
क्रांतिकारी जीवन और गतिविधियाँ
नौजवान भारत सभा का गठन**: सुखदेव ने 1926 में भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा और अन्य के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य युवाओं में देशभक्ति और क्रांतिकारी विचारधारा को जागृत करना, साम्प्रदायिकता का विरोध करना और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करना था। यह संगठन असहयोग आंदोलन की विफलता के बाद युवाओं को आकर्षित करने में सफल रहा।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)**: सुखदेव HSRA के प्रमुख सदस्य थे और पंजाब इकाई के प्रभारी थे। उन्होंने संगठन को मजबूत करने, नए सदस्यों की भर्ती और क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। HSRA का लक्ष्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था।
लाला लाजपत राय की हत्या का बदला**: 1928 में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर इसके लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी जे.पी. सॉन्डर्स की 18 दिसंबर 1928 को हत्या की, जिसे ‘लाहौर षड्यंत्र’ के नाम से जाना गया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया।
सेंट्रल असेंबली बम कांड**: 8 अप्रैल 1929 को सुखदेव के मार्गदर्शन में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार का ध्यान भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों की ओर खींचना था। इस घटना के बाद सुखदेव सहित कई क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए।[]
जेल में भूख हड़ताल**: 1929 में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के विरोध में सुखदेव ने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर भूख हड़ताल की। इस हड़ताल ने ब्रिटिश प्रशासन पर दबाव डाला और कैदियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
गांधी और क्रांतिकारी विचारधारा
सुखदेव गांधी जी की अहिंसक नीति के प्रबल आलोचक थे। उन्होंने 1931 में जेल से गांधी जी को एक पत्र लिखा, जो एक ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है। इसमें उन्होंने गांधी-इरविन समझौते की आलोचना करते हुए पूछा कि क्यों क्रांतिकारियों को रिहा नहीं किया गया, जबकि कांग्रेस के बंदियों को रिहाई मिली। सुखदेव ने लिखा, “मात्र भावुकता के आधार पर की गई अपीलों का क्रांतिकारी संघर्षों में कोई महत्व नहीं होता।” यह पत्र तत्कालीन कांग्रेस की मानसिकता और क्रांतिकारियों के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
बलिदान
लाहौर षड्यंत्र मामले में सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को दोषी ठहराया गया। 23 मार्च 1931 को तीनों को लाहौर सेंट्रल जेल में शाम 7:33 बजे फाँसी दे दी गई। फाँसी से पहले उनके परिवार को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी गई, और उनके शवों को टुकड़ों में काटकर सतलज नदी में बहा दिया गया। सुखदेव उस समय मात्र 23 वर्ष के थे।
विरासत
सुखदेव का जीवन इस बात का प्रमाण है कि अल्पायु में भी बड़े सपने और दृढ़ संकल्प के साथ देश के लिए अमर योगदान दिया जा सकता है।