लखनऊ। विकास कुमार अस्थाना और कविता अस्थाना ने सहारा हास्पिटल लखनऊ और उसके डॉ0 संदीप अग्रवाल के विरुद्ध चिकित्सा में लापरवाही दिखाए जाने के कारण एक परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ के समक्ष प्रस्तुत किया।
परिवादी के अनुसार परिवादी की मॉं श्रीमती उर्मिला अस्थाना आयु 78 वर्ष जो प्रतापगढ़ राजकीय कन्या इण्टर मीडिएट कालेज से सेवा निवृत्त अध्यापिका थीं, उनको दिनांक 16.06.2014 को राम में चेहरे के बायीं ओर पक्षाघात हुआ और वह आंशिक रूप से अचेत हो गईं तथा बोलने में लड़खड़ाहट होने लगी तथा उनको गंभीर इश्चेमिक स्ट्रोक हुआ और मस्तिष्क में खून का प्रवाह रुकने के कारण उन्हें तुरंत सहारा हॉस्पिटल में दिनांक 17/18.06.2014 को रात्रि 12.15 बजे भर्ती कराया गया। वहां पर मौजूद जूनियर डॉक्टर ने उनको देखा और कि चिन्ता की कोई बात नहीं है।
इसके पश्चात वरिष्ठ डॉक्टर संदीप अग्रवाल न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा सुबह मरीज को देखा और उन्होंने बताया कि चार-पांच दिन बाद स्थिति संभल जाएगी। दिनांक 28.06.2014 को परिवादी ने फिर अपनी मॉ के बारे में पता किया तब बताया गया कि स्वास्थ्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जब परिवादी को लगा कि उसके मां के इलाज में लापरवाही हो रही है तब वह अपनी मां को दिनांक 01.07.2014 को अपने घर ले आया जहां पर दिनांक 15.07.2014 को उनकी मृत्यु हो गई।
चिकित्सा में लापरवाही बरतने के कारण सहारा हास्पिटल के विरूद्ध राज्य उपभोक्ता आयोग में परिवादी ने एक परिवाद सं0-३६/२०१५ मु0 ८७,४७,२२६/- रू० के लिए प्रस्तुत किया जिसकी सुनवाई माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह और मा0 सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा की गई।
माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह ने निर्णय घोषित करते हुए लिखा कि विपक्षी सहारा हास्पिटल ने अपने कथन में यह माना कि उनके पास डी0एस0ए0 तथा आर0टी0पी0ए0 इन्फ्यूजन वाया डी0एस0ए0 कैथेटर की सुविधा नहीं है जो केवल एस0जी0पी0जी0आई0 में उपलब्ध है। सहारा हास्पिटल ने यह भी माना कि उनके यहॉं पूर्ण रूप से समर्पित स्ट्रोक यूनिट भी नहीं है। मात्र इण्ट्रावेनस थाम्बोलेसिस (Intravenous Thrombolysis) की सुविधा अस्पताल में मौजूद है। सहारा हास्पिटल द्वारा यह कहा गया कि इण्ट्रावेनस थाम्बोलेसिस इसलिए नहीं की गई क्योंकि वह घातक सिद्ध हो सकती थी। निर्णय में यह कहा गया कि जब सहारा हास्पिटल के पास स्ट्रोक के सम्बन्ध में उपरोक्त सुविधाऐं नहीं थीं तब मरीज को अविलम्ब एस0जी0पी0जी0आई0 में क्यों नहीं भेजा गया और उसे अनावश्यक सहारा हास्पिटल में रोक कर उनसे तमाम दवाइयों के बिलों का भुगतान तथा विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का भुगतान कराया गया। इससे स्पष्ट होता है कि सहारा हॉस्पिटल द्वारा इस मामले में घोर लापरवाही और उपेक्षा का परिचय दिया गया है।
यह भी पाया गया कि थाम्बोलेसिस लगभग 10 प्रतिशत तक लाभकारी होता है किन्तु यह तथ्य भी मरीज के घरवालों से छिपाया गया जबकि इस तथ्य को मरीज के घरवालों को बता देना चाहिए था और यदि घरवाले अपनी सहमति देते तब थाम्बोलेसिस की प्रक्रिया अपनाई जा सकती थी।
माननीय न्यायाधीश ने अपने इसी निर्णय में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा सहारा इण्डिया के मामले में ही दिए गए एक निर्णय (ज्ञान मिश्रा बनाम सहारा इंडिया, डॉ0 संदीप अग्रवाल, डॉ0 मुफज्जल अहमद तथा डॉ0 अंकुर गुप्ता आदि, वाद सं0-९९८/२०१५ निर्णय दिनांक ०७-११-२०१९) का भी उल्लेख किया है।
इस मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने चिकित्सा में लापरवाही के सम्बन्ध में डॉ0 संदीप अग्रवाल पर २०.०० लाख रू० तथा डॉ0 मुफज्जल अहमद पर १०.०० लाख रु० का हर्जाना लगाया और यह भी आदेश दिया कि इसका भुगतान सहारा हॉस्पिटल करेगा क्योंकि उपरोक्त दोनों डॉक्टर सहारा हास्पिटल के कर्मचारी हैं। इसके अतिरिक्त २५,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में भी देने का आदेश दिया।
वर्तमान मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों और विभिन्न चिकित्सा सम्बन्धी लेखों का विवरण देते हुए कहा कि इस मामले में सहारा हास्पिटल और उसके डॉ0 सन्दीप अग्रवाल यह जानते थे कि उनके यहां इस तरह के स्ट्रोक की चिकित्सा करने की पूर्ण यूनिट नहीं है और यह केवल एस0जी0पी0जी0आई0 में ही सम्भव है, इसके बावजूद भी मरीज को अपने रोके रखा जिससे मरीज द्वारा सहारा हास्पिटल में लगभग २,२७,०००/- रू० का व्यय किया गया और निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। यह घोर चिकित्सकीय उपेक्षा और लापरवाही का द्योतक है तथा सेवा में गंभीर कमी है।
माननीय राज्य आयोग के पीठासीन सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह ने अपने आदेश में विपक्षी सहारा हॉस्पिटल को विभिन्न मदों में कुल ८७,९७,०२६/- रु० क्षतिपूर्ति, हर्जाना आदि के रूप में भुगतान इस निर्णय के ०८ सप्ताह के अन्दर करने हेतु आदेश दिया और यह भी आदेश दिया कि यदि इस निर्णय का अनुपालन ०८ सप्ताह में नहीं किया जाता है तब सम्पूर्ण धनराशि पर दिनांक १७-०६-२०१७ से १५ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देना होगा और यदि समय के अन्दर भुगतान किया जाता है तब दिनांक १७-०६-२०१७ से इस निर्णय के ०८ सप्ताह के अन्दर ब्याज की दर १० प्रतिशत वार्षिक होगी। यह भी आदेश दिया गया कि विपक्षी सहारा हास्पिटल इस सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान करने के पश्चात अपनी बीमा कम्पनी से नियमानुसार बीमा प्रावधानों के अंतर्गत इसकी प्रतिपूर्ति के लिए दावा कर सकता है। (साभार : भड़ास फॉर मीडिया)