चरण सिंह
भले ही विपक्ष में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी प्रतिपक्ष नेता हों, भले ही उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टी लोकसभा सभा में सबसे अधिक सीटें ले आई हो पर बीजेपी की रणनीति के सामने विपक्ष के नेता टिक नहीं पा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में आरक्षण और संविधान मुद्दे पर गच्चा खाई बीजेपी ने हरियाणा चुनाव में जबरदस्त वापसी की है। भाजपा के सामने सहयोगी दल बड़बड़ा कर रह जाते हैं तो कांग्रेस को उसके सहयोगी दल कुछ समझने को तैयार नहीं। लोकसभा चुनाव में चाहे अखिलेश यादव हों, ममता बनर्जी हों, शरद पवार हो, उद्धव ठाकरे हों सभी क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को कोई खास तवज्जो नहीं दी। कांग्रेस को सभी राज्यों में समझौता करना पड़ा।
कांग्रेस हरियाणा विधानसभा चुनाव क्या हार गई कि क्षेत्रीय दल उसे कुछ समझने को तैयार नहीं। उत्तर प्रदेश उप चुनाव में अखिलेश यादव ने सभी नौ सीटों पर अपने सिंबल पर प्रत्याशी उतारे हैं तो महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव), एनसीपी ने कांग्रेस को कोई खास तवज्जो नहीं दी। झारखंड में भी यही हाल है। हेमंत सोरेन कांग्रेस को उतनी तवज्जो नहीं दे रहे हैं। सपा तो महाराष्ट्र में भी कांग्रेस को आंख दिखा रही है। सपा अध्यक्ष अबू आजमी ने २० सीटों पर चुनाव लड़ने की चेतावनी दे दी है। कांग्रेस है कि उसे विपक्ष की सभी पार्टियों के नखरे झेलने पड़ रहे हैं। हालांकि इसके लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब अखिलेश ने छह सीटें मांगी तो तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कल्पनाथ राय ने कह दिया कि ये अखिलेश वखिलेश कौन होता है। ऐसे ही हरियाणा विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी। यही वजह रही कि अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के सभी सीटों पर अपने सिंबल पर प्रत्याशी उतार दिये।
अखिलेश यादव को यह समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस ने भले ही उत्तर प्रदेश उप चुनाव में सपा को समर्थन दे दिया हो पर अखिलेश यादव के निर्णय से कांग्रेस के नेता नाराज हैं। उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता चुनाव में सपा को नुकसान करते दिखेंगे। फूलपुर में ऐसे ही सुरेश यादव ने पर्चा नहीं भरा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस नेताओं के दिमाग में बैठ गया है कि अखिलेश यादव को जो 37 सीटें मिली हैं उनमें कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान है। यह बात सपा नेता भी जानते हैं कि आज की तारीख में मुस्लिम राहुल गांधी को अपना नेता मान रहे हैं। कांग्रेस नेता जानते हैं कि अब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पैर पसार रही है। ऐसे में कांग्रेस नेता नहीं चाहेंगे कि अखिलेश यादव को ज्यादा सीटें मिले।
उधर अखिलेश यादव भी नहीं चाहते कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पैर पसारे। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश में जमने के बाद सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यदि उत्तर प्रदेश का मुसलमान कांग्रेस के साथ आ गया तो सपा की स्थिति डांवाडोल हो जाएगी। यही वजह है कि कांग्रेस और सपा दिखाने को तो एक साथ हैं पर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगी हैं और इस अंदरूनी लड़ाई का फायदा बीजेपी को हो रहा है।
महाराष्ट्र में सपा तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस विपक्ष का करेगी नुकसान!

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