सुब्रत राय का एक और पैतरा-निवेशकों की एक-एक पाई चुकाने का दावा 

1 लाख 25 करोड़ की देनदारी और SFIO के 50 हजार करोड़ के गबन के आरोप को भी झुठला दे रहा है सहारा ग्रुप 

भुगतान को लेकर देशभर के विभिन्न शहरों में सहारा के खिलाफ हो रहे हैं आंदोलन 

दिल्ली जंतर मंतर पर चल रहा है संसद सत्याग्रह, आंदोलन करने कल से देशभर से आ रहे हैं हजारों निवेशक 

चरण सिंह राजपूत 
नई दिल्ली। गजब खेल है सहारा का। सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय कभी सेबी के उनका पैसा न देने की वजह निवेशकों को पैसा न लौटा पाने की की बात करते हैं तो कभी अप्रैल माह में दे देने की और कभी सेबी के उनके खाते सील करने का बहाना बनाने लगते हैं। सहारा पर निवेशकों का 1 लाख 25  हजार करोड़ की देनदारी का दावा करते हुए निवेशक पूरे देश में आंदोलन कर रहे हैं और सहारा निवेशकों का एक-एक पाई चुका देने की बात कर रहा है। एक दैनिक अखबार में छपी खबर के अनुसार सहारा ने दावा किया है कि उसने निवेशकों की एक-एक पाई चुका दी है।
दरअसल सहारा इंडिया कंपनी का कहना है कि वह निवेशकों की एक-एक पाई वापस कर चुकी है वह बात दूसरी है कि सहारा पर निवेशकों का 1  लाख 25 करोड़ रुपए की देनदारी बताई जा रही है। साथ ही सहारा ग्रुप पर 50,000 करोड़ रुपये के गबन का भी आरोप है। कंपनी इन आरोपों को भी झुठला दे रही है। दरअसल धोखाधड़ी जांच कार्यालय ने सहारा ग्रुप की कंपनियों पर निवेशकों से 50,000 करोड़ रुपये जुटाने और फिर इन पैसों के गबन का आरोप लगाया है।
कुछ दिन पहले सहारा इंडिया ने एक बयान में कहा था, ” हम पर लगाया गया 50,000 करोड़ रुपये के गबन का आरोप सही नहीं है और हमारे पास इसके सबूत हैं। जब हम सारा पैसा वापस कर चुके हैं तो फिर गबन और हेराफेरी का सवाल कहां से पैदा होता है।” ज्ञात हो कि SFIO सहारा की कंपनियों के खिलाफ इस कथित धोखाधड़ी की जांच कर रहा था, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। हाल ही SFIO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सहारा की कंपनियों की जांच पर लगी हाईकोर्ट की रोक हटाने की मांग की है।  एजेंसी की तरफ से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में बताया था कि सहारा की नौ कंपनियों के खिलाफ नवंबर 2018 से जांच चल रही थी, जिसे इस साल 31 मार्च तक पूरी होनी थी।
एसएफआईओ ने कहा था कि हाई कोर्ट ने कंपनी कानून की धारा 212 (3) के तरह जांच पर रोक लगाई है, जो गलत है। इस धारा के तहत जांच तीन महीने में पूरी होनी चाहिए। एसएफआईओ ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक फैसले का हवाला दिया है और कहा है कि मंत्रालय ने इस जांच की समय सीमा बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 कर दी है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा है कि वह दस्तावेजों को देखेंगे और उसके बाद सुनवाई की डेट देंगे।
एसएफआईओ के मुताबिक कंपनी रजिस्ट्रार को सहारा की इन कंपनियों के निवेशकों की तरफ से कई शिकायतें मिली थीं। उनका कहना था कि मैच्योरिटी के बावजूद उन्हें अपना पैसा नहीं मिल रहा है। कंपनी रजिस्ट्रार, मुंबई ने इन शिकायतों की जांच की थी। 14 अगस्त, 2018 को केंद्र सरकार से सहारा की कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू करने की सिफारिश की थी। इनमें सहारा क्यू शॉप यूनीक प्रोडक्ट्स रेंज लिमिटेड, सहारा क्यू गोल्ड मार्ट लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन शामिल हैं।
यह अपने आप में प्रश्न है कि सेबी और एसएफआईओ के तमाम आरोपों के बावजूद सहारा का कुछ नहीं बिगड़ पा रहा है। सहारा के खिलाफ देशभर में आंदोलन चल रहे हैं। निवेशक और एजेंट आत्महत्या कर रहे हैं। कर्मचारियों को कई-कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है और सहारा दावा कर रहा है कि उन्होंने निवेशकों का पाई-पाई चुका दिया है। यह भी देश की कानून व्यवस्था पर सवाल है कि सुब्रत राय छह साल से पैरोल पर बाहर घूम रहे हैं और निवेशकों और कर्मचारियों पर दबाव बना रहे हैं।
दरअसल सुब्रत राय को बरगलाने और ठगने में महारत हासिल है। सुब्रत राय पर उसके ही कर्मचारी कारगिल के नाम पर ठगी करने का आरोप लगाते रहते हैं। सहारा कर्मचारियों से कारगिल के नाम पर १० साल तक पैसा काटा गया है। सुब्रत राय पर जेल से छुड़ाने पर अपने ही कर्मचारियों से ठगी करने का आरोप है। बताया है कि सुब्रत राय की एक अपील पर सहारा कर्मचारियों ने १२०० करोड़ जमा करके दिये। यह उस समय की बात है जब सहारा में ५ महीने से वेतन नहीं मिल रहा था। कर्मचारियों की सुब्रत रााय के प्रति ऐसी निष्ठा थी कि जैसे ही सुब्रत राय का पत्र आया तभी कर्मचारियों ने पैसों की व्वस्था कर दी। किसी ने जेवर बेचकर पैसे दिये थे तो किसी ने अपने बच्चों के पेटकाकर और किसी ने कर्जा लेकर। उस समय सेबी को मात्र ५०० करोड़ रुपये सहारा को देने थे। जब कर्मचारियों का एक प्रतिनिधिमंडल सुब्रत राय से सहारा से मिला तो उन्होंने किसी दूसरी मद में पैसों की जरूरत होने की वजह से कर्मचारियों को मदद करने के लिए पत्र लिखा है। सुब्रत राय को परिवार के नाम पर अपने ही कर्मचारियों को इमोशनल ब्लैकमेल करने का आरोप सहारा के कर्मचारी लगाते हैं।

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