राजयोग करता सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का जड़ से उन्मूलन : पूजा बहन

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राजयोग से हम अपनी कर्मेंद्रियों पर सहजता से रख सकते नियंत्रण

सुभाष चन्द्र कुमार

समस्तीपुर, पूसा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के खुदीराम बोस पूसा रेलवे स्टेशन रोड स्थित स्थानीय सेवाकेंद्र पर आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर में राजयोग का आधार एवं विधि व राजयोग से प्राप्त होने वाली अष्ट शक्तियों के विषय पर संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारी पूजा बहन ने कहा‌ कि आज के समय में अनेक प्रकार के योग सिखलाये जा रहे हैं। जिनके द्वारा शारीरिक-मानसिक स्तर पर एक हद तक लाभ भी पहुंचता है।

लेकिन राजयोग सभी में सर्वश्रेष्ठ और सबसे सहज है। इसे सीखकर इसका अभ्यास करने से हम अपनी कर्मेंद्रियों पर सहजता से नियंत्रण कर पाते हैं। हमारा मन हमारे वश में हो जाता है, हमारी बुद्धि सही निर्णय लेने में सक्षम होती जाती है और हमारे संस्कार महान बनते जाते हैं। परिणामस्वरूप हम अनेक प्रकार की बुराइयों एवं प्रलोभनों से तो बच ही जाते हैं। साथ ही साथ हमारा जीवन भी देवतुल्य बनता जाता है। तनावमुक्ति, व्यसनमुक्ति अथवा किसी भी मानसिक कमजोरी या विकारों से मुक्ति के लिए इधर-उधर भटकने से अच्छा है सहज राजयोग अभ्यास को जीवन में नियमित रूप से स्थान देना।

उन्होंने राजयोग के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- राज और योग। राज अर्थात् राजा। इसके नियमित अभ्यास से हम कर्मेंद्रियों के राजा बनते हैं। कर्मेंद्रियों के राजा बनने से हम भविष्य में विश्व राज्य तख्त के अधिकारी बनते हैं। राज का अर्थ रहस्य भी होता है। राजयोग का नियमित अभ्यास हमें जीवन के मूलभूत रहस्यों से अवगत कराता है।

राजयोग में योग शब्द का अर्थ है जोड़ अथवा कनेक्शन या संबंध। राजयोग में हमारा संबंध हमारे परमपिता परमात्मा के साथ जुड़ता है। आत्मा रूपी बैटरी इस शरीर के द्वारा पार्ट बजाते-बजाते डिस्चार्ज हो गई है। यही कारण है दुःख, अशांति और तनाव का। जब पावर हाउस परमात्मा से आत्मा रूपी बैटरी कनेक्ट होती है तो इसकी सभी कमी-कमजोरियां स्वत: मिटती जाती हैं और आत्मा गुणों और शक्तियों में संपन्न बनने लगती है।

राजयोग की विधि है देह सहित देह के सब संबंधों को भूल स्वयं को मस्तिष्क के बीचों-बीच आत्मा निश्चय कर परमधाम निवासी परमपिता परमात्मा शिव से मन-बुद्धि के तार जोड़ना। राजयोग कुछ और नहीं, मन और बुद्धि का, मन और बुद्धि के द्वारा व मन और बुद्धि के लिए सर्वाधिक शक्तिशाली व्यायाम है। इससे तन-मन निरोग और संबंधों का भी शुद्धिकरण होता है।

राजयोग का अभ्यास करने के लिए किसी विशेष आसन, समय, स्थान की आवश्यकता नहीं। हम कहीं भी, कभी भी, खाली पेट या खाकर, जिस प्रकार बैठना सहज लगता हो- इसका अभ्यास कर सकते हैं। इसलिए इसे सहजयोग भी कहते हैं। बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी इसका अभ्यास कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

राजयोग के नियमित अभ्यास से हमारे जीवन में समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय शक्ति, सहनशक्ति, विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति, समेटने की शक्ति व सहयोग शक्ति- यह अष्ट शक्तियां आने लगती हैं। मां दुर्गा को अष्ट भुजाधारी दिखाना इन्हीं अष्ट शक्तियों का प्रतीक है।

राजयोग से जन्म-जन्म के लिए निरोगी काया मिलती है। राजयोग के आधार से सारी वैश्विक समस्याओं का जड़ से उन्मूलन होता है। इसके बल से ही यह धरा स्वर्ग बनती है।

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