इसे सहारा निवेशकों और जमाकर्ताओं की विडंबना ही कहा जाएगा कि इन लोगों ने तो रात दिन मेहनत कर सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय और उनके परिवार को राजा-महाराजाओं जैसी जिंदगी जीने का मौका दिया पर सुब्रत राय ने इन्हें दयनीय जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया। निवेशक और जमाकर्ता अपने भुगतान को लेकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और सुब्रत राय हैं की सेबी के पैसा न देने का बहाना बनाकर उनके जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं।
दरअसल सुब्रत रॉय ने कभी किसी को कुछ समझा ही नहीं। अब जब उसके वे निवेशक और जमाकर्ता उसके खिलाफ खड़े हो गए जो उसके सामने बिछे रहते थे तो वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। जमीनी सच्चाई यह भी है कि पैसे और मीडिया के माध्यम से अपने काम कराने वाले सुब्रत रॉय की यह गलतफहमी सेबी के तत्कालीन बोर्ड मेंबर डॉ. केएम अब्राहम ने निकाल दी थी। सुब्रत रॉय ने डॉ. केएम अब्राहम को मैनेज करने के लिए सभी घोड़े खोल दिए थे पर उनके सामने सुब्रत रॉय की एक न चली थी।
सेबी ने जांच शुरू की तो सामने आया कि SIRECL और SHICL ने 2-2.5 करोड़ लोगों से 24,000 करोड़ रुपये इकट्ठे किए हैं। 2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। सहारा ने इसके लिए सेबी से अनुमति नहीं ली। सेबी के तत्कालीन बोर्ड मेंबर डॉ. केएम अब्राहम ने पूरी जांच की। उन्हें पता चला कि सहारा के कई निवेशक फर्जी थे और बाकियों का कंपनी से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। आसान भाषा में कहें, तो सहारा ने इन दो कंपनियों के जरिए लोगों से पैसे लिए। साथ ही कहा कि वह इस पैसे से देश के अलग-अलग शहरों में टाउनशिप बनाएगा, लेकिन सहारा ने न तो टाउनशिप बनाई और न ही लोगों के पैसे वापस किए।
1982 के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी डॉ. कंडाथिल मैथ्यू अब्राहम, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सहारा समूह के कामकाज में अनियमितताओं को उजागर करने के लिए जाने जाते हैं। सरकार के अत्यधिक दबाव का सामना करने के बावजूद, उन्होंने समूह की दो धोखाधड़ी कंपनियों का पर्दाफाश किया और उन्हें निवेशकों को वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया। IIT कानपुर ने उन्हें अपना कर्तव्य निभाते हुए उच्चतम पेशेवर अखंडता और ईमानदारी प्रदर्शित करने के लिए सत्येंद्र के दुबे मेमोरियल अवार्ड 2016 से सम्मानित किया है।
डॉ. अब्राहम IIT कानपुर से औद्योगिक प्रबंधन में एम.टेक हैं। । वह यूएसए से एक लाइसेंस प्राप्त वित्तीय विश्लेषक (एलआईएफए) पेशेवर भी हैं और पीएच.डी. मिशिगन विश्वविद्यालय, एन आर्बर से हैं। 1982 में वह भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल हुए और केरल सरकार में विभिन्न पदों पर रहे। वह छह साल तक केरल सरकार के वित्त विभाग में सचिव रहे हैं। वह केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड के संस्थापक फंड मैनेजर और प्रधान सचिव, उच्च शिक्षा विभाग में भी थे। 2008 में उन्होंने सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में कार्यभार संभाला था।
सेबी के साथ अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सहारा समूह में वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया और सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन (एसआईआरसी) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन (एसएचआईसी) के खिलाफ 23 जून 2011 को एक आदेश पारित किया। “दोनों कंपनियां निस्संदेह, स्पष्ट रूप से जनता को प्रतिभूतियों की पेशकश करने वाली सार्वजनिक कंपनियों पर लागू कानूनों के प्रावधानों के घोर उल्लंघन में हैं। (वे) अपने स्वयं के निवेशक की पहचान पर बुनियादी डेटा भी प्रस्तुत करने में असमर्थ प्रतीत होती हैं। …” उसने अपने आदेश में कहा। उन्होंने दो संदिग्ध कंपनियों का इतनी अच्छी तरह से पर्दाफाश किया कि न तो प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण और न ही सर्वोच्च न्यायालय को इसमें दोष मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने दो सहारा कंपनियों के खिलाफ अपने अंतिम आदेश में डॉ. अब्राहम की लगभग सभी दलीलों से सहमति जताई। उनका काम इतना सावधानीपूर्वक और निर्विवाद था कि कोई भी इसकी प्रामाणिकता को चुनौती नहीं दे सकता था।
दिलचस्प बात यह है कि कथित रूप से भारी राजनीतिक दबाव के कारण डॉ. अब्राहम को सेबी में सेवा विस्तार नहीं दिया गया था। यहां तक कि उन्होंने वित्त मंत्रालय पर सहारा सहित कई हाई-प्रोफाइल मामलों में नरमी बरतने के लिए नियामक पर दबाव बनाने का आरोप लगाते हुए तत्कालीन प्रधान मंत्री को एक पत्र भी लिखा था। बाद में, वित्त मंत्रालय ने आरोपों से इनकार कर दिया था।
15 प्रतिशत ब्याज के साथ पैसे लौटाने का आदेश
यह शख्सियत तो डॉ. अब्राहम की थी पर सुब्रत रॉय की हेकड़ी कैसी निकली अब आपको यह बताते हैं। दरअसल सहारा की गड़बड़ी सामने आते ही सेबी ने सहारा के नए OFCD जारी करने पर रोक लगा दी थी। लोगों के पैसे 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया। सहारा के चैयरमेन इस आदेश पर भड़क गए थे और उन्होंने अपने सिपहसालारों को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया और सेबी पर केस कर दिया। दिसंबर, 2010 में कोर्ट ने सेबी के आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन 4 महीने बाद सेबी को सही पाया गया और सहारा को भुगतान करने को कहा गया।
सहारा फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया, यहां से उसे सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल जाने को कहा गया गया। दरअसल यह ट्रिब्यूनल कंपनियों के मामलों को सुलझाती है। यहां भी सहारा को राहत नहीं मिली और सेबी के आदेश को सही करार दिया गया। सहारा ने गलती नहीं मानी और मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया।
SEBI से पहले RBI से टकराव
यह भी जमीनी हकीकत है कि सेबी से पहले सहारा का रिजर्व बैंक (RBI) से भी टकराव चल रहा था। RBI ने 2007-08 में सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन के पैसे जमा कराने पर रोक जो लगा दी थी। यह सुब्रत राय की लोगों को खरीदने की गलतफहमी ही थी कि देश की दो बड़ी एजेंसियों से टकराव के बाद भी सहारा पीछे नहीं हटा। इतना ही जून 2011 में सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन ने अखबारों में एक विज्ञापन दिया कि उसके पास कुल जमा का मूल्य 73,000 करोड़ रुपये हैं।
इस विज्ञापन ने तहलका मचा दिया था। यह घोषणा ऐसे समय की गई थी जब रिजर्व बैंक और प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड (SEBI) के साथ टकराव चल रहा था। दरअसल दोनों ही सहारा कंपनियों द्वारा डिपॉजिट जमा करने पर अंकुश लगाना चाह रहे थे। रिजर्व बैंक ने विज्ञापन भी छपवा दिए थे कि वह सहारा कंपनियों में जमा होने वाली रकम के भुगतान की गारंटी नहीं देगा।
SEBI ने भी अपनाया यही रुख
इधर सुप्रीम कोर्ट ने सेबी के रुख का समर्थन किया। सहारा से कहा कि उसकी दो कंपनियों ने लाखों छोटे निवेशकों से ओएफसीडी (वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर्स) के जरिए करीब 24,000 करोड़ रु. की जो रकम जमा की है, उसे लौटा दिया जाए। कोर्ट के आदेश के बाद सहारा ने निवेशकों के कागजों से भरे 127 ट्रक सेबी के दफ्तर भेज दिए। इसके बाद सहारा और सेबी के बीच तनातनी बढ़ती गई। पैसा वापस करने की तारीख को तीन महीने गुजर गए पर सहारा पैसा नहीं दे पाया। सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए तीन किस्तों में पैसे लौटाने को कहा।
सहारा ने पहली किश्त में 5210 करोड़ रुपये सेबी के खाते में जमा करा दिए। साथ ही कहा कि बाकी पैसा सीधे निवेशकों के खाते में डाल दिया, लेकिन सहारा न तो पैसे लौटाने के सबूत दे पाया और न ही पैसे आने का सोर्स ही बता पाया। सहारा के इस रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के बैंक खाते सीज करने और संपत्ति सील करने को कहा। फरवरी, 2014 में सुब्रत रॉय को गिरफ्तार किया गया, लेकिन मई 2016 में वह अपनी मां के निधन अपर पैरोल पर जेल से बाहर आ गए और अभी भी पैरोल पर ही हैं।
दरअसल सहारा-सेबी विवाद जगजाहिर हो चुका है। जब सेबी ने जांच शुरू की थी तो सामने आया था कि SIRECL और SHICL ने 2-2.5 करोड़ लोगों से 24,000 करोड़ रुपये इकट्ठे किए हैं। 2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। सहारा ने इसके लिए सेबी से अनुमति नहीं ली। सेबी के तत्कालीन बोर्ड मेंबर डॉ. केएम अब्राहम ने पूरी जांच की। उन्हें पता चला कि सहारा के कई निवेशक फर्जी थे और बाकियों का कंपनी से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। आसान भाषा में कहें तो सहारा ने इन दो कंपनियों के जरिए लोगों से पैसे लिए। साथ ही कहा कि वह इस पैसे से देश के अलग-अलग शहरों में टाउनशिप बनाएगा, लेकिन सहारा ने न तो टाउनशिप बनाई और न ही लोगों के पैसे वापस किए।
दरअसल सुब्रत रॉय की पैसा न देने की नीयत के चलते सहारा इंडिया कंपनी निवेशकों और जमाकर्ताओं साथ पैसों की धोखाधड़ी के आरोप झेल रही है। निवेशकों का ज्यादा तकादा देने पर सुब्रत राय सेबी पर सहारा का पैसा न देने का आरोप लगाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। इतना ही नहीं सुब्रत रॉय सहारा प्रबंधन से अखबारों में विज्ञापन दिलवाकर सफाई देते रहते हैं कि सेबी के पैसा दे देने देने बाद सभी लोगों के पैसे लौटाए जाएंगे, वह भी ब्याज साथ। गत दिनों तो सहारा प्रबंधन ने SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) पर निशाना साधते हुए कहा था कि SEBI ने पिछले एक साल में पैसे लौटाने का कोई विज्ञापन नहीं दिया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को लोगों का फंसा हुआ लौटाने का आदेश दे रखा है। जब से सहारा का केस शुरू हुआ है, वह लगातार विज्ञापनों के जरिए सफाई दे रहा है। सहारा प्रबंधन सरकारी जांच एजेंसियों पर हमलावर है। आइए आपको बताते हैं कि सहारा के केस और निवेशकों और जमाकर्ताओं की कहानी है क्या ?
दरअसल सहारा सेबी का केस गत 9 साल से चल रहा है। इस केस में सब कुछ हो रहा है पर नहीं हो रहा है तो वह निवेशकों के पैसे का न मिलना। यह स्थिति तब है जब सहारा के पास बकाए से तीन गुना सम्पत्ति बताई जा रही है। सहारा-SEBI के खाते में 25,000 करोड़ रुपये जमा होने की बात सामने आ रही है। इसमें ब्याज की रकम भी शामिल बताई जा रही है। दरअसल SEBI ने इस मामले में चार बार विज्ञापन तो जारी कर दिए पर भुगतान मात्र 106.10 करोड़ रुपये का ही किया है।