प्रोफेसर राजकुमार जैन
आपातकाल में खौफनाक माहौल बना हुआ था। घर वालों को भी पता नहीं था कि मैं कहां हूं। 3 महीने के बाद पहली बार मेरी मां को मुझसे जेल में मिलने की इजाजत मिली। मां बहुत घबराई हुई थी। मुझे देखते ही रोने लगी पर जब उसने मुझे बहुत आनंदित देखा तो सहज हुई। जेल की तीन बेरिकों (कैदियों को रखने का स्थान) एक में आरएसएस जनसंघ (भाजपा) वाले दूसरे में सोशलिस्ट तथा तीसरे में कई प्रकार के मीसाबंदी बंद थे। जनसंघ वालों ने इन जेल की बैरिको का नामकरण कर रखा था। अपनी बैरक का नाम स्वर्ग आश्रम, सोशलिस्टों की बैरक का नाम सांड आश्रम तथा तीसरी बैरक का दो नंबर वाले। सोशलिस्टों में अधिकतर कुंवारे थे। अधिकतर कैदी अनागत भविष्य के कारण अपने कारोबार, परिवार की चिंता में मायूस, किसी भी प्रकार, कांग्रेसी की मार्फत माफी मांग कर या सीधे लेफ्टिनेंट गवर्नर के यहां माफी नामा लिखकर जेल से निकलने की जुगत में लगे होते थे। परंतु सोशलिस्ट लगातार जुल्म ज्यादतियों के खिलाफ लड़ते हुए जेल आने के कारण जेल जीवन के आदी बन चुके थे। इनकी मौज मस्ती को देखते हुए ही इनकी बैरक का नाम सांड आश्रम रखा गया था।
मेरे दोस्त जयकुमार जैन और हरीश खन्ना ये वे दो लोग थे जो तिहाड़ जेल से लेकर हिसार की सेंट्रल जेल तक लगातार जेल अदालत, अस्पताल मैं मुझसे मिलने आते थे। मैं इनको मना भी करता था कि तुम पकड़े जाओगे परंतु यह कहां मानने वाले थे। बाकी कहानी प्रोफेसर हरीश खन्ना भूतपूर्व विधायक दिल्ली विधानसभा की जुबानी पढ़िए।
आपात स्थिति में एक डर और खौफ का माहौल था ।लोग बड़ी शंका की निगाह से एक दूसरे को देखते थे ।लोग घबराते थे कि सरकार के खिलाफ कोई शब्द निकाला तो ना जाने कहां से कौन आ कर दबोच लेगा और उनको जेल भेज दिया जाएगा। ।ऐसा कई लोगों के साथ हुआ भी था । खुफिया तंत्र इतना सक्रिय था कि लोग उस वक्त भयभीत रहते थे।पुलिस जगह-जगह ऐसे राजनीतिक लोगों को ढूंढती थी जो विरोधी पक्ष के थे। उस दौर में विभिन्न विरोधी दलों से जुड़े हुए जो लोग थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जनसंघ,संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी , कांग्रेस सिंडिकेट, अल्ट्रा लेफ़्ट नक्सली,जमायते इस्लामी, आनन्द मार्गी और आर एस एस के लोग, इन सब की धरपकड़ हुई । दिल्ली विश्वविद्यालय के कई प्राध्यापक भी जो विभिन्न विरोधी दलों से जुड़े हुए थे उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ओम प्रकाश कोहली जो जनसंघ और आर एस एस के साथ जुड़े हुए थे(बाद में राज्यसभा के सदस्य और गुजरात के गवर्नर भी बने) उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। जनसंघ के विजय कुमार मल्होत्रा जो डी ए वी कॉलेज में प्रोफेसर थे और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री थे उन्हें भी गिरफ्तार किया गया । अल्ट्रा लेफ़्ट के मुरली मनोहर प्रसाद सिंह जो बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष बने , ओ. के यादव ,विनोद खुराना इनको भी गिरफ्तार किया गया। कुछ को दिल्ली में और कुछ को अन्य जेलों में बंद किया गया।
हमारे दो मित्र जयकुमार जैन और मुनीश्वर त्यागी जो वरिष्ठ वकील हैं ,उन दिनों राजकुमार जैन से मुलाकात करने तिहाड़ जेल गए ताकि यह जान सकें कि वह स्वस्थ है। मुनीश्वर त्यागी जी बताते है कि मैंने अपने काले कोट का पूरा फायदा उठाया।वकील होने के नाते ना तो मेरी तलाशी होती थी और न ही मेरे हाथ पर मोहर लगाई जाती थी। वह कहते हैं कि राजकुमार जैन से जब मै मिलने गया तो मैंने उन्हें यह खबर दी कि बाहर कुछ लोग अंडर ग्राउंड होकर आपात स्थिति के खिलाफ पर्चे बांट रहे हैं ।उनमें कुछ पर्चे छुपा कर वह साथ लेकर गए भी थे और दिए भी थे।
राजकुमार जी से मैं मुलाकात पहले ही कर चुका था और निरंतर उनसे संपर्क में था ।अदालत में जब जब पेशी होती थी तो मुझे सूचना मिल जाती और मैं राजकुमार जी से मिलने पहुंच जाता था। जैन साहब के जेल से लिखे पत्र भी मुझे मिलते रहते थे। पत्रो को बाकायदा सेंसर करके भेजा जाता था । राजकुमार जैन से बाकायदा आंखो देखा हाल मिलता रहता था।जेल में रोज शाम को नारेबाजी होती थी। राज कुमार जैन ने बताया कि जेल में बंद कैदियों की तीन तरह की बैरकें थी । एक में आरएसएस और जनसंघ के लोग थे।उस बैरक को जनसंघ के लोगों ने नाम दिया था स्वर्ग आश्रम । दूसरे सोशलिस्ट जिस बैरक में थे उसको जनसंघ और आरएसएस के लोग सांड आश्रम कहते थे। आपस में मजाक चलता था। सोशलिस्ट स्वर्ग आश्रम को गऊ आश्रम कहते थे। गऊ आश्रम वाले कहते थे यह जो समाजवादी है, दो तीन को छोड़ कर बाकी सभी अविवाहित है।इनके आगे पीछे कोई है नहीं। ना तो इनको कोई चिंता है न कोई डर है, बस व्यायाम करते है और आराम करते हैं। यह तो सांड हैं।
तीसरी बैरक में वो लोग थे जो इन दोनों से हटकर या individual थे । वैचारिक आधार पर सब ने अपना अपना ठिकाना इन बैरकों में बना लिया था ।उन्हीं दिनों सतपाल मलिक (भूतपूर्व गवर्नर जम्मू कश्मीर और वर्तमान में गोवा के गवर्नर) भी वहां गिरफ्तार होकर आये और अपना ठिकाना समाजवादियों के साथ उनकी बैरक में रखा ।
राजकुमार जैन ने जेल की एक रोचक घटना सुनाई थी। सांवल दास गुप्ता पुराने सोशलिस्ट लीडर थे।1960 के आसपास उन्होने खूब धरने प्रदर्शन और आंदोलन किए। उनका जन्मदिन आने वाला था।यह तय किया गया उनका जन्मदिन मनाया जाएगा । हालांकि जन्मदिन मनाने के सिद्धान्त रूप से सभी समाजवादी खिलाफ रहते है।पर जेल में उन्हें शरारत सूझी।जन्म दिन वाले दिन कोई कैदी बाहर अदालत में पेशी के लिए जा रहा था उससे कहा गया कि एक किलो बर्फी, अंगवस्त्र,और चंदन की माला वह अपने रिश्तेदारों की मार्फत मंगवा कर लेता आए। इसके लिए उसे लगभग डेढ़ – दो सौ रुपए दिए गए और सामान मंगवाया गया। बर्फी कम थी उस को काट कर छोटे पीस बना दिए गए। शाम को जन्मदिन के अवसर पर गुप्ता जी के सम्मान में भाषण हुए जनसंघ और समाजवादियों सहित सभी लोगों ने गुप्ता जी का गुणगान और सामाजिक राजनीतिक जीवन में उनके योगदान की प्रशंसा की ।अंगवस्त्र,जैकेट,और चंदन की माला उन्हें पहनाई गई। खूब धूम धाम से सादगी भरा जन्मदिन मनाया गया। गुप्ता जी बहुत प्रसन्न थे।
अगले दिन देखा गुप्ता जी बहुत परेशान थे।बार बार अपने तकिए को झाड़ते थे। कभी अपने कपड़ों को टटोलते थे।लोगों ने पूछा क्या हुआ गुप्ता जी?
मैंने कुछ रुपए बचा कर रखे थे।पता नहीं मिल नहीं रहे – गुप्ता जी ने कहा।
घर से मुलाकात के लिए जब कोई जेल आता था तो कुछ रुपए और सामान देकर जाते थे।गुप्ता जी उन पैसों को बचा कर कभी तकिए के कवर में , कभी जैकट की जेब में , कुछ कपड़ों की तह में छुपा कर रख देते थे। वो लगभग डेढ़ दो सौ रुपए इकट्ठे हो गए थे।योजना अनुसार एक दिन पहले साथियों ने उन रुपयों को उड़ा लिया जिसका गुप्ता जी को पता नहीं चला। गुप्ता जी को परेशान देख सभी साथी हंसने लगे। गुप्ता जी सब का मुंह देखने लगे और समझ गए कि यह इन लोगों की शरारत है। तब उन्हें पता चला कि जन्मदिन तो उन्हीं पैसों से मनाया गया है।
तुम नालायक मेरे ही पैसों से स्वागत और जन्मदिन मना रहे थे?
अरे गुप्ता जी आपका इतना शानदार स्वागत इतने कम पैसों में हुआ है। क्या किसी और का कभी इतना स्वागत और सम्मान हुआ है? बड़े से बड़े पैसे वाले का भी इतना कभी सम्मान नहीं हुआ होगा।आप तो इतने सस्ते में छूट गए। हमें तो अपने लीडर का स्वागत करना था। पर पैसे किसी ओर के पास कहां थे?
राजकुमार जैन की इस बात सुन कर गुप्ता जी भी हंसने लगे और बाकी लोग भी ठहाके लगाने लगे।
जेल में खूब विचार मंथन चलता था ।विभिन्न दलों और लोगों में वैचारिक मतभेद होते हुए भी मनभेद नहीं था ।जनसंघ की तरफ से अरुण जेटली, सुन्दर सिंह भंडारी,लाला हंसराज गुप्ता, समाजवादियों की तरफ से विजय प्रताप, राजकुमार जैन ,ललित गौतम बाद में सुरेन्द्र मोहन जी भी आ गए थे, इन सब में विचार विमर्श ,वैचारिक मंथन और बहस होती रहती थी। वैचारिक मतभेद होने के बावजूद भी आपसी दूरियां कम होती गई। सब लोग एक ही नाव में सवार थे। सब की मज़बूरी थी कि इकट्ठे होकर तानाशाही का विरोध करना था। जेल में चाहे अनचाहे सब को एक दूसरे को समझने का मौका मिला।
एक दिन किसी ने जेल में बताया कि साथी जार्ज फर्नांडिस को पट्टी बांध कर लाया गया है ।उन्हें डायनामाइट केस में गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल के किसी सैल में रखा गया है।यह सुनते ही सब में उत्साह भर गया और ज़ोर ज़ोर से नारे लगाने लगे ताकि उन्हें पता चल जाए कि यहां सभी को पता है कि वह इस जेल में है और आपके समाजवादी साथी भी यहीं हैं।राजकुमार जैन ने बताया कि उन्हें यह आशंका थी कि जिस ढंग से उनको चुपचाप लाया गया था उस से सरकार की नीयत और मंशा पर सभी साथियों को शक होने लगा था कि कहीं उनका एनकाउंटर न कर दिया जाए। जॉर्ज के नारे लगा कर वह अधिकारियों को यह मैसेज देना चाहते थे कि यहां सब को पता चल चुका है कि वह इसी जेल में हैं ताकि उन्हें वह कुछ कर न सकें। दूसरी तरफ वो जॉर्ज को भी यह संदेश देना चाहते थे कि सब साथियों को उन के आने का पता चल चुका है ।
जेल के फाटक टूटेंगे सारे साथी छूटेंगे।
दम है कितना दमन में तेरे,देख लिया और देखेंगे
जगह है कितनी जेल में तेरी देख लिया और देखेंगे।
गांधी लोहिया अमर रहें ।
जयप्रकाश, ज़िंदाबाद जिंदाबाद।
साथी जॉर्ज फर्नाडीज ज़िंदाबाद।
इन्कलाब जिंदाबाद ज़िंदाबाद।
यह नारे रोज शाम को लगते थे इन नारों से कुछ कमजोर मन वाले लोग विचलित होते थे। उन्हें लगता था इस नारेबाजी से हमारे जेल से छूटने के चांस कम हो जाएंगे। और यह नारेबाजी नहीं होनी चाहिए । मैं यहां पर नाम लेना उचित नहीं समझता एक दिन एक वरिष्ठ व्यक्ति जो पुरानी दिल्ली के रहने वाले थे और बाद में केंद्रीय मंत्री बनें ,राजकुमार जैन से बोले –
मियां इस से क्या होने वाला है।शेर के मुंह में क्यों हाथ डालते हो? सी. आई. डी. की रिपोर्ट रोज जाती है। इस से हमारे छूटने के चांस कम हो जाएंगे ।एक बार छूट जाओ तो फिर यह सब कर लेना।खुदा के वास्ते अभी यह सब बंद करो। यह लोग हंस कर टाल देते थे।
पर यह सिलसिला चलता रहा रुका नहीं।
देखते देखते समय गुजरता गया । कुछ लोग छूट भी गए पर राजकुमार जैन और इनके समाजवादी साथी कभी विचलित और निराश नहीं हुए।
(बाकी अगली किश्त में – हरीश खन्ना)