RBI Wholesale Price Index (थोक महंगाई) : महंगाई को लेकर भारत में आए दिन खबर बनी रहती है, महंगाई न केवल भारत में बल्कि कोविड महामारी के कारण पूरी दुनिया में बढ़ गई। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था कोविड के पहले भी गर्त में जा रही थी। ऐसे में RBI Wholesale Price Index यानी की थोक महंगाई की मार्च महीने की दर के आंकड़े सामने आ जाने से महंगाई के कम होने के आसार अभी दूर हैं। पहले नेता महंगाई पर बात करने से बचते थे लेकिन अब नेता श्रीलंका और रुस – यूक्रेन युद्ध की आड़ लेकर बढ़ी महंगाई को भी देशहित में बता देते हैं और सरकार की वाहवाही करते नहीं थकतें।
अब कोविड के मामले बढ़ने की खबर आ रही पर उसके साथ थोक मुद्रास्फीति की नई दरें सामने आ रही पर भारत के हर गली नुक्कड़ पर उपलब्ध अर्थशास्त्री आपको महंगाई पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका की महंगाई की वजह समझा देंगे और सरकार कैसे महंगाई की दरों को थामे हुए है समझा देगें।
ये अर्थशास्त्री अपनी अंतरराष्ट्रीय स्कोप वाली दूर दृष्टि बनाए हुए ही थे कि अचानक थोक दर बढ़ाकर 14 फीसदी से भी ज्यादा हो गई, वैसे सस्ते अर्थशास्त्रियों को किसी आंकड़ों का फर्क नही पड़ता पर हम आपको इस खबर का सारा कच्चा चिट्ठा समझा देगें।
सबसे पहले समझते है कि यह आंकड़ा है क्या इस बार RBI Wholesale Price Index(थोक महंगाई) बढ़कर साढ़े 14.55 फीसदी हो गई हैं यह आंकड़ा मार्च महीने का हैं इसके साथ RBI Wholesale Price Index (थोक महंगाई) पिछले 10 साल के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी हैं। ऐसा नहीं है कि RBI Wholesale Price Index(थोक महंगाई )ने पहली बार ये अचीवमेंट अचीव किया हैं यह आंकड़ा नवम्बर 2021 में भी 14 फीसदी का आंकड़ा था।
कौन जारी करता हैं यह आंकड़े –
थोक महंगाई के यह आंकड़े केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय यानी Union Ministry of Commerce and Industry द्वारा थोक मूल्य सूचकांक जिसे आप खबरों में WPI (Wholesale Price Index) सुन रहें होगेंं के रूप में किये जाते हैं। ये मंत्रालय का कामकाज पीयूष गोयल द्वारा द्वारा देखा जाता है इसके अलावा वें रेल्वे मंत्रालय को भी संभालते हैं।
कैसे कैलकुलेट होती हैं RBI Wholesale Price Index(थोक महंगाई) –
थोक महंगाई को थोक मूल्य में हुई बढ़ोत्तरी के तौर पर देखा जाता हैं। थोक मूल्य नाम से ही स्पष्ट हैं कि वस्तुओं की कीमत जिसमें सरकार की तरफ से लगाए जा रहें किसी भी प्रकार के टैक्स और उसकी ढुलाई का खर्च इन सभी करों को हटा कर वस्तु का मूल्य ही उसका थोक मूल्य हैं। खुदरा मूल्य इससे आगे जा कर उपभोक्ता के जेब में पड़ने वाले भार का दर्शाती हैं।
जनवरी में यह दर 12 फीसदी के करीब थी वही फरवरी में यह 13 फीसदी के करीब थी। इसमें लगातार बढ़ोतरी देखी जा सकती हैं। खुदरा महंगाई की दर भी इस रेस में पीछे नहीं। खुदरा महंगाई की दर भी 17 महीने में सबसे ज्यादा होने की खिताब अपने नाम करा चुकी हैं।
UPA सरकार के समय का कच्चा चिट्ठा – UPA सरकार के समय थोक महंगाई की दर 6.9 फीसदी थी उस समय यह दर सबसे अधिकतम मानी जाती थी।
wholesale price index base year 2004 05 के उदाहरण से समझते हैं –
wholesale price index base year 2004 05 को निकालने हेतु एक अलग उदाहरण से समझ सकते हैं, अगर 1994 में गेहूं की कीमत 8 रुपये प्रति किलो थी और वर्ष 2004 में यह 10 रुपए प्रति किलो है तो कीमत में अंतर हुआ २ रूपए का हुआ यानी प्रतिशत में निकालें तो २५ प्रतिशत बैठता है। wholesale price index base year 2004 05 यानी आधार वर्ष (2004-05) के लिए सूचकांक 100 माना जाता है, इसलिए वर्ष 2004 में गेहूं का थोक मूल्य सूचकांक होगा 100+25 यानी 125.
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बता दें कि खुदरा मूल्य के आंकड़े RBI के जारी के अनुमानित आंकड़े से कई ज्यादा हैं। RBI ने महंगाई की दर 4 फीसदी लगाई गई लेकिन अगर हम मार्च की दर की बात करें तो यह 6.9 फीसदी पहुंच चुकी हैं, जो कि फरवरी से 15 फीसदी अधिक हैं। यह दर नवम्बर में 4.9 और दिसम्बर में यह 5.5 फीसदी रही थी। यानि खुदरा महंगाई की दर में भी लगातार बढ़ोतरी देखी जा सकती हैं।
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महंगाई की दरों को कंट्रोल करने के लिए RBI की मौद्रिक नीति समिति को मार्च 2026 तक खुदरा महंगाई को 2 फीसदी से 4 फीसदी के अन्दर रखें ताकि पैसे का लेन-देन बना रहें और बाजार का पहिया आसानी से घूम सकें। RBI की इस कमेटी का गठन 27 जून 2016 को किया गया था।