
अरुण श्रीवास्तव
दशकों से संक्रमण के दौर से गुज़र रही हिंदी पत्रकारिता आज फेक न्यूज़ चक्रव्यूह में बुरी तरह से फंस गई है। आज़ उसके आगे विज्ञापन रूपी कुंआ तो पीछे सत्ता का चाबुक गले की हड्डी बनता जा रहा है। न उसे उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है।
माना कि, आज़ के युग में बिना विज्ञापन के अपने कर्मचारियों का वेतन क्या रोज़ाना के खर्चे निकाल पाना ही संभव नहीं है। पर कंपनियों के विज्ञापनों के साथ कोई खास मजबूरी नहीं होती कि अखबार कंपनी व उसके उत्पाद के तारीफों के पुल बांधने लगे बस इतना ही ‘नैतिक’ दबाव रहता है कि ऐसी कोई घपले घोटाले की विशेष ख़बर न हो कि विज्ञापनदाता कंपनी मुसीबतों के चक्रव्यूह में घिर जाए। पर ऐसा सरकार के साथ नहीं हो पाता। सरकारी विज्ञप्तियों को हूबहू छापने के अलावा पूरे पेज़ के पेज़ दर पेज़ वाले जो विज्ञापन छपे होते हैं वो ही खबरों के पीछे का सच बता देने के लिए पर्याप्त हैं। वैसे समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाने का उद्देश्य अपने उत्पाद, सेवाओं व सूचनाओं को आम व सरकारी की कल्याणकारी योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाना होता है। आज का हाल यह है कि अखबारों में खबरों से कई गुना ज्यादा विज्ञापन होते हैं। हकीकत यह है कि विज्ञापन खबरों का ‘हत्यारा’ होता है।
अब बात फेक न्यूज यानि गलत, नकली या भ्रामक खबरों की। हालांकि इस तरह की खबरों का इतिहास बहुत पुराना है। हर देश, हर शासनकाल और हर सरकार ने कभी न कभी इसका सहारा लिया है। महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर से यह कहलवाना कि, अस्वस्थामा मारा गया यह भी फेक न्यूज थी। बहरहाल इसका बोलबाला है। पहले सरकार और सरकारी सूचना तंत्र आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विश्वास नहीं था। हम दूसरे माध्यमों (बीबीसी) को टटोलते थे। चाहे वो आपातकाल का दौर रहा हो या शीतयुद्ध का। आपातकाल में खबरें छन कर आती थीं तो शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ और पश्चिमी देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ गलत सूचनाएं फैलाई। जैसे जासूसी या तकनीकी उपलब्धियां के बारे में। प्रथम विश्व युद्ध में ‘प्रोपेगैंडा’ पोस्टर और खबरें दुश्मनों को बदनाम करने के लिए बनाई गई।
1980 के दौर में जब मैं खुद पत्रकारिता में आया तब कुछ शब्द बहुत प्रचलित थे जैसे पीत पत्रकारिता, खोजी पत्रकारिता आदि-आदि। इस दौर में भी समाचार पत्र सनसनीख़ेज और अतिशयोक्तिपूर्ण खबरें छापते थे ताकि अखबारों की बिक्री बढ़े। गौरतलब है कि 1898 में स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध के दौरान अमेरिकी अखबारों ने अतिरंजीत कहानियां छुपीं तो अभी हाल में पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा किए गए नरसंहार के बाद भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भी इस तरह की खबरों से रूबरू होना पड़ा। अभी ऑपरेशन के नाम पर नहीं जाऊंगा सिर्फ और सिर्फ फेक न्यूज़ पर ही। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तीन दिन सैन्य कार्रवाई हुई। मात्र तीन दिन में ही कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में एक पुराने जेट को क्रैश बता कर दावा किया गया कि ये ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित है। इसके अलावा कुछ गेमिंग वीडियो को भी हमलों के रूप में प्रस्तुत किया गया। भला हो फैक्ट चेक करने वाले आल्ट न्यूज़ और मोहम्मद ज़ुबैर का जिन्होंने इस तरह के तमाम दावों को गलत साबित किया। नहीं तो रिपब्लिक भारत जैसे चैनल ने एक पुरानी वीडियो क्लिप को एडिट कर ये दावा किया कि पाकिस्तान ने भारतीय लड़ाकू विमान को मार गिराया जो कि पूरी तरह झूठा था। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की खबरों से असहज़ जैसी स्थिति होती है। पर ऐसे चैनलों को नहीं होती। इसी चैनल ने तुर्किए में कांग्रेस का ऑफिस खुलवा दिया।
इसी तरह कुछ न्यूज़ चैनल जो यहीं के थे और अपने आपको राष्ट्रवादी कहते थे। गलत सूचनाओं और एआई के सहयोग से उपलब्ध कराई गई तस्वीरों को दिखाकर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया।
मसलन…भारत का लाहौर पर छोड़े कई बड़े ड्रोन, लाहौर पर अब तक का सबसे बड़ा हमला, भारत ने लाहौर पर सीधा हमला किया, मुनीर को हटाने की तैयारी में पाकिस्तान, राजस्थान में पाकिस्तानी पायलट पकड़ा गया, पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुनीर को हटाया गया : सूत्र, असीम मुनीर को हिरासत में लिया गया : सूत्र, पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पर कब्जा, बंकर में छिपे शहबाज़ शरीफ, कई बड़े शहरों पर कब्जा होते ही पाक सेना का सरेंडर (ज़ी न्यूज़), लाहौर में घुस कर भारत का भयानक हमला, मची भगदड़, इंडियन नेवी का कराची पोर्ट पर भयंकर हमला मचा हाहाकार, भारत का मुंहतोड़ जवाब लाहौर-कराची तबाह, पाकिस्तान एयर फोर्स के जवानों ने लड़ने से किया इन्कार, पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पर कब्जा।
एक बड़े समूह नवभारत टाइम्स ने तो हद ही कर दी। पाकिस्तान के अज्ञात बॉर्डर पर भारतीय सेना का प्रवेश करा दिया। जबकि भारतीय सेना के अधिकारियों ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही यह कहा कि भारतीय सेनाओं ने सीमा का उल्लंघन नहीं किया। जो भी सैन्य कार्रवाई की वह अपने क्षेत्र में रहकर। भारतीय सेना ने सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को ही निशाना बनाया है, न तो पाकिस्तान के रिहायासी इलाकों पर किसी तरह की कोई सैन्य कार्रवाई की गई और न ही उसके सैन्य क्षेत्रों पर।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी है की ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप किसी सूचना में क्वेश्चन मार्क का इस्तेमाल किया गया है तो किसी में प्रश्नवाचक चिन्ह का। कुछ में तो दोनों का नहीं। यानि बेहयाई के साथ भ्रामक खबरें फैलाईं।इस तरह की खबरें फैलाने में आज तक भी पीछे नहीं रहा ब्रेकिंग न्यूज़ में तो उसने जम्मू एयरपोर्ट से भारत के कई फाइटर प्लेन उड़ा दिए। यही नहीं जम्मू यूनिवर्सिटी के पास दो ड्रोन को मार गिराने की खबर भी ब्रेकिंग न्यूज़ में दीं।
किसी चैनल ने एक फर्जी मेजर के हवाले से ईरान की विदेश मंत्री को गाली देने वाला बयान प्रसारित कर दिया। इस तरह की घटनाओं को लेकर भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे। कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने भारतीय मीडिया की कवरेज पर सवाल उठाते हुए बताया कि कुछ ने एआई जेनरेटेड तस्वीरें और झूठी खबरों का इस्तेमाल किया जिससे भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संग्राम में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके किसी भी मीडिया घराने पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई, यही नहीं सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तो मीडिया की भूरि-भूरि प्रशंसा तक कर डाली। इसी बीच सोशल मीडिया के कई चैनलों पर प्रतिबंध लगाया गया। सोशल मीडिया में काफी लोकप्रिय 4 PM को प्रतिबंधित किया गया। इसको संचालित करने वाले संजय शर्मा को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। यह तो अच्छी बात है कि सुनवाई के पहले ही प्रतिबंध हटा लिया गया। इसी गृजेश वशिष्ठ के चैनल और पुण्य प्रसून बाजपेई के यूट्यूब चैनल को भी बंद कर दिया गया था। यही नहीं नेहा सिंह जैसी लोक गायिका पर भी एफआईआर दर्ज की गई। अब ऐसे में तो गोदी मीडिया का हौसला तो बढ़ेगा ही।