अरुण श्रीवास्तव
सभी हिंदी भक्तों, हिन्दी प्रेमियों, हिन्दी आधारित कवियों और हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करवाने वालों को भी… ‘हैप्पी हिन्दी डे पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं भी। आखिर इतना तो हक़ उनका भी बनता है। हिन्दी के मास्साब इस बार क्षमा करेंगे… शिक्षक दिवस पर उन्हें गिरे-पड़े हालत में भी कुछ न कुछ मिल ही जाता है। कुछ नहीं तो प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों में मुख्य अतिथि के रूप में हिन्दी दिवस समारोह की शोभा बढ़ाने के लिए लाया गया प्रधान पति भी ‘उपदेश’ पिला कर ‘नौ दो ग्यारह’ हो जाता है।
आम धारणा है कि मुसीबत की घड़ी में अपने ही काम आते हैं सो सरकारी स्कूलों के छात्र इतने टूटे भी नहीं कि ‘एक अदद’ पेन नहीं दे सकते। आखिर सवाल पास होने का भी तो रहता है न!
अब जब न द्रोणाचार्य रहे और न ही एकलव्य। फिर उनके कालखंड महाभारत भी नहीं बावजूद इसके सदियों से चली आ रही गुरु-शिष्य की परम्परा सदियों से चली आ रही है हो सकता है कि सदियों तक चलती रहे।
बहरहाल इन्तजार कि घड़ियां खत्म हुईं ,., आउटर पर खड़ा बहु प्रतिक्षित हिन्दी दिवस अब आने ही वाला है…या यूं कहें कि हर साल की ही तरह 14 सितंबर को आ ही जाएगा।
हर साल की तरह ही इस बार भी साल भर से उपेक्षित हिंदी की महान हस्तियां आज के दिन पूजी जाएंगी। सूत्रों ने बताया कि इनमें वो महान हस्तियां भी शामिल होंगी जो पिछले साल पूजने से एक कदम दूर रह गईं थीं और ग्यारह महीने ग्यारह दिन ग्यारह घंटे पहले तक उपेक्षित होने से मुंह फुलाए अपने अपने घरों में बैठीं थीं। सूत्रों ने यह भी बताया कि इनमें से बड़ी संख्या में फाइलों में दबी दम तोड़ रही थीं या डस्टबिन में फेंक दी गईं थीं।
कुछ तो साहित्यिक गुटबाज़ी का शिकार होकर हांसिए पर ढकेल दी गईं थीं। इस बार न सिर्फ उन्हें अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया जाएगा बल्कि नकद-नारायण के भी दर्शन कराए जानें की योजना है। आखिर जमाना ‘छुच्छ पैलगी’ का तो रहा नहीं। अरे जब गली-कूचों वाले पंडित जी भी बिना चढ़ावा चढ़ावे पैलगी तक स्वीकार नहीं करते फिर तो ये डिग्रीधारी जो ठहरे।
बताते चलें ताकि आप यह न कह सकें कि समय रहते बताया नहीं। सरकारी कार्यालयों, केंद्र व राज्य शासित उपक्रमों, मसलन बैंकों बीमा कम्पनियों में हिंदी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा या
हिन्दी माह मनाए जाने के बैनर लगाने शुरू हो जाएं, सरकारी स्कूलों में निबंध प्रतियोगिता करवाई जानें लगे जब आपका बच्चा हिन्दी पर निबंध लिखने या लिखवाने की जिद करने लगे… तो समझ जाइए की हिन्दी दिवस बस आउटर पर खड़ा है मकर संक्रांति की तरह 14 सितंबर को आ ही जाएगा।
वैसे भी हिंदी में एक कहावत है जिस तरह घूरे के दिन एक न एक दिन भी फिरते हैं वैसे ही हिन्दी दिवस के दिन 14 सितंबर को फिरते हैं।
अब आज की कॉन्वेन्टी पीढ़ी को घूर क्या होता है पता नहीं वैसे तो पता इस अदने लेखक को भी नहीं। फिलहाल गूगल बाबा के अनुसार कूड़ा करकट फेंकने की जगह को घर कहते हैं एक अघोषित नियम के तहत 12 साल के बाद कूड़ा फेंकने वाली जगह बदल जाती है। अब बदल कर कहां चली जाती है ये तो मुझे भी नहीं पता।
हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग कर हर शंकर परसाई का कहना है कि हिंदी दिवस के दिन हिंदी बोलने वालों से हिंदी बोलने को कहते हैं।