सुख की गहरी छाँव में, रहते रिश्ते मौन !
वक्त करे है फैसला, कब किसका है कौन !!
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अब ऐसे होने लगा, रिश्तों का विस्तार !
जिससे जितना फायदा, उससे उतना प्यार !!
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भैया खूब अजीब है, रिश्तों का संसार !
अपने ही लटका रहें, गर्दन पर तलवार !!
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कब तक महकेगी यहाँ, ऐसे सदा बहार !
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार !!
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डॉ.सत्यवान सौरभ