बीजेपी के ओबीसी दांव (2017) को अपनाकर 2022 को फतह करने में लगी सपा 

चरण सिंह राजपूत 

योगी आदित्यनाथ के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भारतीय जनता पार्टी से ओबीसी विधायकों की टूट का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जारी है। अब बिधूना से बीजेपी विधायक विनय शाक्य ने भी इस्तीफा दे दिया है। विनय शाक्य 48 घंटे के भीतर भाजपा छोड़ने वाले 8वें विधायक हैं। साथ ही योगी सरकार के एक और मंत्री धर्म सिंह सैनी ने भी सरकारी आवास और सुरक्षा लौटा दी है। मतलब वह भी इस्तीफा देने की ओर जा रहे हैं। शिकोहाबाद के विधायक मुकेश वर्मा ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह अखिलेश यादव का ओबीसी दांव ही है कि ओबीसी समुदाय के दिग्गज नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद उनके समर्थक विधायक और नेता बीजेपी छोड़कर सपा की ओर रुख कर रहे हैंं।
भाजपा से टूट की स्थिति यह है कि 24 घंटे के भीतर योगी कैबिनेट से दो मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है। पहले श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और फिर वन मंत्री दारा सिंह चौहान। ओबीसी समुदाय से आने वाले दोनों ही नेता अगली पारी की शुरुआत समाजवादी पार्टी के साथ करने जा रहे हैं। ओबीसी को लेकर ऐसे ही भाजपा में मंथन नहीं चल रहा था। इन चुनाव में सपा वही काम कर रही है जो काम 2017 में भाजपा ने किया था। मतलब गैर यादव ओबीसी जातियों जैसे कुर्मी, मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, राजभर और निषाद नेताओं को अपने साथ लेकर सरकार बनाने का मार्ग प्रसस्त किया था। दरअसल भाजपा ने एक रणनीति के तहत 2012 से 2017 तक चले सपा शासनकाल में यादव समुदाय को ही फायदा मिलने की धारणा का फायदा उठाते हुए गैर-यादव पिछड़ी जाति के नेताओं को अपने साथ मिलाया था।2022 के विधानसभा चुनाव में सपा भी बीजेपी वाला काम कर रही है। सपा योगी शासनकाल में सवर्णों को ही फायदा मिलने की बात करते हुए पिछड़े नेताओं को उकसा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके सिंह पटेल, एसपी सिंह बघेल, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी, ब्रिजेश कुमार वर्मा, रोशन लाल वर्मा और रमेश कुशवाहा जैसे नेता सपा और बसपा को छोड़कर ही भाजपा में गए थे। ये ही वे नेता थे जिन्होंने बीजेपी की प्रचंड जीत में अहम भूमिका निभाई थी। भाजपा ने एक रणनीति के तहत दूसरे दलों से आए कई नेताओं को टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया तो कई को विधान परिषद और संगठन में जगह देकर खुश किया। यह ओबीसी का समर्थन ही था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 सीटों वाली विधानसभा में अकेले 312 सीटों पर कब्जा कर लिया था।  जबकि  के सहयोगी दलों अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को क्रमश: 9 और 4 सीटें मिलीं थी। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद सुभासपा ने बीजेपी से नाता और गठबंधन तोड़ लिया था।
अब भाजपा वाला काम अखिलेश यादव कर रहे हैं। गैर यादव ओबीसी नेताओं को भाजपा से तोड़ सपा में मिलाया जा रहा है। एक दूरगामी रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने यह काम 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ हुए गठबंधन में मिले झटके के बाद से ही शुरू कर दिया था। अखिलेश यादव ने बसपा से पहले ही बगावत करके सपा में आ चुके इंद्रजीत सरोज और आरके चौधरी को बसपा के दूसरे नेताओं से संपर्क साधने और मानने में लगा रखा था। इस अभियान पर काम कर अखिलेश यादव ओबीसी समुदाय से जुड़े बीएसपी के ओबीसी नेताओं जैसे आरएस कुशवाहा, लालजी वर्मा, रामाचल राजभर, केके सचान, वीर सिंह और राम प्रसाद चौधरी को सपा में लाने में कामयाब रहे हैं। 2017 में बीएसपी से पाला बदल कर भाजपा में जा चुके नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, रोशन लाल वर्मा, विजय पाल, ब्रजेश कुमार प्रजापति और भगवती सागर जैसे नेताओं को भी अखिलेश अपने खेमे में ले आये हैं।बीजेपी भलीभांति जानती है कि ओबीसी समुदाय के इन नेताओं के टूटने से उसे कितना भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए बीजेपी इन रूठे नेताओं को मनाने में लगी है। बीजेपी ने अपने ओबीसी नेताओं केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान को मनाने में लगा दिया है। केशव प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट के दोनों मंत्रियों के इस्तीफे के तुरंत बाद ट्वीट करके उनसे दोबारा विचार करने की अपील भी की है। दरअसल उत्तर प्रदेश की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 45 फीसद है। इसमें दो राय नहीं कि 2007 में बसपा, 2012 में सपा और फिर 2017 में भाजपा को सत्ता दिलाने में ओबीसी ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ओबीसी की ताकत को पहचान कर ही भाजपा ने 2017 में सपा से उनके मोहभंग का फायदा उठाया था। यही काम इस बार सपा कर रही है। अब बीजेपी से ओबीसी की नाराजगी का फायदा उठाकर ही अखिलेश यादव २०२२ का चुनाव फतह करने में लगे हैं।

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