Tag: किसान आंदोलन

  • Lok Sabha Elections : किसान आंदोलन से विपक्ष को मिली संजीवनी!

    Lok Sabha Elections : किसान आंदोलन से विपक्ष को मिली संजीवनी!

    यूपी में सपा-कांग्रेस के गठबंधन के बाद दिल्ली, प. बंगाल और महाराष्ट्र में भी सीटों के तालमेल की बनी संभावना 

    चरण सिंह 
    वजूद खोते जा रहे विपक्ष के लिए किसान आंदोलन संजीवनी का काम कर सकता है। जिस तरह से शंभू बॉर्डर पर एक किसान की मौत के बाद आंदोलनकारियों में गुस्सा देखा जा रहा है। जिस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा ने भी दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। ऐसे में केंद्र सरकार और किसानों के बीच के पूरे आसार बन गये हैं। इस बार गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय  अरोड़ा को सख्त निर्देश दे दिये हैं कि किसी भी तरह से कोई किसान दिल्ली में घुसना नहीं चाहिए। जिस तरह से किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने ऐलान कर दिया है कि किसान दिल्ली में जाकर टकराव रहेंगे। ऐसे में जब किसान हर हालत में दिल्ली में घुसना चाहेेंगे तो कुछ भी हो सकता है। यदि किसान आंदोलन में जान और माल की हानि होती है तो ऐसे में विपक्ष उसे मुद्दा जरूर बनाना चाहेगा।

    वैसे भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उनकी सरकार बनने पर एमएसपी पर कानून की गारंटी देने की बात कर चुके हैं। वह बात दूसरी है कि यूपीए सरकार में राहुल गांधी सर्वेसर्वा थे पर एमएसपी पर कानून की गारंटी न दे सके थे। पंजाब और दिल्ली में राज करने वाली आप आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी लगातार किसान आंदोलन की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने किसानों की मांगों को जायज बताते हुए केंद्र सरकार से उनकी मांगों को मानने की अपील है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान का रुख भी किसानों की ओर है। यह माना जा रहा है कि फिर से दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का हुजूम उमड़ने वाला है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में स्थिति यह है कि या तो केंद्र सरकार किसानों की मांगें माने नहीं तो फिर किसान आंदोलन कोई भी रूप धारण कर सकता है।


    दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र कृषि प्रधान प्रदेश हैं। इन प्रदेशों में किसान आंदोलन का अच्छा खासा असर पड़ सकता है। इस आंदोलन का असर इसलिए भी पड़ रहा है, क्योंकि किसानों ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार ने पिछले आंदोलन में उनकी जो मांगें मानी थी उन पर काम नहीं हुआ है। दो साल से सरकार किसानों को टरका रही है। किसान एमएसपी और कर्ज माफी पर कानून की गारंटी समेत कई मांगों पर अड़े हैं। वैसे भी एमएसपी पर कानून की गारंटी और कर्ज माफी का वादा प्रधानमंत्री चुनावी प्रचार में कर चुके हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सरकार से एसएसपी पर कानून की गारंटी की बात कही थी। ऐसे में किसानों की मांगों का असर केंद्र सरकार पर पड़ रहा है। किसान भी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के दबाव में उनकी मांगें मानी जा सकती हैं।

    दरअसल इंडिया के सूत्रधार नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के बाद विपक्ष की स्थिति डांवाडोल होने लगी थी। पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को कोई सीट देने को तैयार नहीं थी। पश्चिमी बंगाल में टीएमसी अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी थी। महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस का उद्धव गुट और शरद पवार से कोई तालमेल नहीं बन पा रहा था। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के बाद विपक्ष में थोड़ा सा ठहराव दिखा है। कांग्रेस 17 सीटों पर मान गई है। अब आम आदमी पार्टी भी दिल्ली में कांग्रेस को तीन सीटें देने को तैयार हो गई है। ऐसे ही अब महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस की बात बन सकती है।
    दरअसल केंद्र सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन के खड़े होने से विपक्ष में जान आ गई है। विपक्ष यह मानकर चल रहा है कि किसान आंदोलन लंबा चलेगा। ऐसे में लोकसभा चुनाव पर किसान आंदोलन का असर पड़ना तय है। विपक्ष की यह बात भलीभांति समझ में आ रही है कि गत किसान आंदोलन में बीजेपी उत्तर प्रदेश के चुनाव में ही किसान आंदोलन से घबरा गई थी और आनन और फानन में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद नये कृषि कानून वापस लेने की बात कही थी। ऐसे में जब किसान नेताओं की केंद्र सरकार से बात हुई तो केंद्र सरकार ने किसानों की सभी मांगें मानने की बात तक कह दी थी। अब किसानों का यह आरोप केंद्र सरकार पर है कि कानून वापस लेने के बाद अलावा केंद्र सरकार ने उनकी कोई मांग नहीं मानी। केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए किसान अब किसी भी तरह से दिल्ली में घुसने को तत्पर हैं।
    दरअसल पिछले किसान आंदोलन में सरकार और उसके समर्थकों ने किसान आंदोलन को बदनाम करने की पूरी कोशिश की पर किसान नेता अपनी मांगों पर अडिग रहे। पिछले आंदोलन में 700 किसानों की मरने की बात सामने आई थी। यह किसानों का आंदोलन में टिकना ही था कि 13 महीने आंदोलन होने के बाद गत उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी आगे आये और तीन नये कृषि कानून वापस ले लिये। तब उन्होंने कहा था कि वह किसानों को समझाने में कामयाब नहीं हुए। पिछले किसान आंदोलन में गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू निकलने के बाद किसान आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया था। पिछला आंदोलन सिंघु बॉर्डर से शुरू हुआ था तो इस बार का आंदोलन शंभू बॉर्डर से शुरू हुआ है। अब देखना यह होगा कि यह आंदोलन लोकसभा चुनाव में क्या गुल खिलाता है। किसानों की मांगें मानी जाती हैं या फिर किसानों को उनके हालात पर छोड़ दिया जाता है।

  • किसान आंदोलन के बीच संयुक्त किसान मोर्चा का 16 फरवरी को भारत बंद, कैसे निपटेगी सरकार ?

    किसान आंदोलन के बीच संयुक्त किसान मोर्चा का 16 फरवरी को भारत बंद, कैसे निपटेगी सरकार ?

  • किसान आंदोलन को टारगेट कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं मोदी! 

    किसान आंदोलन को टारगेट कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं मोदी! 

    चरण सिंह राजपूत
    जो प्रधानमंत्री संविधान की रक्षा को बनाये गये तंत्रों को दबाव में लेकर जो चाह रहे हैं कर रहे हैं। जिन प्रधानमंत्री ने अपनी ही सरकार और अपनी ही पार्टी में किसी की कोई हैसियत नहीं रहने दी है। जिन प्रधानमंत्री ने लोगों से थाली तक बजवा दी। जिन प्रधानमंत्री ने विपक्ष की बोलती बंद कर दी। उन प्रधानमंत्री का कुछ किसान क्या बिगाड़ सकते हैं ? कृषि प्रधान देश में किसानों के विरोध को क्या प्रधानमंत्री की जान को खतरा माना जा सकता है ? वह भी तब जब प्रधानमंत्री लगातार किसानों के लिए काम करने का दावा कर रहे हों। मीडिया में चल रही खबर कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब के एक अधिकारी से कहा कि अपने मुख्यमंत्री से धन्यवाद बोलना कि उनकी जान बच गईबड़ी हास्यापद लग रही है।
    किसान तो देश के विभिन्न राज्यों के भाजपा नेताओं का घेराव कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का विरोध भी उसी कड़ी में माना जा सकता है। पंजाब में तो लगातार भाजपा नेताओं का विरोध हो रहा है।  वैसे भी पीएम मोदी की इस रैली का कई किसान संगठन विरोध कर रहे हैं। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने 5 जनवरी को हो रही प्रधानमंत्री की रैली का विरोध किया था। उन्होंने कहा था  कि अभी भी किसानों की कई मांगें पूरी नहीं हुई हैं। नौ और किसान यूनियन भी मोदी के दौरे का विरोध करने का एलान कर चुकी थी। भाकियू एकता उगराहां के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा था कि हम पीएम की रैली में खलल नहीं डालेंगे, लेकिन हमारा विरोध जारी रहेगा। किसानों के इस एलान के बाद  कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। करीब 10 हजार पुलिसकर्मी सुरक्षा की दृष्टि से तैनात किये गए थे फिर भी ऐसा कैसे हो गया ? यह भी जग जाहिर है कि प्रधानमंत्री के अपने सुरक्षा गार्ड भी होते हैं। जो घटना स्थल पर मोर्चा संभालते दिखाई भी दे रहे हैं। जिस तरह से पंजाब के फिरोजपुर में चुनावी रैली को संबोधित करने जाते हुए फ्लाईओवर पर बस और दूसरे वाहनों के साथ आंदोलित किसान दिखाई दे रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि किसान काफी देर पहले इस फ्लाईओवर पर आकर जम गये थे। ऐसे में देश की खुफिया एजेंसी क्या कर रही थी ? क्या पंजाब सरकार को प्रधानमंत्री के हैलीकाप्टर से जाने के बजाय गाड़ी से जाने की सूचना नहीं थी ? पंजाब के मुख्यमंत्री चरण जीत चन्नी के बयान तो ऐसा ही लग रहा है कि गाड़ी से जाने का कार्यक्रम अचानक बदला गया। तो क्या यह कार्यक्रम आनन-फानन में बना था ? कम से कम प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तो इतनी लापरवाही से तय नहीं किया जा सकता है। आखिर सुरक्षा में चूक क्यों हुई सबसे बड़ा प्रश्न प्रधानमंत्री की एसपीजी सिक्योरिटी पर खड़ा होता है।  जमीनी हकीकत तो यह है कि प्रधानमंत्री पंजाब में फिरोजपुर में चुनाव रैल्ली को सम्बोधन करने जा रहे थे और वहां भीड़ नहीं जुटा पाए। माहौल को अपने पक्ष में करने में माहिर माने जाने वाले प्रधानमंत्री ने मौका पाते ही इमोशनल कार्ड चल दिया।
    दरअसल भावनात्मक मुद्दों में भुनाने में माहिर माने जाने वाले प्रधानमंत्री किसानों से अपनी जान को खतरा बताते हुए उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाना चाहते हैं। वैसे भी २०१७ में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुजफ्फरनगर के दंगों को भुनाया था तो २०१९ के लोकसभा चुनाव में पुलवामा आतंकी हमले को। अब जब एक साल तक नये कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलना चला। गत गणतंत्र दिवस पर किसानों द्वारा निकाले गये ट्रैक्टर मार्च के दौरान लालकिले पर हुए तांडव को जब तिरंगे का अपमान का नाम दिया गया। नये कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी किसानों के घर लौटने के बावजूद उनका आक्रोश कम न हुआ। किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने इस गणतंत्र दिवस पर भी ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान कर दिया तो प्रधानमंत्री किसानों के आक्रोश को अपनी जान से खतरे को जोड़ते हुए इन विधानसभा चुनाव में इमोशनल कार्ड खेलने की फिराक में हैं। हो सकता है कि भाजपा अपने ही समर्थकों से किसानों के रूप में प्रधानमंत्री के काफिले पर हमला करा दे। वैसे भी पुलवामा मामले की अभी तक कोई जांच नहीं हुई है।
    दरअसल भाजपा के समर्थक लगातार किसान आंदोलन को पंजाब  से जोड़कर खालिस्तानियों का आंदोलन बताते रहे हैं। आंदोलन में शामिल किसानों को नक्सली, आतंकवादी न जाने क्या-क्या बोला गया। आंदोलन को चीन और पाकिस्तान की फडिंग से भी जोड़ा गया। यहां तक मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी आंदोलित किसानों के प्रति प्रधानमंत्री की मानसिकता को उजागर किया है। सत्यपाल मलिक ने कहा है कि जब किसान आंदोलन में दम तोड़ने वाले ७०० किसानों के बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की तो प्रधानमंत्री ने कहा कि क्या ये किसान उनके लिए मरे हैं? मतलब आंदोलित किसानों के प्रति प्रधानमंत्री के मन में कोई सहानुभूति नहीं है। वैसे भी जब उन्होंने नये कृषि कानून वापस लिये तो आंदोलित किसानों को कुछ किसान बोला था। मतलब प्रधानमंत्री इस आंदोलन को किसानों का आंदोलन मान ही नहीं रहे थे।
    दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के संबंध में पंजाब के फिरोजपुर में जनसभा को संबोधित करने वाले थे। किसानों के प्रदर्शन के कारण एक फ्लाई ओवर पर करीब 20 मिनट तक उनका काफिला अटका रहा। ऐसे में एसपीजी ने पीएम मोदी का दौरा रद्द करते हुए पंजाब रैली को कैंसिल कर दिया। ऐसे में प्रश्न उठता है कि प्रधानमंत्री के रूट को लेकर इस तरह की कोई चूक हो सकती है ? जगजाहिर है कि प्रधानमंत्री के रूट को 30 मिनट पहले खाली करा दिया जाता है।
    गृह मंत्रालय के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी बठिंडा उतरने के बाद खराब मौसम की वजह से 20 मिनट इंतजार करने के बाद सड़क के जरिए राष्ट्रीय शहीद स्मारक तक गए। इसमें उन्हें 2 घंटे से ज्यादा का वक्त लगना था। पंजाब के डीजीपी ने भरोसा दिलाया। इसके बाद उनका काफिला आगे बढ़ा। हुसैनीवाला में शहीद स्मारक के 30 किलोमीटर पहले उनका काफिला एक फ्लाई ओवर पर पहुंचाए जहां प्रदर्शनकारियों ने रोड ब्लॉक कर रखी थी। मोदी यहां पर 15.20 मिनट तक फंसे रहे। यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक है।
    इस बारे में चरणजीत चन्नी का कहना है कि रात 3 बजे तक उन्होंने सभी सड़कें क्लियर करवाई हैं। प्रधानमंत्री को हवाई मार्ग से आना था। फिर फिरोजपुर भी हवाई मार्ग से ही जाना था। उनका सड़क से जाने का कोई प्रोग्राम नहीं था। उन्होंने अचानक बठिंडा आकर कार्यक्रम बदल लिया कि सड़क से जाना है। बिना किसी पूर्व प्रोग्राम के यह सब हुआ। इसमें किसी तरह की कोई सुरक्षा लापरवाही नहीं बरती गई। दूसरा फिरोजपुर में उन्होंने बड़ी रैली रख दी। जहां 70 हजार कुर्सी लगा दी लेकिन आदमी 700 भी नहीं आया। ऊपर से बारिश भी हो गई। इस वजह से उनकी रैली कामयाब नहीं हो पाई।
    किसान एकता मोर्चा ने कहा कि मोदी की रैली रद्द होने की वजह किसानों और पंजाब के लोगों का भीषण विरोध है, जिन्होंने मोदी को अस्वीकार कर दिया है। इसकी वजह से मोदी को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। मोदी की रैली में भी बहुत कम लोग मौजूद थे। इनमें से ज्यादातर को तो जबरदस्ती रैली में भेजा गया था।
     किसान नेता राकेश टिकैत ने ट्वीट में पूछा कि यह पीएम की सुरक्षा में चूक थी या फिर किसानों का आक्रोश था? प्रधानमंत्री मोदी को लेकर किया गया राकेश टिकैत का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। अपने ट्वीट में उनहोंने लिखा, “भाजपा द्वारा पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक करने के कारण रैली रद्द करने की बात कही जा रही है।” भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत ने अपने ट्वीट में आगे कहा, “वहीं दूसरी ओर पंजाब के मुख्यमंत्री खाली कुर्सियों की बात कहकर प्रधानमंत्री के वापस लौटने का दावा कर रहे हैं। अब इस बात की जांच जरूरी है कि वापसी सुरक्षा में चूक है या फिर किसानों का आक्रोश।” राकेश टिकैत के इस ट्वीट पर अब सोशल मीडिया यूजर भी खूब कमेंट कर रहे हैं।
  • किसान आंदोलन में पहुंचे संजय सिंह

    किसान आंदोलन में पहुंचे संजय सिंह

    किसानों ने जिंदा समाधि लेने की चेतावनी दी थी। इसके लिए बाकायदा मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को भी पत्र द्वारा अवगत कराया गया था। लेकिन कोई सुनवाई नहीं होने पर सुबह ही किसान समाधि लेने के लिए बनाए गए गड्ढों में खुद लेट गए। जिसके बाद आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह समर्थन देने पहुंचे उन्होंने किसानों से बातचीत करके उनकी मांगों को सरकार के समक्ष रखने की बात भी कही!

  • कैसे मान गई आंदोलन को तवज्जो न देने वाली मोदी सरकार?

    कैसे मान गई आंदोलन को तवज्जो न देने वाली मोदी सरकार?

    किसान आंदोलन पर मोदी सरकार फिलहाल भले ही नरम नजर आ रही हो पर उसका रवैया आंदोलन के प्रति ठीक नहीं रहा है। यही वजह है कि अभी भी मोदी सरकार के किसानों की मांगों को पूरा करने में संशय बना हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अगले साल पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए ही यह सब किया जा रहा है। चुनाव के बाद फिर से यह मामला गरमा जाए।

  • हर हाल में किसान आंदोलन समाप्त कराना चाहती है मोदी सरकार

    हर हाल में किसान आंदोलन समाप्त कराना चाहती है मोदी सरकार

    मोदी सरकार ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए हर हाल में किसान आंदोलन समाप्त कराने की रणनीति बनाई है। मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को बैठक का न्यौता भेजा है। सरकार की ओर से उनकी मांगें मानने की बात कही जा रही है। सरकार चाहती है कि किसान हर हाल में अपने घरों को लौट जाएं।

  • किसान आंदोलन में घुसी आढ़तियों की राजनीति!

    किसान आंदोलन में घुसी आढ़तियों की राजनीति!

    सी.एस. राजपूत  

    जह जो भी हो पर मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन में कुछ पेंच नजर आ रहे हैं। जहां संयुक्त किसान मोर्चा ने नई दिल्ली में होने वाले ट्रैक्टर मार्च को स्थगित किया है। वहीं आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाया है। गत चार दिसम्बर को हुई संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में आंदोलन को तेज करने के ऐलान की उम्मीद आंदोलनकारी किसान कर रहे थे पर मीटिंग सरकार से बातचीत करने के लिए पांच नेताओं की कमेटी बनाने तक ही सिमट कर रह गई। यही वजह रही कि मोर्चे को ७ दिसम्बर को फिर मीटिंग रखनी पड़ी। संयुक्त किसान मोर्चा जिस तरह से कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि आंदोलन में कहीं न कहीं ऐसा कोई झोल है जो आंदोलन को आगे बढ़ाने में रोड़ा बन रहा है।
    दरअसल जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार एमएसपी गारंटी कानून की मांग न करने को आढ़ती लॉबी किसान नेताओं पर दबाव बना रही है। आंदोलन में शामिल होने वाले पंजाब के कई किसान भी आढ़ती बताये जा रहे हैं। ये आढ़ती एमएसपी गारंटी कानून को अपने धंधे में घाटा मान कर चल रहे हैं। इन आढ़तियों को लगता है कि यदि एमएसपी गारंटी कानून बन जाता है तो जो फसल वे औने-पौने दाम पर खरीदते हैं वे उन्हें एमएसपी पर खरीदने पड़ेंगी। पंजाब और हरियाणा में एमएसपी होने की वजह से एमएसपी गारंटी कानून की मांग पर आंदोलन करने पर किसान नेताओं में मतभेद होने की बात सामने आ रही है। उत्तर प्रदेश भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत एमएसपी गारंटी कानून बनवाने के लिए किसान आंदोलन को तेज करने का ऐलान कर चुके हैं तो पंजाब के कुछ किसान वैसे भी एमएसपी गारंटी कानून की मांग की गूंज गाजपुर बार्डर पर ज्यादा गूंज रही है। गाजीपुर बार्डर पर जो किसान जमे हैं उनमें अधिकतर उत्तर प्रदेश के बताये जा रहे हैं।  यह भी अपने आप में प्रश्न है कि गत 4 तारीख को सरकार के साथ बातचीत करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 नेताओं की जो कमिटी बनाई है उसमें किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत का नाम नहीं है। इस कमेटी में  बलबीर राजेवाल, गुरनाम चढूनी, शिव कुमार कक्का, युद्धवीर सिंह, अशोक धवले का नाम है। मीटिंग में एमएसपी गारंटी कानून पर कोई बात न होने का मतलब कहीं न कहीं इस मामले में झोल कुछ है।

    दरअसल एमएसपी किसी कृषि उपज (जैसे गेहूँ, धान आदि) का न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिससे कम मूल्य देकर किसान से सीधे वह उपज नहीं खरीदी जा सकती। न्यूनतम समर्थन मूल्य, केंद्र सरकार तय करती है। उदाहरण के लिए, यदि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य २००० रूपए प्रति कुन्तल निर्धारित किया गया है तो कोई व्यापारी किसी किसान से २१०० रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद सकता है किन्तु १९७५ रूपए प्रति कुन्तल की दर से नहीं खरीद सकता।

  • किसानों की अगली बैठक 7 दिसंबर को होगी? MSP गारंटी को लेकर जारी किसान आंदोलन

    किसानों की अगली बैठक 7 दिसंबर को होगी? MSP गारंटी को लेकर जारी किसान आंदोलन

    द न्यूज 15, किसान एकता मोर्चा, राकेश टिकैत, एमएसपी कानून, विधेयक कानून, किसान समिति
    किसान कानून वापस लिए जाने के बाद एमएसपी का मुद्दा कई दिनों से चर्चा में है। ऐसे में एमएसपी पर गठित होने वाली कमेटी के लिए केंद्र सरकार ने किसान नेता अशोक धवले, गुर नाम चदुनी, युद्धवीर सिंह, शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्का और बलबीर सिंह राजेवाल के नाम तय किए हैं.

  • एक साल बाद भी किसानों का आंदोलन जोरो पर! क्या खत्म होगा किसान आंदोलन

    एक साल बाद भी किसानों का आंदोलन जोरो पर! क्या खत्म होगा किसान आंदोलन

    द न्यूज 15, किसान एकता मोर्चा, राकेश टिकैत, एमएसपी कानून, विधेयक कानून, किसान समिति
    किसान कानून वापस लिए जाने के बाद एमएसपी का मुद्दा कई दिनों से चर्चा में है। ऐसे में एमएसपी पर गठित होने वाली कमेटी के लिए केंद्र सरकार ने किसान नेता अशोक धवले, गुर नाम चदुनी, युद्धवीर सिंह, शिव कुमार शर्मा उर्फ कक्का और बलबीर सिंह राजेवाल के नाम तय किए हैं.

  • कांग्रेस ने उठाया किसान आंदोलन में मरे किसानों का मुद्दा

    कांग्रेस ने उठाया किसान आंदोलन में मरे किसानों का मुद्दा

    कांग्रेस सांसद डॉ. अमर सिंह ने कृषि कानून की वापसी का स्वागत करते हुए किसान आंदोलन में हुए नुकसान को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा