आज देश आजाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस की जयंती मना रहा है। सुभाष चंद्र बोस के चलते ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से पुकारा जाने लगा था। दरअसल जब सुभाष च्नद्र ने अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का बिगुल फूंकते हुए कहा जापान से रेडियो पर भाषण देते हुए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में पुकारा था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र ने बापू से कहा था अब भारत के पास सुनहरा अवसर है कि अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया जाये। हालांकि गांधी जी ने अहिंसा का हवाला देते हुए सुभाष चंद्र बोस का साथ नहीं दिया। हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी करो या मरो का नारा हिंसा से जुड़ा ही था। हर साल 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाई जाती है।
नेताजी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। आजादी की लड़ाई में नेताजी का अभूतपूर्व योगदान रहा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाया जाता है। साल 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया था। नेताजी के पराक्रम को सम्मान और सराहने के लिए सरकार ने यह फैसला लिया था। तभी से इसे पराक्रम दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा के कटक में 23 जनवरी 1897 में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। नेताजी बेहद योग्य थे। उन्होंने 1920 में इंग्लैंड में सिविल सर्विस एग्जाम पास कर लिया था। इस परीक्षा में नेताजी का चौथा स्थान था। यह और बात है कि देश की आजादी के लिए उन्होंने पद त्याग कर आंदोलन में कूदने का फैसला लिया।
आजादी के लिए नेताजी का नजरिया बड़ा साफ था। उन्हें पता था कि यह थाली में परोस कर नहीं मिलेगी। इसकी देशवासियों को कीमत चुकानी पड़ेगी। इसी के चलते उन्होंने आजादी के आंदोलन से युवाओं को जोड़ा। ‘जय हिंद’, ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘चलो दिल्ली’ जैसे नारे देकर उनका जोश बढ़ाया।
2021 से पहले तक 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस जयंती के नाम से मनाया जाता था। हालांकि, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर एक अहम फैसला लिया। आजादी में नेताजी के योगदान के मद्देनजर पीएम मोदी ने इसे पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया। इसके बाद से हर साल नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।