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 रामजीलाल सुमन को मारने से पहले जान ले ! 

इतिहास की बेशुमार किताबों में मुख्तलिफ यकीदो, विचारधाराओं, आस्थाओं मान्यताओं तथ्यों मैं यकीन रखने वाले इतिहासकारो ने अपने अपने नजरिये से इतिहास लिखा है। इतिहास की किताबों में अनगिनत झूठे, सच्चे किस्से कहानियां दर्ज हैं। आप किताब के बदले नई किताब लिख सकते हैं, पहले जो लिखा जा चुका है उसको ग़लत करार देकर नया लिख सकते हैं परंतु पहले जो लिखा जा चुका है उसको मिटा नहीं सकते।
राणा सांगा एक लड़ाकू योद्धा था। तीर लगने से एक हाथ कटा होने, बदन के हर हिस्से पर घाव होने के बावजूद वह आखरी दम तक लड़ता रहा, इतिहास के पन्नों में कहीं इस पर दो राय, बहस नहीं। विवाद इस बात पर है कि क्या उसने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को दावत नामा दिया था? तवारीख के इस विवादास्पद तथ्य पर लोकसभा में रामजीलाल सुमन के बोलने पर राणा सांगा के जाति के लोग पहले सुमन के घर पर बुलडोजर पर चढ़ाई करके मकान को ध्वस्त तथा सुमन को मारने के लिए पहुंचे। और बाद में पूरी तैयारी कर सुमन के खून के प्यासे बन, नंगी तलवारें, बंदूक तमंचो लाठी डंडों से लैस खुलेआम मैदान में केसरिया बाना धारण कर ऐलान किया कि सुमन की हत्या करने वाले को इनाम दिया जाएगा।
कानून, संविधान, न्याय का शासन की बात छोड़िए, क्या तलवार की नोक पर इतिहास की इबारत को बदला जाएगा?
हमलावरों से मेरी गुजारिश है कि, वे रामजीलाल सुमन का इतिहास जान ले। एक दलित मां के पेट से पैदा होने वाला सुमन विद्यार्थी जीवन में ही सोशलिस्टों की संगत में ऐसा रंगा की उम्र के आखिरी दौर मैं भी पलटा नहीं। जब उत्तर प्रदेश में मान्यवर कांशीराम तथा मायावती के तूफान में सियासत करने वाला हर दलित नेता शामिल हो रहा था उस दौर में भी सुमन, मायावती का सजातीय होने के बावजूद सोशलिस्ट पार्टी के झंडे को कंधे पर रखकर नारा लगाता रहा। इसी खुन्नस के कारण मायावती जी घोषणा कर रही है कि रामजीलाल सुमन पर होने वाला हमला दलितों पर हमला नहीं है।
आचार्य नरेंद्र देव, युसूफ मेहर अली, जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया की विचारघारा में दीक्षित रामजीलाल, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के ऐसे लाड़ले थे कि अगर आज चंद्रशेखर जी जीवित होते तो सबसे पहले उनकी मुनादी होती कि इस पर हमला करने से पहले मुझ पर करो।
हिंसा से किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता, हिंसा का चक्र घूमता रहता है, कभी कोई ऊपर हो जाता है और कोई नीचे। लिखे का जवाब लिखे से, बोली का जवाब बोली से ही दिया जाना चाहिए।
राजकुमार जैन

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