशिया, केन्या, युगांडा, जाम्बिया के उभरते हुए बाजारों में ‘क्रॉस बॉर्डर’ सहयोग स्थापित हो सकेगा। नीति आयोग और संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (यूएनसीडीएफ) ने अपने महत्वाकांक्षी नवाचारी एग्री-टेक कार्यक्रम के लिए अपना पहला एग्री-टेक चैलेंज कोहॉर्ट शुरू किया है। इसका उद्देश्य कोरोना महामारी के परिणामस्वरूप पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में एशिया और अफ्रीका के छोटे किसानों की मदद करना है। यह कार्यक्रम 21 दिसम्बर, 2021 आयोजित किया गया।

    कोहॉर्ट की वर्चुअल घोषणा के दौरान नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि भारत में, 50 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर करती है और इसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-18 प्रतिशत योगदान है। चूंकि कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो भावनात्मक रूप से लोगों को आकर्षित करता है। भारतीय एजेंसियों को देश के उद्योग परि²श्य को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत उपाय हेतु प्रेरित किया जाता है। हम नीति आयोग में कृषि क्षेत्र के परि²श्य को बेहतर बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल होने तक और उसके बाद भी काम करना जारी रखेंगे।

    यह कोहॉर्ट मृदा विश्लेषण, कृषि प्रबंधन और इंटेलिजेंस, डेयरी इकोसिस्टम, कार्बन क्रेडिट, सौर-आधारित कोल्ड स्टोरेज, डिजिटल मार्केटप्लेस, फिनटेक, पशुधन बीमा, आदि सहित छोटे किसानों की मूल्य श्रृंखला में समाधानों की विविध श्रेणी का प्रतिनिधित्व करता है।

    इंक्लूसिव फाइनेंस प्रैक्टिस एरिया, यूएनसीडीएफ निदेशक, हेनरी डोमेल ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यूएनसीडीएफ डिजिटल युग में विशेष रूप से कम विकसित देशों में किसी को पीछे नहीं छोड़ने की दिशा में काम कर रहा है। एशिया और अफ्रीका में हमारा जुड़ाव कमजोर और सहायता प्राप्त करने वाले एसडीजी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सहयोगात्मक पहल पर आधारित है। दोनों क्षेत्रों के बीच समन्वय और सीखने के व्यापक अवसर हैं, जो एक उन्नत नवाचारी इकोसिस्टम द्वारा रेखांकित किए गए हैं, ये अनेक साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए काम कर रहे हैं। साउथ-साउथ प्लेटफॉर्म इस दिशा में ज्ञान और समाधानों के आदान-प्रदान को सक्षम बनाने के लिए परस्पर सर्जित प्रयास है, जिसमें एग्रीटेक चैलेंज उद्घाटन पहल के रूप में मौजूद है।

    आने वाले हफ्तों में, चयनित प्रतिभागियों को प्रत्यक्ष उद्योग संबंध, लक्षित बाजार और क्षेत्र की समझ, निवेशक जुड़ाव, देश की सीमाओं से बाहर परिज्ञान का विस्तार तथा वित्तीय अनुदान प्राप्त करने के अवसर के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय विस्तार को सक्षम बनाने में सहायता मिलेगी।

    अपने संबोधन में, मिशन निदेशक, अटल नवाचार मिशन, नीति आयोग, डॉ. चिंतन वैष्णव ने कहा कि पिछले एक दशक में भारत का नवाचार इकोसिस्टम तेजी से परिपक्व हुआ है और भारतीय उद्यमियों और शोधकर्ताओं की रचनात्मकता और जोश सबसे कठिन कुछ सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एग्रीटेक चैलेंज छोटे किसानों के वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के बारे में ध्यान केन्द्रित करता है और यह वैश्विक वित्तीय स्वास्थ्य के लिए वैश्विक केन्द्र के तहत यूएनसीडीएफ के कार्य के हिस्से के रूप में नए बाजार में प्रतिभागियों को अपने समाधान तैयार करने और उनका परीक्षण करने में मदद करने के लिए काम करेगा और समाधानों को आगे बढ़ाने में भी योगदान देगा।

    एग्रीटेक चैलेंज अंतर्राष्ट्रीय विस्तार की तैयारी में मदद करने के लिए एक समर्पित एआईएम-ट्रैक के तहत एआईएम-इनक्यूबेटेड प्रारंभिक चरण के इनोवेटरों को भी शामिल कर रहा है। इसके अलावा, सिंचाई प्रौद्योगिकी, फिनटेक, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, स्मार्ट फामिर्ंग, कोल्ड स्टोरेज सहित अन्य क्षेत्रों में 15 अन्य होनहार एआईएम-इनक्यूबेटेड इनोवेटर्स का चयन किया गया है। उन्हें वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा दक्षता प्रशिक्षण के माध्यम से विस्तार का पता लगाने में सहायता प्रदान की जाएगी और उन्हें उद्योग के दिग्गजों के साथ जुड़ने का भी अवसर प्राप्त होगा।

    एसडीजी प्राप्त करने में मदद के लिए एशिया और अफ्रीका में अपनी भागीदारी पर जोर देते हुए, प्राइवेट सेक्टर पार्टनरशिप लीड, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की अंजनी बंसल ने कहा कि एशिया और अफ्रीका में हमारा जुड़ाव एसडीजी हासिल करने में मदद करने की सहयोगी पहल पर आधारित है। दोनों क्षेत्रों के मध्य समन्वय और सीखने के व्यापक अवसर मौजूद हैं, जिन पर नवाचारी इकोसिस्टम द्वारा बल दिया गया है, जो अनेक साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए काम कर रहा है। एग्रीटेक चैलेंज साउथ-साउथ प्लेटफॉर्म की एक उद्घाटन पहल है, जिसे दो क्षेत्रों के बीच ज्ञान और समाधानों के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए बनाया गया है।

  • विविधता से भरे भारत में आतंकवाद के भी विविध रूप हैं!

    विविधता से भरे भारत में आतंकवाद के भी विविध रूप हैं!

    अनिल जैन
    तंकवाद को लेकर हमारे देश में यह धारणा बना दी गई है कि आतंकवादी सिर्फ एक ही धार्मिक समुदाय के होते हैं। इस धारणा को स्थापित करने में एक खास विचारधारा वाली राजनीतिक जमात के साथ ही कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया की भी अहम भूमिका रही है। हालांकि देश-दुनिया में जब भी कोई बड़ी आतंकवादी वारदात होती है या कहीं आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा होती है तो कई लोग तटस्थ या निरपेक्ष भाव से यह कहते मिल जाएंगे कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।

    ऐसा कहने वालों में शासन-प्रशासन और राजनीति के लोग भी होते हैं और मीडिया के भी। यह जुमला सार्वजनिक तौर पर तो वे लोग ज्यादा जोर-शोर से गुनगुनाते हैं जिनके जेहन यह स्थायी तौर पर यह जमा हुआ है कि आतंकवादी सिर्फ एक ही धार्मिक समुदाय के लोग होते हैं, लेकिन निजी बातचीत में उनके मन की बात बाहर आ जाती है।

    यह कथन सुनने में तो बहुत ही मासूम लगता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी ही होता है। लेकिन ऐसा कहने के साथ ही जब कोई यह कहता है कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता तो उसका यह कथन न सिर्फ उसके पूर्व कथन का खोखलापन जाहिर करता है बल्कि उसके अपराध बोध और वास्तविक इरादों का परिचय भी कराता है।

    उसके इस कथन का निहितार्थ होता है कि कोई हिंदू तो आतंकवादी नहीं हो सकता, लेकिन कोई गैर हिंदू जरूर आतंकवादी हो सकता है। इस बात को मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत ही साफ तौर पर कह चुके हैं।

    गौरतलब है कि अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी एक चुनावी सभा कहा था कि देश का पहला आतंकवादी नाथूराम गोडसे हिंदू था, जिसने महात्मा गांधी की हत्या की थी। उनके इस बयान पर तमाम भाजपा और राष्ट्रीय सेवक संघ आरएसएस के नेता बुरी तरह उबल पड़े थे। उसी दौरान प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कमल हासन के बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन इसी के साथ अगली ही सांस में वे यह कहना भी नहीं भूले थे कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता और जो आतंकवादी होता है, वह कभी हिंदू नहीं हो सकता।

    यह बात किसी और व्यक्ति ने कही होती तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश का प्रधानमंत्री ऐसा कैसे कह सकता है? यह पहला मौका था जब देश के किसी प्रधानमंत्री के मुंह से इस तरह की बात निकली हो। हो सकता है कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले भी इस तरह की बात कही हो, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने यह बात पहली बार कही थी और चुनाव अभियान के दौरान कही थी, जिसके राजनीतिक निहितार्थ समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं था। प्रधानमंत्री अपनी चुनावी रैलियों में लगातार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले भाषण दे रहे थे। गोडसे के बारे में भी उनके कथन से साफ था कि वे न सिर्फ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे का बचाव कर रहे हैं, बल्कि वे परोक्ष रूप से हिंदुओं के अलावा देश के अन्य सभी गैर हिंदू समुदायों में आतंकवाद पनपने की गुंजाईश भी देख रहे हैं।
    बहरहाल आतंकवाद का कोई धर्म या जाति होती है या नहीं, इस सवाल पर व्यापक बहस की जा सकती है, लेकिन यह हकीकत है कि धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति, खानपान, वेशभूषा आदि के मामले में विविधता से भरे हमारे देश में आतंकवाद के भी विविध रूप या किस्में हैं, जो देश के लगभग हर हिस्से में गांवों से लेकर शहरों तक अक्सर देखने में आती हैं।
    इस समय कश्मीर की हालिया आतंकवादी वारदातें चर्चा में हैं। बताया जा रहा है कि वहां आतंकवादी समूह लोगों के नाम पूछ कर और उनकी आईडी देख कर उनकी हत्या कर रहे हैं। वहां अगर सचमुच ऐसा हो रहा है तो इसमें आश्चर्य कैसा? उत्तर भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में भी यही हो रहा है। फल, सब्जी और चूड़ी बेचने वालों को उनका नाम पूछ कर और उनकी आईडी देख कर मारा-पीटा जा रहा है और उनके साथ लूटपाट की जा रही है।

    सडकों पर और बसों-ट्रेनों में लोगों के नाम पूछ कर या उनकी पोशाक और दाढी से उनके संप्रदाय और जाति की शिनाख्त कर पीटे जाने की घटनाओं का सिलसिला भी पिछले कुछ सालों से बना हुआ है। लोगों को डरा-धमका कर और मार-पीट कर जय श्रीराम, वंदे मातरम् और भारतमाता की जय बोलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। गोरक्षा के नाम अल्पसंख्यक या दलित समुदाय लोगों को शारीरिक रूप से प्रताडित करने या जान से मार देने की घटनाएं भी पिछले कुछ वर्षों से खूब हो रही है। इसी आतंकवाद के तहत पिछले छह-सात वर्षों के दौरान नरेंद्र दाभोलकार, एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे, गौरी लंकेश जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों, लेखकों और पत्रकारों की हत्या कर दी जाती है और सत्ता का संरक्षण होने के चलते हत्यारों का कुछ नहीं बिगडता। सवाल है कि ऐसा करने वालों में और कश्मीर में खून-खराबा करने वाले आतंकवादियों में कैसे कोई फर्क किया जा सकता है?

    देश के विभिन्न इलाकों में राजकीय आतंकवाद और न्यायिक आतंकवाद भी इसी पेटर्न पर काम कर रहा है। कथित तौर पांच या दस ग्राम हेरोइन रखने वाले लड़के को जेल भेज दिया जाता है और उसे जमानत नहीं मिलती, लेकिन किसानों पर गाडी चढा कर उन्हें मार देने वाले मंत्री-पुत्र को पुलिस समन भेज कर पूछताछ के लिए बुलाती है और वह बड़ी मुश्किल से पुलिस के समक्ष पेश होता है। कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जिस चूड़ी वाले की नाम पूछ कर पिटाई हुई थी, वह अभी भी जेल में सड़ रहा है और उसे पीटने वाले जमानत पर जेल से बाहर आ गए हैं।

    इसी आतंकवाद के तहत दो दशक पहले गुजरात की सांप्रदायिक हिंसा के मामले में सरकार की मंशा के मुताबिक अदालत में बयान न देने पर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी संजीव भट्ट को झूठे मामलों में फंसा दिया जाता है और अदालत उसे आजीवन कारावास की सजा सुना देती है। इस फैसले के खिलाफ उसकी अपील नीचे से ऊपर तक सभी अदालतों में खारिज हो जाती है। दूसरी ओर गुजरात की उसी सांप्रदायिक हिंसा में सैंकडों लोगों की मौत के जिम्मेदार करार दिए जाने के बाद उम्र कैद की सजा प्राप्त भाजपा नेता बाबू बजरंगी और गुजरात सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल जाती है। इसी आतंकवाद के चलते सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुम्बडे, वरवर राव जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और लेखकों फर्जी मुकदमों में फंसा कर जेल में डाल दिया जाता है, जहां तारीख पर तारीख लगती रहती है और उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिलने के बावजूद अदालत से उन्हें जमानत नहीं मिलती। इसी आतंकवाद के चलते न्यायिक हिरासत में आदिवासियों के 83 वर्षीय खिदमतगार फादर स्टेन स्वामी की मौत हो जाती है।

    एक होता कॉरपोरेट आतंकवाद, जिसके तहत अरबों रुपए की हेरोइन एक उद्योगपति के निजी बंदरगाह पर पकड़ी जाती है और उसका कुछ नहीं होता। सरकार भी इस मामले में चुप रहती है और कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया में भी इतने बड़े मामले की खबर तक नहीं बनती। इसी आतंकवाद के तहत ही कई सफेदपोश आतंकवादी बैंकों से अरबों रुपए लूट कर विदेश भाग जाते हैं और सरकार की एजेंसियां हाथ मलती रहती हैं। कॉरपोरेट आतंकवाद के तहत बड़े उद्योगपति राजकीय आतंकवाद की मदद से जहां चाहे वहां आदिवासियों और गरीबों को उनकी जमीन से बेदखल करवा कर विकास के नाम पर अपना कारखाना स्थापित कर देते हैं। विस्थापित हुए लोग अगर इसका विरोध करते हैं तो राजकीय आतंकवाद उन पर लाठी और गोली बरसाता है। कॉरपोरेट क्षेत्र के आतंकवादियों का इसलिए कुछ नहीं बिगड़ता, क्योंकि वे सरकार में बैठे लोगों के वित्त-पोषक होते हैं और बड़े मीडिया संस्थानों का संचालन भी उन्हीं के पैसे से होता है।

    राजकीय आतंकवाद के तहत तो कुछ ऐसे समूहों को भी पाल कर रखा जाता है, जिनसे विशेष अवसर पर विशेष प्रयोजनों से आतंकवादी वारदातें करवाई जाती हैं। ऐसा कश्मीर में भी होता है और देश के बाकी हिस्सों में भी। इसी आतंकवाद के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को खूंखार अपराधी या संदिग्ध आतंकवादी करार देकर मार देती है और फिर मीडिया के जरिए बताया जाता कि अमुक व्यक्ति पुलिस से मुठभेड़ में मारा गया। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह नगर गोरखपुर में तो पुलिस ने रात के समय एक होटल में घुस कर जांच-पड़ताल के नाम पर वहां सो रहे एक व्यापारी को नींद से जगा कर इतना मारा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई।

    पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में आतंकवाद का एक नया मॉडल सामने आया है, वह है धार्मिक आतंकवाद। यह आतंकवाद साधु-संतों और महंतों के मठों और आश्रमों पनपता है, जहां कभी गुरू अपने चेले को मरवा देता है तो कभी चेला गुरू को। इस सिलसिले में पिछले दिनों इलाहाबाद में एक मठ के नामचीन महंत की मौत के मामले को याद किया जा सकता है, जिसमें अभी भी यह साफ नहीं हुआ है कि उन्होंने आत्महत्या की या उनकी हत्या हुई। इन बाबाओं और महंतों के लिए किसी भी कमजोर व्यक्ति की या सरकारी जमीन पर कब्जा कर लेना भी साधारण बात है। लोग कुछ बाबाओं द्वारा अपने आश्रमों में ‘श्रद्धालु’ महिलाओं का यौन शोषण भी किया जाता है और कभी-कभी मामला उजागर होने के डर से उन महिलाओं और मामले के राजदार अपने सेवकों की हत्या भी करवा दी जाती है। गुजरात का ऐसा ही एक बाबा पिछले कुछ सालों से राजस्थान के जोधपुर में आजन्म कारावास की सजा काट रहा है और हरियाणा के एक बाबा को हाल ही आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई है। चूंकि ऐसे बाबाओं और संतों-महंतों के आश्रमों में बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे राजनेताओं, जजों और अफसरों का भी जाना होता रहता रहता है, लिहाजा उन आश्रमों की गतिविधियों की जानकारी होने के होने के बावजूद पुलिस उन पर हाथ डालने में हिचकती है।

    इन किसिम-किसिम के आतंकवादियों के स्लीपर सेल मीडिया में भी घुसे हुए हैं, जो अव्वल तो इन आतंकवादियों की कारगुजारियों नजरअंदाज कर जाते हैं और जब किसी और माध्यम से उनकी कारगुजारियां सार्वजनिक हो जाती हैं तो उस पर लीपापोती करने के काम करते हैं।

    कुल मिलाकर हमारा देश आतंकवाद प्रधान देश है, जिसमें किसिम-किसिम के आतंकवाद की फसल हर तरफ, हर समय लहलहाती दिखाई देती है। इसलिए यह कहने का कोई मतलब नहीं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है।