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बजी दुंदभी वोट की

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बिकते कैसे आदमी, आलू-गाजर भाव ।
देख अगर है देखना, लड़कर एक चुनाव ।।
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जब भी चुनती बिल्लियां, बन्दर को सरदार ।
हिस्सा उनका चाटता, उनका करे शिकार ।।
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बने भेड़िये मंत्री, करते हरदम फेर।
कर पायें क्या फैसला, अब जंगल में शेर ।।
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जिनकी पहली सोच ही, लूट,नफ़ा श्रीमान ।
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान ।।
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जनता आपस में भिड़ी, चुनने को सरकार ।
नेता बाहें डालकर, बन बैठे सरदार ।।
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मोहल्ले से देखिये, मांगे गली तलाक ।
राजनीति सौतन बनी, कटा रही है नाक ।
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राजनीति में है नही, सदाचार की लाज।
जयचंदर, जाफ़र कहाँ, आते सौरभ बाज।।
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पहने नेता टोपियां, घूमे आज अनेक ।
देकर वोट जिताइये, नेता सौरभ नेक ।।
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सच्चे हित की बात जब, इक प्रतिशत के पास।
जन-मन में कैसे बने, बाकी सौरभ खास।।
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बजी दुंदभी वोट की, आये नेता द्वार।
भाईचारा बस रहे, मन में करो विचार।।
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डॉ. सत्यवान सौरभ