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किसी भी काम में कारगर नहीं हो सकती है गुलाम सोच!

गुलाम सोच
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चरण सिंह राजपूत 
वैसे तो हर सरकार ने आम आदमी के साथ एक गुलाम जैसा व्यवहार किया है पर मौजूदा सरकार तो जनता के साथ अंग्रेजी हुकूमत से भी बदतर व्यवहार कर रही है। यह इन लोगों की ही है सोच कि इनके  मातृ संगठन आरएसएस पर अंग्रेजी हुकूमत की पैरवी करने और आजादी की लड़ाई से बचने के आरोप लगते रहते हैं। भाजपा और उसके समर्थक भी अंग्रेजी शासन की वजह से मुगलों के शासन का खात्मा मानते हैं। ये लोग तो आजादी की लड़ाई को नकारते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में एडोल्फ हिटलर के अंग्रेजों को कमजोर करने की वजह से देश को आजाद होना मानते हैं। यह इन लोगों की अंग्रेजी हुकूमत और आजादी के प्रति धारणा ही थी कि अंग्रेजी हुकूमत के रहमोकरम पर बंगाल में बनी संविद सरकार के उप मुख्यमंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तत्कालीन गर्वनर को पत्र लिखकर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। इन्होंने तो आजादी की लड़ाई को नकारते हुए बंगाल में लोगों से भारत छोड़ो आंदोलन के विरोध की अपील की थी। दरअसल मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने मिलकर बंगाल में संविद सरकार बनाई थी। मतलब अंग्रेजों के रहमोकरम पर चलकर ये लोग अंग्रेजी हुकूमत भी भी खुश थे।
हम लोग अपने को कितना भी आज़ाद मान लें पर जमीनी हकीकत तो यह है कि हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम हैं। यह हमारी गुलाम सोच ही रही है कि अंग्रेजी हुकूमत में जो अधिकारी भारत में तैनात होते थे उन्हें वापसी पर इंग्लैण्ड सरकार कोई जिम्मेदारी का पद नहीं देती थी।  दरअसल भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिस जी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा।  अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे।

एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था।  महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए। अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक पुस्तक लिखी है। महिला ने इस पुस्तक में लिखा है कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे। सैकड़ों लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे, और हम जिसके पास जाते थे, वह इसे सम्मान मानता था।  हमारी शान और शौकत ऐसी थी कि ब्रिटेन में महारानी और शाही परिवार भी मुश्किल से मिलती होगी। ट्रेन यात्रा के दौरान डिप्टी कमिश्नर के परिवार के लिए नवाबी ठाट से लैस एक आलीशान कंपार्टमेंट आरक्षित किया जाता था।  जब हम ट्रेन में चढ़ते तो सफेद कपड़े वाला ड्राइवर दोनों हाथ बांधकर हमारे सामने खड़ा हो जाता।  और यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगता। अनुमति मिलने के बाद ही ट्रेन चलने लगती।
एक बार जब हम यात्रा के लिए ट्रेन में सवार हुए, तो परंपरा के अनुसार, ड्राइवर आया और अनुमति मांगी।  इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे बेटे का किसी कारण से मूड खराब था।  उसने ड्राइवर को गाड़ी न चलाने को कहा।  ड्राइवर ने हुक्म बजा लाते हुए हुए कहा, जो हुक्म छोटे सरकार।  कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर समेत पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया और मेरे चार साल के बेटे से भीख मांगने लगा, लेकिन उसने ट्रेन को चलाने से मना कर दिया। आखिरकार, बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने बेटे को कई चॉकलेट के वादे पर ट्रेन चलाने के लिए राजी किया, और यात्रा शुरू हुई।
कुछ महीने बाद, वह महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने यूके लौट आई।  वह जहाज से लंदन पहुंचे, उनकी रिहाइश वेल्स में एक काउंटी मेथी जिसके लिए उन्हें ट्रेन से यात्रा करनी थी।  वह महिला स्टेशन पर एक बेंच पर अपनी बेटी और बेटे को बैठाकर टिकट लेने चली गई।लंबी कतार के कारण बहुत देर हो चुकी थी, जिससे उस महिला का  बेटा बहुत परेशान हो गया था।  जब वह ट्रेन में चढ़े तो आलीशान कंपाउंड की जगह फर्स्ट क्लास की सीटें देखकर उस बच्चे को फिर गुस्सा आ गया।  ट्रेन ने समय पर यात्रा शुरू की तो वह बच्चा लगातार चीखने-चिल्लाने लगा।  “वह ज़ोर से कह रहा था, यह कैसा उल्लू का पट्ठा ड्राइवर है है।  उसने हमारी अनुमति के बिना  ट्रेन चलाना शुरू कर दी है।  मैं पापा को बोल कर इसे जूते लगवा लूंगा।” महिला को बच्चे को यह समझाना मुश्किल हो रहा था कि “यह उसके पिता का जिला नहीं है, यह एक स्वतंत्र देश है। यहां डिप्टी कमिश्नर जैसा तीसरे दर्जे का सरकारी अफसर तो क्या  प्रधान मंत्री और राजा को भी यह अख्तियार नहीं है कि वह लोगों को उनके अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अपमानित कर सके
आज यह स्पष्ट है कि हमने अंग्रेजों को खदेड़ दिया है, लेकिन हमने गुलामी को अभी तक देश बदर नहीं किया।  आज भी कई डिप्टी कमिश्नर, एसपी, मंत्री, सलाहकार और राजनेता  अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आम लोगों को घंटों सड़कों पर परेशान करते हैं।  इस गुलामी से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है कि सभी पूर्वाग्रहों और विश्वासों को एक तरफ रख दिया जाए और सभी प्रोटोकॉल लेने वालों का विरोध किया जाए।