Tag: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान!

  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी पड़ेगा हरियाणा विवि के कलेंडर से चौधरी चरण सिंह का फोटो हटाना 

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी पड़ेगा हरियाणा विवि के कलेंडर से चौधरी चरण सिंह का फोटो हटाना 

    किसान नेता राकेश ने बनाया मुद्दा, ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए कहा कि 700 किसानों की मौत से मन नहीं भरा जो अब किसानों के आदर्श और हमारे पूर्वजों का अपमान कर रहे हो

    चरण सिंह राजपूत 

    रियाणा विश्वविद्यालय ने अपने कलेंडर से पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह का फोटो ही हटा दिया गया है । किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने इसे मुद्दा बना लिया है।

    इस मामले पर नाराजगी व्यक्त करते हुए राकेश टिकैत के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया कि 700 किसानों की मौत से मन नहीं भरा जो अब किसानों के आदर्श और हमारे पूर्वजों का अपमान कर रहे हो । कलेंडर से हटा देना न सिर्फ चौधरी चरण सिंह जी का अपमान है, बल्कि देश के हर किसान के आत्मसम्मान पर आत्मघात है !

    दरअसल इस ट्वीट के साथ ही राकेश टिकैत ने एक फोटो भी शेयर किया है,  जिसमें लिखा है कि जिस नेता की याद में किसान दिवस मनाया जाता है, उस नेता का नाम कृषि विश्वविद्यालय से हटा दिया, ये देश के हर किसान का अपमान है। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर बने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हर साल एक कैलेंडर छापता है, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा चौधरी चरण सिंह की तस्वीर प्रकाशित होती थी। लेकिन इस बार और पिछले साल के कैलेंडर में चौधरी चरण सिंह का फोटो नहीं लगाया गया।
    कैलेंडर से चौधरी चरण सिंह के फोटो को हटाने का मामला सोशल मीडिया के जरिए वायरल होने लगा है। कई किसान संगठनों ने कुलपति से मिलकर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की फोटो लगाने की मांग की और कहा अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे आंदोलन करेंगे। राकेश टिकैत ने भी इसी मुद्दे को उठाते हुए सरकार पर हमला बोला और इसे किसानों का अपमान बताया है।
    किसान नेता राकेश टिकैत  कहा है कि वे किसी पार्टी के विरोध में नहीं है और ना किसी नेता के विरोध में। उनका विरोध सरकारों से हैं जो उनकी मांगों पर विचार नहीं कर रही हैं। प्रदेश सरकार की सहयोगी पार्टी जेजेपी के छात्र संगठन इनसो ने भी इसे निंदनीय बताया है और यूनिवर्सिटी प्रशासन को गलती सुधारने करने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप देशवाल ने कहा कि 48 घंटे के अंदर जाने या अनजाने में हुई गलती को दुरुस्त कर विश्वविद्यालय कैलेंडर में चौधरी चरण सिंह जी की फोटो लगाई जाए और इस गलती के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो।  उन्होंने कहा कि अगर 48 घंटे में यह गलती नहीं सुधारी जाती है तो इनसो विश्वविद्यालय के कुलपति का घेराव करेगी।
    भाजपा ने घर बैठे विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है। यह घटना तब घटी है जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह के पौते जयंत चौधरी चरण सिंह के मानुष पुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का पूरा असर देखा जा रहा है।
    दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भले ही चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी के नाम पर सहमत न हों पर चौधरी चरण सिंह अपनाम कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। चौधरी चरण सिंह का कलेंडर से हटाना मुद्दा उत्तर प्रदेश के चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है।
    दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है।  चौधरी चरण सिंह की नीति किसानों व गरीबों को ऊपर उठाने की थी। उन्होंने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश व प्रदेश का विकास नहीं हो सकता।  चौधरी चरण सिंह ने  किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था। किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वह गंभीर थे। उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे। आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह पूर्णत: किसानों के लिए लड़ने लगे थे। चरण सिंह की मेहनत के कारण ही ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक” साल 1952 में पारित हो सका। इस एक विधेयक ने सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसानों को जीने का मौका दिया। दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरी चरण सिंह ने प्रदेश के 27000 पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही, प्रशासनिक धाक भी जमाई। लेखपाल भर्ती में 18 प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था। चौधरी चरण सिंह स्वतंत्र भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में 28 जुलाई, 1979 को पद पर आसीन हुए थे. मोरारजी देसाई की सरकार के पतन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन वह अधिक समय तक इस पद पर बने नहीं रह सके। 1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया. इसी के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आए. मोरारजी देसाई ने जब चौधरी चरण सिंह को भाव देना बंद कर दिया तो उन्होंने बग़ावत कर दी। इस प्रकार 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए, यह तो स्पष्ट है कि यदि इंदिरा गांधी का समर्थन चौधरी चरण सिंह को न प्राप्त होता तो वह किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे. पर कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया। इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को बिना बताए समर्थन वापस लिए जाने की घोषणा कर दी। अब यह प्रश्न नहीं था कि चौधरी साहब किसी भी प्रकार से विश्वास मत प्राप्त कर लेंगे. वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असम्भव था, यहाँ पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई थी। उसके अनुसार जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जो मुक़दमें क़ायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए. लेकिन चौधरी साहब इसके लिए तैयार नहीं हुए थे।  उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे।  उन्होंने समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया।  उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में कृषि मुख्य व्यवसाय था। कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुख नहीं देखना पड़ा।
  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव : ओबीसी को अपनी ओर खींचने की कोशिश में सपा 

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव : ओबीसी को अपनी ओर खींचने की कोशिश में सपा 

    समाजवादी पार्टी इस चुनाव में ओबीसी वोटों को अपनी ओर खींचती दिख रही है। वहीं बीजेपी हिन्दुत्व पर ज्यादा फोकस करती दिख रही है।

    द न्यूज 15 
    लखनऊ। पश्चिमी यूपी में चुनाव प्रचार की अभियान खुद गृहमंत्री अमित शाह संभाले हुए हैं। शाह के मैदान में उतरने से ऐसा लग रहा है जैसे सपा-रालोद गठबंधन होने से बीजेपी अब परेशान दिख रही है, कम से कम पश्चिमी यूपी में शाह की सक्रियता को देखकर तो ऐसा ही कहा जा रहा है। अखिलेश की नजर जहां इसबार अपने परंपरागत वोटों के अलावा ओबीसी पर है तो वहीं बीजेपी फिर से एक बार हिन्दुत्व के मुद्दे पर प्रमुखता से जाती दिख रही है।
    कई ओबीसी नेताओं के बीजेपी छोड़कर सपा में जाने के बाद शाह ने तुरंत चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली है। ओबीसी के कद्दावर नेताओं के सपा में जाने पर जाहिर है कि अखिलेश को काफी मदद मिलेगी। मुस्लिम-यादव वोटबैंक से आगे इस बार अखिलेश की नजर ओबीसी वोटों पर है, जिसे वो अपने पाले में करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। वहीं पश्चिमी यूपी में जाटों के बीच रालोद का काफी दबदबा है, और अखिलेश यहां भी बाजी मार चुके हैं। सपा और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ा कर रहा है।
    अखिलेश के सामने इस बार बड़ी चुनौती है, यह पहला चुनाव है जिसमें वो अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साये से अलग होकर चुनावी मैदान में हैं। मुलायम सिंह यादव अब सक्रिय राजनीति में हैं नहीं। ओबीसी तक पहुंच और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के साथ गठबंधन दोनों में, अखिलेश ने एक नया सपा का चेहरा दिखाया है। पश्चिमी यूपी में यह गठबंधन जाटों और मुसलमानों को भी साथ लाता है। दोनों इस क्षेत्र के दो बड़े समूह हैं, जिनके संबंध 2013 के दंगों में तनावपूर्ण हो गए थे।
    करहल सीट पर भारतीय जनता पार्टी का चौंकाने वाला दांव : इस बार के चुनाव में पीएम मोदी की लहर कुछ हद तक कम होने के साथ ही ओबीसी वोटों पर बीजेपी की पकड़ भी ढीली होती दिख रही है। ओबीसी राज्य की आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक है। 2017 में, सपा ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 21.82 प्रतिशत वोटों के साथ 47 सीटें जीती थीं और रालोद ने 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था उसके हिस्से सिर्फ 1 सीट आई थी और 1.78 प्रतिशत वोट मिला था। बीजेपी को 39.7% वोट मिले थे।
    फतेहाबाद में सब्जी की दुकान चलाने वाले सपा समर्थक भवसिंह बताते हैं कि इस पर सपा की रणनीति काम कर रही है, उसका जनाधार बड़ा होता जा रहा है। अब जब जाट हमारे साथ हैं तो कई समुदाय हमारा समर्थन कर रहे हैं। उनमें से कुछ 2017 और 2019 में भाजपा में चले गए थे। एक अन्य सब्जी विक्रेता लक्ष्मण महोरे भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। वो बताते हैं कि कीमतों में वृद्धि और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं। यहां तक कि दलित भी इस चुनाव में सपा-रालोद को जीतते देखना चाहते हैं।
    योगी पर राजभर का तंज : आगरा में ट्रक सर्विस सेंटर चलाने वाले महेश चंद यादव भी इस बात से सहमत हैं कि समीकरण हो रहा है, लेकिन उनका कहना है कि इससे सपा-रालोद की संभावनाओं के बारे में उनमें उत्साह नहीं है। उन्होंने कहा- “इससे कड़ा मुकाबला करने के अलावा ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। भाजपा की हार की संभावना नहीं है क्योंकि उसे शहरी समर्थन प्राप्त है और जबकि पिछड़े लोग इसके बारे में मुखर नहीं हैं, भाजपा के पास राम मंदिर के नाम पर एक वोट बैंक है।”
    मथुरा में सड़क किनारे एक छोटा सा होटल चलाने वाले जवार सिंह के मन में किसान कानूनों को लेकर भाजपा के खिलाफ गुस्सा भरा दिखा। उन्होंने कहा- “जाट किसान पहले से ही योगी सरकार से खफा थे, फिर आ गया पुलिस का अत्याचार। जाट स्वाभिमानी लोग हैं। वे बीजेपी को कभी माफ नहीं करेंगे”।
    2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 384 में से 312 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब कुर्मी, मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, राजभर और निषाद जैसे गैर-यादव ओबीसी समुदायों का उसे समर्थन मिला था। तब भाजपा ने हिन्दुत्व के अलावा विकास और नौकरियों का वादा किया था। अब, ओबीसी के एसपी-आरएलडी की ओर रुख करने के अलावा बेरोजगारी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। इस बीच, मुस्लिम वोट के एसपी-आरएलडी को जाने की उम्मीद है। आगरा शहर में एक दिहाड़ी मजदूर का काम करने वाले अहमद कहते हैं- “मुसलमान इस बार अपने वोटों को बंटने नहीं देंगे। वे केवल सपा को वोट देंगे।” हालांकि, आजमगढ़ के अयाज आसिफ, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि कम से कम कुछ मुस्लिम वोट असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम को जाएंगे। कासगंज उन निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है जहां भाजपा को आसानी जीत की उम्मीद है। एक ईंट भट्टे पर एक मुनीम सौरव वर्मा कहते हैं- “इस निर्वाचन क्षेत्र में, भाजपा को लोध राजपूतों, बघेलों, ठाकुरों और राजपूतों का समर्थन प्राप्त है। इसके वोट आधार में कोई बड़ा सेंध नहीं है।”

  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की चपेट में बिहार, जुदा हो सकते हैं बीजेपी-जदयू !

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की चपेट में बिहार, जुदा हो सकते हैं बीजेपी-जदयू !

    चरण सिंह राजपूत 
    नई दिल्ली/लखनऊ/पटना। उत्तर प्रदेश का असर बिहार की नीतीश सरकार पर भी पड़ रहा है। नीतीश कुमार का सहयोगी पार्टी भाजपा से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पहले शराबबंदी को लेकर बीजेपी की तरफ से नीतीश की आलोचना और अब यूपी चुनाव को लेकर कोई निर्णायक सहमति न बनने से कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार सरकार के लिए यह सब कुछ ठीक नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश से बीजेपी के खिलाफ बना माहौल बिहार तक पहुंच सकता है। रोज-रोज की बीजेपी से चल रही तकरार से पीछा छुड़ाने के लिए नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ हाथ भी मिला सकते हैं।
    दरअसल शराबबंदी को लेकर जिस तरह से बीजेपी नेता जेडीयू को आंखें दिखा रहे हैं, उससे नीतीश कुमार अपने असहज महसूस कर रहे हैं। उधर, यूपी चुनाव को लेकर जेडीयू ने साफ कर दिया है कि वो अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने जा रहा है।
    उत्तर प्रदेश में जदयू के चुनाव लड़ने के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश ने कुछ समय पहले कहा था कि हमारी पार्टी की सब जगह शाखाएं हैं। अभी पार्टी के नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग थी। उसमें भी लोगों ने इच्छा प्रकट की थी। ये तो नेशनल एग्जीक्यूटिव का काम है। एलायंस या अलग लड़ने के संबंध में पार्टी के लोग निर्णय लेंगे। यूपी में 200 सीटों पर लड़ने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन उनके ही वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने साफ कर दिया है कि यूपी चुनाव को लेकर उनकी बीजेपी से कोई सहमति नहीं बन पाई है। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी और जेडीयू की राहें बिहार में जुदा हो सकती हैं। ऐसे में जदयू के पास राजद के साथ हाथ मिलाने के अलावा कोई चारा नहीं है। वैसे भी राजद और जदयू मिलकर पहले भी सरकार बना चुके हैं।
    यह भी जगजाहिर है कि जातीय जनगणना पर भी बीजेपी से नीतीश के सुर नहीं मिल रहे हैं। जातीय जनगणना कराने की मांग पर अड़े राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि जल्द से जल्द बिहार में जातीय जनगणना हो। इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी बात कही है। उनकी बात को राजद, कांग्रेस की तरफ से समर्थन भी मिल चुका है। सिवाय बीजेपी के। जातीय जनगणना के लिए जदयू की ओर से भी बीजेपी पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन वो नहीं मान रही।
  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में योगी को ‘कंधा’ दे रहे मोदी !

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में योगी को ‘कंधा’ दे रहे मोदी !

    चरण सिंह राजपूत 
    त्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बिसात पर सभी दलों ने अपनी-अपनी मोहरे सजा दी हैं। मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है। योगी सरकार रोजी रोटी के मुद्दे पर घिरती दिखाई दे रही है। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 दिसंबर में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.84 फीसदी हो गई है। जो कि सितंबर महीने में 6.86 रही थी। यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर 4.9 प्रतिशत है। इसको लेकर विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर है।
    भाजपा का तमाम विरोध के साथ 2019 में फिर से केंद्र की सत्ता पर काबिज होना। बिहार में फंसे हुए चुनाव को निकाल लेना, मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को बेदखल कर अपनी सरकार बनाना देश के अधिक राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी होना ऐसे ही नहीं हुआ है। सत्ता के लिए भाजपा के एक से बढ़कर एक दिग्गज लगे होते हैं। देश में जब रोजी और रोटी का बड़ा संकट है। ऐसे में भी देश में बड़े स्तर पर भाजपा के समर्थक होना अपने आप में भाजपा की रणनीति का बड़ा हिस्सा है। जब विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ घिरते हुए दिखाई दे रहे हैं तो उनका साथ देने के लिए केंद्र सरकार योगी की मदद के लिए आगे आ गई है। जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच सब कुछ ठीक नहीं मानकर चल रहे थे वे यह भी देख रहे होंगे कि यह आरएसएस का चुनाव प्रबंधन है कि प्रधानमंत्री को योगी आदित्यनाथ की मदद के लिए लगा दिया है। गत दिनों जब पूर्वांचल एक्सप्रेस वे  उद्घाटन के मौके पर योगी आदित्यनाथ के प्रधानमंत्री की गाड़ी के पीछे चलते हुए फोटो खूब वायरल हुई थी। तो यह कहा जा  रहा था कि योगी मोदी का यह विवाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में योगी सरकार के लिए दिक्क्तें पैदा कर सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री का अपनी सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश में काम करना योगी सरकार को मजबूती देता प्रतीत हो रहा है।
    चुनाव से पहले योगी सरकार की छवि बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से  उत्कृष्टता के कई केंद्रों, प्रौद्योगिकी पार्कों और उद्यमिता केंद्रों को शामिल करते हुए बड़े पैमाने पर डिजिटल तरीके से कई अहम कदम उठाए जा रहे हैं। युवाओं की नाराजगी को दूर करने के लिए गत दिसंबर महीने में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने पूरे यूपी में सात इंटरनेट एक्सचेंज, लखनऊ में उद्यमिता का केंद्र और मेरठ में उत्कृष्टता केंद्र लॉन्च किया। यूपी स्थित सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) के साथ पंजीकृत इकाइयों ने पिछले वित्त साल के दौरान आईटी निर्यात में 22,671 करोड़ रुपये का योगदान दिया। कुछ भी हो केंद्र सरकार ने विधान सभा चुनाव से पहले डिजिटलीकरण और स्टार्ट-अप को लेकर बढ़ावा देकर इसे  राजनीतिक चर्चा का मुख्य आकर्षण बना दिया है। इसे इस रूप में भी ले सकते हैं कि किसान आंदोलन से जितना नुकसान मोदी सरकार के चलते योगी सरकार को हो सकता है उतनी भरपाई से केंद्र सरकार से की जा रही है।

    दरअसल गत सप्ताह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युवाओं को सरकार के प्रमुख डिजिटल इंडिया अभियान से जोड़ने के लिए एक करोड़ स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों को मुफ्त टैबलेट और स्मार्ट फोन वितरित करने के लिए एक अभियान चलाया है। बेरोजगारी को लेकर भाजपा और आरएसएस चुनाव से पहले यूपी सरकार की छवि को बेहतर करने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं।
    पिछले महीने केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने प्रयागराज, गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी, मेरठ, कानपुर और आगरा में इंटरनेट एक्सचेंजों के साथ-साथ गोंडा, वाराणसी, मुरादाबाद और सहारनपुर में यूआईडीएआई-आधार सेवा केंद्रों का उद्घाटन किया।
    इन परियोजनाओं के अलावा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भारतनेट परियोजना पर भी जोर दे रहे हैं। जिसमें 16 राज्यों में हर गांव को ब्रॉडबैंड से जोड़ने के लिए 29,500 करोड़ रुपये की परियोजना शामिल है। इसके आने वाले महीनों में पूरा होने की उम्मीद है। अब देखना यह है कि मोदी अपने प्रयास से योगी को मजबूती देते हैं या फिर कमजोरी ?

  • नीतीश की पार्टी यूपी में क्यों चाहती है भाजपा से 35 सीटें?

    नीतीश की पार्टी यूपी में क्यों चाहती है भाजपा से 35 सीटें?

    समी अहमद
    बिहार में तीसरे नंबर पर होने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी- जनता दल यूनाइटेड- 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन के आधार पर 35 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना चाहती है।
    जदयू को ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार बिहार के बाॅर्डर से लगे यूपी की विधानसभा सीटों में काफी लोकप्रिय हैं और वहां अगर उनके उम्मीदवार जीते सकते हैं या कम से कम पर्याप्त वोट ला सकते हैं। जदयू जिन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है उनमें से अधिकतर  यूपी-बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र में हैं।
    इसके अलावा जदयू नेतृत्व को लगता है कि नीतीश कुमार के सजातीय वोटर भी जदयू को वोट देंगे। इसी जातीय जनाधार पर वे भाजपा से मोलतोल करते हुए नजर आते हैं। जदयू को चुनावी परिणाम के अलावा इसमें अपने संगठन के विस्तार का मौका भी नजर आता है।
    जनता दल यनाइटेड और नीतीश कुमार की ओर से कई बार यह कहा जा चुका है कि भाजपा से उनके दल का गठबंधन सिर्फ बिहार के लिए है। इसके बावजूद बिहार से बाहर जदयू का भाजपा से कभी-कभी तालमेल होता रहा है। लेकिन जब-जब भाजपा बिहार में दबाव बनाने की कोशिश करती है जदयू के नेता भाजपा को दूसरी जगहों पर दबाव में लेने के लिए बयान देते रहते हैं। इन बयानों में अलग चुनाव लड़ने की बात प्रमुख रहती है।
    जदयू के उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष अनूप सिंह पटेल ने हाल ही में एक बयान दिया है कि उनका दल यूपी में भाजपा के साथ 35 सीटों पर लड़ने की तैयार कर रहा है। उन्हांेने यह भी कहा कि ये 35 सीटें कौन होंगी, यह भी चिह्नित किया जा रहा है। उनके अनुसार इनमें से अधिकतर सीटें पूर्वी और मध्य यूपी में हैं जबकि कुछ सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं।
    ऐसी संभावना जतायी जा रही कि जदयू जिन 35 सीटों पर अपने उम्मीदवार देना चाहती है उसकी लिस्ट पार्टी के यूपी प्रभारी केसी त्यागी को सौंपी जाएगी। श्री त्यागी इस लिस्ट को केन्द्रीय नेतृत्व को सौंपेंगे। इन सीटों में बदायूं, बाराबंकी सदर, चुनार, प्रयागराज, मिर्जापुर, बलिया, गाजीपुर और कुशीनगर जिलों की विधानसभा सीटें शामिल की गयी हैं।
    जदयू की ओर से इससे पहले यह कहा जा चुका है कि अगर भाजपा उसे यूपी के चुनाव में बतौर घटक दल शामिल नहीं करेगी तो वह अकेले चुनाव लड़ेगा। वास्तव में जदयू नेतृत्व उत्तर पूर्व में अपने दल के विधायकों के भाजपा में शामिल कराये जाने के बाद से आहत नजर आता है और इसका बदला लेने के लिए भाजपा से सीटों की मांग कर रहा है। उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं लेकिन उसके नेतृत्व को लगता है कि अगर समझौता हुआ तो उत्तर प्रदेश में पैठ बनाने में मदद मिलेगी और नहीं हुआ तो उसके उम्मीदवार इतने वोट तो ले ही आएंगे जिससे भाजपा के उम्मीदवार को नुकसान हो। इस तरह वह अपनी अहमियत मनवाने में कामयाब होंगे।
    2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान जदयू का बिहार में कांग्रेस और लालू प्रसाद की पार्टी’- राजद के साथ महागठबंधन का हिस्सा था। उस समय भाजपा से उसका छत्तीस का आंकड़ा था। तब जदयू ने उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस से गठबंधन करने की कोशिश की थी मगर वहां नाकाम होने पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। मगर उसके नेता केसी त्यागी ने यह कहते हुए अंतिम समय में उत्तर प्रदेश के चुनाव से जदयू को अलग कर दिया था कि यह फैसला उसने इसलिए लिया है ताकि सेकुलर वोटों का विभाजन न हो।
    उल्लेखनीय है कि जदयू अरुणाचल प्रदेश में भाजपा से अलग चुनाव लड़ चुका है। तब जदयू के 14 उम्मीदवारों में 7 ने कामयाबी हासिल की थी। यह और बात है कि बाद में इन 7 में से छह भाजपा में शामिल हो गये थे जिसका मलाल जदयू को रहता है।
  • उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान!

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान!

    सी.एस. राजपूत  
    त्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल चुनावी दंगल में उतर चुके हैं। चाहे सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी हो, विपक्ष में बैठी सपा हो, बसपा हो, कांग्रेस हो या फिर छोटे-छोटे दल सभी ने अपने दांव पेंच आजमाने शुरू कर दिए हैं, वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश के सभी मतदाताओं की भूमिका इन चुनाव में महत्वपूर्ण है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर बड़ा दांव लगा है। नए कृषि कानूनों के विरोध और गन्ने के बकाया भुगतान को लेकर संघर्षरत ये किसान मोदी और योगी सरकार पर बड़े आक्रामक हैं। केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर हैं। इस बात को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भली भांति समझ रहे हैं। यही वजह है कि उनके राज में भले ही चार से साल से गन्ने का मूल्य न बढ़ा हो पर चुनाव के करीब आते देख योगी आदित्यनाथ ने एक मुश्त गन्ने का मूल्य 25 रुपए बढ़ाया है।
    किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत के आंसू प्रकरण के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर  उन्होंने बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई हैं। लखीमपुर कांड में राकेश टिकैत के योगी सरकार के साथ किये गए सहयोग को भले ही उनके मैनेज होने के रूप में देखा गया हो पर टिकैत फिर से भाजपा पर आक्रामक हैं। वह जहां 22 नवम्बर को अपने संगठन भाकियू को साथ लेकर लखनऊ में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं वहीं 29 नवम्बर को ट्रैक्टर मार्च निकालने जा रहे हैं वह भी बिना अनुमति के। मतलब यदि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कृषि कानूनों और गन्ना किसानों के बारे में मोदी और योगी सरकार ने कुछ न किया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान चुनाव में योगी बड़ा उलटफेर कर सकते हैं।
    दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर कभी चौधरी चरण सिंह की पकड़ थी। उनके बाद काफी हद तक उन बेटे अजित सिंह की पकड़ रही।  2012 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से 38 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने  मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बदले राजनीतिक माहौल की वजह से साल 2014 के आम चुनाव में क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की। 2019 में भी इस क्षेत्र में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया।   लेकिन इस बार किसान विशेषकर जाट समुदाय बीजेपी से नाराज़ नज़र आ रहा है। बता दें कि 2019 के आम चुनाव तक बीजेपी को किसानों का समर्थन मिला था. लेकिन पिछले दो सालों से जाट समुदाय धीरे-धीरे बीजेपी से दूर हटता दिख रहा है।

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों में जाट समुदाय राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावशाली माना जाता है और बीजेपी साल 2013 के बाद से लगातार इस समुदाय को अपने साथ रखने की कोशिशें करती रही है। इन्हीं कोशिशों के दम पर बीजेपी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 की अपेक्षा बेहतरीन प्रदर्शन किया। लेकिन गन्ना किसानों की समस्याओं और किसान आंदोलन की वजह से अब यह समुदाय बीजेपी से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है।