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संसद में भी लगे धार्मिक पहनावे और रंग पर रोक! 

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चरण सिंह राजपूत 
र्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब विवाद से जुड़ी लंबित याचिकाओं पर अंतरिम आदेश जारी करते हुए राज्य सरकार से शिक्षण संस्थानों को पुन: खोलने के अनुरोध के साथ ही विद्यार्थियों को भी कक्षा के भीतर भगवा शॉल, गमछा, हिजाब या किसी तरह का धार्मिक झंडा आदि ले जाने से रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि हम राज्य सरकार और सभी हितधारकों से अनुरोध करते हैं कि वे शिक्षण संस्थानों को खोलें और विद्यार्थियों को कक्षाओं में यथाशीघ्र लौटने की अनुमति दें, संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई लंबित रहने के मद्देनजर अगले आदेश तक हम सभी विद्यार्थियों को भले वे किसी धर्म और आस्था के हों, कक्षा में भगवा शॉल, गमछा, हिजाब, धार्मिक झंडा या इस तरह का सामान लेकर आने पर रोक लगाते हैं। आदेश में न्यायाधीशों ने गत कुछ दिनों से चल रहे प्रदर्शन और शिक्षण संस्थानों के बंद होने पर पीड़ा व्यक्त की, ‘खासतौर पर तब जब अदालत इस मामले पर विचार कर रही है और संवैधानिक महत्व और पसर्नल कानून पर गंभीरता से बहस चल रही है.’ पीठ ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के नाते देश स्वयं की किसी धर्म से पहचान नहीं करता है।  अदालत ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अपने धार्मिक विश्वास का पालन करने का अधिकार है।

अदालत ने टिप्पणी की कि, ‘सभ्य समाज होने के नाते, किसी भी व्यक्ति को धर्म, संस्कृति या ऐसे ही विषयों को सार्वजनिक शांति और सौहार्द्र को भंग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।  देश में जिस तरह के हालात हैं, धर्म और जाति के नाम पर राजनीति की जा रही है। ऐसे में कोर्ट कोई बच्चों से ज्यादा राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसना जरुरी है। राजनीतिक दलों के नेताओं की तो भाषा, पहनावे, रहन सहन सब में जाति और धर्म झलकता है। संसद में तो ये नेता विशेष तौर पर धर्म से जुड़े पहनावे में होते हैं। ऐसे में संसद पर स्कूलों वाला नियम कानून लागू होना चाहिए।  सार्वजानिक जगहों पर भी धार्मिक माहौल बनाने से रोक लगानी की जरुरत है।

जिस देश में हिन्दू समाज सरस्वती को शिक्षा की देवी का रूप मानता हो। उसकी पूजा करता हो। उस देश में शिक्षण संस्थानों में पहनावे को लेकर बवाल मचा है। जिस समाज में पूजा ही सिर ढककर की जाती हो, उस धर्म की आड़ में दूसरे धर्म की छात्राओं के पहनावे को लेकर उनके कॉलेज में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस मामले ने देश में इतना टूल पकड़ लिया कि कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। देश का हर तंत्र देश को धर्मनिरपेक्ष बताता है। धार्मिक मामलों में कोर्ट भी देश के धर्मनिरपेक्ष होने का हवाला देकर आदेश देता है। देश जो भी कुछ् भी हो रहा है। क्या यह धर्मनिरपेक्ष देश में होता है। दरअसल जब देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री धर्मनिरपेक्षता का मजाक बनाते हों तो इस तरह का माहौल बनना स्वभाविक है। जिस देश में लड़कियों को बचपन से ही सिर ढकने की सीख दी जाती रही है। उस देश में हिजाब को ही मुद्दा बना दिया है। हिजाब दुपट्टे का ही तो एक दूसरा रूप है। वैसे भी हिजाब पहनकर आने वाली छात्राएं अचनाक तो हिजाब पहनकर तो नहीं आई होंगी। जब वे कॉलेज में आ जाती हैं तो उनके कॉलेज में प्रवेश पर प्रतिबंध ही लगा दिया गया। क्या  कोई सरकार राजनीतिक कार्यक्रमों या फिर संसद में किसी वेशभूषा को लेकर प्रतिबंध लगा सकती हैं ?