चरण सिंह
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी संभल हिंसा के मामले में पीड़ितों को पांच लाख मुवावजा देने की बात कर रही है। फिर से प्रतिपक्ष नेता माता प्रसाद पांडेय की अगुआई में संभल में अखिलेश यादव ने एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। मतलब अखिलेश यादव संभल हिंसा पर गंभीर हैं। अक्सर देखा जाता है कि यदि कहीं कोई मामला होता है तो वह अपना प्रतिनिधिमंडल भेजते हैं। मतलब वह खुद जाना गवारा नहीं समझते। दरअसल अखिलेश यादव प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी से भी सबक नहीं लेते। राहुल गांधी न केवल संभल हिंसा से प्रभावित लोगों से मिले बल्कि हाथरस कांड के मामले में भी पीड़ितों से मिले थे। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव 2027 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने की बात कर रहे हैं। पर वह यह समझने को तैयार नहीं कि वह खुद उत्तर प्रदेश छोड़ दिल्ली चले गए हैं। अपने चाचा शिवपाल यादव को खुलकर खेलने नहीं देना चाहते हैं। परिवार के दूसरे नेता अपने पदों तक ही सीमित हैं। पार्टी कार्यकर्ता आंदोलन करना भूल गए हैं। समाजवादी पार्टी विपक्ष की भूमिका में कमजोर पड़ रही है। सपा मुखिया अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि भले ही संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव में सपा को 37 सीटें मिल गई हों पर उप चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने 9 में 7 सीटें जीत ली। मतलब लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी मन से चुनाव नहीं लड़वाया था। तब यह माना गया था कि 32 सीटों पर योगी आदित्यनाथ की सहमति न होने के बावजूद टिकट दिए गए। बीजेपी अधिकतर इन्हीं सीटों पर भी हारी। यह बात लोकसभा में अखिलेश यादव भी बोल चुके हैं कि जिस नेता नेता ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हरवाया उसको उनके नेतृत्व हटा नहीं पा रहा है। उनका इशारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर था। इसका मतलब समाजवादी को योगी आदित्यनाथ ने जितवाया है।
अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि यदि 2027 में सरकार बनानी है तो आंदोलन का रास्ता अपनाना होगा। समाजवादी पार्टी को आंदोलन की पार्टी के नाम से जाना जाता है। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में पूरा होल्ड कर रखा है। कुंदरकी जैसी मुस्लिम बहुल सीट पर भी बीजेपी जीत गई। मतलब मुस्लिम भी बीजेपी को वोट देने लगे हैं। अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव की तरह मुसलमान अभी उन पर विश्वास नहीं करते हैं।